नदी, नहरें, तालाब, झीलें, कुएँ जो सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं, क्लोराइड्स, पेस्टिसाईड्स व अन्य अनेक प्रकार के जहरीले रसायनों से भयंकर प्रदूषित हो गये हैं। परिणाम स्वरूप इनका पानी उत्तम फसल उत्पन्न करने में असमर्थ है।
प्रदूषण के कारण ही प्रकृति का वर्षा चक्र (मानसून) अनिश्चित व असंतुलित हो गया है। साथ ही कहीं-कहीं पर तो वर्षा का पानी इतना अम्लयुक्त (Acidic) होता है कि अच्छी फसलें भी नष्ट हो जाती हैं।
जंगलों की अन्धाधुंध कटाई, नदी, नालों, तालाबों, खेतों में फेंकी जाने वाली गंदगी या कूडे-कचरे के कारण पौधों की कार्बन-डाई-आक्साइड को ग्रहण करने तथा पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन को छोडने की प्राकृतिक प्रक्रिया मन्द होती जा रही है। वैज्ञानिक कहते हैं कि बढते जा रहे वायु प्रदूषण पर यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो कुछ वर्षों बाद ऐसी स्थिति बन जायेगी कि मनुष्यों को अपने साथ प्राणवायु का थैला (Oxigen Gas Cylinder) बांधकर रखना होगा।
पीने के लिये खनिज जल (Mineral Water Bottle) तथा नाक को ढकने के लिये कपडे की पट्टी (Mask) का प्रचलन हो गया है।अगली कडी में पढेंगें फलों, शाकों और सब्जियों में जहर
अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
भाई आप की एक एक बात से सहमत हूं, मै भी एक लेख पीने के पाने के लिये इस से मिलता जुलता लिखने वाला था. धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख है बधाई
ReplyDeletesahi kahaa hai !!! kuchh dino baad to lagtaa nahi ki aadmi rah paayegaa agar isi tarah pradushan rahaa to?
ReplyDeleteबढ़िया आलेख!!
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