13 September 2015

चिलम पी है चिलम

हाँ चिलम पी है कभी........?
मैनें पी है!!!
हरिद्वार में हर की पौड़ी से आगे सुभाष घाट है, उससे भी आगे बिरला घाट, उससे आगे अन्य कोई घाट और शमशान जहां अंतिम संस्कार किया जाता है। वहीँ बिरला घाट के बायीं तरफ खुले मैदान में बहुत से पेड़,... कुछ साधुओं के तम्बू/कुटिया और कुछ चाय पानी की दुकानें हैं।
कुटिया के आगे राख लिपटे नग्न शरीर, धूनी रमाये साधु गोल घेरे में बैठे हैं। मैं उनके पास गया, जोर से "आदेश" का नारा लगाया तो दूर से ही लाल-लाल आंखें निकाल कर, हाथ हिलाकर फटकार दिये.........ए परे- परे.....दूर हट......चल भाग...कहां चला रहा है.......हट परे, बाबा से दूर रह ......
मैनें चाय वाले को आवाज दी सबके लिये डबल चीनी डाल कर चाय दो, हां सभी बाबा लोगों को.......1-2-3-4-5- और मैं,,... हां 6 चाय ./...मीठा ढंग से डालना......बाबा का टेस्ट तो पता ही होगा तुझे
इतना कहते ही एक बाबा ने हाथ से इशारा किया मुझे .......आजा यहां बैठ जा.. अरे ना जमीन में मत बैठ ...यहां कम्बल पर और मेरी जगह बन गई साधुओं के पास बैठने की......
चिलम चल रही थी.......अच्छा, चिलम पीने के भी कायदे हैं....... सबका बारी-बारी से नम्बर चलता है, कोई दो कश एक साथ नहीं लगा सकता....यानि एक बार हाथ में आने पर केवल एक कश लगायेगा..........कश लगाने से पहले कितनी भी देर पकडे रह सकता है और कश लगाने पर अपने बायें बैठे हुये को चिलम दी जाती है......तो भाई चिलम आ गई मेरे सामने भी..........य्य्येय्ये सुट्टा मारा दम लगा के.......और ढेर सारा धुंआ गले से होता हुआ....फेफडे...पेट और अंतडियों से होता हुआ पेट में घूमा....... फिर धीरे-धीरे नाक और मुंह से बाहर ..........थोडी खांसी भी उठी....थोडी दबा गया ........बाबा देखने लगे सब......
तबतक चाय आ गई ...........मैं अपना चाय का कप लेकर थोडा पीछे हट गया.....दुबारा की हिम्मत नहीं हुई......चिलम सामने आने तक और पीछे हट गया........यानि पंक्ति से बाहर.......मेरा काम जिसलिये इनके पास आया था वो हो चुका था...........चाय पी........आदेश और जय भोलेनाथ, जय गंगा मैया बोलकर निकल गया वहां से...........अपनी ही मस्तिष्क की आन्नददायी लहरों पर झूमता रहा शाम तक..


06 September 2015

मस्ताना उसी को कहते हैं

हर हाल में जो खुश रहे
मस्ताना उसी को कहते हैं
निकलता है जो दिल से
तराना उसी को कहते हैं


सोना गहना हीरे मोती
आज नहीं तो कल होगा
औलाद जिसकी लायक हो
खजाना उसी को कहते हैं

हाथ उठाना नारी पे
ताकतवर की बात नहीं
अबला की इज्जत जो रखे
मर्दाना उसी को कहते हैं

अपनी भाषा अपनी बोली
अपनी छत अपनी रोटी
अपने जैसे हों लोग जहां
ठिकाना उसी को कहते हैं

शमा पे यूँ तो हजारों
मंडराते हैं पतंगे लेकिन
इश्क में जो जल मिटा
परवाना उसी को कहते हैं 

घर से भागे शादी कर ली
किस्सें बहुत हैं दुनिया में
लैला-मजनूं सा प्रेम हुआ
फसाना उसी को कहते हैं 

हर हाल में जो खुश रहे
मस्ताना उसी को कहते हैं

05 September 2015

वो तब लेता है.....जब हम देते हैं

1995 में मेरी चाय की दुकान थी, तेलीवाडा सदर बाजार में
दुकान से कुछ दूर ही पुलीस बीट थी, वहां से एक लडका आया बोला चार चाय दीजिये, मैनें बना दी पैसे मांगे, बोला साहब ने मंगवाई है। मैनें कहा ठीक है बाद में दे जाना। दो दिन बाद फिर आया मैनें कहा पैसे लाओ पिछले भी जबतक चाय बनती है। वो गया उसके साथ सिपाही आया-बोला तूने चाय के लिये मना किया.? मैनें कहा- पैसे मांगे हैं, परसों के भी बाकी हैं। सिपाही बोला बाद में देंगे, चाय दे दिया करो। उसदिन भी दे दी। तीसरे दिन फिर चाय लेने आया, मैनें कहा साहब ने पीनी है तो यहां आकर पी लेंगे। बोला एक ही दे दो, मैनें बना दी दूध केवल दिखाने के लिये और बिना चीनी की। सिपाही आया, बोला ये कैसी चाय बनाई है, मैनें कहा चीनी-दूध के पैसे नहीं हैं, आप पर इतना बकाया है, दे दो अभी अच्छी चाय बनाकर देता हूं। सिपाही बोला हम भी तेरे काम आ सकते हैं। मैनें कहा भाई मैं कोई गैरकानूनी काम नहीं करता हूं। अगली बार चाय तभी दे पाऊंगा, जब बकाया चुकाओगे। अगर ये चाहते हो कि दुकान बंद कर दूं तो वो बता दो, कहो तो तुम्हारे साहब से बात कर लूं कि उन्हें मुफ़्त में चाय पीनी है तो ऐसी ही मिलेगी। उसी समय उसने पूरे पैसे चुकाये और हमेशा पैसे भेज कर चाय मंगवाई।
लाल बत्ती जंप करने या कोई जुर्माने लायक काम करने के बाद हम चालान कटवाने के बजाय 50-100 रुपये देकर पीछा छुडवाना चाहते हैं। क्यों
ज्यादतर सरकारी नौकर रिश्वत तब लेता है जब हम देते हैं.................
"मेरा काम पहले हो" ये मानसिकता भी इसका एक कारण है
कानून का डर दिखाकर कितनों से रिश्वत ले पायेंगे ये लोग अगर सभी कानून का पालन करें या गलत कार्य हो जाने पर, करते हुये पकडे जाने पर जुर्माना अदा करें तो...............