मायावी ताऊ |
जैसा कि पिछली पोस्ट में मैने लिखा और कविश्री योगिंदर मौदगिल जी ने भी लिखा कि हम इंदौर में ताऊजी से मिलकर आये। राज भाटिया जी के दिये हुये मेड-इन-जर्मन लठ्ठ वहां ताई जी को भी भेंट किये। पर मेरे मन में एक सवाल अभी तक भी बना हुआ है कि क्या मैं इंदौर में असली ताऊ से मिला या किसी और से? सारे घटनाक्रम पर गौर करता हुं तो मुझे दाल में कुछ काला या कहें कि पूरी दाल ही काली पीली नजर आती है।
चित्र गूगल से |
सारा घटनाक्रम यूं हुआ था कि हम खरगोन कवि सम्मेलन निपटाकर सुबह साढे नौ बजे इंदौर नौलखा चौक पर उतर गये। तभी ताऊ के नंबर से फ़ोन आया कि कहां हो? मौदगिल जी ने बताया कि हम माहेश्वरी स्वीट्स के पास खडे हैं. उधर से आवाज आई कि वहीं खडे रहना मैं अभी आता हूं. तभी केवल एक मिनट के अंतराल से एक कार हमारे सामने तेजी से आकर रूकी, कार चलाने वाला अठ्ठाईस तीस साल का युवक, जींस, डिजाईनर टी-शर्ट और ब्राण्डेड स्पोर्ट शूज पहने था। हम कार में बैठ गये, नजदीक ही ताऊ के आफ़िस पहुंच गये।
युवक हमें ऑफिस में बैठाकर कहीं चला गया। मैं और मौदगिल जी बात करते रहे कि ताऊ को बुलाने गया होगा। थोडी देर बाद में वही युवक फ़िर हाजिर हुआ। अब चाय पीते हुये बातचीत शुरू हो गई। मेरा मुख्य प्रयोजन तो ताऊ से मिलना था, सो उत्सुकता वश मैने उस युवक से पूछ लिया कि - "ताऊ जी कहां है और आप कौन हो?
युवक मुस्कराते हुये बोला - जी मैं उनका बेटा हूं, आपके आने के बारे में उन्होने मुझको बता दिया था और उनकी आज फ़्लाईट कैंसिल हो गई है, सो वो आज नही आ पायेंगें। (ताऊ उसी दिन की फ़्लाईट से सुबह आठ बजे मुम्बई से इंदौर आने वाले थे)। यह सुनकर मैं उदास हो गया। मौदगिल जी भी काफ़ी निराश से लगे। वहां जो-जो हुआ वो मैने और मौदगिल जी ने पिछली पोस्टो में लिख ही दिया है।
खैर जो भी हो ताऊ जी के बेटे और ताई जी ने हमारे खाने-पीने और आराम का बहुत ख्याल रखा। ताऊ जी के बेटे से ब्लॉगिंग के बारे में भी बहुत सारी बातें हुई। मुझे हैरानी हो रही थी कि वह युवक सभी हिन्दी ब्लॉगर्स और ब्लॉगिंग के बारे में इतना सबकुछ कैसे जानता है? उन्होंने हमें आदरणीय श्री समीरलाल जी की दो पुस्तकें "बिखरे मोती" और "देख लूं तो चलूं" भी उपहार में दी। हमारी ट्रेन का समय हो चला था। सो हमने विदा लेते हुये स्टेशन जाने के लिये तैयारी की। ताऊजी के बेटे ने रास्ते में इंदौरी नमकीन दिलवाये और हमें स्टेशन के बाहर तक छोड दिया। विदा लेते समय मैने कहा - आपसे और ताई जी से मिलकर बहुत खुशी हुई लेकिन ताऊ जी से नहीं मिल पाने का बहुत अफसोस है, (मैं रुंआसा सा हो गया था)।
उस युवक ने हाथ हिलाते हुये विदा लेते हुये कहा - यार, मैं ही तो ताऊ हूं।
सुनते ही मैं एकदम कार की तरफ लपका, लेकिन कार आगे बढ गयी थी। मस्तिष्क और शरीर सुन्न हो गया, मैं वहीं खडा रह गया। मौदगिल जी ने मेरा कंधा पकड कर झिंझोडा और कहा - " अन्तर, चल ट्रेन छूटने वाली है।"
मैं सोच रहा हुं कि - हे भगवान ये सही बात क्या है? क्या वो ताऊ था? अगर वो ताऊ था तो इतना जवान कैसे था? या ये ताऊ सही में कोई मायावी था? रास्ते भर ट्रेन में मैं और मौदगिल जी इसी पर विचार करते हुये दिल्ली पहुंच गये. और मैं अभी भी उलझन में हुं।
(श्री समीरलाल जी की पुस्तकों को ताऊ के हाथों से भेंट स्वरूप पाना, मुझमें अहंकार का भाव पैदा कर रहा है। क्या सचमुच मैं इस लायक हूँ)
{मैं इस करम के कहाँ था काबिल, हजूर की बन्दापरवरी है}
"वैसे जिंदगी को हल्के फुल्के अंदाज मे लेने वालों से अच्छी पटती है | गम तो यो ही बहुत हैं | हंसो और हंसाओं , यही अपना ध्येय वाक्य है | हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है , जिसे हम रोज देखते हैं ! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है ! और हम अपने पायजामे में ही रहते हैं !"--Tau
ReplyDeleteताऊ जी को और भी रहस्यमय बना दिया.
ReplyDeleteवैसे ताऊ अभी हिमालय से काया कल्प करवा के आए हैं.
ताऊ रहस्य पर से शीघ्र पर्दा हटाया जाये।
ReplyDeleteऐसा क्या !!!!
ReplyDeleteताऊ का एक कमेंट मिला था मुझे, "करता हूं आपको फ़ोन किसी दिन?" पोस्ट पढ़कर लग रहा है कि अगर भूले भटके कभी फ़ोन आ भी गया तो यकीन नहीं होगा कि ताऊ है दूसरी तरफ़ या कोई और।
ReplyDeleteबाकी अपनी रीडिंग ये है कि थम दोनों हरियाणवी ताऊ के साथ मिलकर सबको मामू बना रहे हो:)
अरे अंतर ताऊ से मिल कर आ रहे हो या किसी ओर से... मेरे ख्याल मे तो वहां कोई भेंसो का तबेला होगा, चारो ओर गोबर ही गोबर, अब पता नही लगता होगा की गोबर की खुशबु ताऊ से आ रही हे या तबेले से, फ़िर ताऊ के पास एक हुक्का होगा, पास मे ही मेरे जेसा एक मरियल सा लडका बेठा उपले की आग से हुक्का भर रह होगा, ओर ताऊ खांस रहा होगा, ओर तभी अंदर से ताई हाथ मे चिमटा ले के ताऊ की टांगो पे मारे गी... ओर बोले गी बुठ्ठे काम धाम भी कर ले सार दिन टीकर ही फ़ाडेगा के... ध्यान से सोचो कही सलमान खान से मिल कर तो नही आ गये, या हो सकता हे ताऊ की सेवा अच्छी की हो ताई ने ओर ताऊ सुज सा गया हो.... वर्ना ७५ साल का ताऊ सलमान खान केसे बन गया:)
ReplyDeleteमुझे पहले से ही शक था ! :-)
ReplyDeleteहम तो मिले हैं ताऊ से... :) और उनके बेटे से भी.. :)
ReplyDeleteयार, मैं ही तो ताऊ हूं--।
ReplyDeleteहा हा हा ! अब यकीन कैसे हो ।
ताऊ किसी विशेष आदमी का नाम नहीं है | जो भी समझदार है अनुभवी है ओर सबको सामान समझता है वही ताऊ है | ना तो ताऊ इंदौर में रहता है ओर ना ही भैसो के तबेले में रहता है | ताऊ तो सबके बलोग पर घूमता है | उसे ढूँढने की गलती ना करो |वह तो आपको अपने आस पास कभी भी नजर आ सकता है | सावधान |दिल से देखो ताऊ हमेशा पास है |
ReplyDeleteभाई, अगर थारे बाप्पू ने बेरा पाट गिया के छोरा अपने बरके छोरे नै ताऊ कहता फिरै सै, तो साढे सात्ती चढनी तय है।
ReplyDeleteयार ये ताऊ वैसे ही इतना रहस्यमयी शख्सियत है आपने और उलझन में डाल दिया, अब लगाते रहे सब अटकलें।
ReplyDeleteपर ताऊ जो भी हो बंदा कमाल का है इसलिए नहीं कि उसकी पोस्ट मजेदार होती हैं बल्कि इसलिए कि जहाँ सारी दुनिया यश के पीछे भागती है वहीं ये शख्स अपनी पहचान छिपाए खुद को पर्दे में रखे हुए है। आज की दुनिया में ये कोई छोटी बात नहीं है। भई इसलिए मेरी नजर में ताऊ किसी बड़े संत से कम नहीं है। प्रणाम इस महान आत्मा को।
ये क्या मचा रखा है, घर में नहीं हैं क्या चाचा-ताऊः)
ReplyDeleteलो मुझे नहीं पहचाना ? क्या अन्तर भाई। मैं ही तो ताऊ हूँ। ही ही।
ReplyDeleteताऊ को हम तो मिल लिए भई...
ReplyDeleteपुस्तक के बारे में भी तो कुछ कहो...ताऊ से भी मिलवा देंगे कभी...
ReplyDeleteजब से हाथ में आई है पांच बार पढ़ चुका
Deleteलेकिन कह नहीं पाया अभी तक कुछ 4 सालों में
बहुतों को पढ़ने के लिए दी
ये कहकर की मेरी लाइब्रेरी की सबसे उम्दा किताब है ये
मज़ेदार
ReplyDeletekamaal hai...
ReplyDeleteताऊ की महिमा अपरम्पार है जी...
ReplyDeleteइशारों को अगर समझो तो " राज" को राज रहने दो :)
राज को नाराज करें हमारी क्या मजाल 😊
Deleteराज को नाराज करें हमारी क्या मजाल 😊
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