गूगल से साभार |
जब से जापान में सुनामी और भूकम्प आया है, हर आदमी की जुबान पर इसी के चर्चे हैं। और अब जापान के परमाणु संयंत्रों के बारे में चिंता कर रहा है। रेल का दैनिक यात्री होने के कारण प्रतिदिन 2-4 नये लोगों को सुनना-बोलना हो जाता है। हर यात्री व्यापारी हो या मजदूर, सरकारी अफसर हो या किसी दुकान का कर्मचारी राजनीति, मौसम को छोडकर इसी बात से अपनी बात शुरु कर रहा है। और बात चलते-चलते आखिर में दर्शन-शास्त्र पर पहुँच जाती है। हर आदमी दार्शनिक हो जाता है। जैसे शमशान में चिता जलते देखकर या कब्रिस्तान में दफनाते वक्त आत्मा-परमात्मा की बातें करता है। यही एक बात कि - "खामख्वाह लोग इतनी भाग-दौड करते हैं, किस लिये लोग सारी उम्र जोड-तोड करते हैं, जिन्दगी का कुछ भरोसा नहीं है, सबकुछ ऊपरवाले के हाथ में है….…आदि-आदि।
लेकिन क्या सचमुच ये बातें उनके हृदय से निकली होती हैं? नहीं, बिल्कुल नहीं। एक आदमी भी ऐसा नहीं है, जो इतनी दार्शनिक बातें करके रिश्वत लेना, टैक्स चोरी या लडाई-झगडा छोडकर शांति और ईमानदारी से जीवन-यापन करना शुरु कर दे।
चोला माटी के रे।
ReplyDeleteअमित जी आपने सभी बातें एक दम बिलकुल सही लिखी हैं। परन्तु एक आदमी भी ऐसा नहीं है, जो इतनी दार्शनिक बातें करके रिश्वत लेना, टैक्स चोरी या लडाई-झगडा छोडकर शांति और ईमानदारी से जीवन-यापन करना शुरु कर दे।परन्तु यदि हममें से प्रत्येक बाकि दुनिया को भूलकर यह ठान ले कि मै रिश्वत लेना, टैक्स चोरी या लडाई-झगडा छोडकर शांति और ईमानदारी से जीवन-यापन करूँगा। तो ऐसे एक-एक करके सारी दुनिया ही शान्तिमय हो जाएगी ओर धरती पर स्वर्ग हो जाएगा। परन्तु यह बात भी सत्य है कि एक आदमी भी ऐसा नहीं कर पाता क्योंकि वह सोचता है कि फलां ये कर रहा है तो मैं क्यों न करूँ। इस तरह कोई भी सही नहीं हो पाता। शायद यही कुदरत की नियति हो। जय श्री राम। दर्शन-शास्त्र की याद कराने का आभार।
ReplyDeleteआशिर्वाद
बात आपकी सही है, इसिलिये इन दार्शनिक बातो को कहते है 'श्मशानिक बैराग'जो श्मशान में रहते उमडता है और लौटकर आते ही उतर भी जाता है।
ReplyDeleteविरले ही होते है जिनमें ऐसे उच्च विचार स्थापित होते है।
bilkul sahi...jindagi kaa kyaa thigaanaa kab subah kab shaam ho.
ReplyDeleteआप की बात से सहमत हूँ | धन्यवाद|
ReplyDeleteसही कहा आपने, यहा सबका यही हाल है........... पल भर के दार्शनिक
ReplyDeleteबिलकुल सही कह रहे हैं आप. मेरा भी तही अनुभव है.
ReplyDeleteयही *
ReplyDeleteसरकार द्वारा दिन-रात हज़ारों पापड़ बेलने के बाद, सरकारी ख़र्च पर लीबिया से दिल्ली लाए गए लोग जहाज़ से उतरते हुए 'भारत माता की जय' बोल रहे थे. वही लोग, इम्मीग्रेशन से बाहर आते ही गुट बना कर अधिकारियों से झगड़ा कर रहे थे कि उन्हें कानपुर, फ़्लाइट के बजाय रेल या बस से क्यों भेजा रहा है (जबकि यह यात्रा भी मुफ़्त थी)... भाई, मौत तो बड़ी दूर की बात है...इन्सान एहसान फ़रामोश चीज़ है जब emotions की बात आती है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने...
ReplyDeleteध्यान नहीं लेकिन कहीं ये पढ़ा था - संभोग के फ़ौरन बाद कामी और शमशान में चिता जलते देखकर या कब्रिस्तान में दफनाते वक्त जो ख्याल इंसान को आते हैं वे अगर स्थाई हो जायें तो ये दुनिया सन्यासियों से पट जाये। ऐसा होता नहीं लेकिन, थोड़ा सा दूर होते ही बल्कि अब तो मौके पर ही दुनियादारी हावी हो जाती है।
ReplyDeleteएक बहुत अच्छा विचार... हम सिर्फ़ बक बक करने मे विशवास रखते हे जब बात आती हे किसी अच्छे काम की तो ...... बहुत सही बात कही आप ने, धन्यवाद
ReplyDeleteसत्यवचन प्रभु !
ReplyDeleteइसे कहते हैं मशाना याने शमशान का वैराग्य।
ReplyDeletebahut gaharee aur satya baat hai . shubhakaamanaayen
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