20 November 2009

दीपक, धूप, अगरबत्ती, मोमबत्ती किसलिये

विश्व के लगभग सभी मत, पंथ, सम्प्रदायों में चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम, ईसाई हों या यहूदी, पारसी हों, बौद्ध या जैन, यहां तक कि पिछडे प्रदेशों में रहने वाली जंगली जातियों व कबीलों में भी, किसी न किसी रूप में यज्ञ की प्रथा आज भी विद्यमान है। देश, काल व परिस्थितियों के कारण विशुद्ध वैदिक यज्ञ के स्वरूप व क्रिया में भेद तथा विकृति उत्पन्न होती चली गयी। धार्मिक लोग, दीपक, मोमबत्ती, धूप, धूनी, अगरबत्ती आदि के रूप में इस परम्परा को बनाये हुये हैं।

"इन क्रिया कांडों का क्या प्रयोजन है" ऐसा प्रश्न किये जाने पर सभी के उत्तर में यही भाव निकलते हैं कि वे यह कार्य सुख, शान्ति, स्वास्थय, शक्ति, को प्राप्त करने तथा प्राकृतिक प्रकोपों, रोगों, भयों व अनिच्छित घटनाओं को रोकने के लिये करते हैं। यद्यपि वेदादि शास्त्रों में यज्ञानुष्ठान का विधान है, किन्तु धर्मग्रन्थों पर आस्था न रखने वाली आज की नई पीढी, जो केवल विज्ञान, तर्क, युक्ति तथा प्रत्यक्ष प्रमाणों पर ही विश्वास रखती है, को ध्यान में रखकर, कुछ तथ्यों व घटनाओं का संकलन किया गया है।

प्रभु कृपा से समस्त मनुष्य समाज, अपनी त्यागी हुई, विशुद्ध यज्ञ परम्परा को, पुन: अपनी दिनचर्या में अपनाये तथा प्रदुषण के दुष्प्रभाव से परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को बचाकर उसे सुखी, सम्पन्न बनाये।

अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)


मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

अगली चिट्ठी में पर्यावरण प्रदूषण (समस्या, कारण और निवारण)

2 comments:

  1. अगली चिट्ठी को देख लूं .. फिर टिप्‍पणी करना श्रेयस्‍कर रहेगा !!

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  2. आप की बात समझ मै आई, लेकिन हमे भी आप की अगली पोस्ट का इंतजार है

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