25 April 2010

तुम भी ना बस बुरा मान जाते हो

फत्तू एक दिन देर से घर पहुंचा तो उसके पिता रलदू ने पूछा - कहां था?
फत्तू - दोस्त के घर पर
रलदू ने उसके दस दोस्तों को फोन कर-करके पूछा। पांच ने कहा "हां, मेरे साथ था"। यही होते हैं सच्चे दोस्त।
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फत्तू चौधरी फोन पे बात कर रहा था।
सत्तू  - किससे बात कर रहे हो।
फत्तू - बीवी से
सत्तू - इतने प्यार से
फत्तू - तुम्हारी है
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सुहागरात की अगली सुबह  सहेली ने दुल्हन से पूछा - कैसा रहा, कैसा महसूस हुआ
दुल्हन - बहुत बढिया, कालेज के दिन याद आ गये
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मास्टरजी - दुनिया गोल है
फत्तू - लेकिन पिताजी तो कहते हैं कि दुनिया बडी कमीनी है
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लडका - आई लव यू
लडकी - बट आई डोन्ट
लडका - वेटर, बिल अलग-अलग लाना
लडकी - आई लव यू-आई लव यू-आई लव यू, तुम भी ना बस बुरा मान जाते हो
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लडका - मैं तुम्हारे लिये सब छोड दूंगा
लडकी - मां-बाप
लडका - हां
लडकी - अपने दोस्त
लडका - हां
लडकी - घर-बार
लडका - हां
लडकी - दारू-सिगरेट
लडका - दीदी घर जाओ, आपके पापा परेशान हो रहे होंगें

22 April 2010

क्या आप कौवे पर बीट डाल सकते हैं

चित्र गूगल से साभार
ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत तो हरे-भरे प्यारे विशाल वृक्षों जैसे हैं। जिनके नीचे  सभी हिन्दी ब्लागर ठंडी छांव का आनन्द लेते हैं। मगर इन पेडों की जिस डाल के नीचे आप बैठने जा रहे हैं, वहां पहले जांच ले कि कहीं उस डाल पर कौवे का घौंसला तो नही है। क्योंकि आपके बैठते ही आपके ऊपर, अगर कौवे ने बीट (पोटी) कर दी तो??? अजी डाल उसकी, घौंसला उसका, क्या करेंगें आप??? जी भर के कोसिये, गालियां निकालिये या प्यार से कौवे को ऐसा करने पर एतराज जताईये, यही तो  कौवे के लिये  दाना-पानी हैं। कुछ नही होगा, कौवा आपके  मुकाबले ज्यादा जोर से और ज्यादा देर तक कांव-कांव कर सकता है। क्योंकि उसका तो जन्मजात गुण है ये और आपने तो शायद आज से पहले कभी कांव-कांव का अभ्यास भी नही किया है। या आप कौवे से ऊंचे उडकर, उसके ऊपर बीट करने की कोशिश करेंगें??? अगर कर पाये तो आप कौवे से भी बडे गंदे प्राणी हो गये। अगर आप कौवे के घौंसले के नीचे बैठ ही गये हैं तो एक तरीका और हो सकता है कि कौवा बीट करे तो आप हंसकर,  अपने कपडे झाडकर, वहां से निकल सकते हैं और दूसरी साफ सुन्दर डाली के नीचे जा सकते हैं।

07 April 2010

प्रीतम का कुछ दोष नहीं है

आज आप सुनिये मेरे पसन्दीदा भक्ति संगीत कलैक्शन में से एक भजन  (आप इसे नात या कव्वाली भी कह सकते हैं) "सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम" प्रेमरस से सराबोर इस रचना के गायक शायद सुप्रसिद्ध श्री नुसरत फतेह अली खान जी हैं।



इस पाडकास्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

04 April 2010

बिल्कुल अपने बाप पर गया है

लडकी - मम्मी ये पडोसी का लडका बार-बार मुझे पप्पी (किस) करके भाग जाता है।
मम्मी (मुस्कुरा कर) - बडा शरारती है, बिल्कुल अपने बाप पर गया है।
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पत्नी विदेश जा रही थी। उसने पति से पूछा - मैं इंग्लैण्ड जा रही हूं, आपके लिए क्या तोहफा लाऊं।
पति - एक ब्रिटिश लडकी
पत्नी विदेश से वापिस आई तो पति ने पूछा - मेरा तोहफा कहां है।
पत्नी - नौ महिने इंतजार करो, मिल जायेगा।
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संता - आप तो कहते थे कि सुबह-सुबह खेलने से सेहत ठीक रहती है, पर मुझे तो कोई फर्क नही पडा।
डाक्टर - आप कौन सा खेल खेलते हो।
संता - जी मोबाईल में सांप वाला।
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शादी के तुरन्त बाद पति के मोबाईल में पत्नी का फोन नंo  My Life सेव था। एक साल बाद  My Wife, तीन साल बाद Home, पांच साल बाद Hitler और दस साल बाद Wrong Number हो गया।
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संता जी को चांद पर भेजा जा रहा था। आधे रास्ते में ही संता ने राकेट से नीचे छलांग लगा दी और चिल्लाया - धोखा! आज तो अमावस्या है, चांद तो होगा ही नहीं।
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पति - आज तक किस-किस के साथ सोयी हो सच-सच बताना।
पत्नि - आपकी कसम केवल आपके साथ ही सोयी हूं, बाकियों ने तो सोने ही नही दिया।

02 April 2010

वह किताब, वह शास्त्र, वह संदेश सही होना चाहिये

मन की यह स्वाभाविक आकांक्षा होती है कि जो मैं मानता हूं, वही दूसरा भी मान ले। यह आकांक्षा क्यों होती है? यह आकांक्षा इसलिये होती है कि मुझे खुद भी भरोसा नहीं है, जो मैं मानता हूं उस पर। जब मैं दूसरे को भी राजी कर लेता हूं, तो थोडा भरोसा आता है। जब भीड बढने लगती है और मेरे साथ बहुत लोग राजी होने लगते हैं, तो मैं समझता हूं कि जो मैं कह रहा हूं, वह सत्य है। अन्यथा इतने लोग कैसे मानते! मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि भीतरी इनफीरिआरिटी, भीतरी हीनता है; भीतर पक्का भरोसा नहीं है। दूसरे को राजी करवा कर अपने पर भरोसा आता है। दूसरा जब बदल जाए, तो खुद पर भरोसा आता है कि ठीक है, हम जो मानते हैं, वह ठीक है। वह किताब, वह शास्त्र, वह संदेश सही होना चाहिये, नहीं तो इतने आदमी कैसे राजी हो जाते।
इसलिये जब हमसे कोई राजी नही होता, तो हमें अपने भीतर खोखलापन दिखायी पडता है कि किसी को मैं सहमत नहीं करवा पा रहा हूं। तब हमारी जडें हिलने लगती हैं, हमारा भरोसा टूटने लगता है।
हिंदु धर्म नान-कनवर्टिंग रिलीजन है। हिंदू धर्म किसी को रूपांतरित नहीं करना चाहता। किसी को बदलने की आकांक्षा नहीं है। हिंदू धर्म ने अपने इतिहास में दूसरे को रूपांतरित करने की अपने धर्म में, कभी कोई चेष्टा नहीं की। क्योंकि हिंदू मानता है, किसी को क्या बदलना! क्योंकि बदलना एक तरह का आक्रमण है, हिंसा है। क्यों मैं चोट करूं किसी के ऊपर कि तुम गलत हो! अगर मेरे जीवन की सुगंध किसी को बदल दे, तो काफी है। अगर मेरा जीवन तुम्हें बदल दे, तो ठीक है।
यह पंक्तियां गीता-दर्शन (भाग पांच)  से साभार ली गई है। अगर ओशो इन्ट्रनेशनल फाऊण्डेशन या किसी को आपत्ति है तो क्षमायाचना सहित हटा दी जायेंगी। 
 मैं ही सही क्योंकि तू गलत है
सब बना बनाया खेल मिट जाये
थोडा तो चल रे आलसी
मैं आचरण से धोखा देता हूं

01 April 2010

क्या आज आप कोई चिट्ठी नही पढेंगें?

आज आपको कोई भी
पोस्ट नही पढनी चाहिये
आज आपको ज्यादातर चिट्ठों
पर कुछ भी खास नहीं मिलेगा
अब आप यहां आ गये हैं
इस पोस्ट को पढने लेकिन
मैनें इस पोस्ट में कुछ भी
नही लिखा है
अब आप सोच रहे हैं
कि मैनें आपको अप्रैल फूल
बना दिया
मगर क्या यह भी सोचने की
बात है
यह पोस्ट तो मैनें यूं ही
टाइम पास करते हुये लिखी थी
लेकिन आप भी बेकार की
चीजों में उलझे रहते हैं
आप सोच रहे हैं कि हम
यहां आये ही क्यूं
और आये तो पढ क्यूं रहे हैं,
मगर आप पूरा पढ कर ही जायेंगें
क्योंकि हो सकता है कि आखिरी
पंक्तियों में ही कुछ खास बात
लिखी हो
और आप ये भी सोच रहे हैं
कि काश ऐसी पोस्ट हमने भी
लिखी होती कोई बात नहीं है
अगले साल ऐसी ही पोस्ट
लिख लेना या इसे ही
कापी-पेस्ट कर देना
अब आप बिना टिप्पणी किये
जायेंगें
ये दिखाने के लिये कि आप
यहां आये ही नही हैं
Happy Blogging