22 January 2011

"तुच्छ" लोगों की कमी नहीं है।

गूगल से साभार
बडा खुश होता था कि चलो ज्यादा पढ-लिख नहीं पाया तो क्या हुआ, अब पढे-लिखो विद्वजनों के समाज में उठ-बैठ तो सकता हूँ। ब्लॉगिंग जो करने लगा हूँ। बडे-बडे डॉक्टर, इंजिनियर ,प्रोफेसर, अध्यापक, समाजसेवी, पत्रकार , कवि, साहित्यकार सब ब्लॉगिंग करते हैं। ब्लॉगिंग में विचारों का आदान-प्रदान करने से जानकारी बढी, आत्मविश्वास बढा और साथ-साथ अहंकार भी आने लगा। पहले मैं खुद को "तुच्छ" समझता था, ब्लॉगिंग में आने के बाद लगा कि मैं भी "कुछ" हूँ। लेकिन अब अहंकार कहता है कि यहां भी "तुच्छ"  विचारधारा वाले लोगों की कमी नहीं है।  
मैनें तो एक बात यह भी सीखी है जी यहां (ब्लॉगिंग में) आकर कि बडी-बडी डिग्री पा लेने, खूब पढ-लिख लेने, खूब पैसा कमा लेने, बडा पद पा लेने, दुनिया-जहान घूम लेने के बाद भी बहुत से लोग अपने घटिया विचारों से छुटकारा नहीं पा सकते। बढिया और घटिया का पैमाना मेरे विचार में यही है कि जिस बात या कर्म से किसी के दिल को ठेस पहुंचे, वह घटिया है और जिस बात से किसी को आनन्द की अनुभूति हो वही बढिया है। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि "सत्य" तो कहा जायेगा, चाहे उससे किसी को ठेस पहुंचे।  कृप्या मुझे बतायें कि क्या सचमुच सत्य कहने से किसी को चोट लगती है? 

21 January 2011

सोच रहा हूँ ब्लॉग पर डाल दूं

मुझे कैमरे वाला फोन लेने का तो शौक है, लेकिन आजतक दो-चार फोटो ही इससे खींची हैं। एक स्टिल कैमरा जिसमें रील डलती है, वो भी घर में है, पर उसका भी प्रयोग बहुत समय से नहीं किया है। कहीं घूमने भी जाता हूँ तो फोटो-शोटो कभी नहीं लेता। लेकिन कल उर्वशी के हाथ मेरा फोन LG GS 290 Cookie Fresh लग गया और उसने मोबाईल कैमरे को जंग खाने से बचा लिया। जो भी चीज सामने आई धडाधड 15-16 फोटो खींच डाले और तुरन्त एक कैमरे की फरमाईश भी कर दी। :-) मैनें सोचा ब्लॉग पर डाल देता हूँ, वर्ना फोन में तो जाने कब मैं डिलिट कर दूंगा। आप भी देख लेंगे और हमें याद रहेगा उर्वशी का फोटो शूट। समय हो तो उर्वशी के जन्मदिन पर लिखी मेरी ये पोस्ट भी पढ लीजियेगा।

सही आयेगा (आईने में)

ऐसे शूट करती हूँ मैं, खुद को (आईने में)

खिडकी से

मेरी खिडकी से झांक लो

साईकिल भी देख लो

पापा शेम-शेम

वाह! सुराही

मेरा किशु (पौधें का नाम)

विज्ञापन नहीं है (मेरी मम्मी के ड्रेसिंग में रखा है)

ये है मेरा पसन्दीदा कार्टून सीरियल

और ये भी

चौंकिये मत फोटो ही खींची है

ब्लैक बोर्ड पर मेरी ड्राईंग

17 January 2011

भीतर के गद्दार

मन्दिर से, मस्जिद से निकलो, गिरजे व गुरुद्वारों से
करो देश की आज हिफाजत भीतर के गद्दारों से

सांपला सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित प्रथम अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में 
ओजस्वी कवि श्री अली हसन मकरेंडिया जी की शानदार प्रस्तुति

14 January 2011

धूप, दाढी, महँगाई, साऊण्ड और नौजवान

धूप में पकी दाढी
दाढी पॉलिश करनी पडेगी
श्री राज भाटिया जी ने तो पूरी तैयारी कर रखी है जी कि मुझे शर्मिन्दगी से जमीन में गढना ही पडेगा और श्री बी एस पाबला जी ने लिखा है नौजवान ब्लॉगर  अब नीरज जी के लिये तो बात सही है जी लेकिन मेरी दाढी तो सफेद हो रही है। मैं जवान तो  हूँ पर नौजवान नहीं और ये पक्का है जी कि ये बाल धूप में ही सफेद हुये हैं, कसम से।  अनुभव तो रत्ती भर का ना हुआ, 33 वर्ष 9 महिने में। धूप में साईकिल पर बीडियां सप्लाई करते हुये, घमौरिया बहुत निकलता था। बहन पीली मिट्टी (मुलतानी) का लेप करती थी पूरी पीठ पर। जबतक बहन का हाथ पीठ पर फिरता तो जलन बिल्कुल खत्म हो जाती और हटाते ही फिर से। पान की गुमटी पर भी सीधी धूप  7-8 घंटे रहती थी, वहां भी यही हाल। फिर नौकरी में भी 3-4 साल धूप में दिल्ली की बसों के चक्कर खाये हैं। अरे ये क्या याद आने लगा, छोडो इसे, हम बात दाढी की कर रहे थे, अच्छा जी वहीं आते हैं। 

तो दाढी कटाई नहीं है, भई इस महंगाई के जमाने में ज्यादा नहीं तो कम से कम 60-70 रुपये की बचत तो हो ही जायेगी महिने में :-) दूसरा इतनी सर्दी में कौन जहमत उठाये दाढी बनाने की। एक तो पहले ही ट्रेन भाग-भाग कर पकडते हैं और सर्दी में कहीं हाथ कंप जाये तो दाढी  के साथ गाल या होंठ ही कट जाये। नाई की दुकान किसी भी समय जाओ पर एक-डेढ घंटे से पहले नम्बर ही नहीं आता है। पता नहीं क्यों सभी लोग रोज ही चिकने बनने की कोशिश में रहते हैं। बढी हुई दाढी से गालों और ठुड्डी पर सर्द हवा का बचाव भी है। वैसे दाढी बढाने का एक फायदा और भी है कि लोगों की नजर एकदम से पड जाती है और हम लाईम लाइट (नजरों) में आ जाते हैं। मिलने-जुलने और राह चलते लोगों को बात करने के लिये विषय भी मिल जाता है  कि दाढी बढा रखी है, भाई। तो मैं ओशो की तरह प्रतिटिप्पणी कर देता हूँ कि क्यों भाई साहब मैनें कैसे बढाई है, ये तो अपने आप बढ गई है। मैनें तो इसे कोई खाद पानी नहीं दिया। हां आपने जरुर दाढी के साथ कुछ किया है, यानि कटवा रखी है। :)

अब आप यौगेन्द्र जी की दाढी देखिये, ये दाढी है अनुभव से पकी दाढी। महँगाई का ही जिक्र किया है।  आप सबसे क्षमाप्रार्थी हूँ कि साऊण्ड क्वालिटी बढिया नहीं दे पा रहा हूँ। सोमेश सक्सेना जी, नीरज जाटजी असल में आयोजन स्थल पर गूँज की वजह से ऐसा हो रहा है और मेरी गलती है कि मैनें ऑडियो रिकार्डिंग नहीं करवाई। वीडियोग्राफर भी कम बजट वाला था। प्रथम प्रयास था तो अगली बार के लिये सबक है जो-जो कमियां रही हैं, सब दूर कर दूंगा।   

11 January 2011

यौगेन्द्र मौदगिल जी फटीचर कन्फ्यूजिया गया था

यहां तक कि एक संस्था ने तो उसी दिन आनन-फानन में माता का जागरण आयोजित कर दिया और वो भी पंजाबी धर्मशाला नाम की ही दूसरी जगह पर :-) वाह! मैं जागरण वगैरा में चन्दा नहीं देता ना, शायद इसलिये। वैसे ज्यादातर सामाजिक कार्यक्रमों में उपस्थित जरुर होता हूँ। हाँ दान-दक्षिणा मैं  धर्मशाला, गऊशाला आदि में  सामर्थ्य अनुसार जरुर देता हूँ। प्रत्येक वर्ष वृंदावन से रासलीला दिखाने वाले भी आते हैं कार्तिक मास में, उन्हें भी सामर्थ्य अनुसार कुछ दे देता हूँ। कोशिश रहती है कि गुप्तदान दूँ और मेरा नाम ना पुकारा जाये।  

खैर जब मुख्य संस्थाओं द्वारा भी कोई बात नहीं बनती दिखी तो मुझे ख्याल आया कि अपने एक-एक मित्र को सम्पर्क करके उन्हें धीरे-धीरे राजी करना होगा। सांपला में मेरे 55-60 करीबी मित्र हैं, जिनके साथ मेरे हर पारिवारिक समारोह में निमंत्रण रहता है,  और उनके पारिवारिक समारोहों में मैं निमंत्रित होता हूँ। करीबन भाई के भी 25-30 मित्र ऐसे ही हैं। मैनें एक-एक मित्र को सम्पर्क किया और इस आयोजन के लिये उनके विचार जानने की कोशिश की। इन कोशिशों में 3-4 मित्र ऐसे मिल गये जो कि बहुत उत्साहित हो गये और मुझे आगे बढने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि तुम पैसे की चिंता मत करो और अगर हम 5 सदस्य भी हैं तो यह प्रोग्राम जरुर होगा। खर्च का तकरीबन 75000 रुपये का अन्दाजा लगाया गया। धीरे-धीरे कुछ और लोग भी जुडे और हमारी दस सदस्यीय टीम बनकर तैयार हो गई। शुरु से ही एक विचार हम लोगों के दिमाग में था कि हम चन्दा किसी से नहीं लेंगे और मुख्यातिथि से भी कुछ नहीं लेंगे। कुछ मित्रों ने केवल आर्थिक सहयोग देने की बात की और कार्य सहयोग के लिये उपस्थित होने में असमर्थता जताई, उन्हें मैनें इस मंच का सदस्य नहीं बनाया  और कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया। दूसरे लोगों की देखादेखी कुछ मित्रों ने अपना नाम लिखवा दिया,  तो उन्हें बाद में हटाना पडा। क्योंकि मैं केवल उन्हीं मित्रों को इस मंच से जोडना चाहता था जो सबसे पहले मन से साथ हों फिर तन से। क्योंकि धन की व्यवस्था की अब समस्या नहीं रह गई थी। 2-3 मित्र आर्थिक सहयोग नहीं दे सके, लेकिन मन और तन से मेरा पूरा साथ दिया।

इस वीडियो में श्री यौगेन्द्र मौदगिल जी, अलबेला जी और सांपला सांस्कृतिक मंच के सदस्य मंच पर और वीडियो के आखिर में आपका फटीचर, जिसे अलबेला जी ने धन्यवाद करने के लिये आगे बुला लिया और फटीचर कैसे कन्फ्यूजिया गया है। आज तक मंच पर बोलना तो दूर कभी खडा भी नहीं हुआ था और यहां>>>>>

10 January 2011

खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का

मेरी किसी से कभी लडाई-झगडा तो क्या तू-तू मैं-मैं तक नहीं हुई है। बल्कि मेरा परिवार भी किसी भी लडाई झगडे से दूर ही रहना पसन्द करता है। फिर भी पता नहीं क्यों कुछ लोगों को क्या जलन हुई कि उन्होंने सांपला सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन के पोस्टर और बैनर फाड डाले। एक अग्रवाल सेवा समिति वालों ने तो हमारे बैनर को फाडकर सिरसा में आयोजित किसी सभा का बैनर लगा दिया। उनके बैनर पर कोई फोन नम्बर भी नहीं था और आयोजक रोहतक से थे। सिरसा मेरे नगर सांपला से कम से कम 225 किलोमीटर दूर है। एक सज्जन जिनसे कभी किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था उनकी दीवार पर पोस्टर चिपकाने के आधे घंटे बाद ही पोस्टर फाड दिया और दूसरे सज्जन ने अपनी दीवार पर लगाने से मना कर दिया। जबकि एक बार इनको स्टेशन पर बोझा लिये परेशान देखकर मैं उनका बोझा उठाकर उनके घर तक रखवा कर आया था।

शुरु-शुरु में मैनें काफी लोगों से बात की कि कवि-सम्मेलन का विचार कैसा है। सभी कहते कि विचार बहुत ही बढिया है, लेकिन जब उनसे सहयोग करने की बात कहता तो यही विचार एकदम से सही नहीं है, ऐसा हो जाता। यहां गैदरिंग नहीं हो पायेगी, यहां के लोग समझ नहीं पायेंगे, इतनी सर्दी में कौन सुनने आयेगा आदि। किसी ने कहा कि नये साल पर डी जे पर डांस आदि का प्रोग्राम करलो, किसी ने कहा मैजिक शो का प्रोग्राम कर लो। मैं हंसता और दूसरे सहयोगी ढूंढने निकल पडता।

सांपला में मुख्य 13 सामाजिक संस्थायें सक्रिय हैं। छोटी-छोटी तो कई सारी हैं। 2-3 संस्थायें तो बेहतरीन कार्य कर रही हैं, जो निर्धन छात्रों को शिक्षा, वर्दी, और रक्तदान, कम्बल वितरण आदि सराहनीय कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। कुछ संस्थायें माता और खाटू श्याम के जागरण से आगे ही नहीं बढ पा रही हैं। इनमें से दो संस्थाओं से बात की और मैनें कहा कि आपकी संस्था आयोजक बन सकती है। कुछ सहयोग आपको देना होगा, आपके पास अनुभव भी है और मैं अकेला हूँ। आपकी संस्था का ही प्रचार प्रसार होगा, लेकिन दोनों ने हाथ खडे कर दिये। बाद में जब मुझे सहयोगी मिल गये और आर्थिक समस्या भी हल हो गई और लगभग सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी तो एक संस्था के अध्यक्ष यह चाहने लगे कि अब बैनर उनकी संस्था के लगा दिये जायें। उन्होंने बार-बार इशारा किया कि सांपला सांस्कृतिक मंच नया नाम होगा, तुम हमारी संस्था का नाम अपने प्रचार में रखो। :-)  ये तो वही बात हो गयी जी खेल खिलाडी का, पैसा मदारी का
जारी …….….….

05 January 2011

अलबेला जी ने मचाई धूम सांपला में

कवि सम्मेलन कार्यक्रम का शुभारम्भ तय समय पर ठीक शाम 7:00 बजे आरम्भ हो गया था। श्रोताओं के बैठने लिये 400-425 कुर्सियां लगाई गई थी। एक घंटे में करीबन 8:00-8:15 तक सभी सीटे फुल हो चुकी थी। उसके बाद जो श्रोता आये उन्हें इस आयोजन का लुत्फ खडे-खडे ही लेना पडा। हमने सोच रखा था कि कार्यक्रम का समापन रात्रि 11:00-11:30 बजे तक हो जायेगा। भई सर्दी बहुत ज्यादा थी और रात के खाने का समय भी हमने समाप्ति के बाद ही रखा था। लेकिन श्रोताओं की अविचल उपस्थिति ने कवियों को रात्रि 1:00 बजे तक अपनी रचनायें सुनाने के लिये मजबूर कर दिया। उधर खानसामों का भी बार-बार पैगाम आ रहा था कि तन्दूर ठंडा हो जायेगा और हमें भी आराम करना है, इसलिये रात्रि 1:00 बजे इस कार्यक्रम को विश्राम देना पडा। पूरी फिल्म तो बाद में दिखाई जायेगी, अभी आप छोटी सी झलक देखिये।




03 January 2011

कवि सम्मेलन सुपरहिट

नववर्ष की पहली संध्या पर मेरे ब्लॉगमित्रों के आशिर्वाद और शुभकामनाओं से सांपला में कवि सम्मेलन बेहद सफल रहा। मैं आप सबका हार्दिक धन्यवाद करता हूँ।  
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ आमंत्रित कविमण्डल का जिन्होंने अपनी प्रस्तुति और रचनाओं से हमें सराबोर किया
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ उपस्थित श्रोताओं का जिन्होंने तालियों से कवियों का उत्साह बढाया
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ आमंत्रित अतिथियों का जिन्होंने मेरा मान रखा
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ मंच संचालक मास्टर श्री रामकुमार जी का जिन्होंने अपना अमूल्य समय और सुझाव दिये
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ मेरे सहयोगियों का जिन्होंने मुझ पर विश्वास किया
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ सभी कार्यकर्ताओं का जिन्होंने मेरा साथ दिया
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ खाना बनाने वाले हलवाईयों का
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ सफाई करने वाले कर्मचारियों का
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने मेरा हौंसला तोडने की कोशिश की, उनकी कोशिशों ने मेरा आत्मबल बढा दिया
मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ जो मेरे आमंत्रण के बाद अनुपस्थित रहे, क्योंकि जगह ही नहीं बची थी, कहां बैठाता :-))