"अबतक मैं अपने परिवार का सोचकर हमेशा अपने भविष्य से मुँह मोडती रही, लेकिन अब नहीं। अब मैं पढूंगी, और इस बार मैं अपने लिये पढूँगी, और ये मेरा फैसला है।"
कलर्स पर प्रसारित "बालिका-वधु" में आनन्दी का डॉयलाग है यह। बेहतरीन अभिनय और बेहतरीन संवाद।
लगातार उपेक्षा, तिरस्कार और आत्म-सम्मान पर होने वाली चोट से इंसान के भीतर व्यवस्था के विरोध की भावना पैदा हो जाती है और फिर एक दिन विरोध का स्वर मुखर हो उठता है।
कलर्स पर लाडो, बालिका-वधु और फुलवा इन तीनों धारावाहिकों (अन्य भी हैं शायद) की कहानी स्त्री के इर्द-गिर्द ही है। इनमें दिखाया गया है कि कैसे लडकियों, औरतों को रीति-रिवाज और परम्परा के नाम पर दबाकर रखा जाता था/है। कैसे उनकी व्यक्तिगत इच्छाओं का गला घौंटा जाता है। शादी के बाद कठपुतली की तरह बस परिवार के सदस्यों को खुश रखने की जिम्मेदारी उनपर रहती है। हालांकि उनपर दबाव भी एक औरत का ही दिखाया गया है, लेकिन एक पिछली पीढी की औरत नई पीढी की औरत पर इतना अत्याचार क्यूं करती है? इसका भी केवल यही कारण है कि उसने पहले यही सब सहा है, शिक्षा से वंचित रखा गया है, परम्परायें और रूढियां अब उनके खून में रच बस गई हैं और उसे खुद ही अपनी कठोरता के बारे में जानकारी नहीं है।
टीवी चैनलों में ढेरों चैनल हैं जो महिलाओं के लिये बने हैं या उन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक महिलाओं के लिये हैं। लेकिन कलर्स चैनल एक ऐसा चैनल है जो सचमुच ग्रामीण भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता हुआ और महिला सशक्तिकरण को सुघड तरीके से बढावा देता प्रतीत होता है। जहां दूसरे चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले छल-कपट, षडयंत्र, फूहड संवाद और हास्य दिखाया जाता है, वहीं कलर्स चैनल भारतीय परिवेश, भाषा और पहनावे में महिला को प्रस्तुत करता है। मौन रहकर घुट-घुट जीने के बजाय अपनी बात को किस प्रकार उचित ढंग से अभिव्यक्त किया जा सकता है। धारावाहिक के अन्त में दिये जाने वाले उद्धरण भी सराहनीय प्रयास हैं।
टीवी चैनलों में ढेरों चैनल हैं जो महिलाओं के लिये बने हैं या उन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक महिलाओं के लिये हैं। लेकिन कलर्स चैनल एक ऐसा चैनल है जो सचमुच ग्रामीण भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता हुआ और महिला सशक्तिकरण को सुघड तरीके से बढावा देता प्रतीत होता है। जहां दूसरे चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले छल-कपट, षडयंत्र, फूहड संवाद और हास्य दिखाया जाता है, वहीं कलर्स चैनल भारतीय परिवेश, भाषा और पहनावे में महिला को प्रस्तुत करता है। मौन रहकर घुट-घुट जीने के बजाय अपनी बात को किस प्रकार उचित ढंग से अभिव्यक्त किया जा सकता है। धारावाहिक के अन्त में दिये जाने वाले उद्धरण भी सराहनीय प्रयास हैं।
good post
ReplyDeleteयही तो दुर्भाग्य है।
ReplyDeleteअब इन चीजों में काफी बदलाव आ चुका है|
ReplyDeleteमुझे लगता है स्त्री हो या पुरुष अपनी (ignorance) या अज्ञानतावश दूसरों पर अत्याचार करता है । जैसे-जैसे maturity आती जाती है , लोग संजीदा होते जाते हैं और दूसरों को समझने का बेहतर प्रयास करते हैं।
ReplyDeleteऐसा होना ही अफसोसजनक है.....
ReplyDeleteचलिये कोई तो चैनल ऐसा है, ये भी न होता तो क्या कर लेते? :))
ReplyDeleteवैसे तो अपन टीवी देखते ही नहीं(देखने को नहीं मिलता), फ़िर भी सब टीवी अच्छा लगता है।
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteइन चेनलो ने ही हमारी संस्कृति को खराब कर दिया हे, इन चेनलो से ही आज की नारी नये नये हथकंडे सीख रही हे दुसरी नारी को दबाने के लिये,जब कि जिसे अपना घर प्यारा हे, ओर बसाना हे वो मर्द हो या नारी एक दुसरे की भावनओ को समझते हे, ओर एक दुसरे की बातो को सहन कर लेते हे, ओर समय पर समझा देते हे, ना कि छोटी छोटी बातो पर अपने अपने हक मांगने लगते हे, ओर जो हक मांगते हे८नर हो या नारी) वो जिन्दगी भर अकेले ही रहते हे,जवानी तो लड झगड कर कट जाती हे बुढापे मे पशचाते हे, बिना जीवन साथी यह जिन्दगी एक बोझ बन जाती हे, अकेले जीना, इस लिय इन चेनलो को बंद कर के सिर्फ़ घर मे शांति बनाये
भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
ReplyDeleteमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
अब टीवी वाले भी क्या करें? और कुछ करने से चैनल का खर्चा तो निकलने से रहा.
ReplyDeleteहोली पर्व की घणी रामराम.
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
ReplyDeleteआइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
आपकोपरिवार सहित होली की बहुत-बहुत मुबारकबाद... हार्दिक शुभकामनाएँ!
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