06 March 2010

एक-आध बोगी ही बढा दी होती


इस बार रेलमंत्री ने 117 रेलों की बढोतरी की है जी देश में। समय पर आने-जाने, सुविधा और सुरक्षा बढाने के बजाय हर साल कुछ रेल बढा दी जाती हैं। लम्बी दूरी की रेलों की पैन्ट्री (रसोई) में  खाना बनाने के लिये शौचालय और सफाई के लिये प्रयोग होने वाला पानी उपयोग किया जाता है। रेलों की संख्यां बढने से बडे स्टेशनों पर रेल को प्लेटफार्म खाली ना होने के वजह से आऊटर पर रोका जाता है। नतीजा ट्रेन लेट, फिर उसके पीछे आने वाली ट्रेन लेट। रेलवे फाटक भी बार-बार बन्द करना पडता है, तो सडकों पर भी जाम की स्थिति बनी रहती है।
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इन बढी हुई ज्यादातर रेलों में, पुरानी रेलों से बोगियां (डिब्बे) काट-काटकर लगा दिये जाते हैं।
सिरसा एक्सप्रेस में पहले 21 से 23 बोगियां होती थी अब 17 हैं। 5 बोगी कुर्सीयान हैं यानि उनमें ज्यादा से ज्यादा 200 यात्री ही घुस पाते हैं। सबसे आगे और सबसे पीछे वाले डिब्बों में आधा-आधा लगेज ब्रेक यानि माल डिब्बा होता है। उनमें भी बहुत से यात्री सफर करते हैं। लगेज ब्रेक में यात्रा करने पर मासिक यात्रा टिकट या दैनिक यात्रा टिकट होने पर भी फर्स्ट क्लास का बगैर टिकट चार्ज (जुर्माना) भरना पडता है।
इससे बढिया तो ट्रेनों में एक-आध डिब्बा ही बढा दिया जाता, यहां तो उल्टा डिब्बे कम किये जा रहे हैं।

6 comments:

  1. बिल्कुल सही बात कही आपने.

    रामराम.

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  2. सुझाव बहुत उपयोगी हैं ।

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  3. आंधेर नगरी चोपट राजा.... यह है आज का भारत, इस लिये ऎसी बाते हेरान नही करती

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  4. अमित जी,
    एकदम सही
    मैं भी यही कहता हूं कि ट्रेन बढाने से अच्छा है कि पुरानी ट्रेनों में डिब्बे ही बढा दिये जायें.
    एक्सप्रेस गाडियों में जनरल का डेढ डिब्बा तो आगे होता है और कभी कभी एक डिब्बा पीछे. बैठ लो जनरल वालों कहां बैठोगे? खडे भी नही हो पाओगे. रिजर्वेशन वाले मे जाओगे तो हलाल करने के लिये टीटी व आरपीएफ़ है.

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