आज भी बच्चों के जन्म पर छठी के दिन पन्डित से पूजा-पाठ और यज्ञ आदि करवा कर कुण्डली बनवाने और राशि,नक्षत्र आदि से नाम निकलवाने की रीत है। बिटिया का नाम 'उ या ऊ' से निकला तो मैनें बिटिया का नाम उर्वशी रखा। घरवालों को उर्मि या उर्मिल ज्यादा पसन्द था तो मैनें कहा कि आप इसे घर में उर्मि बुला सकते हैं। लेकिन जन्म प्रमाणपत्र पर मैनें उर्वशी ही लिखवाया। एक दोस्त ने कहा - यह क्या नाम रखा है, दूसरी बेटी होगी तो क्या रम्भा रख दोगे? मैनें कहा - हाँ रख दूंगा। क्या बुराई है इन नामों में। मुझे तो रम्भा और उर्वशी दोनों ही नाम सुन्दर लगते हैं।
बेटे का नाम 'ल' से आया तो मेरे मस्तिष्क में एक ही नाम आया 'लंकेश'। घर में सभी का सख्त विरोध हुआ। भला ये भी कोई नाम है। जैसा नाम रखोगे, वैसे ही कर्म होंगें। अब भला 'राम' नाम वाले लाखों लोग हैं, इस धरती पर। क्या किसी एक आदमी के भी लक्षण या कर्म हैं 'राम' वाले? द्रोपदी भी कई लडकियों या औरतों के नाम सुने हैं, तो क्या उन्होंनें पांच पतियों से शादी की है या करेंगीं। लेकिन मेरे तर्क नहीं चले और घर के सभी सदस्यों के घोर विरोध पर मुझे झुकना पडा। बेटे का नाम 'लव्य' निर्धारित हुआ।
पापा जन्म-प्रमाणपत्र बनवाने गये तो 'लव्य' को 'लक्ष्य' लिखवा लाये। मैं घर में अधिकतर उसे 'लंकेश' ही बुलाता हूँ। अब विद्यालय में दाखिले के वक्त मैनें फॉर्म पर लंकेश भर दिया। लेकिन स्कूल स्टाफ ने पहले तो एन्जॉय किया इस नाम का। फिर साफ मना कर दिया कि जो नाम जन्म-प्रमाणपत्र पर है, वही दर्ज होगा। खैर अब 'लक्ष्य' ही लिखा गया है और सब उसे 'लकी' बुलाते हैं।
गोबरप्रसाद, कचरादास आदि नाम तो आपने भी सुन रखे होंगें, कई बेहतरीन उपन्यासकारों ने इन नामों का प्रयोग भी किया है। पहले लोग ऐसे नाम भी रख देते थे। 'कूडाराम' के नाम से यहां दिल्ली में एक बडी फर्म भी है, इनकी दुकान हीरे-जवाहरात की है। अच्छा नाम होने और कार्य अच्छे ना होने पर एक कहावत भी कही जाती है कि "दादी मर गई अंधेरे में, पोते का नाम रोशनलाल"।
गोबरप्रसाद, कचरादास आदि नाम तो आपने भी सुन रखे होंगें, कई बेहतरीन उपन्यासकारों ने इन नामों का प्रयोग भी किया है। पहले लोग ऐसे नाम भी रख देते थे। 'कूडाराम' के नाम से यहां दिल्ली में एक बडी फर्म भी है, इनकी दुकान हीरे-जवाहरात की है। अच्छा नाम होने और कार्य अच्छे ना होने पर एक कहावत भी कही जाती है कि "दादी मर गई अंधेरे में, पोते का नाम रोशनलाल"।
मुझे सन्यास के समय नया नाम मिला 'अन्तर सोहिल'। एक सवाल आया दिमाग में कि मेरा 'अन्तर' (Inner) सचमुच में तो सोहिल (Beautiful) नहीं है, तो यह नाम मुझे क्यों मिला? तुरन्त ही उत्तर भी मिल गया कि ये नाम मिला है नाम के अनुरूप खुद को ढालने के लिये। अपने अन्दर की, मन की गंदगी को साफ करने के लिये। कोशिश तो जारी है, पर कितना मुश्किल है खुद की बुराईयों को स्वीकारना। है, ना?
naam me kyaa rakha hai....aadmi kaa vyavahar hi naam ko arth deta hai.
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ReplyDeleteवाकई बहुत मुश्किल है! वैसे बात तो सही है कि नाम से कुछ नहीं होता, लेकिन अच्छा नाम रखना भी माँ-बाप का फ़र्ज़ होता है. वर्ना बड़ा होकर बच्चा कहेगा, क्या पापा, एक नाम भी अच्छा नहीं रख पाए? :-)
ReplyDeleteबचपन की सीख नहीं निकलती आसानी से सो लंकेश बुरा लगता ही रहेगा ! अंतर सोहिल मन से भी अच्छे हैं ! कोई शक ??
ReplyDeletenaam ki sarthakta..vykti ke karam se tay hoti hai..ek accha lekh!
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा, नाम के अनुसार कोई भी नही चलता, नाम राम रख दिया, बेटा बडा हो कर मां बाप को घर से ही निकाल देता है, नाम सीता रखा घर वालो ने काम....आप के लेख से सहमत है भाई. धन्यवाद, लेकिन मां बाप का कहना भी मानना चाहिये, आप घर वालो के कहने से झुके, यह भी अच्छॆ संस्कार ही है.
ReplyDeleteहम वही शब्द बोलना चाहते हैं जो हमें बोलने में अच्छे लगते हैं या जिनको बोलने से हमारे मन में अच्छे विचार आते हैं। बोलने से वह लंकेश तो नहीं होगा पर वह यह तो अवश्य सोचेगा कि या तो पिता जी को लंकेश प्रिय हैं या मुझमें लंकेश होने की प्रेरणा भरने के लिये मेरा नाम लंकेश रखा।
ReplyDeleteलंकेश तो बडा ही सुन्दर नाम है।
ReplyDeleteकहने में भी सुन्दर है और सुनने में भी।
विचारणीय पोस्ट । मुझे विश्वास है कि नाम रखने से कुछ तो व्यक्ति मे उस नाम के अनुसार गुण आते ही हैं जैसे अन्तर सोचने लगा है अपने मन की सुन्दरता के विषय मे। बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteलंकेश का बाप बनना भी कितना सुखद है:)
ReplyDeleteनामों के विषय में वैदिक ग्रंथ कहते हैं कि नाम किसी जड़ वस्तु पर,नदी आदि के नाम पर,स्थानवाचक,पशु पक्षियों-जानवरों के नाम पर नहीं होने चाहिए।
नाम का कोई सार्थक अर्थ निकलना चाहिए।
अच्छी पोस्ट
राम राम
विषय मे 'धँसे' बिना न रह पाया |
ReplyDeleteभाई जी !बस एक बात -- लंकेश का नाम तो -कम-सा-कम,लंकेश के लिए छोड़ दें हम लोग |शेष तो बहुत कुछ समाज ने अपना ही लिया |
आपकी साफ़गोई अच्छी लगी |
प्रवीण पंडित
bahut badiya lekh....
ReplyDeleteacha laga pad kar...
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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waise ravann bhi bura nahi tha....ek shiv bhakt,sanskrit ka mahaan gyata...aur bhi usme kitne gunn the..nahi to uski mritu ke samay swayam ramji...lakshman ko uske paas siksha lene kyun bhejte.....?
ReplyDeletehaa.haa...haa.....haa.....aadmi aisi hi ek chidiyaa kaa naam hai...jo sambhaavnaayen soch-soch kar preshaan hotaa rahataa hai....bhid gayi to sach...naa bhidi to jo ho....
ReplyDeletebaat to theek hai ki naam me kya rakha hai par mane kaun ?
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