20 August 2010

अरे! लडकी, भगवान की जैसी मर्जी

image सात वर्ष पहले आजके दिन यानि 20-08-2003 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी थी। 19 और 20 के बीच की रात कभी सोते-कभी जागते निकली।  मुझे झपकी लगती और अन्जू मुझे उठाती - "दर्द हो रहा है"।  मैं उसके साथ बैठकर उसे सहलाता रहा था और सांत्वना दे रहा था। मैं चाहता था कि किसी तरह से रात कट जाये। उसे रह-रहकर प्रसव वेदना हो रही थी। सुबह 4 बजे उसने कहा अब दर्द बढ रहा है। मैनें तुरन्त मम्मी को जगाया और मम्मी ने अन्जू को जवें (शायद सेवईयां भी कहते हैं, मैदा को हाथ से बत्ती बना कर छोटा-छोटा, पतला-पतला जौ के जैसा तोडा जाता है और भूनकर रख लिया जाता है। इसकी खीर भी बनाई जाती है और नमकीन पुलाव की तरह से भी खाते हैं) उबाल कर  पीने के लिये दिया। पापा  मेरे एक दोस्त को उसकी कार समेत बुलाकर लाये।

सुबह 5 बजे हम रोहतक के एक नर्सिंग होम में थे। वहीं पहले से अन्जू का चेकअप चल रहा था, । असिस्टेंट डॉक्टर ने नर्स को इंजेक्शन लगाने के लिये कहा।  और हमें कहा कि अभी कुछ समय है, आप आराम से बैठिये। दस बजे मुख्य डॉक्टर ने आते ही एक बार अन्जू को देखने के बाद मुझे अपने केबिन में आने के लिये कहा। मैं उनके केबिन में गया तो उन्होंनें कहा कि मैनें आपको कब आने के लिये कहा था। पिछले परीक्षण पर उन्होंनें मुझे 06-08-10 को बुलाया था और यही डिलीवरी डेट दी थी। लेकिन 06-08-10 को कोई दर्द वगैरा या दिक्कत ना होने पर, मम्मी ने कहा कि एक-आध दिन बाद ही जायेंगें। वहां जाने पर इंजेक्शन से या ऑपरेशन द्वारा जबरदस्ती डिलीवरी करवा दी जाती है। अन्जू ने भी हाँ मे हाँ मिलाई और किसी भी सूरत में ऑपरेशन द्वारा डिलीवरी से साफ मना कर दिया।  ऐसे निकलते-निकलते आज 20 तारिख हो गई थी। मैनें डॉक्टर को यही बात बता दी। डॉक्टर ने कहा - लेकिन आपको लेकर तो आना चाहिये था। मैनें कहा  कि ऐसे तो आप उसी दिन जबरदस्ती डिलीवरी करवा देते।

डॉक्टर ने कहा कि बच्चे ने पेट में मल त्याग दिया है और ऑपरेशन करना पडेगा और इसका इतना खर्चा आयेगा। मैनें कहा कि मैं  इतना खर्च वहन नहीं कर पाऊंगा। अगर आप सामान्य डिलीवरी कर सकते हैं तो ठीक है, वर्ना हमें सरकारी अस्पताल में जाने की इजाजत दे दीजिये। डॉक्टर ने कहा कि हम नॉर्मल डिलीवरी कराने की कोशिश करेंगें। ऑपरेशन की तैयारी करके रखते हैं, अगर परेशानी आती है तो ही ऑपरेशन करेंगें, लेकिन तैयारियों में भी आपका खर्चा आयेगा ही।  डॉक्टर ने कहा कि आप एक सादे कागज पर लिख दीजिये कि हम ऑपरेशन नहीं करवाना चाहते हैं और जच्चा-बच्चा के किसी भी जोखिम की जिम्मेदारी हमारी है। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, फिर भी मैनें लिखा कि "डॉक्टर साहिबा का कहना है कि बच्चे  ने गर्भ के अन्दर ही  मल-त्याग दिया है और ऑपरेशन करना पडेगा। लेकिन हम ऑपरेशन नहीं करवाना चाहते हैं। सामान्य डिलीवरी हो सकती है तो किसी भी जोखिम की हमारी जिम्मेदारी है वर्ना हमें छुट्टी दे दी जाये।"

10:15 AM पर डॉक्टर और स्टाफ अपने काम में जुट गये। लेबर रूम के बाहर मेरी बेचैनी बढती जा रही थी। अन्दर से आती आवाजें और नर्स का बार-बार दवाईयां आदि मंगवाना मेरी सांसों को रोक रहा था। ये 15-20 मिनट मेरे लिये कितने भारी हो रहे थे, बस मैं ही जान सकता हूँ। 10:36 AM पर एक नर्स ने बाहर आकर बच्चे के लिये कपडा मांगा।  थोडी देर बाद नर्स ने बताया बेटी हुई है। मुझे लगा जैसे मैं किसी गहरे कुयें से निकला हूँ और मेरे गले पर कसा शिकंजा हट गया है। मैनें नर्स से पूछा कि क्या बच्चे ने पेट में मलमूत्र कर दिया था। नर्स ने बताया कि नहीं ऐसा कुछ नहीं था और बिल्कुल सामान्य जन्म हुआ है। दो-तीन घंटे में छुट्टी दे दी जायेगी और आप अपनी बेटी और पत्नी को घर ले जा सकते हैं। मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था। मैनें उत्साह से अपने घर, बहनों, रिश्तेदारों और दोस्तों को फोन पर ये खुशखबरी देना शुरू कर दिया। 3-4 जगहों से शुभकामनाओं की बजाय ये टिप्पणियां भी मिली थी - 

"चलो जो हो गया, बढिया है"
"अरे! लडकी, भगवान की जो मर्जी"
"अच्छा, बेटी हो गई, मैं तो लडके की आस लगाये थी"
"हमें तो लगता था, लडका ही होगा"

लेकिन इन सबसे मेरी खुशी में कोई फर्क नहीं हो रहा था। ये बातें सुनने का एक कारण यह भी था कि मैं एक ही बच्चा चाहता था। चाहे लडकी हो या लडका (बाद में अन्जू की चाह पर एक रिस्क और लेना पडा :) और लक्ष्य को पाया)। तभी दो नर्सों ने सहारे से अन्जू को वार्ड में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया, उर्वशी को मम्मी ने  गोद में उठा रखा था। मैंनें अन्जू के सिर और चेहरे पर हाथ फेरा, अन्जू मेरी तरफ मुस्कुराई। मैं उर्मी को गोद में लेकर अन्जू के पास बैठ गया। ये देखकर दूसरे बैड पर अपनी बहू के साथ आई एक औरत ने मेरी मम्मी से कहा - "आपका बेटा बहुत भोला है।"  
उसने ऐसा क्यों कहा???

18 August 2010

आँख से आँख मिलाओ

"कब तक रहोगे, मुंह को छुपाये नकाब में
कब तक रहेगा, चाँद सा चेहरा हिजाब में"

आज सुनिये उस्ताद राहत फतेह अली खान जी का एक बेहतरीन मेरा पसन्दीदा कलाम
इसकी अवधि करीबन 15 मिनट है। खाली समय में आराम से सुनियेगा। मेरा वादा है आपसे कि आपको भी बहुत पसन्द आयेगा।



इस पॉडकास्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

15 August 2010

गूगल पे सर्च करो, मिल जाये तो डाऊनलोड कर लेना

संता - मेरे पडोसी का बच्चा गुम हो गया।
बंता - तो तुमने क्या कहा?
संता - मैनें कहा गूगल पे सर्च करो। मिल जाये तो डाऊनलोड कर लेना।
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ट्रेन में संता अपनी पत्नी से - तेरे साथ शादी करके मेरी जिन्दगी बर्बाद हो गयी। दिल करता है तुझे कुत्ते के आगे डाल दूं।
सामने बैठा एक यात्री - भौं-भौं
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Santa's son was filling an application form. The form asked about mother tongue.
Son - पापा मैं इत्थे कि लिखां?
Santa - लिख पुत्तर, Very Long & Uncontrolled.
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भिखारी ने घर के बाहर आवाज लगाई - बाबू जी रोटी दे दीजिये।
घर का मालिक - बीवी घर पर नहीं है।
भिखारी - मैनें रोटी मांगी है, चुम्मी नहीं।
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सुहागरात पर संता ने बीवी से पूछा - तुमने ब्लू फिल्म देखी है।
दुल्हन - हाँ, कई बार
संता - हम वही करेंगें
दुल्हन - ठीक है, लेकिन और दो बंदे कब आयेंगें।

10 August 2010

'लंकेश' नाम रखने से क्या वो सचमुच रावण हो जाता?

आज भी बच्चों के जन्म पर छठी के दिन पन्डित से पूजा-पाठ और यज्ञ आदि करवा कर कुण्डली बनवाने और राशि,नक्षत्र आदि से नाम निकलवाने की रीत है। बिटिया का नाम 'उ या ऊ' से निकला तो मैनें बिटिया का नाम उर्वशी रखा। घरवालों को उर्मि या उर्मिल ज्यादा पसन्द था तो मैनें कहा कि आप इसे घर में उर्मि बुला सकते हैं। लेकिन जन्म प्रमाणपत्र पर मैनें उर्वशी ही लिखवाया। एक दोस्त ने कहा - यह क्या नाम रखा है, दूसरी बेटी होगी तो क्या रम्भा रख दोगे? मैनें कहा - हाँ रख दूंगा। क्या बुराई है इन नामों में। मुझे तो रम्भा और उर्वशी दोनों ही नाम सुन्दर लगते हैं।image

बेटे का नाम 'ल' से आया तो मेरे मस्तिष्क में एक ही नाम आया 'लंकेश'। घर में सभी का सख्त विरोध हुआ। भला ये भी कोई नाम है। जैसा नाम रखोगे, वैसे ही कर्म होंगें। अब भला 'राम' नाम वाले लाखों लोग हैं, इस धरती पर। क्या किसी एक आदमी के भी लक्षण या कर्म हैं 'राम' वाले? द्रोपदी भी कई लडकियों या औरतों के नाम सुने हैं, तो क्या उन्होंनें पांच पतियों से शादी की है या करेंगीं। लेकिन मेरे तर्क नहीं चले और घर के सभी सदस्यों के घोर विरोध पर मुझे झुकना पडा। बेटे का नाम 'लव्य' निर्धारित हुआ। लक्ष्य1
पापा जन्म-प्रमाणपत्र बनवाने गये तो 'लव्य' को 'लक्ष्य' लिखवा लाये। मैं घर में अधिकतर उसे 'लंकेश' ही बुलाता हूँ। अब विद्यालय में दाखिले के वक्त मैनें फॉर्म पर लंकेश भर दिया। लेकिन स्कूल स्टाफ ने पहले तो एन्जॉय किया इस नाम का। फिर साफ मना कर दिया कि जो नाम जन्म-प्रमाणपत्र पर है, वही दर्ज होगा। खैर अब 'लक्ष्य' ही लिखा गया है और  सब उसे 'लकी' बुलाते हैं।

गोबरप्रसाद, कचरादास आदि नाम तो आपने भी सुन रखे होंगें, कई बेहतरीन उपन्यासकारों ने इन नामों का प्रयोग भी किया है। पहले लोग ऐसे नाम भी रख देते थे।  'कूडाराम' के नाम से यहां दिल्ली में एक बडी फर्म भी है, इनकी दुकान हीरे-जवाहरात की है।  अच्छा नाम होने  और कार्य अच्छे ना होने पर एक कहावत भी कही जाती है कि "दादी मर गई अंधेरे में, पोते का नाम रोशनलाल"।

मुझे सन्यास के समय नया नाम मिला 'अन्तर सोहिल'। एक सवाल आया दिमाग में कि मेरा 'अन्तर' (Inner) सचमुच में तो सोहिल (Beautiful) नहीं है,  तो यह नाम मुझे क्यों मिला? तुरन्त ही उत्तर भी मिल गया कि ये नाम मिला है नाम के अनुरूप खुद को ढालने के लिये। अपने अन्दर की, मन की गंदगी को साफ करने के लिये। कोशिश तो जारी है, पर कितना मुश्किल है खुद की बुराईयों को स्वीकारना। है, ना?

08 August 2010

आज कुछ गंदे चुटकुले

 प्रेमी (प्रेमिका को फ्रेंच किस करने के बाद) - थैंक्यू बेबी, अपना च्यूईंगम मुझे देने के लिये।
प्रेमिका - ये च्यूईंगम नहीं है माई लव, मुझे कफ की शिकायत चल रही है।
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सेल्स मैनेजर - पाकिस्तान से 12" साईज के कंडोम का ऑर्डर आया था, क्या माल तैयार है।
प्रॉडक्शन मैनेजर - ये साले हमें जलील करना चाहते हैं। हाँ माल तैयार है और मैनें बॉक्स पे लिखवा दिया है Small Size.
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पति - जब मैं तुम्हें गुस्सा कर के ऑफिस चला जाता हूँ, तो तुम अपनी भडास कैसे निकालती हो।
पत्नी - मैं आपके टूथब्रश से टॉयलेट साफ करती हूँ।
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रावण - डॉक्टर मुझे बहुत सालों से लूज मोशन की शिकायत है।
डॉक्टर - ये तो होना ही था, दस इनपुट और एक आउटपुट जो है।
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संता सडक पर पोटी कर रहा था। पुलिस ने उसे पकड लिया और ले जाने लगे तो
संता चिल्लाया - "ओ कानून के रखवालो, सबूत तो उठा लो"
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04 August 2010

मन्नै तै रै छोड कै लुगाई मेरी जावेगी

जैसा कि मैनें आपसे वादा किया था। अब इसमें श्रोताओं को थोडी शालीनता की कमी लगे तो दोष मेरा नहीं है। हरियाणा में जब उपरां-तली रागनी कॉम्पटीशन होते हैं तो थोडा-बहुत द्विअर्थी संवाद और मखौल चलता ही है।


नोट :- यह प्रस्तुति केवल मनोरंजन के लिये है। आयोजक, प्रायोजक, कलाकार, रचनाकार या किसी के भी अधिकारों  का हनन होता है या किसी को भी आपत्ति है तो क्षमायाचना सहित पोस्ट हटा दी जायेगी।