सभी बेटियां शायद जन्मजात शांत स्वभाव की होती हैं और बेटे चंचल और शरारती।
मेरे माता-पिता बच्चों के साथ कभी खेलते वक्त, कभी किसी शरारत से रोकने के लिये लव्य को कहते हैं कि मैं तो उर्वशी का बाबा (दादा जी) हुं या दादी हुं। कभी उर्वशी से तुलना करते हैं कि देखो उर्वशी ने खाना खा लिया, देखो उर्वशी ने जल्दी दूध पी लिया। शायद इसी कारण लव्य अब हर बात में उर्वशी से स्पर्धा सी रखने लगा है। कोई भी चीज जो उर्वशी के हाथ में हो छीन लेता है, जो भी कुछ उर्वशी कर रही हो हर बात में नकल करता है। दोनों में छीना-झपटी कुछ ज्यादा होने लगी है। हालांकि एक पल भी वह उर्वशी के बिना रह नही सकता। उर्वशी को स्कूल छोडने के लिये भी जाता है, कभी-कभी तो जिद करता है कि उर्वशी को जूते वही पहनायेगा, जबकि खुद की चप्पल भी ढंग से नही पहन सकता है। नींद से जगने पर सबसे पहला सवाल यही करता है कि - "दीदी कहां है" । उर्वशी को कोई डांटे ये उसे पसन्द नही। उर्वशी भी उसे बहुत प्यार करती है। पर छोटा होने के कारण मुझे लगता है कि उसे उसकी शरारतों के लिये कम डांट पडती है और उर्वशी को ज्यादा डांटा जाता है।
यही वजह है या टी वी बहुत ज्यादा देखने लगी है इसलिये उर्वशी (जो कोई भी बात एक बार कहने पर ही मान जाती थी) अब थोडी उद्दंड हो गई है। कुछ बच्चों के चैनलों पर तो बहुत उद्दंडता से भरे चरित्र (हग्गे-मारू, शिन-चैन, आर्सी) दिखाये जाते हैं। मैं बहुत चिंतित हूं।
बहुत खुब लिखा, लेकिन बच्चे भी हमारी कमजोरियो का पता लगा कर हमे बेवकुफ़ बनाते है, अब चाहे वो बच्चा दो साल का हो या फ़िर बीस साल का, कभी ध्यान से देखे... आप के दोनो बच्चे बहुत प्यारे लगे दोनो को बहुत बहुत प्यार, डांटो कम, लेकिन जहां जरुरी हो वहा डांट भी होनी चाहिये.
ReplyDeleteभाई चिंता मत करो . यह सब स्भावाभाविक और बालसुलभता है.
ReplyDeleteरामराम.