06 January 2012

पद्मसिंह जी बार-बार सांप ला आना होगा

20 तारिख तक मौसम खुशगवार था, लेकिन इस हफ्ते से एकदम वरुण देवता ने अपनी ताकत दिखानी शुरु कर दी थी। किसी को गीला तो नहीं कर रहे थे, पर बादलों को लाकर सूर्यदेव के साथ अठखेलियां करने लगे। हमने भी सूर्यदेवता को धमकी भरा निमंत्रण :) {कभी आपको भी दूंगा, तब जानेंगे} भेज दिया कि 24 तारिख 2011 को 11:00 बजे से ब्लॉगर मिलन है और आपको सबसे पहले सांपला पहुंच जाना है, वर्ना आप हिन्दी ब्लॉगर्स की ताकत जानते ही हैं। सूर्यदेव ने डर के मारे (गुंजाईश कम ही है) या प्यार में हमारी बात मान ली और सुबह 8:00 बजने से पहले ही सांपला में रश्मियों का यान उतार दिया। सभी आये हुये ब्लॉगर्स गवाह हैं कि जबतक ब्लॉगर मीट चली तबतक सूर्यदेव वहां से हिले तक नहीं और सुनहरी धूप खिली रही थी।

11:00 बजते ही ब्लॉगर्स का आना शुरु हो गया था। इस बारे में सबसे पहले सांपला पहुंचे जाट देवता की पोस्ट में आप पढ ही चुके होंगें। राजेश सहरावत जी आयोजन स्थल के सामने से आगे निकल गये थे। उनका फोन आया तो मैं बाथरुम में था और नहाते-नहाते ही उन्हें रास्ता समझाया और रोशनदान से झांकते हुये उनकी गाडी को देखा, फिर गाडी के पास से गुजरते संजय भास्कर जी, केवलराम जी और जाट देवता (यहां जी नही लगाना पडता है) को देखा और राजेश जी को फोन पर कहा - "ब्रेक" :)
राजेश जी स्तब्ध थे, पूछ रहे थे कि मैं कहां हूं और मैं बाथरूम में था। फिर उन्हें कहा कि ये तीन तिलंगे भी ब्लॉगर्स हैं पकड लो इन्हें:) हा-हा-हा राजेश जी की गाडी गन्नों और रेवडीयों से भरी हुई थी। गन्ने मेरी फरमाईश और रेवडियां नीरज जाटजी के लिये थी। लेकिन नीरज जाटजी के ना आने से मेरे साथ राजेश जी का चेहरा भी उतरने लगा था।

2 मिनट में तैयार होकर (मुझे कौन सा मेकअप करना होता है) सबसे मिला और राज भाटिया जी को फोन लगाया कि बडी देर कर दी मेहरबां आते-आते। धीरे-धीरे सब जुटने लगे थे। मिलने-मिलाने का मजा आने लगा था, फिर भी कुछ लोगों के (जिन्होंने आने का वायदा किया था) इंतजार में मेरा खून सूखने लगा था।  डॉo रूपचंद्र शास्त्री जी का फोन बजता रहा, लेकिन उन्होंने पिक नही कियादिनेशराय द्विवेदी जी (बारहा में ये शब्द और द्वारा लिखना कोई सिखा दे मुझे, मेहरबानी होगी) अस्वस्थ थे फिर भी इंतजार था। डॉo टी एस दराल जी का तो खासतौर पर इंतजार था, क्योंकि उनसे तो मंच पर बहुत सारी व्यंग्य रचनायें सुननी थी। (डॉo  साहब के मन में कुछ है, जाने कब बतायेंगे, ना आने का कारण)

उपरोक्त के अलावा जिनका बहुत इंतजार रहा  -

जिनके आने से सांपला में बहार आ गई  -
इंदुपुरी जी, (इंदु मां, आपकी प्रेम ऊर्जा और ममता से सांपला सराबोर हो गया)
अंजु चौधरी जी, (आभार मेरे बुलावे का मान रखने के लिये)
वन्दना जी, (आभार मेरे बुलावे का मान रखने के लिये)
सर्जना शर्मा जी, (हैरत हुई थी एकबार, सोचा भी नहीं था कि आपके दर्शन हो जायेंगें)
संजू तनेजा जी, (आभार मेरे बुलावे का मान रखने के लिये)
कंचन भाटिया जी,  (आपको तो मेरा पूरा परिवार याद रखेगा)
राकेश गुप्ता जी, (जर्मनमेड लट्ठ मंगवा लीजिये, राकेश जी ने आपको मुझसे बातें ही नहीं करने दी) 
राकेश गुप्ता जी (आपसे मिलकर बहुत ही अच्छा लगा, काश आप थोडी देर और रुकते)
राज भाटिया जी (आपका आशिर्वाद और प्यार यूं ही बना रहे)
कुंवर जी, (बोलते बहुत कम हो और अब लिखना भी कम कर दिया भाई, क्यों?)
अजय झा जी,  (आपसे मिलना मेरी खुशी दोगुनी कर देता है)
कनिष्क कश्यप जी (आपने तो चौंका ही दिया)
खुशदीप सहगल जी (आपको बिना पढे हिंदी ब्लॉग पढना अधूरा मानता हूं मैं)
महफूज अली जी (कितनी ही ब्लॉगर्स मीट में आपका इंतजार किया गया है, जानते हैं आप?)
संजय अनेजा जी (ना जी भर के देखा, ना कुछ बात की; बडी आरजू थी मुलाकात की)
राजीव तनेजा जी (किसी ना किसी दिन तो आपकी पूरी एक पोस्ट जरूर पढ पाऊंगा)
जाट देवता (संदीप पवाँर) जी (आपका साथ बहुत प्यारा है)
संजय भास्कर जी (आभार, आपने आकर मेरा मान बढाया)
कौशल मिश्रा जी (दीपक बाबा की बक-बक अकेले-अकेले सुनते रहे आप)
दीपक डुडेजा जी (आपतो सबको लेकर चले गये, हम अकेले और बॉटली दो, बस पडे रहे और पिये गये  )
आशुतोष तिवारी जी (गरीब का दिल दुखाकर गये थे ना, आपकी गाडी समझ गई थी)
मुकेश कुमार सिन्हा जी (कवि सम्मेलन के लिये भी रुकते तो और भी ज्यादा खुशी होती)
राजेश सहरावत जी (ब्लॉग लिखना शुरू कर दीजिये और गन्ने अगली बार भी लाने होंगें)
पद्मसिंह जी (आपके बिना अगला कवि सम्मेलन अधूरा रहेगा, सांपलावासियों की डिमांड हैं अब आप)
अतुल महाराज जी (तुम्हारी जाऊं-जाऊं ने हमारा दम निकाला है)
सुशील गुप्ता जी (तेरी मुस्कुराहटों पे हूं निसार)
केवलराम जी  (अगली बार आओगे तो डॉo  केवलराम बुलायेंगें हम आपको)
शाहनवाज जी (आप नहीं आते तो बहुत कमी महसूस होती)
अलबेला खत्री जी (आप नाम से क्या काम से भी अलबेले हैं)
यौगेन्द्र मौद्गिल जी (मंत्रमुग्ध हैं अभी तक सांपलावासी)
कमल कुमार सिंह जी (कितनी परेशानियां उठाकर आये और वापिस भी चले गये, शर्मिंदगी महसूस कर रहा हूं, कि आपसे ढंग से मिल भी नहीं पाया)

और जिन्होंने इस उत्सव को मिस करने का अफसोस जताया है -

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi ने कहा…
बहुत कुछ छूट गया है। सांपला आना तय था। अकेले भी नहीं पत्नी और बेटी के साथ। लेकिन महिने के आरंभ में हुई हर्पीज और ठीक 22 दिसंबर की रात को नाक में हुए संक्रमण ने आना निरस्त कर दिया। उस रात भर नाक में जलन से सो नहीं पाया। दूसरे दिन डाक्टर की दवा से कुछ आराम मिला। 24 को दुपहर जब आप लोग मिल रहे थे राज जी का फोन आया था। लेकिन अपनी विवशता ही दर्ज करा सका। हमारे यहाँ स्थाई वार्षिक मेलों की परंपरा है. जिन में लोग मिलते हैं, इसी कारण उन्हें मेला कहा जाता है। सांपला वास्तव में ब्लागर मेला स्थल बन गया है यदि इस का दिन भी तय कर दिया जाए तो इसे मेले का स्वरूप दिया जा सकता है। कविसम्मेलन वहाँ के स्थानीय लोगों को जोड़ ही रहा है। सबी ब्लागर केवल ब्लागर नहीं हैं। अपने अपने फन में माहिर भी हैं। यदि उन के फन की नुमाइश का इंतजाम भी हो तो 25 दिसंबर इस मेले के लिए उपयुक्त समय है। सब के लिए अवकाश का समय भी होता है।
आदरणीय दिनेशराय जी आपकी बात बहुत पसन्द आयी और यही विचार श्री राजीव तनेजा जी और राज भाटीया जी ने भी दिया है। बल्कि ये दोनों सज्जन तो सांपला सांस्कृतिक मंच के सदस्य बन कर इस आयोजन में सहभागी होना चाहते हैं। आशा है कि अगली बार  का ब्लॉगर्स मेला जबरदस्त होगा। इससे एक फायदा यह भी हो सकता है कि सभी प्रोफेशनल कवियों (जैसे इस बार बुलाये गये थे) कि बजाय केवल 2-3 कवि व्यवसायिक हों और कम से कम 6-7 ब्लॉगर्स कवियों को सुनने का मौका मिले। इस बार कवि सम्मेलन में श्री पद्मसिंह जी ने हमारे विशेष आग्रह पर एक कविता सुनाई जो सांपलावासियों को बहुत-बहुत पसन्द आयी और पद्मसिंह जी को अगली बार के लिये अभी से बुक किया जाता है।