धूप में पकी दाढी |
दाढी पॉलिश करनी पडेगी |
श्री राज भाटिया जी ने तो पूरी तैयारी कर रखी है जी कि मुझे शर्मिन्दगी से जमीन में गढना ही पडेगा और श्री बी एस पाबला जी ने लिखा है नौजवान ब्लॉगर अब नीरज जी के लिये तो बात सही है जी लेकिन मेरी दाढी तो सफेद हो रही है। मैं जवान तो हूँ पर नौजवान नहीं और ये पक्का है जी कि ये बाल धूप में ही सफेद हुये हैं, कसम से। अनुभव तो रत्ती भर का ना हुआ, 33 वर्ष 9 महिने में। धूप में साईकिल पर बीडियां सप्लाई करते हुये, घमौरिया बहुत निकलता था। बहन पीली मिट्टी (मुलतानी) का लेप करती थी पूरी पीठ पर। जबतक बहन का हाथ पीठ पर फिरता तो जलन बिल्कुल खत्म हो जाती और हटाते ही फिर से। पान की गुमटी पर भी सीधी धूप 7-8 घंटे रहती थी, वहां भी यही हाल। फिर नौकरी में भी 3-4 साल धूप में दिल्ली की बसों के चक्कर खाये हैं। अरे ये क्या याद आने लगा, छोडो इसे, हम बात दाढी की कर रहे थे, अच्छा जी वहीं आते हैं।
तो दाढी कटाई नहीं है, भई इस महंगाई के जमाने में ज्यादा नहीं तो कम से कम 60-70 रुपये की बचत तो हो ही जायेगी महिने में :-) दूसरा इतनी सर्दी में कौन जहमत उठाये दाढी बनाने की। एक तो पहले ही ट्रेन भाग-भाग कर पकडते हैं और सर्दी में कहीं हाथ कंप जाये तो दाढी के साथ गाल या होंठ ही कट जाये। नाई की दुकान किसी भी समय जाओ पर एक-डेढ घंटे से पहले नम्बर ही नहीं आता है। पता नहीं क्यों सभी लोग रोज ही चिकने बनने की कोशिश में रहते हैं। बढी हुई दाढी से गालों और ठुड्डी पर सर्द हवा का बचाव भी है। वैसे दाढी बढाने का एक फायदा और भी है कि लोगों की नजर एकदम से पड जाती है और हम लाईम लाइट (नजरों) में आ जाते हैं। मिलने-जुलने और राह चलते लोगों को बात करने के लिये विषय भी मिल जाता है कि दाढी बढा रखी है, भाई। तो मैं ओशो की तरह प्रतिटिप्पणी कर देता हूँ कि क्यों भाई साहब मैनें कैसे बढाई है, ये तो अपने आप बढ गई है। मैनें तो इसे कोई खाद पानी नहीं दिया। हां आपने जरुर दाढी के साथ कुछ किया है, यानि कटवा रखी है। :)
अब आप यौगेन्द्र जी की दाढी देखिये, ये दाढी है अनुभव से पकी दाढी। महँगाई का ही जिक्र किया है। आप सबसे क्षमाप्रार्थी हूँ कि साऊण्ड क्वालिटी बढिया नहीं दे पा रहा हूँ। सोमेश सक्सेना जी, नीरज जाटजी असल में आयोजन स्थल पर गूँज की वजह से ऐसा हो रहा है और मेरी गलती है कि मैनें ऑडियो रिकार्डिंग नहीं करवाई। वीडियोग्राफर भी कम बजट वाला था। प्रथम प्रयास था तो अगली बार के लिये सबक है जो-जो कमियां रही हैं, सब दूर कर दूंगा।
दाढ़ी में एक आध अनुभव का चिन्ह रहने दीजिये।
ReplyDeleteअरे मैने तो साफ़ मना कर दिया कि मै इन दोनो की कोई तारिफ़ नही करुंगा,
ReplyDeleteलोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
इस मामले में तो हम भी बहुत लापरवाह हैं, मजबूरी वाले। जिस दिन शेव कर लें, उसी दिन भावी मुल्जिम की हैसियत से स्क्रीनिंग होती है। कुछ वैसे ही भगवान की दया से छवि बहुत बढि़या है:)
ReplyDeleteलोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
ReplyDeleteराज जी कहें तो कटवा लीजिए और आपका दिल न कहे तो न कटाइए पर दाढ़ी के पीछे जो जीवन वृतांत आपने सुनाया वह हृदय को छू गया। नमस्कार सोहिल जी।
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteबहुत बढिया।
ReplyDeleteवैसे दाढी को देखकर बडे बडे धोखा खा जाते हैं।
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डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
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ReplyDeleteआजकल तो बहुत से coloring agents बाज़ार में उपलब्ध है।
वैसे - You are looking gorgeous !
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अंतर सोहिल जी पूर्णपुरुष लग रहे हैं सच्ची!
ReplyDelete@ किलर झपाटा
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी हटानी पड रही है, क्योंकि आपने जिस पोस्ट का लिंक दिया था वह निहायती घटिया टिप्पणियों से भरी पडी थी।
प्रणाम
चलिए कोई बात नहीं अंतर जी, मैं बुरा नहीं मानूँगा। मगर आप ही बताइए मैनें आपके बारे में एक भी शब्द बुरा कहा हो तो ? टिप्पणियाँ मैनें तो नहीं की थीं ना, फिर भी आप मुझसे नाराज़ हुए। खेद है।
ReplyDelete@ किलर झपाटा जी
ReplyDeleteआपसे कोई नाराजगी नहीं है। मैनें केवल उक्त पोस्ट के लिंक की वजह से टिप्पणी डिलीट की है जी। बेशक आपने एक भी शब्द बुरा नहीं कहा है। लेकिन आपने उस पोस्ट पर आई अश्लील और गालियों भरी टिप्पणीयों को हटाना चाहिये था, लेकिन आपने नहीं हटाया।
लेकिन आप बतायें कि आपके घर में कोई कूडा या गन्दगी फेंक कर जायेगा तो क्या आप उसे वहीं पडा रहने देंगे या अपना घर साफ रखेंगें।
प्रणाम स्वीकार करें
पॉलिश करने की जरुरत नहीं है, एक उस्तरा ही काफी है।
ReplyDeleteआदरणीय सोहिल जी,
ReplyDeleteआप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं कि मुझे अपने घर का कूड़ा करकट हटा देना चाहिए था। मगर आप शायद यह नहीं जानते कि मेरा अभियान सिर्फ़ अपने घर तक सीमित नहीं है। मृणाल जी का मैदान में उतर आना यह साबित करता है कि मैं व्यर्थ हूँ हूँ थू थू नहीं कर रहा हूँ। सफ़ाई हमेशा तभी की जाती है जब कूड़ा नज़र आता है। मैं भी दरअसल वही कर रहा हूँ याने कचरे को नज़र में ला रहा हूँ ताकि सफ़ाई हो सके और हमारे प्यारे ब्लॉगजगत में एक सुरम्य वातावरण निर्मित हो। खैर धैर्य के पैमाने सबके अलग अलग होते हैं, सो आपका भी होगा। अपने अभियान के लिए आपका सहारा लिया था सो उसका बहुत बहुत आभार। हो सकता है आपको कहीं ठेस भी लगी हो सो उसके लिए तहे दिल से क्षमा-प्रार्थना सहित। नमस्कार।