सात वर्ष पहले आजके दिन यानि 20-08-2003 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी थी। 19 और 20 के बीच की रात कभी सोते-कभी जागते निकली। मुझे झपकी लगती और अन्जू मुझे उठाती - "दर्द हो रहा है"। मैं उसके साथ बैठकर उसे सहलाता रहा था और सांत्वना दे रहा था। मैं चाहता था कि किसी तरह से रात कट जाये। उसे रह-रहकर प्रसव वेदना हो रही थी। सुबह 4 बजे उसने कहा अब दर्द बढ रहा है। मैनें तुरन्त मम्मी को जगाया और मम्मी ने अन्जू को जवें (शायद सेवईयां भी कहते हैं, मैदा को हाथ से बत्ती बना कर छोटा-छोटा, पतला-पतला जौ के जैसा तोडा जाता है और भूनकर रख लिया जाता है। इसकी खीर भी बनाई जाती है और नमकीन पुलाव की तरह से भी खाते हैं) उबाल कर पीने के लिये दिया। पापा मेरे एक दोस्त को उसकी कार समेत बुलाकर लाये।
सुबह 5 बजे हम रोहतक के एक नर्सिंग होम में थे। वहीं पहले से अन्जू का चेकअप चल रहा था, । असिस्टेंट डॉक्टर ने नर्स को इंजेक्शन लगाने के लिये कहा। और हमें कहा कि अभी कुछ समय है, आप आराम से बैठिये। दस बजे मुख्य डॉक्टर ने आते ही एक बार अन्जू को देखने के बाद मुझे अपने केबिन में आने के लिये कहा। मैं उनके केबिन में गया तो उन्होंनें कहा कि मैनें आपको कब आने के लिये कहा था। पिछले परीक्षण पर उन्होंनें मुझे 06-08-10 को बुलाया था और यही डिलीवरी डेट दी थी। लेकिन 06-08-10 को कोई दर्द वगैरा या दिक्कत ना होने पर, मम्मी ने कहा कि एक-आध दिन बाद ही जायेंगें। वहां जाने पर इंजेक्शन से या ऑपरेशन द्वारा जबरदस्ती डिलीवरी करवा दी जाती है। अन्जू ने भी हाँ मे हाँ मिलाई और किसी भी सूरत में ऑपरेशन द्वारा डिलीवरी से साफ मना कर दिया। ऐसे निकलते-निकलते आज 20 तारिख हो गई थी। मैनें डॉक्टर को यही बात बता दी। डॉक्टर ने कहा - लेकिन आपको लेकर तो आना चाहिये था। मैनें कहा कि ऐसे तो आप उसी दिन जबरदस्ती डिलीवरी करवा देते।
डॉक्टर ने कहा कि बच्चे ने पेट में मल त्याग दिया है और ऑपरेशन करना पडेगा और इसका इतना खर्चा आयेगा। मैनें कहा कि मैं इतना खर्च वहन नहीं कर पाऊंगा। अगर आप सामान्य डिलीवरी कर सकते हैं तो ठीक है, वर्ना हमें सरकारी अस्पताल में जाने की इजाजत दे दीजिये। डॉक्टर ने कहा कि हम नॉर्मल डिलीवरी कराने की कोशिश करेंगें। ऑपरेशन की तैयारी करके रखते हैं, अगर परेशानी आती है तो ही ऑपरेशन करेंगें, लेकिन तैयारियों में भी आपका खर्चा आयेगा ही। डॉक्टर ने कहा कि आप एक सादे कागज पर लिख दीजिये कि हम ऑपरेशन नहीं करवाना चाहते हैं और जच्चा-बच्चा के किसी भी जोखिम की जिम्मेदारी हमारी है। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, फिर भी मैनें लिखा कि "डॉक्टर साहिबा का कहना है कि बच्चे ने गर्भ के अन्दर ही मल-त्याग दिया है और ऑपरेशन करना पडेगा। लेकिन हम ऑपरेशन नहीं करवाना चाहते हैं। सामान्य डिलीवरी हो सकती है तो किसी भी जोखिम की हमारी जिम्मेदारी है वर्ना हमें छुट्टी दे दी जाये।"
10:15 AM पर डॉक्टर और स्टाफ अपने काम में जुट गये। लेबर रूम के बाहर मेरी बेचैनी बढती जा रही थी। अन्दर से आती आवाजें और नर्स का बार-बार दवाईयां आदि मंगवाना मेरी सांसों को रोक रहा था। ये 15-20 मिनट मेरे लिये कितने भारी हो रहे थे, बस मैं ही जान सकता हूँ। 10:36 AM पर एक नर्स ने बाहर आकर बच्चे के लिये कपडा मांगा। थोडी देर बाद नर्स ने बताया बेटी हुई है। मुझे लगा जैसे मैं किसी गहरे कुयें से निकला हूँ और मेरे गले पर कसा शिकंजा हट गया है। मैनें नर्स से पूछा कि क्या बच्चे ने पेट में मलमूत्र कर दिया था। नर्स ने बताया कि नहीं ऐसा कुछ नहीं था और बिल्कुल सामान्य जन्म हुआ है। दो-तीन घंटे में छुट्टी दे दी जायेगी और आप अपनी बेटी और पत्नी को घर ले जा सकते हैं। मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था। मैनें उत्साह से अपने घर, बहनों, रिश्तेदारों और दोस्तों को फोन पर ये खुशखबरी देना शुरू कर दिया। 3-4 जगहों से शुभकामनाओं की बजाय ये टिप्पणियां भी मिली थी -
"चलो जो हो गया, बढिया है"
"अरे! लडकी, भगवान की जो मर्जी"
"अच्छा, बेटी हो गई, मैं तो लडके की आस लगाये थी"
"हमें तो लगता था, लडका ही होगा"
लेकिन इन सबसे मेरी खुशी में कोई फर्क नहीं हो रहा था। ये बातें सुनने का एक कारण यह भी था कि मैं एक ही बच्चा चाहता था। चाहे लडकी हो या लडका (बाद में अन्जू की चाह पर एक रिस्क और लेना पडा :) और लक्ष्य को पाया)। तभी दो नर्सों ने सहारे से अन्जू को वार्ड में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया, उर्वशी को मम्मी ने गोद में उठा रखा था। मैंनें अन्जू के सिर और चेहरे पर हाथ फेरा, अन्जू मेरी तरफ मुस्कुराई। मैं उर्मी को गोद में लेकर अन्जू के पास बैठ गया। ये देखकर दूसरे बैड पर अपनी बहू के साथ आई एक औरत ने मेरी मम्मी से कहा - "आपका बेटा बहुत भोला है।"
उसने ऐसा क्यों कहा???
बहुत सार्थक और सादगी भरी पोस्ट | आपके सावल का जवाब तो मुझे भी नहीं पता है |
ReplyDeleteApki soch bahut hi positive hai. ye bahut hi badiya hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर और साथ में उपयोगी संस्मरण, आजकल डाक्तर लोग जो नही करवादें वो कम है.:)
ReplyDeleteरामराम
बड़ी सरलमना अभिव्यक्ति। भोलापन को तो अभी तक मैं भी परिभाषित नहीं कर पाया हूँ।
ReplyDeleteसब से पहले तो बेटी को जन्म दिन की शुभकमनाये, मेरी तरफ़ से आप सभी को एक पार्टी(अभी उधार मै) ओर आप को बधाई, बाकी एक तो डाकटर चलाक था जो पेसे बनाना चाहता था, दुसरा जिस ने कहा कि आप का बेटा तो बहुत भोला है.... वो ही अपने घर को नर्क बनाने की भी जिम्मेदार होगी, उस से पुछना था कि तुम भी तो एक लडकी ही पेदा हुयी थी
ReplyDeleteयो इनका सुसरों का फ़ंडा सै के"बच्चे ने पेट में मल त्याग दिया।"
ReplyDeleteसुसरे/सुसरी के दो जूत जड़ देने थे। मेरी तो एक की कुटाई भी करयोड़ी सै।
नये नये बाप बणन वाले की दांवै ही गोभी खोद दिया करें सुसरे/सुसरी।
मेरे साथ भी यो होयोड़ी सै।
भाई पापा बणन की बधाई और काका-काकी नै भी दादा-दादी बणन की बधाई
बस एक दो मीहने सीरा का मजा लिया जा। मौज कर--हा हा हा
राम राम
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट....
ReplyDeleteurvashi ko dher saara pyaar v aashish........baki vo jo aurat mili thi na vo saawan ki andhi thi....
ReplyDeleteआँख नम हो गयीं अंत तक आते आते……………ऐसा लगा जैसे सामने घटित हो रहा हो…………वैसे ये डाक्टर किसी के सगे नही होते……………।मगर आपकी सोच बेहद परिपक्व थी और दुनिया बोलती ही रहती है उसकी बातों पर क्या सोचना।
ReplyDeleteउर्वशी को देर से ही सही जन्मदिन की बधाई। बेटे बेटी की चाह समझ के बाहर है। यह सब्जी खरीदना तो है नहीं कि आलू् या भिन्डी चुनना हो। हस्पताल के अनुभव बहुत विचित्र हो सकते हैं। कभी कभी मरीज और कसाई के बकरे के बीच विशेष अन्तर नहीं रह जाता। सब ठीक रहा यही गनीमत है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
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ReplyDeleteआप अपना एकाउंट बना कर अपने ब्लॉग, फोटो, विडियो, ऑडियो, टिप्पड़ी लोगो के बीच शेयर कर सकते हैं !
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धनयवाद ...
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आँखों देखा हाल बयां कर दिया आपने तो
ReplyDeleteजिंदगी की हकीकत का। आपकी पोस्ट बहुत पसंद आयी।
bahut achhi post...
ReplyDelete.
ReplyDeleteबच्ची को हार्दिक शुभकामनाएं। इश्वर करे आपका भोलापन बरकरार रहे।
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nice post...
ReplyDeleteडाक्टरों ने मरीजों को ठगने का सबसे से आसान तरीका निकाल रखा है कि-बच्चे ने गर्भ में मल कर दिया है.मेरी मम्मी ने मेरी भाभी और बहनों की ग्यारह बच्चों की डिलवरी दाई की मदद से घर पर ही करवाई है. कभी कोई परेशानी नहीं हुई है.
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