1995 में मेरी चाय की दुकान थी, तेलीवाडा सदर बाजार में
दुकान से
कुछ दूर ही पुलीस बीट थी, वहां से एक लडका आया बोला चार चाय दीजिये, मैनें
बना दी पैसे मांगे, बोला साहब ने मंगवाई है। मैनें कहा ठीक है बाद में दे
जाना। दो दिन बाद फिर आया मैनें कहा पैसे लाओ पिछले भी जबतक चाय बनती है।
वो गया उसके साथ सिपाही आया-बोला तूने चाय के लिये मना किया.? मैनें कहा-
पैसे मांगे हैं, परसों के भी बाकी हैं। सिपाही बोला बाद में देंगे, चाय दे
दिया करो। उसदिन भी दे दी। तीसरे दिन फिर चाय लेने आया, मैनें कहा
साहब ने पीनी है तो यहां आकर पी लेंगे। बोला एक ही दे दो, मैनें बना दी
दूध केवल दिखाने के लिये और बिना चीनी की। सिपाही आया, बोला ये कैसी चाय
बनाई है, मैनें कहा चीनी-दूध के पैसे नहीं हैं, आप पर इतना बकाया है, दे दो
अभी अच्छी चाय बनाकर देता हूं। सिपाही बोला हम भी तेरे काम आ सकते हैं।
मैनें कहा भाई मैं कोई गैरकानूनी काम नहीं करता हूं। अगली बार चाय तभी दे
पाऊंगा, जब बकाया चुकाओगे। अगर ये चाहते हो कि दुकान बंद कर दूं तो वो बता
दो, कहो तो तुम्हारे साहब से बात कर लूं कि उन्हें मुफ़्त में चाय पीनी है
तो ऐसी ही मिलेगी। उसी समय उसने पूरे पैसे चुकाये और हमेशा पैसे भेज कर चाय
मंगवाई।
लाल बत्ती जंप करने या कोई जुर्माने लायक काम करने के बाद हम चालान कटवाने के बजाय 50-100 रुपये देकर पीछा छुडवाना चाहते हैं। क्यों
ज्यादतर सरकारी नौकर रिश्वत तब लेता है जब हम देते हैं.................
"मेरा काम पहले हो" ये मानसिकता भी इसका एक कारण है
कानून का डर दिखाकर कितनों से रिश्वत ले पायेंगे ये लोग अगर सभी कानून का पालन करें या गलत कार्य हो जाने पर, करते हुये पकडे जाने पर जुर्माना अदा करें तो...............
ज्यादतर सरकारी नौकर रिश्वत तब लेता है जब हम देते हैं.................
"मेरा काम पहले हो" ये मानसिकता भी इसका एक कारण है
कानून का डर दिखाकर कितनों से रिश्वत ले पायेंगे ये लोग अगर सभी कानून का पालन करें या गलत कार्य हो जाने पर, करते हुये पकडे जाने पर जुर्माना अदा करें तो...............
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