28 March 2010

ताऊ का डोगा

यह वाक्या पढने से पहले कुछ हरियाणवी शब्दों के अर्थ समझ लेना जरूरी है।
उडै  =  वहां
उरेनै-परेनै  =  इधर-उधर
सोन की खातर  =  सोने के लिये
टोण लाग्या  =  ढूंढने लगा
कितै भी  =  कहीं भी
किस तरियां  =  किस तरह
न्यू कर  =  ऐसा करो
डोगा  =  बैंत (वृद्धों की छडी)
जगा  =  जगह
भतेरी  =  काफी (बहुत)
बाही  =  चारपाई (खाट) की लम्बाई वाली लकडी 
{और छोटे डंडे (चौडाई वाले) को सेरू कहते हैं}
एक बार फत्तू चौधरी किसे की  बारात म्है गया। उडै उसनै खूब खाया-पिया। देर रात भी हो गयी थी तो उसनै नींद आन लागी।  वो उरेनै-परेनै सोन की खातर जगह टोण लाग्या। उसनै कितै भी जगह नही मिली। बडा परेशान होग्या। घूमता-घूमता वो गली म्है आग्या। उसनै देखा एक खाट पै एक ताऊ अकेला सोन लाग रह्या सै। उसनै ताऊ की चादर खींची
अर बोल्या - ताऊ थोडा सा परेनै होले, मैं भी इस खाट पै सो जाऊंगां
ताऊ बोल्या - अरै जींगड, इस खाट पै किस तरियां सोवैगा, इस पै तो एक आदमी ही सो सकै सै
फत्तू बोल्या - ताऊ तू बस थोडा सा सरक ले, मैं तो बस बाही पै सो ज्यांगा
ताऊ बोल्या - छोरे तू बाही पै ए सो ज्यागा???
फतू बोल्या - हां ताऊ, मन्नै तो इतनी ए जगा भतेरी सै
ताऊ बोल्या - जै तू बाही-बाही पै ए सो सकै सै तै छोरे तू न्यू कर, वो देख मेरा डोगा धरा, तू उस पै सो ज्या

ताऊ के ठुमके
ताऊ की पहली ठगी
ताऊ-ताई अर मोड्डा
ताई री ताई तेरी खाट तलै बिलाई

25 March 2010

मैं आचरण से धोखा देता हूं

मैं जो भी करता हूं, वह मुझसे निकलता है; लेकिन मेरा होना मेरे करने से नहीं निकलता। मेरा अस्तित्व मेरे करने के पहले है। आचरण बाहरी घटना है, इसलिये यह भी हो सकता है कि मेरा कर्म मेरे संबंध में जो भी कहता हो, वह मेरी आत्मा की सही गवाही न हो। कर्म धोखा दे सकता है; कर्म प्रवचना हो सकता है; कर्म पाखंड हो सकता है। हो सकता है कि मेरे भीतर एक दूसरी ही आत्मा हो, जिसकी खबर मेरे कर्मों से न मिलती हो।
पूरी तरह असाधु होते हुये भी मैं बिल्कुल साधु का आचरण कर सकता हूं। मेरे भीतर कितना ही झूठ हो, मैं सच बोल सकता हूं। मेरे भीतर कितनी भी हिंसा हो, मैं हिंसक हो सकता हूं। मैं बाहर से क्रोध प्रकट न करुं, और मेरे भीतर बहुत क्रोध हो। क्योंकि आचरण व्यवस्था की बात है और यह अभ्यास से संभव हो जाता है।
लेकिन आचरण से जो धोखा देता हूं, वह आपकी आंखों को दिया जा सकता है। लेकिन वह धोखा स्वयं को नहीं दिया जा सकता। इसलिये कोशिश करता हूं कि स्वयं को धोखा ना दूं।

23 March 2010

एक टिप्पणी के जवाब में

जबरदस्ती, बाध्य करने से या दमन द्वारा कोई कार्य करवाने से वह कार्य सफलता की श्रेणी में नही आ सकता। जो कार्य स्वस्फूर्त होता है, उसी में आनन्द है। जो दबाया जायेगा, वह तो सापेक्ष विरोध से प्रकट होगा ही। अगर संस्कृति बचाने के नाम पर कोई आपको धोती-कुर्ता पहनने के लिये बाध्य करे तो??? आप तो वही पहनेंगें ना जो आपको अनुकूल है। जिन्हें छोटे वस्त्र अनुकूल लगते हैं, उनकी अपनी समझ है। 
त्याग भावना और अतिथि देवो भव: की सस्कृति की वजह से भारत ने कितना नुक्सान उठाया है, यह आप भी भली-भांति जानते हैं।
जरूरी नहीं कि जो सदा से चला आ रहा है या हमारे पूर्वजों द्वारा किया जा रहा है, वह सारा का सारा सही हो। उसमें भी खामियां हो सकती हैं।
इसके अलावा भी हम कितने कार्य अपने वेद-पुराणों के अनुसार करते हैं???
"आत्मा अजर-अमर है" इसका प्रचार केवल हिन्दू धर्म में ही किया गया है और आज हिन्दू ही मौत से सर्वाधिक भय खाने वाली कौम हैं, क्यों??
आपकी बात सही है कि आज हर हिन्दू के सामने अर्जुन जैसी चित्तदशा, मनोदशा और ऊहापोह है, मगर हम अब भी किसी कृष्ण के अवतरित होने और दुष्टों का सफाया करने का इंतजार करते हैं, क्यों?
गीता में जितना कुछ अर्जुन के लिये कहा गया है, उसे हम अपनी सुविधानुसार तोड-मरोड कर अपने लायक बना लेते हैं।

14 March 2010

जाने वाले को कौन रोक पाया है

सुबह रेलवेस्टेशन पर आया तो देखा छैऊलाल एक बैंच पर बैठा है। उसके सारे भाई उसे बडे प्यार से पुचकार रहे हैं। मैनें पूछा क्या बात है बिना नहाये सब जने आज स्टेशन पर कैसे? उन्होंनें बताया छैऊ घर छोड कर जा रहा है, इसे समझाते-समझाते थक गये हैं। किसी की बात भी नही मान रहा। मैनें पूछा मगर ये घर छोड कर क्यूं जा रहा है। पता लगा घर में ही आपस में कहा-सुनी हो गई है। किसी ने गुस्से में कुछ कह दिया इसलिये कह रहा है कि - मैं घर छोडकर जा रहा हूं। (छैऊ पहले भी इसी तरह दो बार धमकियां दे चुका है, और इसे समझा-बुझा कर वापिस घर ले जाते हैं)
मैनें कहा तो भाई इसे जाने दो, कब तक रोक कर रखोगे। क्या गले में पट्टा डालोगे या जंजीर से बांध कर रखोगे। बढिया तो यह रहेगा कि इसे कुछ पैसे दे दो, रास्ते में खाने-पीने के काम आयेंगें और आसानी रहेगी। और इसे कहो कि कुशल-मंगल का फोन करते रहना। (अरे भाई हम खुद भी घर से दो बार भागे हैं, और वापिस घर ही आना पडा है।) असल में तो यह कहीं जायेगा ही नहीं और जायेगा तो  एक-दो दिन में घूम-फिर कर आ जायेगा। इसका गुस्सा भी ठंडा पड जायेगा।
मेरे विचार से जिसे घर छोडकर (ब्लागिंग से भी) जाना होता है वो ढोल पीट-पीट कर नही जाता।  वो तो दूसरों की सहानुभूति पाने, दूसरों का दिल दुखाने और भाव बढाने के लिये मुनादी करता है। सब उसे रोकने के लिये खामख्वाह मक्खन लगाने और पुचकारने लगते हैं।
एक बार अलविदा कहें, शुभकामनायें दे कर देखो, क्या वह सचमुच जाता है? कभी नहीं….….॥…।
वरना जाने वाले को कौन रोक पाया है जी 
नीचे लिखी पंक्तियों के रचनाकार के बारे में आप जानते हैं तो कृप्या मुझे भी बतायें।
घर से हुए जो दूर तो घर का पता चला
आंगन में पडे एक-एक पत्थर का पता चला
नाराजगी बज़ा थी बुजुर्गों की किस कदर
क्यों टोकते थे हर कदम पर का पता चला
दूजों की खामियों को गिनाया अगर कभी
खुद में भी कहीं पल रहे अजगर का पता चला
परदे जो झूठ के ही जहन पर पडे हुए
सच देख न पाती जो नजर का पता चला
यूं तो सभी अपने लगा करते रहे लेकिन
रुसवा हुए तो हमको शहर भर का पता चला
यह रचना कहीं से नकल करके मैनें विद्यालय के दिनों में डायरी में लिख रखी थी। मूल लेखक को साधुवाद दीजिये। आपत्ति होने पर क्षमायाचना सहित हटा दी जायेगी।

12 March 2010

क्यों संस्कृति की दुहाई बार-बार दी जाती है?

जो नदी बहती रहती है, उसका जल स्वच्छ, ताजा और निर्मल रहता है। मगर जो ठहर जाती है वो पोखर या जोहड बनकर समाप्त हो जाती है। सही और गलत की परिभाषायें समय, स्थान और स्थिति के साथ परिवर्तित हो जाती हैं। कोई बात, विचार, प्रथा, नियम आदि भी किसी के लिये सही और किसी के लिये गलत हो सकते हैं। कल जो सही था जरूरी नहीं कि वह आज भी सही लगे या आज जो सही है हो सकता है कि कल वही गलत रहा हो। आज आप जिसे पसन्द करते हैं, जरूरी नही कि कल भी वह आपको अच्छा लगेगा। किसी समय बाल-विवाह सही था और विधवा-विवाह गलत कार्य की श्रेणी में आता था, मगर आज…………………

संस्कृति में  इसी तरह कुछ बदलाव आते ही हैं, बल्कि परिवर्तन विकास का ही नाम है। फिर क्यों संस्कृति की दुहाई हर जगह दी जाती है। जब हम दूसरों के सम्पर्क में आते हैं तो रहन-सहन, खान-पान, बोल-चाल  और पहनावे में (क्षणिक) परिवर्तन तो स्वत: हो ही जाता है।
जहां किसी चीज के खरीददार हैं तो उसके बेचने वाले तो अपने आप पैदा हो ही जाते हैं।  कोई लेखक  कहता है कि मैं रीडरशिप बेचता हूं। लेखक आज आत्मतुष्टि के लिये नही बल्कि पाठकों के लिये लिखता है। सिनेमा जो लोग देखना चाहते हैं वही तो दिखायेगा। जब नंगेपन को देखने वाले हैं तो दिखाने वाले तो दिखायेंगें ही। लेकिन  अगर सब नंगे हो गये तो ना कोई देखने वाला बचेगा ना दिखाने वाला। अच्छा है कि कुछ लोग रहें और दिखाते रहें उन्हें, जिन्हें देखना है वो देखते रहें। क्या पहले नाचने वालियां, कोठे वालियां, तवायफें, वेश्यायें नही होती थी? क्या पहले चोर, डाकू, लुटेरे, अपहरणकर्ता, बलात्कारी नही होते थे? क्या अब अच्छे लोग नहीं हैं, क्या पतिव्रता स्त्रियां, मां-बाप की सेवा करने वाले बच्चे, परस्त्री को माता-बहन समझने वाले पुरुष, कर्त्तव्यों को निभाने वाले लोग खत्म हो गये हैं?
हम जो करना चाहते हैं उसके लिये हजार कारण इकट्ठे कर लेते हैं और जो नही करना चाहते उसके लिये सैंकडों बहाने हमारा मस्तिष्क खोज लेता है। सही और गलत की व्याख्या भी हम इसी आधार पर कर लेते हैं।

08 March 2010

सतरंगी नारी, निर्दयी नारी

नारी के बारे में महापुरूषों के कुछ वकत्त्व्य, जो विद्यालय के दिनों में मैनें कहीं से पढ कर अपनी डायरी में संचित कर रखे थे। कौन सा वकत्त्व्य किस महापुरूष का है यह मुझे नही पता।
1> नारी जगतपालनी है, परिवार की आधारशिला है, स्नेह और त्याग की जीती मिसाल है, नारी के बिना संसार की कल्पना एक धोखा है।
2> नारी के चार रूप हैं ; मां, बेटी, बहन और पत्नी। ये चारों रूप ही अपने में अनुपम हैं।
3> औरत पर हाथ उठाने वाले कायर, औरत का अपमान करने वाले नीच, औरत का फायदा उठाने वाले शैतान होते हैं।
4> नारी संसार का सबसे खुशनुमा फूल है। मगर वह प्राय: ईर्ष्या, संशय, धूर्तता और मक्कारी के कांटों से घिरा रहता है।
5> जितनी यंत्रणा औरत को अपनी भूलों से होती है, उतनी ही दूसरों के दुखों से होती है।
6> नारी प्रकृति की बेटी है, उसका हृदय कोमल होता है।
7> नारी पर क्रोध मत करो, उस पर विश्वास मत करो।
8> प्रेमियों की आहों और दुष्टों की कराहों को पैदा करने वाली सतरंगी चीज है नारी।
9> जननी होने के कारण नारी का स्थान भगवान से भी ऊंचा हो जाता है।
10> नारी बादाम का मासूम फल है, चेरी की रंगत है, गुलाब का नशा है। जिसने उसे समझा वही ठगा गया।
11> केवल सौंदर्य से नारी अभिमानिनी बनती है। वह लज्जाशील बनकर देवी बन जाती है। उत्तम गुणों से ही उसकी प्रसन्नता है।
12> नारी नदी के समान है, जब नदी किनारों को लांघती है तो उसके लिए कोई सीमा नही रहती।
13> दुनिया का सबसे बडा आकर्षण नारी है।
14> बदला लेने और प्रेम करने में नारी पुरूषों से अधिक निर्दयी है।
15> नारी या तो प्रेम करती है या घृणा। इसके बीच का मार्ग उसे ज्ञात नहीं है।
16> नारी के बिना बचपन असहाय, यौवन आनन्द-रहित और बुढापा सांत्वना-शून्य है।

06 March 2010

एक-आध बोगी ही बढा दी होती


इस बार रेलमंत्री ने 117 रेलों की बढोतरी की है जी देश में। समय पर आने-जाने, सुविधा और सुरक्षा बढाने के बजाय हर साल कुछ रेल बढा दी जाती हैं। लम्बी दूरी की रेलों की पैन्ट्री (रसोई) में  खाना बनाने के लिये शौचालय और सफाई के लिये प्रयोग होने वाला पानी उपयोग किया जाता है। रेलों की संख्यां बढने से बडे स्टेशनों पर रेल को प्लेटफार्म खाली ना होने के वजह से आऊटर पर रोका जाता है। नतीजा ट्रेन लेट, फिर उसके पीछे आने वाली ट्रेन लेट। रेलवे फाटक भी बार-बार बन्द करना पडता है, तो सडकों पर भी जाम की स्थिति बनी रहती है।
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इन बढी हुई ज्यादातर रेलों में, पुरानी रेलों से बोगियां (डिब्बे) काट-काटकर लगा दिये जाते हैं।
सिरसा एक्सप्रेस में पहले 21 से 23 बोगियां होती थी अब 17 हैं। 5 बोगी कुर्सीयान हैं यानि उनमें ज्यादा से ज्यादा 200 यात्री ही घुस पाते हैं। सबसे आगे और सबसे पीछे वाले डिब्बों में आधा-आधा लगेज ब्रेक यानि माल डिब्बा होता है। उनमें भी बहुत से यात्री सफर करते हैं। लगेज ब्रेक में यात्रा करने पर मासिक यात्रा टिकट या दैनिक यात्रा टिकट होने पर भी फर्स्ट क्लास का बगैर टिकट चार्ज (जुर्माना) भरना पडता है।
इससे बढिया तो ट्रेनों में एक-आध डिब्बा ही बढा दिया जाता, यहां तो उल्टा डिब्बे कम किये जा रहे हैं।

05 March 2010

कभी देखे या रखे हैं पंखें पर चप्पल-जूते

सिरसा एक्सप्रेस में लगभग सभी बोगियों में पंखों पर चप्पल-जूते रखे हुये दिख जायेंगें।
क्यों ?
From अन्तर सोहिल = Inner Beautiful
क्योंकि सामान रखने की जगह पर लोग बैठते हैं, अगर ये लोग जूते पहने बैठेंगें तो नीचे वाले लोगों के सिरों पर मिट्टी गिरेगी।
नीचे क्यों नहीं निकालते?
इसलिये कि नीचे निकाले हुये जूते या तो जल्दबाजी में बदली हो जाते हैं, या गुम हो जाते हैं। (ड्राईवर की साईड में निकाला हुआ जूता गार्ड की साईड वाले शौचालय के पास तक पहुंच जाता है।)
सिरसा एक्सप्रैस की एक सामान्य बोगी में 90 सीटिंग होती है, मगर इनमें बैठते हैं 250 से 300 यात्री।
कैसे ?
आईये बताता हूं -
एक बोगी में होते हैं 9 कूपे या डिपार्टमेंट
एक कूपे में 4+4+1+1 = 10 सीट
4 जनों की सीट पर बैठते हैं 7 लोग और 1 वाली पर 3
From अन्तर सोहिल = Inner Beautiful
और 4+4 के ऊपर बर्थ  पर 8 से 10 लोग बैठते हैं(नहीं यह बर्थ नही होती सामान रखने के लिये टांड होती है जी, इन्हीं के जूते चप्पल पंखों पर रखे होते हैं)कितने हो गये जी 28X9 = 252
अब जो लोग आने-जाने के रास्ते यानि गैलरी में और दरवाजे पर लटके और शौचालय में खडे-खडे यात्रा करते हैं, उनकी गिनती भी कम से कम 50 तो हो ही जाती है।

04 March 2010

यह शिक्षा पद्धति बढिया है


एक ईमेल जिसे आपके साथ बांटने का मन किया

A Professor at one of the IIM's ( INDIA )
was explaining marketing concepts to the Students:-

1           You see a gorgeous girl at a party. You go up to her and say:
             "I am very rich. Marry me!" - That's Direct Marketing

2          You're at a party with a bunch of friends and see a gorgeous girl.
             One of your friends goes up to her and pointing at you says:
             "He's very rich. Marry him." - That's Advertising

3          You see a gorgeous girl at a party. You go up to her and get her
             telephone number. The next day, you call and say:
             "Hi, I'm very rich. Marry me." - That's Telemarketing

4         You're at a party and see gorgeous girl. You get up and
           straighten your tie, you walk up to her and pour her a drink,
           you open the door (of the car)for her, pick up her bag after she drops it,
           offer her ride and then say: By the way, I'm rich. Will you marry me?" –
           That's Public Relations

5         You're at a party and see gorgeous girl. She walks up to you and says:
           You are very rich! Can you marry ! me?" - That's Brand Recognition

6       You see a gorgeous girl at a party. You go up to her and say:
         I am very rich. Marry me!" She gives you a nice hard slap on
         your face. - That's Customer Feedback

7       You see a gorgeous girl at a party. You go up to her and say:
        "I am very rich. Marry me!" And she introduces you to her
         husband. - That's demand and supply gap

8       You see a gorgeous girl at a party. You go up to her and before
         you say anything, another person come and tell her: "I'm rich. Will you
         marry me?" and she goes with him - That's competition eating into your market share

9        You see a gorgeous girl at a party. You go up to her and before
          you say: "I'm rich, Marry me!" your wife arrives. –
         That's restriction for entering new markets