खाद्यान्नों की बढती हुई मांग को पूरा करने के लिये खेतों में रासायनिक खादों का अन्धाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। परिणामस्वरूप कृषि योग्य उपजाऊ भूमि की उर्वरा तथा जलधारण करने की शक्ति/क्षमता एवं चिकनाई समाप्त होती जा रही है तथा खाद्यान्न के उत्पादन में जो उत्कृष्टता थी वह भी नष्ट हो गई है।
मुम्बई के इन्स्टीट्यूट आफ साइंस (बायो कैमिस्ट्री विभाग) के वैज्ञानिकों ने पिछले वर्षों में स्थानीय फलों व सब्जियों की जांच की तो पाया कि इनमें कीटनाशक जहरीली दवाओं के अंश बहुत अधिक मात्रा में विद्यमान हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार जो वस्तु मनुष्य को स्वस्थ, बलवान, स्फूर्तिमान रखती है उस वस्तु का नाम ओषजन (Oxygen) या प्राण है। इस प्राणवायु ओषजन में आज धूल, सीसा, पारा व अन्य अनेक जहरीली गैसें मिल गयी हैं। जब इस विषैली प्राणवायु को हम फेफडों में भरते हैं तो ये सब हमारे फेफडों के माध्यम से रक्त में मिल जाते हैं और सारे शरीर में फैल कर विभिन्न रोगों को उत्पन्न करते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)2
मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
जानकारी के लिए आभार।
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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।
आप बहुत महत्वपूर्ण विषय पर हिन्दी में नेट पर जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। बहुत ही संतोष का विशय है कि जब जागरूकता की जरूरत है, आप यह कर रहे हैं।
ReplyDeleteआपकी पहले की पोस्टें नहीं पढ़ीं, पर समाधान की दिशा में जब लिखेंगे तो और सुन्दर होगा।
सोहिल जी आप ने बहुत काम की बात लिखी कि *आज धूल, सीसा, पारा व अन्य अनेक जहरीली गैसें मिल गयी हैं। जब इस विषैली प्राणवायु को हम फेफडों में भरते हैं * यह बिलकुल सही बात है ओर कारो से उठने वाला धुंया, फ़ेकटरियो से निकलने वाले धुये मै भी यह सब बहुत ज्यादा मात्रा मै होता है, लेकिन भारत मै १% भी इस ओर ध्यान नही दिया जाता, फ़िर खेतो मै जो खाद दि जाती है अंधा धुंध ओर वो भी केमिकल से युक्त, जो हद से ज्यादा नुकसान देह है, लेकिन कोन सुनता है भारत मै किसी की
ReplyDeleteधन्यवाद इस अति सुंदर ओर उपयोगी लेख के लिये