12 December 2015

चेहरे पे चेहरा लगाये रहता हूं मैं

चेहरे पे चेहरा लगाये रहता हूं मैं
खुद से खुद को छुपाये रहता हूं मैं
नजरें मिलाई तो मुजरिम ठहराओगे
इसलिये आंखें झुकाये रहता हूं मैं

सब कहते हैं अब भुला दूं तुमको
पर खुद को ही भुलाये रहता हूं मैं
अलविदा कहके चले तो गये तुम
फिर भी आस लगाये रहता हूं मैं

वक्त की हवाओं से डूब गये सूरज भी
तेरी यादों का दिया जलाये रहता हूं मैं
चेहरे पे चेहरा लगाये रहता हूं मैं
खुद से खुद को छुपाये रहता हूं मैं

08 December 2015

मोलड बोला पत्नी से

मोलड बोला पत्नी से तू मन्नै नहीं जानती
उल्टा बोलै मेरी मां तै कहना नहीं मानती
सीता माता रामजी का साथ निभाती थी
देश निकाला पाया अर वन में भी जाती थी
पत्नी बोली फालतू मन्नै समझावै मत
ज्यादा पढावै मत, ज्ञान बरसावै मत
पढी रामाय़ण मैं इसकी हर बात में सीख सै
तीन तीन सास हों तो वहां जंगल ही ठीक सै

13 September 2015

चिलम पी है चिलम

हाँ चिलम पी है कभी........?
मैनें पी है!!!
हरिद्वार में हर की पौड़ी से आगे सुभाष घाट है, उससे भी आगे बिरला घाट, उससे आगे अन्य कोई घाट और शमशान जहां अंतिम संस्कार किया जाता है। वहीँ बिरला घाट के बायीं तरफ खुले मैदान में बहुत से पेड़,... कुछ साधुओं के तम्बू/कुटिया और कुछ चाय पानी की दुकानें हैं।
कुटिया के आगे राख लिपटे नग्न शरीर, धूनी रमाये साधु गोल घेरे में बैठे हैं। मैं उनके पास गया, जोर से "आदेश" का नारा लगाया तो दूर से ही लाल-लाल आंखें निकाल कर, हाथ हिलाकर फटकार दिये.........ए परे- परे.....दूर हट......चल भाग...कहां चला रहा है.......हट परे, बाबा से दूर रह ......
मैनें चाय वाले को आवाज दी सबके लिये डबल चीनी डाल कर चाय दो, हां सभी बाबा लोगों को.......1-2-3-4-5- और मैं,,... हां 6 चाय ./...मीठा ढंग से डालना......बाबा का टेस्ट तो पता ही होगा तुझे
इतना कहते ही एक बाबा ने हाथ से इशारा किया मुझे .......आजा यहां बैठ जा.. अरे ना जमीन में मत बैठ ...यहां कम्बल पर और मेरी जगह बन गई साधुओं के पास बैठने की......
चिलम चल रही थी.......अच्छा, चिलम पीने के भी कायदे हैं....... सबका बारी-बारी से नम्बर चलता है, कोई दो कश एक साथ नहीं लगा सकता....यानि एक बार हाथ में आने पर केवल एक कश लगायेगा..........कश लगाने से पहले कितनी भी देर पकडे रह सकता है और कश लगाने पर अपने बायें बैठे हुये को चिलम दी जाती है......तो भाई चिलम आ गई मेरे सामने भी..........य्य्येय्ये सुट्टा मारा दम लगा के.......और ढेर सारा धुंआ गले से होता हुआ....फेफडे...पेट और अंतडियों से होता हुआ पेट में घूमा....... फिर धीरे-धीरे नाक और मुंह से बाहर ..........थोडी खांसी भी उठी....थोडी दबा गया ........बाबा देखने लगे सब......
तबतक चाय आ गई ...........मैं अपना चाय का कप लेकर थोडा पीछे हट गया.....दुबारा की हिम्मत नहीं हुई......चिलम सामने आने तक और पीछे हट गया........यानि पंक्ति से बाहर.......मेरा काम जिसलिये इनके पास आया था वो हो चुका था...........चाय पी........आदेश और जय भोलेनाथ, जय गंगा मैया बोलकर निकल गया वहां से...........अपनी ही मस्तिष्क की आन्नददायी लहरों पर झूमता रहा शाम तक..


06 September 2015

मस्ताना उसी को कहते हैं

हर हाल में जो खुश रहे
मस्ताना उसी को कहते हैं
निकलता है जो दिल से
तराना उसी को कहते हैं


सोना गहना हीरे मोती
आज नहीं तो कल होगा
औलाद जिसकी लायक हो
खजाना उसी को कहते हैं

हाथ उठाना नारी पे
ताकतवर की बात नहीं
अबला की इज्जत जो रखे
मर्दाना उसी को कहते हैं

अपनी भाषा अपनी बोली
अपनी छत अपनी रोटी
अपने जैसे हों लोग जहां
ठिकाना उसी को कहते हैं

शमा पे यूँ तो हजारों
मंडराते हैं पतंगे लेकिन
इश्क में जो जल मिटा
परवाना उसी को कहते हैं 

घर से भागे शादी कर ली
किस्सें बहुत हैं दुनिया में
लैला-मजनूं सा प्रेम हुआ
फसाना उसी को कहते हैं 

हर हाल में जो खुश रहे
मस्ताना उसी को कहते हैं

05 September 2015

वो तब लेता है.....जब हम देते हैं

1995 में मेरी चाय की दुकान थी, तेलीवाडा सदर बाजार में
दुकान से कुछ दूर ही पुलीस बीट थी, वहां से एक लडका आया बोला चार चाय दीजिये, मैनें बना दी पैसे मांगे, बोला साहब ने मंगवाई है। मैनें कहा ठीक है बाद में दे जाना। दो दिन बाद फिर आया मैनें कहा पैसे लाओ पिछले भी जबतक चाय बनती है। वो गया उसके साथ सिपाही आया-बोला तूने चाय के लिये मना किया.? मैनें कहा- पैसे मांगे हैं, परसों के भी बाकी हैं। सिपाही बोला बाद में देंगे, चाय दे दिया करो। उसदिन भी दे दी। तीसरे दिन फिर चाय लेने आया, मैनें कहा साहब ने पीनी है तो यहां आकर पी लेंगे। बोला एक ही दे दो, मैनें बना दी दूध केवल दिखाने के लिये और बिना चीनी की। सिपाही आया, बोला ये कैसी चाय बनाई है, मैनें कहा चीनी-दूध के पैसे नहीं हैं, आप पर इतना बकाया है, दे दो अभी अच्छी चाय बनाकर देता हूं। सिपाही बोला हम भी तेरे काम आ सकते हैं। मैनें कहा भाई मैं कोई गैरकानूनी काम नहीं करता हूं। अगली बार चाय तभी दे पाऊंगा, जब बकाया चुकाओगे। अगर ये चाहते हो कि दुकान बंद कर दूं तो वो बता दो, कहो तो तुम्हारे साहब से बात कर लूं कि उन्हें मुफ़्त में चाय पीनी है तो ऐसी ही मिलेगी। उसी समय उसने पूरे पैसे चुकाये और हमेशा पैसे भेज कर चाय मंगवाई।
लाल बत्ती जंप करने या कोई जुर्माने लायक काम करने के बाद हम चालान कटवाने के बजाय 50-100 रुपये देकर पीछा छुडवाना चाहते हैं। क्यों
ज्यादतर सरकारी नौकर रिश्वत तब लेता है जब हम देते हैं.................
"मेरा काम पहले हो" ये मानसिकता भी इसका एक कारण है
कानून का डर दिखाकर कितनों से रिश्वत ले पायेंगे ये लोग अगर सभी कानून का पालन करें या गलत कार्य हो जाने पर, करते हुये पकडे जाने पर जुर्माना अदा करें तो...............

30 August 2015

क्यों करती हो ऐसा

क्यों करती हो ऐसा......बिना कारण बताये बात करना बंद कर देती हो। सजा देने से पहले अपराध बताना जरुरी नहीं है क्या तुम्हारी अदालत में...............सैंकडों बार हो चुका मेरे साथ..............हर बार लगता है ये आखिरी बार है............लेकिन फिर वही वही होता है। क्या कमी रह गई मुझमें, क्या चाहती थी तुम मुझसे ............ ये बता दो....तो ........तकलीफ नहीं होगी। क्या समझूं.........क्या करुं........जब तुम्हारा बीस-बीस दिनों तक एक रिप्लाई भी नहीं पाता...........एक स्माईली भेजने में समय ही कितना लगता है...........पढती भी तो हो मेरे सारे मैसेज............फोन करुं तो हमेशा व्यस्तता का बहाना...................दस-पंद्र्ह दिन में बिना शब्दों का एक स्माईली भी पा जाऊं तो मुस्कुराता रहूंगा हमेशा....................... और ये क्या किया...........सपने में देखना चाहा तो वहां भी नहीं आई..............सपने में भी फोन ही किया.......और फोन भी ये कहने के लिये कि बिजी हूं......... frown emoticon कितनी शिकायतें करुं............ और कल स्माईली भेजा नमस्ते का..........मैनें भी नमस्ते की तो...............आगे कोई बात नहीं थी आपके पास............व्यस्त हो ना.....

22 August 2015

बताओ कैसे डिलीट करुं........वो दिन, वो रात

मैं तुम्हारा फोन नम्बर डिलीट करके सोचता था कि ना कॉन्टैक्ट्स लिस्ट में नम्बर होगा ना तुम्हें बार-बार रिंग कर पाऊंगा.............ना व्हाटसऐप की लिस्ट में तुम्हारा चेहरा दिखेगा और ना घडी-घडी मैसेज भेजूंगा......................नहीं चाहता तुम्हें परेशान करना............नहीं चाहता तुम्हें डिस्टर्ब करना............नहीं चाहता तुम्हारी जिन्दगी में दखलअंदाजी करना..................लेकिन, किन्तु, परन्तु.............ये नहीं जानता था कि कैसे डिलीट होगी .....वो रात.........जब पहली बार तुम्हारा आलिंगन किया था................कैसे डिलीट होगी.............. वो सर्द सुबह.........जिस सुबह तुमने अचानक बिस्तर से निकल कर मुझे किस करके हैरत में डाल दिया था............कैसे डिलीट होगी ................वो शाम................. जब चाय के साथ पकौडे खाते हुये हम खूब बतियाये थे...............कैसे डिलीट होगी ...............वो दोपहर ...............जब तुमने जुदाई के भय में मेरा हाथ कसकर पकडे रखा...............कैसे डिलीट करुं .......वो बातें ...........जो घंटो फोन पर हुई थी...............कैसे डिलीट करुं .........वो चैट............ जो फोन की बैटरी खत्म होने पर ही खत्म होती थी..................बताओ कैसे डिलीट करुं.......बता दो ना......

07 August 2015

जब किसी की हैलो सुनने भर से फफक कर रोने लगो

मेरा जवाब था कि हम दोस्त हैं और दोस्त ही रहेंगे। 2000 में आखिरी बार मिले थे हम और तब मैनें ये कहा था कि अब हम कभी नहीं मिलेंगे, तुम अब शादी कर लो।

तेरी खोज में उस दिन भाभी को वापिस आना था शाम को अन्धेरा होने तक। उस गांव में कुल जमा दसेक घर हैं, 13 साल पहले तो झोपडियां होती थी अब कुछ पक्के बन गये थे। इन्तजार में बैठ गया। कुछ खाने-पीने को नहीं, चाय भी नहीं।
A मेरे मजे ले रहे थे, फोन पर ऐसे-ऐसे गाने चला रहे थे कि रोने का मन करने लगा।
फिर एक जगह 3-4 लडकियां बैठी थी, उनसे पूछताछ की, उन्हें हिन्दी बहुत कम आती थी फिर भी समझ गई उन्होंने एक लडकी से बात करवाई फोन पर वो R थी,  S की छोटी बहन
R मुझे जानती थी उसने कहा कि आज याद आई है आपको 13 साल बाद, उसने कहा xxxxxगंज आओ और मुझसे मिलो
xxxxxxगंज गया R से मिला, उससे पता चला कि सीता 500 किमी दूर xxxxxx में है (हा-हा-हा) xxxxxx से तो मैं यहां आया हूं। फोन पर बात हुई।
उस दिन पता चला कि प्यार क्या होता है। जब आप किसी के हैलो सुनने भर से फफक कर रोने लगो। और आधे घंटे तक फोन को कान पर लगाये रखो और दोनों तरफ से कोई कुछ नहीं बोल रहा है बस सिसकियां सुनाई दे रही है।
S ने आधे घंटे बाद कहा कि आपने कहा था कि अब हम नहीं मिलेंगे लेकिन मुझे पता था कि हम एक बार जरुर मिलेंगे और तुम आओगे जरुर आओगे।
मैनें कहा कि मैनें तो ये भी कहा था कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता हूं, लेकिन आज मैं ये कहता हूं कि सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा
Now it's not end it's begining.

31 July 2015

उसी बैंच पर बैठेंगे.....थोडी देर....बोलो ना...???

तबसे 8 साल और आज से 16 साल पहले तुमने मुझे छात्रा मार्ग पर आने के लिये कहा था। तुम्हारा एग्जाम था उसदिन फर्स्ट इयर का। पहली बार तुमसे मिलने, देखने की चाह तो बहुत थी। लेकिन मैंने साफ़ मना कर दिया था कि नहीं आ सकता। दो कारण थे, पहला मेरी जेब बहुत हल्की थी। नई नई जॉब थी और सेलरी जितनी थी, जो थी, वो मां के हाथ पर रखता था; तो मेरी जेब हमेशा ही खाली सी रहती थी। दूसरा कारण था मेरा हुलिया, ड्रेसिंग सेंस तो अब नहीं है पर उसदिन लगा कि पहली डेट पर जाना है तो क्या इम्प्रेशन पडेगा? 

और आज 8 साल और बीत चुके हैं, जब तुमने दोबारा मिलने के लिये बुलाया था। इस बार तो हम दोनों की शादी भी हो चुकी थी, पर एक बार मिलने की तमन्ना दोनों ओर थी। पीतमपुरा मैट्रो पर जब पहली बार तुम्हें देखा, पता नहीं क्यों पहचानने की जरुरत ही नहीं थी। तुम्हें दूर से देखकर ही मेरी बाहें अपने आप फैलती चली गई और तुमने भी ना जाने कैसे जाना कि तुम्हें इन बाहों में ही सिमटना है एक पल के लिये ही सही.......... 
:-)
याद है वो वाक्या कितना मजा आया था तुम्हें और मैं कितना डर गया था, जब जापानी पार्क में हम उस आखिरी बैंच पर बैठे थे, जिसके पीछे ही तीन जोडे स्कूल-कॉलेज में पढने वाले, थोडी थोडी दूर पर पेडों की ओट लिये दुनिया को भूले एक दूसरे से लिपटे, बेसुध से पडे थे। तभी पता नहीं कहां से 3-4 पुलिस वाले निकल आये थे, शायद पीछे की दीवार फांद कर आये होंगे और तीनों कपल से उनके नाम-पते और घरवालों को बुलाने की बातें करते करते हमारी तरफ आ गये। 

मेरी धडकन तो तुम्हारे पहलू में बैठने से ही बढी पडी थी, पुलिस वालों को देखकर लगा कि रुक ही जायेगी। मुझसे भी सवाल जवाब होंगे और घरवालों को सूचित किया जायेगा। पर शुक्र है परमात्मा का वो सब हमारे करीब से निकल गये थे। पता है क्यों, मेरी-तुम्हारी उम्र, तुम्हारी मांग का सिन्दूर और बिंदी, हमारा घास की बजाय बैंच पर होना और वो लोग पीछे से आये थे तो हमारी हरकतों पर उनकी नजर नहीं पडी।
क्यों ना एक बार फिर से चलें?.... वहीं जापानी पार्क में.......... उसी बैंच पर बैठेंगे.................थोडी देर...........बोलो ना..............???

30 April 2015

तेरी खोज में वो दिन

उस अनजाने शहर में कम से कम सौ लोगों से पूछताछ की, जहां तुम पिछली बार रहती थी, किराये पर रहती थी। दर-दर किवाड खटखटाये। कहीं पैदल कहीं रिक्शा में पूरे 4-5 घंटे कुछ सुराग नहीं मिला।
फिर मुन्ना टायर वाले को ढूंढा, दुकान मिली, उसका लडका मिला, घर मिला, फिर मुन्ना मिल गया। बोला तुम्हारे पिताजी एक ठेली पर तुम्हारी मां को डालकर ......मन्दिर पर भिक्षा मांगते हैं। पूरा मन्दिर छान मारा, वहां फैले बीसियों भिखारियों के पास बैठ-बैठ, चाय पिलाकर, पैसे देकर केवल इतनी जानकारी मिली कि कई दिनों से वो दिखाई नहीं दे रहे हैं। आते थे, उनकी छोटी बेटी खाना लेकर भी आती थी। कहां रहते है नहीं पता।

मेरा फूट-फूट कर रोने का मन कर रहा था। शायद इसलिये कि मैं तीन रातों से ढंग से सोया नहीं था और उसदिन सुबह से कुछ खाया भी नहीं

आखिरी उम्मीद बची थी तुम्हारा गांव, जिसका केवल नाम याद था। वहां गया, 50 किमी दूर ही तो है। वहां किसी के पास तुम्हारा कॉन्टेक्ट नहीं मिला। तुम्हारे घर में मां थी, जो कुछ बोल नहीं सकती थी ना लिख पढ सकती थी और एक भतीजी जो केवल 2 साल की थी। एकमात्र उम्मीद तुम्हारी भाभी थी जिससे कुछ पता चल सकता था और भाभी गई थी जंगल में गाय बकरी लेकर, चराने

भाभी का 3 घंटे का इंतजार, तुमसे बिछुडे 13 वर्षों से भी बडा हो जायेगा, नहीं पता था। कभी थोडी दूर तक जंगल में जाना, कभी थक कर बैठ जाना, बस एक घूंट पानी और एक सिगरेट बार-बार, हर बार
हर दिखाई देते शख्स से भाभी के बारे में पूछना, कब तक आयेंगी, कहां होंगी
हर आहट पर समझना कि भाभी आ रही हैं। हर जानवर की झलक को तुम्हारी भाभी की गाय-बकरी जानकर उसकी तरफ़ पीछे आने वाले को पहचानने की कोशिश

उन तीन घंटों में क्या था, क्या फीलिंग्स थी, नहीं पता क्या था वो, कुछ भी नहीं था पर मैं वो तीन घंटे फिर से जीना चाहता हूं।

भाभी से मुलाकात नहीं हुई, पर वहीं एक गुमटी पर बैठी लडकियों से तुम्हारी छोटी बहन का मोबाइल नम्बर मिल ही गया। बात हुई पर उसने तुम्हारा कॉन्टैक्ट नम्बर नहीं दिया, मुझे बुलाया है, वहीं जहां मैं सुबह से खाक छान कर यहां आया हूं।
Now it's not end it's begining.

23 April 2015

कुछ भी नहीं था

कुछ भी तो नहीं था
हाँ कुछ भी नहीं था
तबतक
जबतक तुमने जाते जाते
मेरा हाथ जोर से नहीं पकड़ा था

ऑटो में बैठ चुकी थी तुम
और मैं भी भागने लगा
ऑटो के साथ साथ
अपना हाथ छुड़वाने के लिए
या.....
रुको शायद मैं भी चाहता था
तुम रुको
कुछ देर और
यहीं सड़क पर
मेरे साथ

ताकि देख सकूँ मैं तुम्हें
जी भरकर
लेकिन तुम तो देख ही नहीं सकती थी
धुंध थी तुम्हारी आँखों में आंसुओं की

और मेरी आँखों में भी
शायद नहीं
मैं कैसे रो सकता हूँ
यूँ बीच सड़क पर
पुरुष हूँ ना

और तुम्हारे जाने के बाद
कुछ भी तो नहीं था
हाँ कुछ भी नहीं था

वहां रह गया था मैं
या शायद नहीं
हां मैं भी नहीं
क्योंकि
कुछ भी तो नहीं था
हां कुछ भी नहीं था