08 March 2010

सतरंगी नारी, निर्दयी नारी

नारी के बारे में महापुरूषों के कुछ वकत्त्व्य, जो विद्यालय के दिनों में मैनें कहीं से पढ कर अपनी डायरी में संचित कर रखे थे। कौन सा वकत्त्व्य किस महापुरूष का है यह मुझे नही पता।
1> नारी जगतपालनी है, परिवार की आधारशिला है, स्नेह और त्याग की जीती मिसाल है, नारी के बिना संसार की कल्पना एक धोखा है।
2> नारी के चार रूप हैं ; मां, बेटी, बहन और पत्नी। ये चारों रूप ही अपने में अनुपम हैं।
3> औरत पर हाथ उठाने वाले कायर, औरत का अपमान करने वाले नीच, औरत का फायदा उठाने वाले शैतान होते हैं।
4> नारी संसार का सबसे खुशनुमा फूल है। मगर वह प्राय: ईर्ष्या, संशय, धूर्तता और मक्कारी के कांटों से घिरा रहता है।
5> जितनी यंत्रणा औरत को अपनी भूलों से होती है, उतनी ही दूसरों के दुखों से होती है।
6> नारी प्रकृति की बेटी है, उसका हृदय कोमल होता है।
7> नारी पर क्रोध मत करो, उस पर विश्वास मत करो।
8> प्रेमियों की आहों और दुष्टों की कराहों को पैदा करने वाली सतरंगी चीज है नारी।
9> जननी होने के कारण नारी का स्थान भगवान से भी ऊंचा हो जाता है।
10> नारी बादाम का मासूम फल है, चेरी की रंगत है, गुलाब का नशा है। जिसने उसे समझा वही ठगा गया।
11> केवल सौंदर्य से नारी अभिमानिनी बनती है। वह लज्जाशील बनकर देवी बन जाती है। उत्तम गुणों से ही उसकी प्रसन्नता है।
12> नारी नदी के समान है, जब नदी किनारों को लांघती है तो उसके लिए कोई सीमा नही रहती।
13> दुनिया का सबसे बडा आकर्षण नारी है।
14> बदला लेने और प्रेम करने में नारी पुरूषों से अधिक निर्दयी है।
15> नारी या तो प्रेम करती है या घृणा। इसके बीच का मार्ग उसे ज्ञात नहीं है।
16> नारी के बिना बचपन असहाय, यौवन आनन्द-रहित और बुढापा सांत्वना-शून्य है।

2 comments:

  1. नारी के बारे में इतना जान कर कुछ और जानना शेष नहीं रह जाता है । इस संकलन का निष्कर्ष अपने आप में ही गूढ़ पहेली है ।

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  2. महापुरुषों की वाणी में दम है.

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