25 December 2009

मैनें तुम्हारा ठेका नही ले रखा है

गाजर का हलवा, समोसे, गुलाब जामुन और पकौडों का लुत्फ उठा रही 5-6 औरतों में उसकी बूढी आंखों ने छोटी बहू को पहचान लिया।
बहू मेरे लिये खिचडी बन गई है क्या?
ओहो, तुम्हें तो भूख कुछ ज्यादा ही लगती है। अभी तो तुम्हें चाय और ब्रेड दी थी।
बेटा, चाय मैनें चार बजे पी थी, अब तो साढे आठ बज रहे हैं, थोडी सी खिचडी खा लूं तो नींद आ जायेगी।
तुम्हें दिखाई नही दे रहा है, मेरे मेहमान आये हुये हैं। आज मेरी शादी की सालगिरह है, कम से कम एक दिन तो चैन से बैठने दो।
बेटा, ये नाश्ता पानी तो चलता रहेगा। मैं तो इसलिये पूछ रही थी कि अगर खिचडी बन गई है तो अपने-आप ले कर खा लूंगी और तुम्हें भी बीच में उठना नही पडेगा।
पता नही क्यों तुम मेरे पीछे पडी रहती हो, और भी तो बेटे-बहुएं हैं। कभी-कभार उनसे भी कह दिया करो, मैनें कोई तुम्हारा ठेका नही ले रखा है।
बुढिया इतना सुनते ही चुपचाप अपनी कोठरी में जा कर लेट गई।
कानों में छोटी बहू के स्वर पिघले शीशे की तरह गिरते जा रहे हैं। "बुढिया पता नही कितना खाती है, दिन पर दिन जीभ चटोरी होती जा रही है। सारा दिन इसकी फरमाईशें पूरी करते रहो, काम की ना काज की सेर भर अनाज की" 
गीली आंखों से छत को देख रही है। जितना मुझसे बनता है, उतना तो घर की साफ-सफाई, बर्तनों और कपडे तह करने के काम कर ही देती हूं। एक-एक कर तीनों बडी बहुओं ने उसे "मैनें कोई तुम्हारा ठेका नही ले रखा है" कहकर हाल-चाल भी पूछना छोड दिया है। महिने के एक दिन इस कोठरी में बच्चों और बहुओं का आना और बातें करना उसको खुशियों से भर देता है। उस दिन जब वह अपनी पेंशन के 700 रुपये ले कर आती है और सब बच्चों को मिठाईयां और बहुओं को 100-100 रुपये देती है।  
बेटा काम पर से लौटा नही है। दोनों बच्चे ऊपर वाले कमरे में पढ रहे हैं। बिना बच्चों और पति के शादी की सालगिरह केवल सहेलियों के साथ मनाई जा सकती है क्या?

22 December 2009

बात अब तक बनी हुई है

धन्यवाद, शुक्रिया, मेहरबानी, आभार उस परमपिता, परमात्मा, अल्लाह, रब, भगवान, परमसत्ता को
Ye sab tumhara karama hai aaqa


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20 December 2009

जाको राखे साईयां

एक बै अस्पताल म्है एक बालक नै जनम लिया तो अस्पताल म्है हंगामा मच गया, क्यों?
क्योंकि बालक जन्म लेते समय हंस रहा था अर उसके केवल एक हाथ की मुट्ठी बंद थी। डाक्टर नै जब उसकी मुट्ठी खोली तो उसमै एक गोली थी। अरे भाई बन्दूक की नहीं वा वाली ई पिल या अन्वांटेड वाली ;) समझ गये ना
तो जाको राखे सांईयां, मार सके ना कोये
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एक बै मुसाफिर जाट अपनी कार ले कै पैट्रोल पम्प पै गया।
जाट - भाई पांच रूपये का पैट्रोल घाल दे
कर्मचारी(व्यंग्य से) - साहब इतना पैट्रोल डलवा कर कहां जाओगे
जाट - अरै हम सां जाट आदमी, हम तो नूएं धन फूकां करां
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प्राध्यापक - अगर सच्चे मन से प्रार्थना की जाये तो, भगवान जरूर पूरी करते हैं
एक छात्र - रहन दो मास्टरजी, गर इस्सा होता तै आज आप मेरे ससुर जी होते 
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अजब प्रेम की गजब कहानी
एक मुर्गी और सुअर में प्यार हो गया, कुछ ही दिन में दोनों चल बसे।
मुर्गी मरी स्वाईन फ्लू से और सुअर मरा बर्ड फ्लू से
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एक सरदार जी और एक नाई ट्रेन में आमने-सामने की सीट पर बैठे यात्रा कर रहे थे। सरदार जी को नींद आने लगी तो उन्होंने अपने सामने की सीट पर बैठे नाई से कहा कि मुझे रोहतक आने पर जगा देना। सरदार जी ने उस आदमी को दस रूपये भी दे दिये और सो गये। नाई ने सोचा कि सरदार ने दस रूपये शायद शेव बनाने के लिये दिये हैं। उसने अपना उस्तरा निकाला और सोते हुये सरदार जी को क्लीन शेव कर दिया। अभी रोहतक काफी दूर था तो उसने सोचा चलो सरदार जी के बाल भी काट देता हूं, मेरा भी समय व्यतीत हो जायेगा। उसने सरदार जी को सफाचट गंजा कर दिया। सरदार जी गहरी नींद में सोते रहे और उन्हें पता ही नही चला। रोहतक स्टेशन आया तो नाई ने सरदार जी को जगाया। सरदार जी ने नाई का धन्यवाद किया और ट्रेन से उतर गये। सरदार ने अपने घर आकर जब आईने में अपना चेहरा देखा तो हैरान रह गये और बोले - "साले को दस रूपये मैनें दिये और उसने जगा किसी और को दिया।"
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18 December 2009

दे ताली

एक ताली होती है ताला या ताले (Lock) की स्त्री याने के चाभी या चाबी (Key) और दूसरी ताली जो दोनों हाथों को तेजी से टकरा कर बजाई जाती है। दोनों हाथों को जब  टकराते हैं तो जो ध्वनि पैदा होती है, उसे ताली कहते हैं। ताली कई तरह से बजाई जा सकती है। एक प्रकार की ताली में एक हाथ की हथेली और दूसरे हाथ की ऊंगलियों से ध्वनि की जाती है। दूसरे प्रकार में दोनों हथेलियों को टकराते हैं। कहते हैं ताली एक हाथ से नही बजती है, लेकिन कुछ लोग एक हाथ से भी ताली बजा लेते हैं। कोई भी थोडे अभ्यास से एक हाथ से ताली बजा सकता है। हाथ की ऊंगलियों को झटके से उसी हाथ की हथेली पर मारने से जो ध्वनि होगी, वह एक हाथ से बजी ताली है। ताली ज्यादातर खुशी प्रकट करने और सराहना करने के काम आती है। ताली बजाकर रोगों का इलाज भी किया जा सकता है और ताली पीट कर बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है
image ताली कब-कब बजाई जाती है या कब-कब ताली बजती है, आईये देखते हैं:-
  • किसी का स्वागत करने के लिये (Give him a big hand)
  • किसी का कलाप्रदर्शन पसन्द आने पर (आभार प्रकट करने के लिये) 
  • किसी का भाषण या वक्तव्य पसन्द आने पर
  • मस्ती में नाचते वक्त
  • व्यायाम भी होता है ताली बजाना
  • ताली बजाकर इशारे भी किये जाते हैं।
  • मंच पर किसी के सम्मान में भी ताली बजाई जाती है।
  • भक्त लोग ताली बजा-बजा कर भजन गाते हैं और पूजा आराधना करते हैं।
  • तमाशबीन तमाशे दिखाते वक्त कहते थे- "बच्चों बजाओ ताली"
  • शिशुओं (छोटे बच्चों) के साथ खेलते वक्त भी ताली बजाई जाती है।
  • शिशु भी खेलते वक्त ताली बजाते हैं।
  • लैंगिक विकलांग (वह हिजडे, जो शादी-ब्याह, पुत्र-जन्म आदि पर शगुन वगैरहा लेने आते हैं)  एक खास तरह की ताली बजाते हैं, जो केवल दोनों हथेलियों को टकरा कर बजाई जाती है। इसमें ऊंगलियां आपस में नहीं मिलती और इसमें विशेष और तेज ध्वनि होती है।
  • हरियाणवी लोकगीतों (रागणी) में ताली का संगीत दिया जाता है, जो एक लय में और बहुत मधुर लगता है।
  • कव्वाली गाते वक्त ताली से ताल यानि लय देना जरूरी होता है। यानि बिना ताली के तो कव्वाली हो ही नही सकती।
  • ज्यादातर औरतें झगडते वक्त ताली बजा-बजा कर आपस में ताने देती हैं।
  • पुराने समय में राजे-महाराजे तीन ताली बजाते थे और कहते थे - "नाचने वाली को पेश किया जाये"
  • हंसी-मजाक चलता है तो किसी बात पर कोई ना कोई एक हाथ आगे करके कह उठता है- "दे ताली" और दूसरा उसके हाथ पर हाथ मार देता है।

17 December 2009

अल्लाह अल्लाह कहो इंशाअल्लाह

रोज आफिस से छह बजे निकलता हूं। शाम 6:30 बजे की सिरसा एक्सप्रेस से घर जाते-जाते 8:00 बज ही जाते हैं। फिर हाथ-मुंह धोना (गर्मियों में नहाना) और 8:30 बज गये। रात का खाना खाया और उर्वशी, लव्य, याचिका तीनों बच्चों के साथ खेलना या फिल्मी गाने और भजन सुनता हूं और तीनों के साथ नाचता भी हूं। रात को घर से बाहर निकले बिना खाना भी पच जाता है और अन्तर्तम भी आनन्द से भर जाता है।
आज आप भी सुनिये मेरे पसन्दीदा भक्ति संगीत कलैक्शन में से एक भजन  (आप इसे नात या कव्वाली भी कह सकते हैं)

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13 December 2009

दारू पी कै जनानी छेड दी

एक बार जंगल के राजा शेरसिंह नै जंगल म्है एक दावत का इंतजाम करा। सारे जंगल के जानवरां तै न्यौता दिया। दावत आले दिन सारे जानवर शेरसिंह के घर में बढिया-बढिया पकवान, मिठाईयां और दारू के मजे लेने पहुंच गये। (हां शेरसिंह नै दारू का भी पूरा इंतजाम कर राक्खा था)  चूहेराम नै पहलां कदे दारू ना पी थी। आज उसने भी एक-दो पैग चढा लिये। अर भाईयों चूहेराम कै नशा होग्या चोखा।

उसनै भी डीजे पै चढ कै खूब डांस-डूंस करा।जब उसनै एक के दो और दो के चार दिखन लाग गए तो वो झूमता-झामता पास पडे सोफे पै पैर पसार कै लेट गया। इतनी देर म्है बिल्लोरानी भी उडै आग्यी। बिल्लोरानी नै चूहेराम को देखा तो दिल मैं  पेट मैं कुछ-कुछ होन लाग्या।

पर यो राजा शेरसिंह का घर था, बिल्लोरानी कुछ भी ना कर सकै थी।
बिल्लोरानी - चूहेराम, सोफे पर तै उठ जा, मन्नै बैठन दे
चूहेराम - बिल्लोरानी, कितै और जगहा देख, दिखता नहीं मैं आराम कर रहा हूं
बिल्लोरानी -  चूहेराम, चुपचाप हट जा वरना बुरा होगा
चूहेराम - अपना काम कर बिल्लो, मन्नै परेशान ना कर
बिल्लोरानी - देख चूहे, आज यो शेरसिंह का घर ना होता तो मैं तन्नै तुरन्त मजा चखाती
चूहेराम - जा-जा, ना तो लोग नू कहैवेंगें के मन्नै दारू पी के जनानी छेड दी 
चित्र गूगल से साभार लिये गये हैं

12 December 2009

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)3

पिछली कडियों पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)1 और  2 में आपने यज्ञ (हवन) के महत्त्व के बारे में पढा। अब आगे पढिये यज्ञ के लघुत्तम रूप में प्रचलित धूप, अगरबत्ती आदि क्या यज्ञ के विकल्प हैं।

अग्नि में डालने से कोई पदार्थ नष्ट नही हो जाता है, बल्कि रूपान्तरित होता है। ठोस या द्रव रूप से गैस रूप में बदल जाता है। खाया हुआ 50 ग्राम घी एक ही मनुष्य के लिये लाभकारी होता है, किन्तु वही घी यज्ञीय प्रक्रिया से सूक्ष्म होकर और शक्तिशाली बनकर हजारों मनुष्यों, पशु-पक्षियों तथा वृक्षादि स्थावरों के लिये भी लाभकारी बन जाता है। जलायी हुई अगरबत्ती की सुगन्ध पूरे दिन भर मकान में बनी रहती है।

यज्ञ का प्रयोजन केवल सुगन्धि फैलाना ही नही है, बल्कि जलवायु के प्रदूषण को भी नष्ट करना होता है। उचित मात्रा में व सीमित स्थान पर यज्ञाग्नि में डाली गयी अनेक प्रकार की औषधियों व घी के जलने पर उत्पन्न धुआं दूर-दूर के जलवायु के प्रदूषण अथवा दोषों को दूर करता है।

धूप, अगरबत्ती या फूलों के रस में यह सामर्थ्य नही होता कि वह घर में विद्यमान समस्त गंदी वायु को बाहर निकाल दें तथा शुद्ध वायु का बाहर से प्रवेश करा सकें।
इसलिये यज्ञ का विकल्प ये धूप आदि नही हैं।

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)2
अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

10 December 2009

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)2

यज्ञ का लघुत्तम स्वरूप "अग्निहोत्र" है जो एक वैदिक प्रक्रिया है। आजकल विश्व के कई देशों में बीमारियां दूर करने, प्रदूषण रोकने, एवं कृषि उत्पादन को बढाने के लिये "अग्निहोत्र" को गृह-चिकित्सा (HOME THERAPY) के रूप में अपनाया जा रहा है।

गाय के घी के साथ सामग्री की मन्त्रोच्चार के साथ जब आहुति दी जाती है तो निम्न प्रकार की चार गैसों का पता चलता है। (1) एथिलिन आक्साइड, (2) प्रापिलीन आक्साइड, (3) फार्मेल्डिहाइड, (4) बीटा प्रापियों लेक्टोन। आहुति देने के पश्चात गोघृत से एसिटिलीन निर्माण होता है। यह एसिटिलीन प्रखर ऊष्णता की ऊर्जा है। जो दूषित वायु को अपनी ओर खींचकर उसे शुद्ध करती है। गोघृत से उत्पन्न इन गैसों में कई रोगों को तथा मन के तनावों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है।

जल, वायु आदि को शुद्ध करने के लिये तथा सुरक्षा के लिये आजकल कृमिनाशक (Disin Feetants), कृमिहर (Antiseptic) तथा संरक्षक (Preservatives) पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। किन्तु ये पदार्थ सर्वत्र सब प्रकार के कृमियों का नाश करने में असमर्थ होते हैं, तथा जल, भूमि, खाद्यान्न के उपयोगी भाग को भी नष्ट करते हैं और इनका कुप्रभाव भी होता है।

प्रमाणिक रूप में बने यज्ञ कुण्ड में निर्धारित वृक्षों की लकडियां जलायी जायें तथा उचित मात्रा में घी तथा सामग्री डाली जाये तो अनेक प्रकार की लाभकारी गैसें, बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होती हैं। जो वायु के प्रदूषण को नष्ट करके वातावरण को सुगन्धित व स्वास्थयकारी बना देती हैं।

अगली कडी में क्या धूप अगरबत्ती आदि यज्ञ के विकल्प हैं?
अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

08 December 2009

पर्यावरण प्रदूषण (निवारण और समाधान)1

पिछली कडियों में आपने पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण) के बारे में पढा। आपने दीपक, धूप, अगरबत्ती किसलिये में पढा कि धूप, अगरबत्ती वगैरा यज्ञ का ही लघुत्तम रूप हैं। अब आगे की कडियों में पढिये यज्ञ द्वारा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या का समाधान तत्काल कैसे हो सकता है।

अपने द्वारा उत्पन्न किये गये प्रदूषण को दूर करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। साढे छह अरब की आबादी वाली पृथ्वी पर सभी न सही यदि 20 करोड परिवारों में भी नित्य प्रति यज्ञ प्रारम्भ हो जाये तो इस प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है। वाहनों, मिलों, कारखानों द्वारा उत्पन्न हुई प्रदूषित वायु को यज्ञ के द्वारा उत्पन्न शक्तिशाली धूम (धुआं) की एक मात्रा ही शुद्ध करने में सक्षम है। यज्ञ के द्वारा निकली शक्तिशाली गैसें आसपास विद्यमान वृक्षों, पौधों को इतना प्रभावित करती हैं कि वे भविष्य में भी उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को सोख लेने में सक्षम हो जाते हैं।

यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि स्थूल पदार्थ की अपेक्षा उसके चूर्ण में, चूर्ण की अपेक्षा उसके तरल में और तरल रूप की अपेक्षा उसके वायु या गैस रूप में अधिक शक्ति होती है। उदाहरण के लिये दस ग्राम हींग को घी में गर्म करके 100 किलो दाल को सुगन्धित किया जा सकता है। एक मिर्च अग्नि में डालने से आस-पास के सैंकडों व्यक्तियों को प्रभावित करती है। ठीक वैसे ही यज्ञ कुण्ड की अग्नि से सुगन्धित, पुष्टिकारक, रोग विनाशक, मधुर पदार्थों को विधिवत गोघृत (गाय का घी) के साथ जलाया जाता है तो यह पदार्थ प्रबल शक्तिशाली बनकर सहस्त्र गुणी वायु के प्रदूषण को नष्ट करके उसे सुगन्धित व सुखदायी बना देते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर विशाल यज्ञों का जगह-जगह आयोजन करके भी इस समस्या का तत्काल समाधान हो सकता है।    
जारी है……………

अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

06 December 2009

अंक अजूबा सात

7 तंत्र-मंत्र
image
7 परिक्रमा
7 महाद्वीप
7 महासागर
7 फेरे अग्नि के
7 रंग इन्द्रधनुष के
7 घोडे सूर्य के रथ के
7 दिनों में संसार की रचना
7 आश्चर्य (सात अजूबे इस दुनिया के)
7 सुर संगीत के (सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि)
7 ग्रह (9 ग्रहों में राहु और केतु का अस्तित्व नहीं हैं)
7 गुण (विश्वास, आशा, दान, निग्रह, धैर्य, न्याय, त्याग)
7 जन्म (सातों जन्म मैं तेरे साथ रहूंगा यार -फिल्मी गाना)
7 दिन का सप्ताह (सोम, मंगल, बुध, वीर, शुक्र, शनि, रवि)
7 समुद्र (सात समन्दर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई - फिल्मी गाना)
7 पाप (अभिमान, लोभ, क्रोध, वासना, ईर्ष्या, आलस्य, अति भोजन)
7 उपहार आत्मा के (विवेक, प्रज्ञा, उपदेश, भक्ति, ज्ञान, शक्ति, ईश्वर का भय)
7 ताल (नैनीताल, भीमताल, नौकुचियां ताल, राम ताल, सीता ताल, लक्ष्मण ताल और सात ताल)

05 December 2009

मानव शरीर (आश्चर्यजनक किन्तु सत्य)

image मनुष्य के शरीर में इतनी चर्बी है कि उससे साबुन की सात बट्टियां बनाई जा सकती हैं। इतना चूना है कि उससे 10X10 फुट के एक कमरे की पुताई की जा सकती है। 14 किलोग्राम के करीब कोयला (कार्बन) है। अग्नितत्त्व (फास्फोरस) यानि आग इतना है कि उससे करीब 2200 माचीस बनाई जा सकती हैं। 1 इंच लंबी कील बनाने लायक लोहा और एक चम्मच गंधक होता है। और करीबन एक चम्मच अन्य धातुएं जैसे सोना, पारा आदि होती हैं। शरीर में 50% पानी होता है। इस शरीर को जीवित रखने के लिए ताजिन्दगी ईंधन के रूप में 50 टन खाद्य सामग्री और 11000 गैलन पीने वाले पदार्थों की जरुरत होती है।
मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसके शरीर में 305 हड्डियां होती हैं। मनुष्य जैसे-जैसे बडा होता है, वैसे-वैसे ये हड्डियां घटकर 205 रह जाती हैं। इन हड्डियों मे 100 जोड होते हैं। शरीर में 650 पेशियां होती हैं। हड्डियों और पेशियों को जोडने वाली कंडरा (टेंडन) 8 टन प्रति साढे छह वर्ग सेंटीमीटर दबाव सह सकती है। अपनी पूरी जिन्दगी में शहरी आदमी लगभग 16000 किलोमीटर और ग्रामीण 48000 किलोमीटर पैदल चल लेता है।
शरीर में उपलब्ध धमनियों, शिराओं और कोशिकाओं को मिलाकर नसों की लम्बाई 96540 किलोमीटर होती है। प्रति मिनट 10 फुट खून उछलता है। खून में उपलब्ध 25 खरब लाल कोशिकाएं (रक्ताणु) प्रतिपल रोगाणुओं से लडने को तैयार रहती हैं। सफेद कोशिकाएं (श्वेताणु) जीवन पर्यन्त 5 अरब बार सांस लेने में मदद करती हैं। शरीर में व्यवस्थित सभी अंग वाटरप्रूफ थैलियों में सुरक्षित रहते हैं। शरीर की संपूर्ण त्वचा लगभग 20 वर्गफुट लंबी व चौडी होती है। पूरे शरीर में करीब 50 लाख बाल होते हैं। जीवन का संपूर्ण आनन्द लूटने के लिए 9000 स्वाद कोशिकाएं होती हैं। प्रत्येक तीन साल में त्वचा सांप की केंचुली की तरह परिवर्तित होती रहती है। श्वेताणुओं की उम्र 120 दिन होती है। शेष कोशिकाओं के जीवन-मरण का सिलसिला चलता रहता है।

04 December 2009

आरजुओं का सारा जहां लुट गया

आज किसी दोस्त किसी बिछडे दोस्त को याद कर लिया जाये। ठंडी छांव की ही नही कभी-कभी कडी धूप भी जरूरी होती है। कभी-कभी उदास भी हो लिया जाये।
आज सुनिये एक दर्दीली आवाज में कव्वाली । उम्मीद है आपको यह कलाम पसन्द आयेगा।

इन हसीनों के चेहरे तो मासूम हैं
किसको कातिल कहूं, किसको इल्जाम दूं
किसने बिस्मिल किया किसने लूटा मुझे
क्या कहूं ऐ फना मैं कहां लुट गया



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03 December 2009

रलदू चौधरी और Ftv

एक दिन रलदू चौधरी घर महै बैठा फैशन टी वी (FTV) देखै था। अचानक उसका तेरह साल का बेटा फत्तू उसके कमरे महै आग्या। फत्तू नै देखते ही रलदू सकपका गया अर एकदम तै डिप्लोमैटिकली बात बना कै बोल्या - "गरीब छोरी सैं, कपडे लेन के पिस्से भी कोनी इन धोरै"
फत्तू बोल्या - बाब्बू जब इस तै भी गरीब आवैं तै मन्नै भी बुला लिये

30 November 2009

ना जी भर के देखा Shyam Di Kamli

"ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बडी आरजू थी मुलाकात की"

इस एल्बम का नाम है श्याम दी कमली
इस प्यारे भजन  के गायक श्री विनोद अग्रवाल जी  भजन और सूफी गायक के साथ-साथ संत भी हैं। इनके कंठ से निकले गीत मुझे तो झूमने पर मजबूर कर देते हैं।

यह गीत करीबन 30 मिनट का है। इसलिये आप खाली समय में सुनेंगें तो ही इस मधुर संगीत का आनन्द ले पायेंगें। अंतरे में धुन है, आपकी आंखें स्वत: बंद हों जायेंगीं और आपको अपार आनन्द की अनुभूति होगी। 



इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ति है, तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

29 November 2009

ताऊ का साक्षात्कार

आज आपको एक मजेदार बात बताता हूं। शायद आप पहले ही रामप्यारी से सुन चुके हों, लेकिन जिन्होंने नही सुनी उनको तो मजा आयेगा ही। ये तो आपको मालूम ही है के उडनतश्तरी जी, राज भाटिया जी और ताऊ रामपुरिया जी लंगोटिया यार हैं।
तो हुआ नूं के एक बार ये तीनों नौकरी की खातिर इन्टरव्यू देण गये। पहले बारी आई उडनतश्तरी जी की। अन्दर गये और जल्दी ही इन्टरव्यू देकर बाहर आ गये।
ताऊ - हां भाई के सवाल पूछा तेरे तै।
उडनतश्तरी - मेरे से तो ये पूछा के ताजमहल कहां है, नक्शे में बताओ।
फिर राज भाटिया जी का नम्बर आया। भाटिया जी भी जल्दी से इन्टरव्यू दे कर बाहर आये।
ताऊ -  राज तेरे से के पूछा
राज भाटिया जी - मेरे से भी ताजमहल कहां है, नक्शे में पूछा
ताऊ नै सोची ये तो सब तै योए सवाल पूछैं सै। ताऊ नै ताजमहल का बेरा कोनी था। इब ताऊ नै जल्दी-जल्दी नक्शा निकाला और उन दोनों से पूछ कै आगरा ढूंढ लिया और याद कर लिया।
ताऊ की बारी आयी।
साक्षात्कार लेने वाला - आप ये बताईये कि नक्शे में गंगा नदी कहां पर है
ताऊ - जी ताजमहल बता दूं
साक्षात्कार लेने वाला - जी नही आप गंगा नदी बताईये
ताऊ - जी ताजमहल पूछ लो नै
साक्षात्कार लेने वाला - आपको गंगा नदी ही बतानी होगी
ताऊ -  अरै के गंगा-गंगा लगा राखी सै गंगा म्है के डूब कै मरेगा, ताजमहल पूछले नै

यह रचना केवल आपको हंसाने के लिये है। अगर आपको बुरा लगा है तो क्षमाप्रार्थी हूंगा और हटा दूंगा।



27 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)4

रक्षा कवच में छेद
पृथ्वी की सतह से ऊपर आकाश में विद्यमान वायुमण्डल में नाइट्रोजन। आक्सीजन, कार्बनडाइआक्साईड, ओजोन आदि गैसों के मिश्रण से बनी अनेक परतें होती हैं (ऐसा वर्णन वेदों में भी आया है)। इन गैसों में ठोस प्राणवायु (ओजोन) नामक गैस की मात्रा बहुत कम होती है। ओजोन की परत पृथ्वी तल से ऊपर 24 से 48 किलोमीतर के बीच पायी जाती है। यह परत सभी प्राणियों के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह ओजोन नाम गैस की परत सूर्य तथा ब्रह्माण्ड के अन्य नक्षत्रों से आने वाली शक्तिशाली व घातक पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट रे) को पृथ्वी पर आने से रोकती है। साथ ही पृथ्वी पर से अन्तरिक्ष की और जाने वाले ताप विकिरण (इन्फ्रारेड रेडियेशन) को वापस पृथ्वी पर भेजकर जीवों की रक्षा में सहायता करती है। अरबों वर्षों से यह वायु की परत प्राणियों की इस प्रकार दोहरी रक्षा कर रही है।

1985 में वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण में पाया कि अंटार्कटिका महाद्वीप अर्थात दक्षिणी ध्रुव के हिम प्रदेश के ऊपर लगभग 30 किलोमीटर पर वायुमण्डल में ओजोन की परत में एक बडा छेद हो गया है। वहां ओजोन की मात्रा में 20% की कमी हो गई है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर होने वाली कुछ रासायनिक क्रियाओं से पर्यावरण में फैलने वाले प्रदूषण के कारण ही इस ओजोन नामक परत में छिद्र हुआ है। 'क्लोरो फ्लोरो कार्बन' नामक रासायनिक तत्त्व का प्रयोग इस परत के छिद्र होने में बडा कारण है। रेफ्रिजरेटरों, वातानुकूल संयंत्रों, दुर्गन्धनाशक पदार्थों, प्रसाधनों, फास्ट फूड को ताजा रखने वाले साधनों, ग्रीन हाऊसों में इसका प्रयोग किया जाता है। ओजोन नामक परत में छिद्र होने के कारण लोग कैंसर, आंखों में ट्यूमर आदि भयंकर रोगों से ग्रस्त होने लगे हैं।

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)2
पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)3

मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)

26 November 2009

छैऊ का न्यौता

आज आपको सुनाता हूं एक पुराना हरियाणवी मजेदार चुटकुला

एक गांव में नत्थुलाल नाम का आदमी था। उसके सात बच्चे (छह बेटे और एक बेटी) थे, और सब के सब बडे पेटू थे। उनकी लडकी का नाम था शर्मिली । जिसे सब भाई प्यार से सरम कह कर बुलाया करते थे और सबसे छोटे लडके का नाम छैऊलाल था।

मित्रों हुआ नूं के एक बार गाम मै किसे कै दावत थी। उसनै सारे गाम आलां तै जिमण का न्यौता दिया। इन छह भाईयां के घर म्है न्यौता देन की बारी आयी तो सोचा के ये सारे के सारे भाई बहुत पेटु हैं, ये पहलां आगये तै सारे गाम का खाना खा ज्यांगें और इनकै न्यौता नही दिया तो बात गलत हो ज्यागी। तो सोचा एक जणे का न्यौता दे देते हैं। उन्होंने कहा - " नत्थुलाल जी, कल म्हारे यहां छैऊ का न्यौता है। (उन्होंने सबसे छोटे लडके का न्यौता दिया था)

आगले दिन सभी भाई जिमणे के लिये उनके यहां चले गये। मेजबान ने अपना माथा पीट लिया। गुस्से में उनसे कहा - "तम छैऊं के छैऊं जीमण आग्ये, शर्म नहीं आई"

वे छोरे बोले -  "ना जी सरम भैंसा की सानी करन लाग री थी, नूं करो उसका परोसा दे दो हम घरां ले जा कै सरम नै खिला दयांगें।"

छैऊं के छैऊं      -      छह के छह
जीमणा            -      खाना खाना
सानी                -      चारा

25 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)3

खाद्यान्नों की बढती हुई मांग को पूरा करने के लिये खेतों में रासायनिक खादों का अन्धाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। परिणामस्वरूप कृषि योग्य उपजाऊ भूमि की उर्वरा तथा जलधारण करने की शक्ति/क्षमता एवं चिकनाई समाप्त होती जा रही है तथा खाद्यान्न के उत्पादन में जो उत्कृष्टता थी वह भी नष्ट हो गई है।

मुम्बई के इन्स्टीट्यूट आफ साइंस (बायो कैमिस्ट्री विभाग) के वैज्ञानिकों ने पिछले वर्षों में स्थानीय फलों व सब्जियों की जांच की तो पाया कि इनमें कीटनाशक जहरीली दवाओं के अंश बहुत अधिक मात्रा में विद्यमान हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार जो वस्तु मनुष्य को स्वस्थ, बलवान, स्फूर्तिमान रखती है उस वस्तु का नाम ओषजन (Oxygen) या प्राण है। इस प्राणवायु ओषजन में आज धूल, सीसा, पारा व अन्य अनेक जहरीली गैसें मिल गयी हैं। जब इस विषैली प्राणवायु को हम फेफडों में भरते हैं तो ये सब हमारे फेफडों के माध्यम से रक्त में मिल जाते हैं और सारे शरीर में फैल कर विभिन्न रोगों को उत्पन्न करते हैं।


पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)2
मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)



24 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)2

अब आगे….……
नदी, नहरें, तालाब, झीलें, कुएँ जो सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं, क्लोराइड्स, पेस्टिसाईड्स व अन्य अनेक प्रकार के जहरीले रसायनों से भयंकर प्रदूषित हो गये हैं। परिणाम स्वरूप इनका पानी उत्तम फसल उत्पन्न करने में असमर्थ है।

प्रदूषण के कारण ही प्रकृति का वर्षा चक्र (मानसून) अनिश्चित व असंतुलित हो गया है। साथ ही कहीं-कहीं पर तो वर्षा का पानी इतना अम्लयुक्त (Acidic) होता है कि अच्छी फसलें भी नष्ट हो जाती हैं।

जंगलों की अन्धाधुंध कटाई, नदी, नालों, तालाबों, खेतों में फेंकी जाने वाली गंदगी या कूडे-कचरे के कारण पौधों की कार्बन-डाई-आक्साइड को ग्रहण करने तथा पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन को छोडने की प्राकृतिक प्रक्रिया मन्द होती जा रही है। वैज्ञानिक कहते हैं कि बढते जा रहे वायु प्रदूषण पर यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो कुछ वर्षों बाद ऐसी स्थिति बन जायेगी कि मनुष्यों को अपने साथ प्राणवायु का थैला (Oxigen Gas Cylinder) बांधकर रखना होगा।
पीने के लिये खनिज जल (Mineral Water Bottle) तथा नाक को ढकने के लिये कपडे की पट्टी (Mask) का प्रचलन हो गया है।

अगली कडी में पढेंगें फलों, शाकों और सब्जियों में जहर

अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)

23 November 2009

पत्थर की राधा प्यारी

भजन, संगीत, गाने, कलाम आदि हम सुनते हैं तो मन प्रफ्फुलित हो जाता है। दिमागी तनाव  और शारीरिक थकान  भी दूर हो जाती है। फिल्मी और उल्टे-सीधे गाने तो हम सब जगह सुनते ही रहते हैं।
आज आप सुनिये एक बहुत ही प्यारा भजन । बस आप प्ले का बटन दबाईये और आंखें बंद कर के बैठ या लेट जाईये। सचमुच आपको आत्मिक, शारीरिक और मानसिक सुकून मिलेगा । 
घबराईये नहीं यह भजन ज्यादा बडा नही है, बिल्कुल छोटा सा लगभग 8 मिनट का ही है। आशा है कि आपको पसन्द आयेगा । Pathar ki Radha Pyari



इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ति है, तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

22 November 2009

दारूबाज फत्तू चौधरी

फत्तू चौधरी दारू घणी पिया करता। मां संतो अर बाब्बू रलदू  चौधरी उसकी इस आदत तै घणे दुखी हो रह्ये थे। रोज फत्तू नै समझाते - "बेटा दारू मत पिया कर, दारू बहोत बुरी चीज सै।
पर फत्तू उनकी बात एक कान तै सुनता अर दूसरे कान तै निकाल देता।

एक सांझ जब फत्तू दारू पी कै आया तो संतो और रलदू फेर उसनै समझान लागगे और बुरा-भला कहन लागगे।
फत्तू बोला - बाब्बू तन्नै कदे दारू पी सै ?
रलदू - ना बेटा, मन्नै अपनी जिन्दगी म्है कदे दारू नहीं पी।
फत्तू - बाब्बू आज एक काम कर तू मेरे गेलां दो-दो पैग पी ले, फेर जै तू सवेरे कहवैगा तै मैं कदे भी दारू नही पीयूंगा।
रलदू - अरै छोरे के बकवास कर रह्या सै तू। तन्नै शरम भी नही आई या बात कहते।
फत्तू - बाब्बू मैं कसम खाऊं सूं । मैं कल के बाद कदे भी दारु कै हाथ नही लगाऊंगा, पर शर्त या सै के आज तन्नै मेरे साथ पीनी पडेगी।
संतो - फत्तू के बाब्बू , जब छोरा कसम खावै सै तो आज यो काम भी कर कै देख ले। कितने जतन तो हमनै कर लिये इसकी दारू छुडाने के लिए। आज तू पी लेगा तो कल से यो दारु जिन्दगी भर के लिये छोड देगा।

बेटे की भलाई के वास्ते संतो के कहने से रलदू नै फत्तू के साथ विडियो पै गाने सुनते-सुनते दो-तीन पैग चढा लिये ।

कुछ दारू का नशा और कुछ गाने का, ऊपर तै चालती सीली-सीली हवा रलदू का मूड हो गया रोमांटिक, रलदू अपने कमरे मै नाचता - नाचता और गाना गाता पहुंचा तो उसनै संतो भी सुथरी-सुथरी सी लाग्गी।  रलदू नै अपनी जवानी के दिन याद आगये और उसकी लच्छेदार बातां से संतो भी खुश होगी ।

सवेरे उठते ही फत्तू बोला - "बाब्बू ठीक सै अगर तू कहवै तो आज से मैं कदे भी दारू नही पीयूंगा।"
रलदू बोलता उससे पहलां ही संतो बोली - "बेटे फत्तू , तू दारू छोड चाहे पी, तेरी मर्जी,  पर तेरा बाब्बू आज के बाद रोज पिवैगा।"

 
यह पोस्ट केवल आपको हंसाने के लिये है । कृप्या इसे हल्के-फुल्के अंदाज में लें। 
अगर किसी को आपत्ति है तो हटा दी जायेगी।

21 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)1

गतांक से आगे
विषय भोगों को अधिकाधिक मात्रा में भोगने की लालसा ही, आज के संसार में उत्पन्न हुवे अनियंत्रित औद्योगिकीकरण के पीछे मुख्य कारण है। इसी के परिणाम स्वरूप आज सडकों, नहरों, बांधों, रेलों, कारों, बसों, संचार साधनों, कल-कारखानों, तकनीकी यंत्रों का जाल सा बिछ गया है । खाद्यान्नों, सब्जियों, फलों आदि का उत्पादन अधिकाधिक करने के लिये रासायनिक खादों तथा कीटनाशक औषधियों का अन्धाधुंध प्रयोग किया जा रहा है । इन सब के माध्यम से आज का अधिकांश जनसमुदाय भोग विलास की सामग्री में लिप्त होता चला जा रहा है।

भोग सामग्री बढी, भोग बढा, किन्तु इन कल-कारखानों, वाहनों तथा रासायनिक खादों आदि से उत्पन्न होने वाली महाविनाशकारी गैसों, धुएं और बीमारियों ने आज तबाही मचा दी है । अनियंत्रित औद्योगिकीकरण के परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर प्रदूषण रूपी महाभंयकर भस्मासुर उत्पन्न हो गया । इस राक्षस के चंगुल में हवा, पानी, मिट्टी, ध्वनि, प्रकाश, आकाश सभी कुछ आ चुका है । विश्व के सभी बुद्धिजीवियों, विशेषकर वैज्ञानिकों को भी इस विषय पर संशय हो गया है कि ऐसी पृथ्वी पर मानव जाति भविष्य में जीवित भी रह पायेगी या नहीं । अग्निहोत्र यूनिवर्सिटी अमेरिका द्वारा प्रकाशित "Wholistic Healing"
पुस्तक में तो स्पष्ट कह दिया गया है कि "प्रदूषण से उत्पन्न महाविनाश के खिलाफ सामूहिक तौर पर यदि कोई उपाय न किया गया तो इस युग में मानव जीवित नहीं रह पायेगा" ।

मनुष्य जाति जिस खाद्य सामग्री का प्रयोग करती है, उसका अधिकांश भाग अन्न, शाक, फल, फूल, वनस्पति, कन्द, मूल, औषधि आदि के रुप में होता है । ये सब खाद्य पदार्थ मिट्टी, पानी, हवा तथा सूर्य के प्रकाश से उत्पन्न होते हैं । शेष भाग पशु, पक्षी, मछली आदि के माध्यम से प्राप्त होता है, ये भी अन्तत: वनस्पति आदि खा कर ही जीते हैं । आज धरती, पानी, वायु आदि के प्रदूषित होने के कारण खाद्य पदार्थ पोषक तत्त्वों से रहित अशुद्ध और शक्तिहीन बन गये हैं ।

20 November 2009

दीपक, धूप, अगरबत्ती, मोमबत्ती किसलिये

विश्व के लगभग सभी मत, पंथ, सम्प्रदायों में चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम, ईसाई हों या यहूदी, पारसी हों, बौद्ध या जैन, यहां तक कि पिछडे प्रदेशों में रहने वाली जंगली जातियों व कबीलों में भी, किसी न किसी रूप में यज्ञ की प्रथा आज भी विद्यमान है। देश, काल व परिस्थितियों के कारण विशुद्ध वैदिक यज्ञ के स्वरूप व क्रिया में भेद तथा विकृति उत्पन्न होती चली गयी। धार्मिक लोग, दीपक, मोमबत्ती, धूप, धूनी, अगरबत्ती आदि के रूप में इस परम्परा को बनाये हुये हैं।

"इन क्रिया कांडों का क्या प्रयोजन है" ऐसा प्रश्न किये जाने पर सभी के उत्तर में यही भाव निकलते हैं कि वे यह कार्य सुख, शान्ति, स्वास्थय, शक्ति, को प्राप्त करने तथा प्राकृतिक प्रकोपों, रोगों, भयों व अनिच्छित घटनाओं को रोकने के लिये करते हैं। यद्यपि वेदादि शास्त्रों में यज्ञानुष्ठान का विधान है, किन्तु धर्मग्रन्थों पर आस्था न रखने वाली आज की नई पीढी, जो केवल विज्ञान, तर्क, युक्ति तथा प्रत्यक्ष प्रमाणों पर ही विश्वास रखती है, को ध्यान में रखकर, कुछ तथ्यों व घटनाओं का संकलन किया गया है।

प्रभु कृपा से समस्त मनुष्य समाज, अपनी त्यागी हुई, विशुद्ध यज्ञ परम्परा को, पुन: अपनी दिनचर्या में अपनाये तथा प्रदुषण के दुष्प्रभाव से परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को बचाकर उसे सुखी, सम्पन्न बनाये।

अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)


मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

अगली चिट्ठी में पर्यावरण प्रदूषण (समस्या, कारण और निवारण)

17 November 2009

वो विक्षिप्त नही है

ट्रेन में चढते ही विकास ने थोडा सरक कर बैठने के लिये जगह दे दी। सीट के कोने पर मैं बैठ तो क्या गया बस किसी तरह अटक गया। तभी विकास ने कहा "अपने साथ वाले का ख्याल रखना, यह अपंग है"।

मैनें उस तरफ देखा तो एक नवयुवक (सुभाष) चेहरे-मोहरे से आकर्षक, ब्राण्डेड जींस और टीशर्ट में बैठा हुआ था। गले में मोटे-मोटे मोतियों की माला, एक सोने की चैन, शिवजी की तस्वीर वाला लाकेट और रुद्राक्ष की माला पहने हुये था। एक हाथ पर सुन्दर कलाई घडी और दूसरे हाथ पर बहुत बडा सारा लाल धागा बंधा था। मस्तक पर तिलक और पैरों में अच्छे स्पोर्ट्स शूज थे। हाथ में पकडे मोबाईल पर प्यारे-प्यारे भजन सुन रहा था।
(भजन पूरे सफर जो लगभग डेढ घंटे का था, बजते रहे थे)

मैनें सुभाष से कहा - मेरे यहां बैठने से आपको कोई परेशानी तो नहीं हो रही है।
उसने कहा - नहीं
फिर मैनें अपने बैग से एक किताब निकाली।
(मैं सफर के दौरान समय काटने के लिये पढना पसंद करता हूं)

तभी सुभाष ने भी अपने बैग से किताबें निकाली।
भारत का स्वाधीनता संग्राम, सुभाषचन्द्र बोस की जीवनी और एक किताब स्वेट मार्डेन की आत्मविश्वास के विषय पर और एक वैदिक धर्म के बारे में ।
इनके अलावा बहुत सी अच्छी-अच्छी किताबें थी उसके पास

मैनें उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम सुभाषचन्द्र बोस बताया। एक सहयात्री ने व्यंग्य से मुंह बिचकाया। लेकिन मुझे विश्वास हो गया कि इसका नाम सुभाष ही है। एक सहयात्री ने सुभाष से पूछा कि "आपको कब से ऐसा है"।
उसने कहा - "पता नही"।
मुझे अब तक सुभाष में इतना असामान्य सा कुछ नही दिखा जिसके कारण उसे अपंग कहा जाये। सिवाय एक बात के कि उसका उच्चारण थोडा अस्पष्ट था और लिखते वक्त अंगुलियां कंप रही थी।
मैनें कहा - "क्या हुआ है आपको, एकदम ठीक तो हो"।
सुभाष - पता नही कोई कहता है मैं विक्षिप्त हूं और कोई कहता है कि बिल्कुल ठीक हूं।
उसके बाद मेरी और सुभाष की ढेरों बातें हुई। घर-परिवार, काम-धंधे और उनकी रुचि के बारे में।
मुझे सुभाष सीधा-सादा और धार्मिक प्रवृति का आदमी लगा। लेकिन उसकी बातों में काफी समझदारी थी।
चलते वक्त उसने मुझे एक छोटी सी पत्रिका (पर्यावरण प्रदूषण) भी भेंट की है। इस किताब में से कुछ बातें आपको अगली चिट्ठियों में लिखूंगा।

किसी को जाने बिना लोग क्यों उस के बारे में अपनी राय बना लेते हैं?

12 November 2009

सिरसा एक्सप्रेस, एक रोता बच्चा,और बदलती विचारधारा

रेलगाडियों में कितनी भीड-भाड होती है, खासकर उन गाडियों में जो सुबह किसी महानगर को जाती हैं और शाम को वापिस आती हैं। ऐसी ही एक गाडी है सिरसा एक्सप्रैस जिससे मुझे रोजाना सफर करना होता है। सिरसा से नईदिल्ली (समय 9:30) की तरफ सुबह आते हुये यह गाडी 4086 डाऊन और शाम नईदिल्ली (समय 6:20) से सिरसा जाते हुये 4085 अप होती है। इन गाडियों में ज्यादतर दैनिक यात्री ही होते हैं जो सुबह-सवेरे अपने व्यव्साय, नौकरी, दुकान के लिये सुबह निकलते हैं और शाम को वापिस लौटते हैं। इन गाडियों में आरक्षण नही होता है। चार लोगों की जगह पर 7 या 8 और एक जन की जगह पर 2 या 3 लोगों को बैठना पडता है। ऊपर वाली बर्थ जो सामान रखने के लिये बनाई गई है उस पर भी 4-5 लोग बैठे रहते हैं। यहां तक कि शौचालय के अन्दर और बाहर भी लोग खचाखच होते हैं और दरवाजों पर भी लटके रहते हैं।

दैनिक यात्री तो एडजस्ट कर लेते हैं मगर जो यात्री कभी-कभार ही रेल में सफर करते हैं, उन्हें तो बहुत परेशानी होती है। आये दिन किसी ना किसी की किसी ना किसी से झडप होना आम बात है।

एक मां सीट के एक कोने पर आने-जाने वाले रास्ते की तरफ बैठी है, (बल्कि फंसी हुई है) गोद में 8-9 महिने का बच्चा है।
विचारधारा - गरीब है, शायद अकेली है, शायद विक्षिप्त है, पता नही कहां से आ गई होगी, क्या मालूम कहां जाना है, क्या पता भिखारिन हो।
मां को नींद आने लगी है, ऊंघते ही गोद से बच्चा फिसलने लगता है, संभालती है।
साथ बैठे यात्री का दबाव भी महसूस होता है उसको थोडा हटने के लिये कहती है।
गाडी किसी स्टेशन के आऊटर पर रुकी हुई है। खचाखच भीड के कारण गर्मी बढ गई है।
बच्चा रोने लगता है, चुप कराने की कोशिश।
बार-बार बच्चा रोते-रोते गोद से फिसल कर नीचे फर्श पर चला जाता है।
उठाती है, संभालती है, गुस्सा करती है, ऊंघने लगती है ।
मगर बच्चा चुप होने का नाम नही ले रहा है।
बच्चे को छाती से लगाती है, मगर वह दूध नही पीना चाहता।
(विचारधारा - खुद खाली पेट है, दूध कहां से आयेगा)
दो-तीन झापड लगाती है। बच्चा और तेजी से रोने लगता है।
मेरा दिल (शायद दूसरे लोगों का भी) पसीजने लगता है।
बच्चे से बात (बहलाने) करने की कोशिश करता हूं।
मां से बच्चे की टोपी उतारने के लिये कहता हूं।
(विचारधारा - शायद बच्चे को गर्मी लग रही है)
(सर्दियों का मौसम शुरू होने लगा है, रात का मौसम और ट्रेन में हवा लगती है, इसलिये बच्चे को ढेर सारे गर्म कपडे पहनाये हुए हैं)
मां ऊंघते हुए ही ऊनी टोपी को खींच कर उतार देती है।
बच्चा रो रहा है, बच्चे को पानी पिलाने के लिये कहता हूं। मां कोई जवाब नही देती।
(विचारधारा - (शायद बच्चे के पेट में दर्द है)
मां बच्चे का स्वेटर उतारती है।
ट्रेन चल पडी है। बच्चा अब भी रो रहा है।
मैं - "अगर आप के पास पानी नही है तो मैं देता हूं"
कोई जवाब नही।
मां ऊपर वाली बर्थ के एक कोने की तरफ देखती है।
मैं भी देखता हूं, एक आदमी दो बच्चों को गोद में चिपकाये अधलेटा सा सो रहा है।
उसके साथ बैठे दूसरे लोगों से उस आदमी को जगाने के लिये कहता हूं।
बच्चे का पिता गुस्सा करते हुये और मां को तेज-तेज डांटते हुये नीचे आता है।
(विचारधारा - बुरा आदमी, क्या इसे बच्चे का रोना सुनाई नही दे रहा है)
आस-पास बैठे लोग - इसे (मां को) क्यों गुस्सा कर रहे हो
बच्चे का पिता - बाऊजी तीन दिन से सफर के कारण सोये नही हैं,
अपनी नींद पूरी करें या इनकी
लोग - पहले बच्चों की नींद पूरी कर दो तो तुम भी सो पाओगे
पिता अपने सामान में से पानी की बोतल निकाल कर बच्चे को पानी पिलाता है
पिता बच्चे को गोद में लेता है और चुप कराने की कोशिश
(विचारधारा - अच्छा आदमी, वह आदमी बहुत सुन्दर है)
बच्चा अब भी रो रहा है, बच्चे का ऊपर का एक कपडा और उतारा गया, एक पैंट उतारी गई
बदबू सी आने लगी है, दूसरी पायजामी हटा कर देखो
अब पता लग गया है, बच्चे के इतना रोने का कारण
मां और पिता बच्चे को धो कर लाते हैं।
बच्चा चुप है। पिता, बिस्कुट निकाल कर अभिषेक (यही नाम है बच्चे का) को देता है।
पिता अपनी जगह पर चला गया है।
मां सो गयी है, अभिषेक मां की गोद में बैठा मजे से बिस्कुट खा रहा है और हमारी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा है, कितना प्यारा बच्चा है।

11 November 2009

मेरा यार बादशाह है

पेश है मेरा पसंदीदा एक बहुत प्यारा कलाम जो आपको झूमने पर मजबूर कर देगा और दिली सुकून भी देगा। यह कव्वाली सोनिक इन्ट्रप्राईजेज की पेशकश है। इसको लिखा है जीरो बान्दवी ने, म्यूजिक दिया है मोहम्मद ताहिर ने और फनकार हैं अनवर साबरी कव्वाल फिरोजाबादी
मैं रू-ब-रू ए यार हूं का दूसरा रूख Mera yaar Baadshaah hai



इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ती है तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

01 October 2009

सब बना-बनाया खेल मिट जाए

मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन गया है अपने शराबघर में और उसने जाकर पूछा कि मैं पूछने आया हूं कि क्या शेख रहमान इधर अभी थोडी देर पहले आया था? शराबघर के मालिक ने कहा कि हां, घडीभर हुई, शेख रहमान यहां आया था। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि चलो इतना तो पता चला । अब मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या मैं भी उसके साथ था?
काफी पी गए हैं। वे पता लगाने आए हैं कि कहीं शराब तो नहीं पी ली! इतना ख्याल है कि शेख रहमान के साथ थे। दूसरे का ख्याल बेहोशी में बना रहता है, अपना भूल जाता है। तो शेख रहमान अगर यहां आया हो, तो मैं भी आया होऊंगा। और अगर वह पीकर गया है, तो मैं भी पीकर गया हूं।
दूसरे से हम अपना हिसाब लगा रहे हैं। हम सब को अपना तो कोई ख्याल नहीं है, दूसरे का हमें खयाल है। इसलिए हम दूसरे की तरफ बडी नजर रखते हैं। अगर चार आदमी आपको अच्छा आदमी कहने लगे, तो आप अचानक पाते हैं कि आप बडे अच्छे आदमी हो गए। और चार आदमी आपको बुरा आदमी कहने लगे, आप अचानक पाते हैं, सब मिट्टी में मिल गया; बुरे आदमी हो गए! आप भी कुछ हैं? या ये चार आदमी जो कहते हैं, वही सबकुछ है?
इसलिए आदमी दूसरों से बहुत भयभीत रहता है कि कहीं कोई निंदा न कर दे, कहीं कोई बुराई न कर दे, कहीं कुछ कह न दे कि सब बना-बनाया खेल मिट जाए। आदमी दूसरों की प्रशंसा करता रहता है, ताकि दूसरे उसकी प्रशंसा करते रहें। सिर्फ एक वजह से कि दूसरे के मत के अतिरिक्त हमारे पास और कोई संपदा नहीं है। दूसरे का ही हमें पता है। अपना हमें कोई भी पता नहीं है।
यह कहानी गीता-दर्शन (भाग चार) अध्याय आठ से साभार ली है। अगर ओशो इन्ट्रनेशनल फाऊण्डेशन या किसी को आपत्ति है तो हटा दी जायेगी।

22 September 2009

खिलौना ही तो है

मां मुझको बन्दूक दिला दो
मैं भी सीमा पर जांऊगां
हम जब प्राथमिक विद्यालय में पढते थे, हर शनिवार की सुबह स्कूल में बाल सभा होती थी। उसमें बच्चे कविता पाठ, चुटकलें और देशभक्ति के गीत सुनाते थे।
यह कविता सबसे ज्यादा सुनाई जाती थी। शनिवार को स्कूल की वर्दी ना पहनने की छूट भी होती थी। तो लगभग हर बच्चा फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में आया हुआ लगता था। दुकानों पर बच्चों के लिये सैनिकों की वर्दियां और धोती-कुर्ता भी खूब मिलता था। हमारे लिये भी ये ड्रेसेज लाई गई थी (हम भी इन्हें पहन कर सीना फुला कर इसी तरह की कविता गाते थे)
हां नहीं मिला तो बस बन्दूक वाला खिलौना
दीवाली पर भी कार, हवाई जहाज या जानवर वाले खिलौने ही दिलाये जाते थे। होली पर तो हमारी जिद भी होती थी कि पिचकारी लेंगें बन्दूक वाली, लेकिन पापा दिलाते थे मछली, बैंगन, कद्दू या शेर वाली पिचकारी। बन्दूक वाली पिचकारी के लिये जिद करने का मुख्य कारण केवल उसकी हाथ में अच्छी पकड होने और चलाने में आसानी ही था, लेकिन हमें कभी बन्दूक वाली पिचकारी नहीं दिलाई गई। क्यों ????????


कल 21-09-09 ईद थी । यहां पुरानी दिल्ली के बाजारों में सुन्दर-सुन्दर खिलौनों की  दुकानें सजी हैं, लेकिन इस बार जो खिलौना सबसे ज्यादा बच्चों के हाथ में देख रहा हूं, वो है बन्दूक वाला खिलौना। ऐसा वैसा नही बल्कि मेड इन चाईना का खिलौना वही शेप जैसी कबा………
यहां गलियों में ईद के पवित्र पर्व पर छोटे-छोटे बच्चे गले मिलने की बजाय फिल्मी स्टाईल में एक दूसरे पर बन्दूक तानते (खेल-खेल में) दिख रहे हैं।
यह चित्र बिना आज्ञा लिये  यहां से लिया गया है। इसके लिये क्षमाप्रार्थी हूं। अगर आपको आपत्ति है तो हटा दिया जायेगा।

25 July 2009

थोडा तो चल रे आलसी

एक गांव में पहली बार कुछ लोग एक घोडे को खरीद कर लाये थे । उस गांव में घोडा नही होता था और उस गांव के लोगों ने कभी घोडा देखा भी नही था। जो लोग ले आये थे परदेश से, वे घोडे के शरीर से, उसकी दौड से, उसकी गति से प्रभावित होकर ले आये थे। लेकिन उन्हें घोडे के संबंध में कुछ भी पता नही था। घोडे को उन्होंनें चलते देखा था, हवा की रफ्तार से भागते देखा था। गांव में लाकर वे बडी मुश्किल में पड गये, उन्हें घोडे के बारे में कोई और जानकारी तो थी नही, ना वे उसे चलाना जानते थे। बडी मुश्किल में पड गये कि चार आदमी आगे से खींचें और चार आदमी पीछे से धकाएं, तब कहीं वह मुश्किल से कुछ-कुछ चलता ।
उन्होंनें बहुत कहा कि हमने तुझे देखा है भागते हुये। घोडा खडा सुनता रहता, वैसे ही जैसे हम सुनते रहते हैं। घोडा रोज-रोज सूखने लगा और दुबला होने लगा, क्योंकि उन्होंने पू्छा ही नही था कि उसे भोजन भी देना है। अब चलना रोज-रोज मुश्किल हो्ता गया। चार की जगह आठ और आठ की जगह दस-दस, रोज आदमी बढाने पडते जब उस घोडे को चलाना पडता। पूरा गांव दिक्कत में पड गया।
लोगों ने कहा तुम इसे क्यों ले आये हो? ऐसा वक्त आ जायेगा जल्दी कि पूरे गांव को लगना पडेगा इसे चलाने के लिये। लेकिन फिर चलाने से फायदा क्या है? ठीक है; चला कर भी देख लिया, फिर क्या करेंगें?
गांव में उस रात एक अजनबी भी रुका था, उसने भी देखा यह खेल की दस-दस आदमी धक्का देते हैं, घोडा चलता ही नहीं।
उस आदमी ने कहा - पागलों, हटो तुम यह क्या कर रहे हो?
वह अजनबी घोडे के सामने घास का एक पूला लेकर चलने लगा और घोडा इतना कमजोर था, तो भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। आदमी दौडने लगा तो घोडे ने भी गति पकड ली।

मुझे भी सब पूला दिखा-दिखा कर चलाने की कोशिश कर रहे हैं, पर मैं हूं कि उस घोडे से भी गया गुजरा, जो पेट भर खाना खाने पर भी चलता ही नही हूं।

यह कहानी गीता-दर्शन (भाग चार) अध्याय आठ से साभार ली है। अगर ओशो इन्ट्रनेशनल फाऊण्डेशन या किसी को आपत्ति है तो हटा दी जायेगी।

12 June 2009

ताऊ-ताई की नोक-झोंक

एक बार एक ताऊ खेता महै काम कर कै घरां आया अर हाथ-पांव धोते-धोते
ताई तै बोल्या - मेरी रोटी घाल दे ।
ताई नै रोटी घाल दी अर थाली खाट पै ताऊ के सामीं धर कै खडी होगी।
ताऊ - तू भी बैठ जा
ताई खाट के बराबर महै पीढा धर कै पीढे पै बैठगी।
ताऊ - आडै खाट पै बैठ जा
ताई - ना जी मैं आपके बराबर मै ना बैठ सकती, मैं तै आप तै नीचै बैठूंगीं
ताऊ - गर मैं पीढे पै बैठ जां तै
ताई - तै मैं तलै जमीन पै बैठ जांगी
ताऊ - गर मैं जमीन पै बैठ जां तै
ताई (थोडी देर सोच कै) - तै मैं गड्डा खोद कै उसमै बैठ जांगी
ताऊ भी आज पूरे स्वाद लेन के चक्कर मै था, वो कयां करै सै ना रोमांटिक मूढ मै था।
ताऊ - गर मैं भी गड्डे महै बैठ जां तै
ताई (परेशान हो कर) - आज तेरै यो के हो रहा सै, किसी-किसी बात करन लाग रह्या सै
ताऊ - ना तू आज बता, गर मै भी गड्डे महै बैठ जां तै
ताई - तै मैं ऊपर तै माटी गेर दूंगी

11 June 2009

बेटियां शायद जन्मजात शांत स्वभाव की होती हैं

सभी बेटियां शायद जन्मजात शांत स्वभाव की होती हैं और बेटे चंचल और शरारती।
Lucky मेरे दो बच्चे हैं, बेटी उर्वशी (5 वर्ष) और बेटा लव्य (2 वर्ष)
मेरे माता-पिता बच्चों के साथ कभी खेलते वक्त, कभी किसी शरारत से रोकने के लिये लव्य को कहते हैं कि मैं तो उर्वशी का बाबा (दादा जी) हुं या दादी हुं। कभी उर्वशी से तुलना करते हैं कि देखो उर्वशी ने खाना खा लिया, देखो उर्वशी ने जल्दी दूध पी लिया। शायद इसी कारण लव्य अब हर बात में उर्वशी से स्पर्धा सी रखने लगा है। कोई भी चीज जो उर्वशी के हाथ में हो छीन लेता है, जो भी कुछ उर्वशी कर रही हो हर बात में नकल करता है। दोनों में छीना-झपटी कुछ ज्यादा होने लगी है। हालांकि एक पल भी वह उर्वशी के बिना रह नही सकता। उर्वशी को स्कूल छोडने के लिये भी जाता है, कभी-कभी तो जिद करता है कि उर्वशी को जूते वही पहनायेगा, जबकि खुद की चप्पल भी ढंग से उर्मी नही पहन सकता है। नींद से जगने पर सबसे पहला सवाल यही करता है कि - "दीदी कहां है" । उर्वशी को कोई डांटे ये उसे पसन्द नही। उर्वशी भी उसे बहुत प्यार करती है। पर छोटा होने के कारण मुझे लगता है कि उसे उसकी शरारतों के लिये कम डांट पडती है और उर्वशी को ज्यादा डांटा जाता है।
यही वजह है या टी वी बहुत ज्यादा देखने लगी है इसलिये उर्वशी (जो कोई भी बात एक बार कहने पर ही मान जाती थी)  अब थोडी उद्दंड हो गई है। कुछ बच्चों के चैनलों पर तो बहुत उद्दंडता से भरे चरित्र (हग्गे-मारू, शिन-चैन, आर्सी) दिखाये जाते हैं। मैं बहुत चिंतित हूं।

01 May 2009

क्या बीनू चुनाव जीतेगा ?

इस बार बीनू के मन में विचार आया कि उसे भी चुनाव में पर्चा भर देना चाहिए। जब कुत्तों से भी गये-गुजरे आदमी दिल्ली जा रहे हैं तो कुत्ते क्यों पीछे रह जाएं। फिर बीनू कोई छोटा-मोटा कुत्ता तो था नही, ताऊ का कुत्ता था, एक एम पी का कुत्ता था। दिन-रात नेता जी के साथ रहते-रहते नेता बनने के सारे गुर जैसे कि कैसे लोगों की आंखों में धूल झोंकों, कैसे एक-दूसरे के कंधें पर चढो, सब सीख गया था।
एक दिन उसने ताऊ से कहा - ताऊ जी, अब बहुत हो गया, अब मुझे आशिर्वाद दे दें, मैं भी चुनाव लडूंगा।
ताऊ - के करेगा तू चुनाव लड कै
बीनू - आप देख ही रहे हो कि आपका विरोधी इस बार चुनाव में खडा है वो कुत्तों से भी बदतर आदमी है। मैं भी कुत्तों के अधिकारों के लिये लडूंगा।
ताऊ - तेरी बात तो ठीक सै
बीनू - ताऊजी कुछ रास्ता बता देते, कुछ थोडा ज्ञान दे देते तो आसानी हो जाती।
ताऊ - सीधी बात सै भाई, जिस तरकीब से मैं जीतता रहा, वही तरकीब तू आजमा ले। सुन……………………………………
जब कोये अमीर कुत्ता दिखै तो (कुत्तों में भी अमीर और गरीब होते हैं। अमीर कुत्ता वो होता है जो कारों में चलता है, सुन्दर-सुन्दर कम कपडों वाली औरतों की गोद में बैठता है, शानदार कोठियों में निवास करता है, आम आदमी को रोटी मिले ना मिले उसे बढिया-बढिया पकवान मिलते हैं) जब कोये अमीर कुत्ता दिखै तो कहिये कि "सावधान, गरीब कुत्ते इकट्ठे होन लाग रहे सैं; थारे लिये खतरा है। मैं थारी रक्षा कर सकता हूं। और जब कोये गरीब कुत्ता दिखै तो एकदम कहिये - मर जाओगे, लूटे जा रहे सो, थारा शोषण हो रहा सै। लाल झंडा हाथ में ले लो। मैं थारा नेता सूं, इन अमीरों को ठीक करना जरूरी सै।
बीनू - ताऊजी यहां तक तो ठीक है, पर जब दोनों यानि कि अमीर और गरीब कुत्ते इकट्ठे हो गये तो मैं क्या करूं ?
ताऊ - तो तू नू कहिये मेरा हाथ सब के साथ, मैं सब के उदय में यकीन रखता हूं, सब का विकास होगा । मैं सेकुलर हूं । और सुन जोर तै बोले जाईये, किसी के समझ महै आवै ना आवै, बस चिल्लाना जरूरी है, दूसरां की आवाज दब जानी चाहिये।
बीनू - ताऊ इस बात की चिंता आप ना करें, चिल्लाने (भौंकने) में तो हम कुत्ते नेताओं को मात दे ही देंगें।
बीनू ने काम शुरू कर दिया है, प्रचार जोर-शोर से हो रहा है। सफेद खादी का कुर्ता-पाजामा और टोपी पहने और माथे पर लंबा सा तिलक लगाये बीनू पदयात्रा पर है। रास्ते में किसी भी मन्दिर में माथा टेकना नही भूलता है। चुनाव का दिन आने ही वाला है। आपको क्या लगता है बीनू जीतेगा ???????

30 April 2009

क्षमा मांगने का यह कौन सा तरीका

मेरे एक बहुत प्यारे मित्र हैं बेदू नाम है उनका, बिल्कुल भाई जैसे हैं । उनकी जितनी तारीफ करूं उतनी कम है। वो सभी की सभी बातें उनमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान है, (जो आज के मनुष्य में हो सकती हैं) और जिन्हें आमतौर पर अवगुण कहा जाता है। और जिन बातों को गुण कहा जाता है (जो आज के मनुष्य में बहुत कम मिलती हैं) वो भी उनमें करीब-करीब समानुपात में हैं। उनके साथ रहते या घूमते हुए मेरे कई अनुभव और घटनाये मुझे याद आती हैं। उनमें से एक आज आपको बताता हूं।
एक बार हम दोनों Fun Town & Water Park घूमने गये। वहां पर घूमते-घामते अचानक बेदू ने हमारे पीछे चल रही दो बहुत ही मोटी लडकियों के डील-डोल और चाल की नकल करते हुए हाथ फैला कर चलना शुरू कर दिया। जाहिर सी बात है उन लडकियों को बुरा लगना था। उनमें से एक को बहुत गुस्सा आ गया और वो बेदू के सामने आ कर चप्पल निकाल कर कुछ-कुछ कहने लगी । मैं थोडी दूर खडा यह सब देख रहा था और मेरी समझ में कुछ नही आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। बेदू माफी तो क्या गलती मानने को भी तैयार नही था । मैने पास आकर उनसे कहा कि इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूं, आप शांत हो जाईये। तभी उस कन्या के पतिदेव भी आ गये उन्होंने वहां बडा शोर-शराबा किया। भीड और मामला बढता देख मैने बेदू से कहा कि बेटा तू माफी मांग ही ले, क्योंकि गलती तो तूने की है । (कम से कम मेरे लिए ही सही, वरना आज मुझे भी थाना-पुलिस वगैरा देखनी पडेगी) । काफी समझाने-बुझाने के बाद जब उसने माफी मांगी तो किस स्टाईल में -
बेदू उन लडकियों से - ठीक है भाई गलती हो गई, माफ करो और अब बात खत्म करो ।
बेदू आस-पास खडे लोगों और सिक्योरिटी वालों से - वैसे मैने कोई छेडखानी तो की नही, छोटा सा मजाक ही किया था। खामखा हल्ला मचा रहे हैं।
बेदू उस लडकी के पतिदेव से - कहीं कोई रिपोर्ट करनी है तो कर सकते हो, वैसे जब औरतें साथ हों तो तुम्हें झगडे नही करने चाहिये।

मेरी समझ में यह नही आ रहा था कि ये बंदा माफी मांग रहा है या धमकी दे रहा है। मेरे विचार से तो माफी मांगने का मतलब यह होता है कि हमें सचमुच अपनी गलती का एहसास हो गया है और आंईदा ऐसी गलती दुबारा ना हो इस बात का ख्याल रखेंगें।
लेकिन कई लोग माफी भी धमकी के अंदाज में या ऐसे कि कोई अहसान कर रहे हैं या कि दूसरों ने मजबूर कर दिया है या दूसरे कह रहे हैं इसलिये मांगते हैं। ब्लाग जगत में भी एक-दो बार इसी तरह का माफीनामा देख चुका हूं। आप को भी याद होगी कोई ना कोई ऐसी घटना॥……………………॥

27 April 2009

क्या हम दूध से बनी चाय पीते हैं

ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर बिकने वाली चाय जिस दूध से बनती है वो दूध नही पोस्टर कलर होता है। 15 रुपये के पोस्टर कलर की एक शीशी 10 लीटर पानी में मिलाई जाती है और 10 लीटर दूध तैयार । नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशनों के बीच एक थोक बाजार में स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले व्यापारी ने बताया कि पोस्टर कलर की बिक्री में बेतहाशा वृद्धी हुई है। इसे चाय बनाने वाले बहुत अधिक मात्रा में खरीद रहे हैं।

31 March 2009

क्या स्लीवलैस टी-शर्ट पहनने वाला भी अनैतिक है

"एक दिन पुरुषों से भी कहा जाता होगा कि पैंट नहीं सलवार पहनो या पाजामा या धोती या ऐसा ही कुछ।
"कट्टरपंथ यूँ ही अचानक नहीं आता होगा, वह दबे कदम आता होगा। घुघूतीबासूती

इसी तरह की एक छोटी सी घटना हुई है २८ मार्च को बेंगलूर में भुक्तभोगी जगदीश बी0 एन0 जो पेशे से वकील हैं के अनुसार मिलर्ज रोड पर अयप्पा मंदिर के पास पांच लोगों (नैतिकता सिखाने वाले फौजी) ने उसे रोक कर स्लीवलैस टी-शर्ट पहनने पर चेतावनी दी
ये खबर छपी है पंजाब केसरी अखबार में ३०-मार्च-२००९ को, आप भी पढ लीजिये

27 March 2009

ताऊ की पहली ठगी

जैसा कि आपको पता है कि अपना ताऊ बहुत ही सरल,सीधा, दिल का साफ मगर होशियार आदमी है। आप ये भी जान चुके हैं कि ताऊ कभी-कभी ठगी जैसे गलत-शलत धंधे भी मजबूरी में कर लेता है मगर क्या आप ये जानते हैं कि ताऊ ठग कैसे बना ? ताऊ की पहली ठगी कौन सी थी ? ये बात भी मुझे बीनू ने स्कूल के दिनों में बताई थी।
हुआ ये कि ताऊ के सीधेपन का फायदा गाम में सब उठाते थे। ताऊ तो पूरे गाम के बालकां नै रोहतक के गुलाब आले की रेवडी, सीताराम हलवाई की बरफी, आनन्द का गाजरपाक, अर गज्जक, कुल्फी, टोफी बेराना के के बांटे जाया करता आहा के दिन थे वे भी, मनै तो ताऊ सब तै पहलां दिया करता। गाम मै किसे नै भी कोई जरूरत होती, ताऊ मना नही करता था। लेकिन मुश्किल या थी के लोग ताऊ पै उधार तै ले जाते पर वापिस नही करते इब ताऊ किमै बानिया तै था नही के बही-खाते राखता, अर ना किसी से अपने पैसे वापिस मांगता था । जिसकी वजह से ताऊ के पास कभी-कभी रुपयों-पैसों की किल्लत जाती थी एक बार ताऊ धोरै किमै रुपये पैसा कि किल्लत हो रही थी। और बीनू नै ताई से जिद लगा ली कि मैं तो गुलगुले खाऊंगा ताई बोली बेटा बनाऊं सूं तो भाईयो ताई गुलगुले बनान लागी तो देखा रसोई महै गुड खत्म हो गया है। ताई नै ताऊ तै कही गुड ले आओ। ताऊ पहुंचा पंसारी बानिया की दुकान पर।
ताऊ - लाला एक भेल्ली गुड दे दे
लालाजी - ताऊजी एक के दो ले जाओ
ताऊ - पर लाला मेरे धोरै आज दाम कोन्या, बाद में दे दूंगा
लालाजी - अड मखा ताऊजी या भी किमै बात कही, कोये बात ना, पिस्से कित जां सैं, आजांगें मनै के आपसे पिस्से मांगे सै
ताऊ - कितने की भेल्ली सै लालाजी
लालाजी - ताऊजी थारे तै के ज्यादा लूंगा, ढाई रुपये की बेचूं सूं , पर आपको तो दो रूपये की दूंगा
ताऊजी एक भेल्ली गुड ले कर चल पडे। रास्ते में उनकी आदरणीय समीर जी से मुलाकात हो गई।
समीर जी - ताऊ जी राम-राम
ताऊ - राम-राम भाई उडनतश्तरी, और सुना के हाल-चाल सैं, कित उडारी ले रहया सै
समीर जी - बहुत बढीया ताऊजी, आप सुनाओ के-के सौदा-सुल्फा ले आये बाजार से
ताऊ - भाई के लाना है, बालक गुलगुले खान की जिद कर रहे थे, गुड लाया सूं तेरी ताई बना देगी
समीर जी - ताऊ जी कितने की लाये या गुड की भेल्ली
ताऊ - दो रूपये की दी सै लाला नै
समीर ज़ी - ताऊजी लाला ने तो आपको ठग लिया, ये एक रुपये की आती है
ताऊ - कोये बात ना भाई, एक रूपया लाला नै कमा लिया अर एक रूपया मनै कमा लिया
समीर जी - वो कैसे ?
ताऊ - देख भाई लाला नै एक रूपये की चीज दो रूपये मै बेची, एक रुपया कमाया
समीर जी - ठीक
ताऊ - मैं एक रूपये की चीज का एक रूपया भी ना दूं तो एक रूपया मनै कमाया, समझ गया ना ?

ताई अर मोड्डा

आज आपने हम सबके प्यारे ताऊ जी और मोड्डे वाली बात सुनी। लेकिन ताऊ जी को याद नही है कि उन्होंने काफी समय पहले भी इसी मोड्डे को खाना खाने का न्योता दिया था। ताऊ इस मोड्डे को पहचान नही पाये क्योंकि एक तो कई साल पुरानी बात है और उस समय ये मोड्डा मोटा-तगडा हुआ करता था। इसी घटना के बाद ताऊ को मोड्डों से थोडी चिढ सी हो गई थी। अब इस मोड्डे के मरियल हो जाने का भी यही कारण है कि ये शुरू से ही बहुत पेटू है और इसी वजह से लोगों ने इसे न्योता देना छोड दिया।
ये बात मुझे बीनू फिरंगी ने बताई थी, जब मैं और बीनू एक ही स्कूल में पढते थे। लो जी आज आप भी सुन लो, मुझे तो ताई का कोई डर है नही क्योंकि सच बोलने वाले को काहे का डर और ताई को गुस्सा आया तो उतरेगा बीनू पर । मेरा और बीनू का बचपन का हिसाब भी बाकी है वो भी चुकता हो जायेगा ।
हुआ यूं कि एकबार ताऊ ने इस मोड्डे को खाने पर बुलाया। ताई ने पूरी हलवा और खीर बनाई थी। ताई खीर बहुत स्वादिष्ट बनाती है और जिस दिन खीर बनती है सब के मुंह में सुबह से ही पानी आने लगता है। बामन महाराज समय से आ गये, ताऊ-ताई ने नमस्कार किया, आसन पर बिठाया, थाली लगा दी गई, एक बेल्ला (बडा कटोरा) खीर का रख दिया और मोड्डे जी ने जीमना शुरू किया। मोड्डे ने ऐसी खीर पहली बार खाई थी।
मोड्डा - जजमान थोडी खीर और ले आओ ।
ताऊ जी ने एक बडा कटोरा खीर और रख दी।
ताऊ नै पूछा महाराज और क्या लोगे।
मोड्डा- खीर
ताऊ ने एक बडा कटोरा खीर और रख दी।
मोड्डा - खीर बहुत अच्छी बनी है, थोडी और ले आओ
ताऊ ने एक कटोरी खीर और डाल दी
अन्दर रसोई बीनू भी उधम मचाये था कि ताई मुझे मेरी कटोरी खीर जल्दी दो। ताई उसे समझा रही थी कि पहले बामन महाराज ज़ीम लें उसके बाद दूंगी । । ताई सोच रही थी, अब तो बस तीन कटोरी खीर हम तीनों (ताऊ-ताई और बीनू) के लिये ही बच गई है। हम तीनों एक साथ बैठ कर खायेंगें ।
उधर मोड्डे ने ताऊ से और खीर लाने की फरमाईश कर दी। अब बामन महाराज को क्या कहें, ताऊ ने अपने हिस्से की कटोरी ले जाकर ताऊ के सामने रख दी। ताऊ ने सोचा अब तो यो मोड्डा छिक गया होगा। पर ये मोड्डा भी खली के गाम से आया लागै था ।
मोड्डा - थोडी सी खीर और मिल सकती है ?
ताऊ - महाराज आप हलवा या पूरी कुछ और ले लो।
रसोई में ताई (ताऊ से) - इस बामन का तै पेटा-ए ना भरता, और कितना खा-गा ?
अब ताई ने अपनी कटोरी भी ताऊ को दे दी कि जाओ बामन महाराज को मना करना ठीक नही है। और रोते हुए बीनू को समझा रही है कि बस अभी दो मिनट और ठहर जा अभी दे देती हूं।
वो खीर भी खा चुकने के बाद मोड्डा - थोडी सी कसर बाकी रहगी, जै जरा सी खीर और मिल जाती…………?
इब बिचारी भोली ताई आखिरी बची बीनू की खीर की कटोरी भी देन लागी।
इब बीनू के सब्र का बांध भी टूट लिया था, उसने भी फाफट (रोना-चिल्लाना) मचा दिये ।
बीनू - मैं नहीं दूंगा मेरी खीर, मेरी खीर की कटोरी वापस दो
ताई दुखी हो कर जोर-जोर से बामन को सुनाते हुए बोली- बीनू चुप हो जा वरना इस खीर मैं लपेट कै मोड्डे के आगै गेर दूंगी, तनै बेरा है ना वो कितना खा सकै है।

26 March 2009

ताई री ताई तेरी खाट तलै बिलाई

एक बै एक ताई की ताऊ गेला लडाई होगी। ताई बोली मैं तो अपने भतीजे धोरै दिल्ली जाऊंगी, मनै दिल्ली छोड्या। ताऊ बोला यो ले भाडा, जब लडाई कर कै जावै सै तै अपने आप चाली जा, मैं नही छोड कै आया करदा। ताई भी घणी छोह मै थी चाल पडी एकली। बसअड्डे पै जा कै बस की बाट (इंतजार) देखन लाग्गी। जो भी बस आवै ठसा-ठस भरी। खैर घणी वार घाम मै खडी-खडी दुखी होगी तै एक बस मै पाछले दरवाजे तै चढी बस कण्डकटर तै पूछा अक या बस दिल्ली जावै गी। कण्डकटर बोला- हां ताई जावैगी। ताई- तै नू कर एक टिकट दे -दे अर सीट दे-दे कण्डकटर नै टिकट तो दे दी अर नूं बोला ताई सीट दिवान की जिम्मेदारी मेरी कोन्या, अपने-आप बूझ ले कोये सरकता हो तै बैठ जाईये। इब ताई बैठे हुवा तै कहवै आरे भाई थोडा सा सरक ले नै मैं भी बैठ जांगी। पर कोये ना सरकै, सब नू कह देवै अक ताई आगे नै होले म्हारे धोरै जगहा कोन्या। नू करते-करते ताई आगे-आगे होती-होती ड्राईवर के धोरै पहोंचगी। ड्राईवर बोला ताई दुखी हो री सै तै नू कर इस बोनट पै बैठ जा। ताई बिचारी बोनट पै बैठगी थोडी हाण (देर) मैं बहादरगढ आगया अर उडे तै एक सुथरी सी छोरी आगले गेट महै तै बस मै चढी। उसके चढते ही आस-पास की सीटां पै बैठे छोरे सरकन लाग्गे अर नूं कहवै मैडम यहां जाओ-मैडम यहां जाओ उस छोरी नै तुरंत बैठन की जगहा मिलगी अर वा राजी होगी। इब ताई यो सब देखन लाग री थी। ताई बोली - हो ले बेटी राजी और १०-१५ साल बाद तन्नै भी इस्से ताते (गर्म) बोनट पै बैठना पडैगा।
खैर ताई दिल्ली पहोंचगी अर बस महै तै उतर कै सडक पार करन लाग्गी। चौक पै खडे सिपाही नै देखा ताई तै अपनी धुन महै चाली जा सै अर नू भी ना देखती हरी बत्ती हो री सै, कोये गाड्डी टक्कर मार जागी। वो सीटी बजाण लाग गया अक ताई रुक जा ताई क्यां नै रूकै थी ताई तै सहज सहज चालती रही वो सिपाही भाज कै ताई धोरै गया अर नूं बोल्या - ताई मनै कितनी सीटी बजा ली तू रूकती क्यूं ना। ताई बोली- बेटा किसा मजाक करै सै, मेरी या उम्र के सीटियां तै रूकन की सै, अपने जमाने महै तो मै एक सीटी पै रूक जाया करती थी।
इब ताई आगै गई तै एक गली मै बालक पटाखे-आतिशबाजी चलान लाग रह्ये थे। बालकां नै देखा जित उननै हांडीफोड (सूतली बम) धर राखा सै, उधर से ही एक बुढिया रही है बालक दूर तै बतान खातर चिल्लान लाग्गे- ताई बम, ताई बम, ताई बम। ताई नै सुना अर बोली- बेटा इब किसे बम्ब, बम्ब तै मै ३५ साल पहलां होया करदी।

ताऊ के ठुमके

करीब दो साल पहलां इस हरियाणवी म्यूजिक एलबम नै समूचे हरियाणा मैह धूम मचा दी थी। विडियो किमै आच्छा नही है, लेकिन गायक की आवाज और बोल मजेदार हैं। आपने ना सुना हो तो सुन लीजिये और देख लीजिये हरियाणवी जिंगगडों का डांस, जिंगगड का मतलब ताऊ या भाटिया जी बता देंगें