30 March 2011

ये असंतुलन मुझे टिकने नहीं देगा

चित्र गूगल से साभार
कुछ समय से मेरे भीतर तमोगुण की प्रमुखता बढती जा रही है। यानि तमोगुण में जकडे जाने के कारण आलस्य, निद्रा और मोहिनी वृति बढ रही है। कई दिनों से नाच, गाना, खेलना नहीं कर रहा हूँ। मादक द्रव्यों की तरफ ज्यादा आकर्षण है, जो कामवासना को भी बढाते हैं और जीवन में रुकावट भी पैदा कर रहे हैं। यानि सारी ऊर्जा उन क्रियाओं को करने में चली जाती है जो आलस में ले जा रही हैं। 4-4 घंटे कम्प्यूटर गेम खेलने जैसे फालतू के कामों में पूरा समय  व्यतीत हो रहा है। नकारात्मक विचार भी ज्यादा आने लगे हैं।

सत्वगुण तो कभी प्रमुख हुआ ही नहीं, बस उसके होने का अभिनय मैं करता रहा। हाँ रजोगुण की प्रमुखता काफी समय तक रही, जिसने मुझे कर्म करने, मेहनत करने और विकास की राह पर लगाये रखा। रजोगुण की प्रमुखता होने के कारण बहुत दिनों तक आसक्ति और धन की भाग-दौड में लगा रहा। कुछ करना है, कुछ करके दिखाना है जैसे वाक्य याद रहने लगे थे। लेकिन सारी ऊर्जा एक ही राह से निकलती रही और कुछ कर भी नहीं पाया।

लेकिन अब देख रहा हूँ कि जो मैं नहीं हूँ वैसा होने का अभिनय ज्यादा कर रहा हूँ।  किसी सहकर्मी को आदर देने का अभिनय कर रहा हूँ और उसकी उपलब्धियों से ईर्ष्या कर रहा हूँ। किसी मित्र से मुस्कुरा कर हाथ मिला रहा हूँ और उसके सुख से दुखी भी हूँ। किसी पडोसी या रिश्तेदार के कमाये धन को गलत बताता हूँ, क्योंकि मैं उतना नहीं कमा पाया। पत्नी को कह रहा हूँ कि दोस्तों-रिश्तेदारों में मेलजोल और सम्बन्धों में गर्माहट बनाये रखने के लिये बात करती रहा करो, लेकिन खुद बिना आवश्यक कार्य के किसी को भी फोन नहीं लगाता। 

तम - जो ठहराव दे, विश्राम दे
रज - जो गति दे, त्वरा दे, जीवन दे
सत्व - जो सुख दे, शांति दे, शुद्धता दे
मुझे अपने अन्दर इन तीनों की मात्रा को संतुलित करना होगा।

21 March 2011

कभी ऐसी पोस्ट भी आने वाली है…….…

उपरोक्त पोस्ट "हिन्दुस्तान" के एक लेख पर आधारित है। इस पोस्ट पर बहुत लोगों ने विचार-विमर्श विवाद भी किया। लेखक श्री मदन जैडा और पोस्ट के लेखक श्री जाकिर अली जी के मुताबिक होली दहन से पर्यावरण को गंभीर खतरा है। सहमत और असहमति में सबके अपने-अपने तर्क हैं। हर धर्म में बहुत सी बातें वैज्ञानिक सोच को साबित भी करती हैं। और कई बार समय, स्थिति और स्थान के कारण धर्म के नियम खामख्वाह ढोये जाने वाले रिवाज भी बन जाते हैं। अब होली दहन के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण था/है या नहीं, इसबारे में तो सुधिजन बतायें। होली दहन के इस पोस्ट पर मेरा विचार ….…. 

हो सकता है किसी क्षेत्र के मूर्ख लोग हरे पेडों को काटते हों, लेकिन मैनें आज तक कहीं हरे पेडों का इस्तेमाल होलिका दहन के लिये होते हुये नहीं देखा है। मेरे क्षेत्र में लकडी का पुराना कबाड, सूखी पुरानी जमा हुई लकडियां और गोबर के उपले से ही होली दहन किया जाता है। हमारे घरों में होली से कुछ दिन पहले गोबर से डिजाईनदार उपले आदि बनाये जाते हैं, उन्हें सूतली (धागा,रस्सी) में पिरोकर होली पूजा के लिये ले जाते हैं और होली दहन वाली जगह पर जमा कर देते हैं। लकडियां करीबन 15 दिन पहले से उस जगह (चौक) पर इकट्ठी करनी शुरु कर दी जाती हैं। लकडियां होती हैं घर में पडी सूखी, टूटा फर्नीचर, जंगल से बीन कर लाई गई टूटी शाखायें, झाड-झंखाड आदि।

यह भी लगता है कि पुराने जमाने में सर्दियां काटने के लिये लकडी, कंडे वगैरा स्टोर करके रखे जाते थे, सर्दियां बीतते ही उनका उपयोग खत्म हो जाता है। इसलिये भी उस सारे सामान को एक साथ जला दिया जाता होगा।
और मैं तो यही कहूंगा कि हरे-भरे पेड नहीं जलाने चाहिये।

एक सवाल उठा है इस पोस्ट को पढने के बाद कि -
शायद अगले वर्ष पोस्ट आये कि होली वाले दिन कितने गैलन पानी बहाया जाता है, इससे कितना नुक्सान होता है। हिन्दु रीति की शादी में फेरों पर जलाई जाने वाली लकडियों के लिये कितने वृक्ष काटे जाते हैं और सबसे बडा सवाल कि हिन्दु संस्कार में मुर्दों को जलाने के लिये भी कितने जंगल साफ हो जाते हैं।

20 March 2011

इतनी खौफनाक आईटम कहां से लाये?

एक औरत पक्षियों की दुकान में गयी। उसे एक तोता पसन्द आया। दुकानदार ने बताया कि यह तोता इन्सानी भाषा में बोलता भी है। औरत ने तोते से पूछा - मैं कौन हूँ। तोता -  कॉलगर्ल। औरत ने कहा यह तो बहुत बदतमीज तोता है। दुकानदार ने तोते को पकड कर पानी से भरी बाल्टी में डुबो दिया। तोते ने माफी मांगी और गाली ना देने की कसम खाई। दुकानदार ने औरत से कहा - मैडम, अब पूछिये। 
औरत - अगर मेरे घर में एक आदमी आये तो तुम क्या सोचोगे?
तोता - जी मैं समझूंगा, आपके पति आये हैं।
औरत - अच्छा और दो आदमी आयें तो?
तोता - जी आपके पति और देवर
औरत - और तीन
तोता - आपके पति, देवर और आपके भाई
औरत - और चार आदमी आयें तो तुम क्या सोचोगे?
तोता (दुकानदार से) - पानी ले आओ, मैनें पहले ही कहा था, उल्लू की पट्ठी कॉलगर्ल है। 
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हिन्दी के अध्यापक संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि पढा रहे थे।
अध्यापक - "भतेरी सबके साथ बात करती है।" बताओ इस वाक्य में भतेरी क्या है?
फत्तू  - मास्टर जी, भतेरी जुग़ाड सै
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रलदू  और फत्तू  एक होटल में गये।
रलदू - वेटर एक बीयर और एक आईसक्रीम लाओ।
फत्तू - पापा, आईसक्रीम क्यूं? आप भी बीयर पी लीजिये।
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फत्तू - मेरे मोबाईल फोन में गाने घालदे।
दुकानदार -  मैमोरी कार्ड लाये हो?
फत्तू - मैमोरी कार्ड तै कोन्यां, राशन कार्ड ले आऊं?
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फत्तू की शैतानियां तै दुखी होकै उसकी माँ संतो नै उसे पीट दिया। 
फत्तू (रलदू तै) - बाब्बू तू कदे जंगल म्है गया सै?
रलदू - ना बेटा
फत्तू - फेर या इतनी खतरनाक आईटम कडे तै पकड लाया?
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18 March 2011

औरत दूसरी औरत पर अत्याचार क्यूं करती है

"अबतक मैं अपने परिवार का सोचकर हमेशा अपने भविष्य से मुँह मोडती रही, लेकिन अब नहीं। अब मैं पढूंगी, और इस बार मैं अपने लिये पढूँगी, और ये मेरा फैसला है।" 
कलर्स पर प्रसारित "बालिका-वधु" में आनन्दी का डॉयलाग है यह। बेहतरीन अभिनय और बेहतरीन संवाद। 
लगातार उपेक्षा, तिरस्कार और आत्म-सम्मान पर होने वाली चोट से इंसान के भीतर व्यवस्था के विरोध की भावना पैदा हो जाती है और फिर एक दिन विरोध का स्वर मुखर हो उठता है।


कलर्स पर लाडो, बालिका-वधु और फुलवा इन तीनों धारावाहिकों (अन्य भी हैं शायद) की कहानी स्त्री के इर्द-गिर्द ही है। इनमें दिखाया गया है कि कैसे लडकियों, औरतों को रीति-रिवाज और परम्परा के नाम पर दबाकर रखा जाता था/है। कैसे उनकी व्यक्तिगत इच्छाओं का गला घौंटा जाता है। शादी के बाद कठपुतली की तरह बस परिवार के सदस्यों को खुश रखने की जिम्मेदारी उनपर रहती है। हालांकि उनपर दबाव भी एक औरत का ही दिखाया गया है, लेकिन एक पिछली पीढी की औरत नई पीढी की औरत पर इतना अत्याचार क्यूं करती है? इसका भी केवल यही कारण है कि उसने पहले यही सब सहा है, शिक्षा से वंचित रखा गया है, परम्परायें और रूढियां अब उनके खून में रच बस गई हैं और उसे खुद ही अपनी कठोरता के बारे में जानकारी नहीं है।  

टीवी चैनलों में ढेरों चैनल हैं जो महिलाओं के लिये बने हैं या उन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक महिलाओं के लिये हैं। लेकिन कलर्स चैनल एक ऐसा चैनल है जो सचमुच ग्रामीण भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता हुआ और महिला सशक्तिकरण को सुघड तरीके से बढावा देता प्रतीत होता है। जहां दूसरे चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले छल-कपट, षडयंत्र, फूहड संवाद और हास्य दिखाया जाता है, वहीं कलर्स चैनल भारतीय परिवेश, भाषा और पहनावे में महिला को प्रस्तुत करता है।  मौन रहकर घुट-घुट जीने के बजाय अपनी बात को किस प्रकार उचित ढंग से अभिव्यक्त किया जा सकता है।  धारावाहिक के अन्त में दिये जाने वाले उद्धरण भी सराहनीय प्रयास हैं। 

16 March 2011

मौत की खबर लोगों को क्षणभर के लिये दार्शनिक बना देती है

गूगल से साभार
जब से जापान में सुनामी और भूकम्प आया है, हर आदमी की जुबान पर इसी के चर्चे हैं। और अब जापान के परमाणु संयंत्रों के बारे में चिंता कर रहा है। रेल का दैनिक यात्री होने के कारण प्रतिदिन 2-4 नये लोगों को सुनना-बोलना हो जाता है। हर यात्री व्यापारी हो या मजदूर, सरकारी अफसर हो या किसी दुकान का कर्मचारी राजनीति, मौसम को छोडकर इसी बात से अपनी बात शुरु कर रहा है। और बात चलते-चलते आखिर में दर्शन-शास्त्र पर पहुँच जाती है। हर आदमी दार्शनिक हो जाता है। जैसे शमशान में चिता जलते देखकर या कब्रिस्तान में दफनाते वक्त आत्मा-परमात्मा की बातें करता है। यही एक बात कि - "खामख्वाह लोग इतनी भाग-दौड करते हैं, किस लिये लोग सारी उम्र जोड-तोड करते हैं, जिन्दगी का कुछ भरोसा नहीं है, सबकुछ ऊपरवाले के हाथ में है….…आदि-आदि। 
लेकिन क्या सचमुच ये बातें उनके हृदय से निकली होती हैं? नहीं, बिल्कुल नहीं। एक आदमी भी ऐसा नहीं है, जो इतनी दार्शनिक बातें करके रिश्वत लेना, टैक्स चोरी या लडाई-झगडा छोडकर शांति और ईमानदारी से जीवन-यापन करना शुरु कर दे।  

07 March 2011

मैं तो अपना घर साफ रखना चाहता हूँ

चित्र गूगल से
जिन खिडकियों से हम बाहर के लोगों को देखते हैं,
उन्हीं खिडकियों से लोग हमारे घर में झांक लेते हैं।

अब या तो हम अपनी खिडकियां बन्द रखें या अपना घर साफ-सुथरा रखें। आपका क्या ख्याल है?

ये ख्याल आया एक टिप्पणी के बाद। मेरे एक इन्टरनेटिया फ्रेण्ड ने किसी की पोस्ट पर बहुत ज्यादा अभद्र (मेरे विचार में)  टिप्पणी की है। अभी तक मैं उस मित्र को बहुत भद्र, सभ्य और सुशिक्षित समझता था, लेकिन एक टिप्पणी ने मुझे मजबूर कर दिया, उसे अपनी मित्रता सूचि से हटाने के लिये।

05 March 2011

क्या हम असली ताऊ से मिले थे?

मायावी ताऊ
जैसा कि पिछली पोस्ट में मैने लिखा और कविश्री योगिंदर मौदगिल जी ने भी लिखा कि हम इंदौर में ताऊजी से मिलकर आये। राज भाटिया जी के दिये हुये मेड-इन-जर्मन लठ्ठ वहां ताई जी को भी भेंट किये। पर मेरे मन में एक सवाल अभी तक भी बना हुआ है कि क्या मैं इंदौर में असली ताऊ से मिला या किसी और से? सारे घटनाक्रम पर गौर करता हुं तो मुझे दाल में कुछ काला या कहें कि पूरी दाल ही काली पीली नजर आती है।

चित्र गूगल से
सारा घटनाक्रम यूं हुआ था कि हम खरगोन कवि सम्मेलन निपटाकर सुबह साढे नौ बजे इंदौर नौलखा चौक पर  उतर गये। तभी ताऊ के नंबर से फ़ोन आया कि कहां हो? मौदगिल जी ने बताया कि हम माहेश्वरी स्वीट्स के पास खडे हैं. उधर से आवाज आई कि वहीं खडे रहना मैं अभी आता हूं. तभी केवल एक मिनट के  अंतराल से एक कार हमारे सामने तेजी से आकर रूकी, कार चलाने वाला अठ्ठाईस तीस साल का युवक, जींस, डिजाईनर टी-शर्ट और ब्राण्डेड स्पोर्ट शूज पहने था। हम कार में बैठ गये, नजदीक ही ताऊ के आफ़िस पहुंच गये।

युवक हमें ऑफिस में बैठाकर कहीं चला गया। मैं और मौदगिल जी बात करते रहे कि ताऊ को बुलाने गया होगा। थोडी देर बाद में वही युवक फ़िर हाजिर हुआ। अब चाय पीते हुये बातचीत शुरू हो गई। मेरा मुख्य प्रयोजन तो ताऊ से मिलना था, सो उत्सुकता वश मैने उस युवक से पूछ लिया कि -  "ताऊ जी कहां है और आप कौन हो?

युवक मुस्कराते हुये बोला - जी मैं उनका बेटा हूं, आपके आने के बारे में उन्होने मुझको बता दिया था और उनकी आज फ़्लाईट कैंसिल हो  गई है,  सो वो आज नही आ पायेंगें। (ताऊ उसी दिन की फ़्लाईट से सुबह आठ बजे मुम्बई से इंदौर आने वाले थे)। यह सुनकर मैं उदास हो गया। मौदगिल जी भी काफ़ी निराश से लगे। वहां जो-जो हुआ वो मैने और मौदगिल जी ने पिछली पोस्टो में लिख ही दिया है।

खैर जो भी हो ताऊ जी के बेटे और ताई जी ने हमारे खाने-पीने और आराम का बहुत ख्याल रखा। ताऊ जी के बेटे से ब्लॉगिंग के बारे में भी बहुत सारी बातें हुई। मुझे हैरानी हो रही थी कि वह युवक सभी हिन्दी ब्लॉगर्स और ब्लॉगिंग के बारे में इतना सबकुछ कैसे जानता है?  उन्होंने हमें आदरणीय श्री समीरलाल जी की दो पुस्तकें "बिखरे मोती" और "देख लूं तो चलूं" भी उपहार में दी। हमारी ट्रेन का समय हो चला था। सो हमने विदा लेते हुये  स्टेशन जाने के लिये तैयारी की। ताऊजी के बेटे ने  रास्ते में इंदौरी नमकीन दिलवाये और हमें स्टेशन के बाहर तक छोड दिया। विदा लेते समय मैने कहा - आपसे और ताई जी से मिलकर बहुत खुशी हुई लेकिन ताऊ जी से नहीं मिल पाने का बहुत  अफसोस है, (मैं रुंआसा सा हो गया था)।

उस युवक ने हाथ हिलाते हुये विदा लेते हुये कहा - यार, मैं ही तो ताऊ हूं। 
सुनते ही मैं एकदम कार की तरफ लपका, लेकिन कार आगे बढ गयी थी। मस्तिष्क और शरीर सुन्न हो गया, मैं वहीं खडा रह गया। मौदगिल जी ने मेरा कंधा पकड कर झिंझोडा और कहा - " अन्तर, चल ट्रेन छूटने वाली है।" 

मैं सोच रहा हुं कि - हे भगवान ये सही बात क्या है? क्या वो ताऊ था? अगर वो ताऊ था तो इतना जवान कैसे था? या ये ताऊ सही में कोई मायावी था?  रास्ते भर ट्रेन में मैं और मौदगिल जी इसी पर विचार करते हुये दिल्ली पहुंच गये. और मैं अभी भी उलझन में हुं।

(श्री समीरलाल जी की  पुस्तकों को ताऊ के हाथों से भेंट स्वरूप  पाना, मुझमें अहंकार का भाव पैदा कर रहा है। क्या सचमुच मैं इस लायक हूँ)
{मैं इस करम के कहाँ था काबिल, हजूर की बन्दापरवरी है}

03 March 2011

जर्मन मेड लट्ठ की जबरद्स्त डिमांड

जबसे लोगों को ताई द्वारा ताऊ का जन्मदिन जर्मन मेड लट्ठ द्वारा मनाये जाने का पता चला है। तभी से मुझे सभी महिला ब्लॉगर्स और पुरुष ब्लॉगर्स की बीवियों के फोन, ईमेल, टिप्पणीयां और चिट्ठियां आ रही हैं। सभी को जर्मन मेड लट्ठ पाने की चाहत है। मैं उन सबको बता देना चाहता हूँ कि मैनें और कविवर श्री यौगेन्द्र मौदगिल जी ने केवल कूरियर का काम किया है। जिनको भी जर्मन मेड लट्ठ चाहिये, वो अपना ऑर्डर श्री राज भाटिया जी को ईमेल या टिप्पणी द्वारा दें। 
गूगल से साभार
हिन्दी ब्लॉगजगत में होली स्पेशल लट्ठ भी बेतहाशा मांग में हैं। होली स्पेशल लट्ठ की विशेषता है कि अलग-अलग  रंग के लिये अलग लट्ठ इस्तेमाल किया जाता है।  जिस भी रंग से आप किसी को रंगना चाहते हैं, उसी रंग का लट्ठ उसके सिर पर बजा दीजिये। ताई ने चार लट्ठ लाल, पीला, हरा और नीला मंगवाये थे। जिन्हें हमने  बहुत गोपनीय तरीके से हिन्दी ब्लॉगर्स से छुपा-बचा कर ताई तक पहुँचाया है। यहां तक की निजामुद्दीन स्टेशन पर श्री पवन *चंदन* जी ने अपने कारिंदे फैला रखे थे और खुद भी ऑफिस से बाहर ही खडे होकर पूरे प्लेटफार्म पर नजर रखे हुये थे। पवन जी ने हमें पकड लिया और बडे प्यार से अपने ऑफिस में लेजा कर चाय-पान कराया, उनकी नजरें जर्मन मेड लट्ठ की एक झलक पाना चाहती थी। लेकिन हमने भी लट्ठ इस प्रकार छुपा रखे थे कि किसी को भनक भी ना लगे। श्री पवन *चंदन* जी ने हमें रिश्वत देने की भी कोशिश की, लेकिन हमने रिश्वत भी ली और चारों जर्मन लट्ठ को बिना हवा लगाये इन्दौर ताई तक पहुँचा आये। ताऊ जी आजकल ताई द्वारा रंगीन लट्ठों के जरिये खूब रंगीन किये जा रहे हैं।

इसलिये आप सब रंगीन जर्मन मेड लट्ठ का आनन्द पाने के लिये श्री राज भाटिया जी से ही सम्पर्क करें। बेहतरीन कूरियर सेवा के लिये श्री ललित शर्मा दी ग्रेट कूरियर कम्पनी से सम्पर्क किया जा रहा है। यह एक अन्तर्राष्ट्रिय कूरियर सेवा है, जो अपनी बेहतरीन सेवायें देने के लिये जानी जाती है। अगर श्री ललित शर्मा जी हमारे साथ कार्य करने को मान जाते हैं तो हमारा सौभाग्य होगा और आपको जर्मन मेड लट्ठ श्री ललित शर्मा जी द्वारा दिये पहुँचायें जायेंगें।

होली स्पेशल : यह पोस्ट शुद्ध हास्य के लिये है। किसी को बुरा लगता है तो  क्षमायाचना सहित हटा दी जायेगी।