कुछ भी तो नहीं था
हाँ कुछ भी नहीं था
तबतक
जबतक तुमने जाते जाते
मेरा हाथ जोर से नहीं पकड़ा था
ऑटो में बैठ चुकी थी तुम
और मैं भी भागने लगा
ऑटो के साथ साथ
अपना हाथ छुड़वाने के लिए
या.....
रुको शायद मैं भी चाहता था
तुम रुको
कुछ देर और
यहीं सड़क पर
मेरे साथ
ताकि देख सकूँ मैं तुम्हें
जी भरकर
लेकिन तुम तो देख ही नहीं सकती थी
धुंध थी तुम्हारी आँखों में आंसुओं की
और मेरी आँखों में भी
शायद नहीं
मैं कैसे रो सकता हूँ
यूँ बीच सड़क पर
पुरुष हूँ ना
और तुम्हारे जाने के बाद
कुछ भी तो नहीं था
हाँ कुछ भी नहीं था
वहां रह गया था मैं
या शायद नहीं
हां मैं भी नहीं
क्योंकि
कुछ भी तो नहीं था
हां कुछ भी नहीं था
हाँ कुछ भी नहीं था
तबतक
जबतक तुमने जाते जाते
मेरा हाथ जोर से नहीं पकड़ा था
ऑटो में बैठ चुकी थी तुम
और मैं भी भागने लगा
ऑटो के साथ साथ
अपना हाथ छुड़वाने के लिए
या.....
रुको शायद मैं भी चाहता था
तुम रुको
कुछ देर और
यहीं सड़क पर
मेरे साथ
ताकि देख सकूँ मैं तुम्हें
जी भरकर
लेकिन तुम तो देख ही नहीं सकती थी
धुंध थी तुम्हारी आँखों में आंसुओं की
और मेरी आँखों में भी
शायद नहीं
मैं कैसे रो सकता हूँ
यूँ बीच सड़क पर
पुरुष हूँ ना
और तुम्हारे जाने के बाद
कुछ भी तो नहीं था
हाँ कुछ भी नहीं था
वहां रह गया था मैं
या शायद नहीं
हां मैं भी नहीं
क्योंकि
कुछ भी तो नहीं था
हां कुछ भी नहीं था
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.04.2015) को "आँखों की भाषा" (चर्चा अंक-1955)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जरुर आऊंगा प्रणाम करने
Deleteबढ़िया ...
ReplyDeleteधन्यवाद जी
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