रक्षा कवच में छेद
पृथ्वी की सतह से ऊपर आकाश में विद्यमान वायुमण्डल में नाइट्रोजन। आक्सीजन, कार्बनडाइआक्साईड, ओजोन आदि गैसों के मिश्रण से बनी अनेक परतें होती हैं (ऐसा वर्णन वेदों में भी आया है)। इन गैसों में ठोस प्राणवायु (ओजोन) नामक गैस की मात्रा बहुत कम होती है। ओजोन की परत पृथ्वी तल से ऊपर 24 से 48 किलोमीतर के बीच पायी जाती है। यह परत सभी प्राणियों के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह ओजोन नाम गैस की परत सूर्य तथा ब्रह्माण्ड के अन्य नक्षत्रों से आने वाली शक्तिशाली व घातक पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट रे) को पृथ्वी पर आने से रोकती है। साथ ही पृथ्वी पर से अन्तरिक्ष की और जाने वाले ताप विकिरण (इन्फ्रारेड रेडियेशन) को वापस पृथ्वी पर भेजकर जीवों की रक्षा में सहायता करती है। अरबों वर्षों से यह वायु की परत प्राणियों की इस प्रकार दोहरी रक्षा कर रही है।
1985 में वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण में पाया कि अंटार्कटिका महाद्वीप अर्थात दक्षिणी ध्रुव के हिम प्रदेश के ऊपर लगभग 30 किलोमीटर पर वायुमण्डल में ओजोन की परत में एक बडा छेद हो गया है। वहां ओजोन की मात्रा में 20% की कमी हो गई है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर होने वाली कुछ रासायनिक क्रियाओं से पर्यावरण में फैलने वाले प्रदूषण के कारण ही इस ओजोन नामक परत में छिद्र हुआ है। 'क्लोरो फ्लोरो कार्बन' नामक रासायनिक तत्त्व का प्रयोग इस परत के छिद्र होने में बडा कारण है। रेफ्रिजरेटरों, वातानुकूल संयंत्रों, दुर्गन्धनाशक पदार्थों, प्रसाधनों, फास्ट फूड को ताजा रखने वाले साधनों, ग्रीन हाऊसों में इसका प्रयोग किया जाता है। ओजोन नामक परत में छिद्र होने के कारण लोग कैंसर, आंखों में ट्यूमर आदि भयंकर रोगों से ग्रस्त होने लगे हैं।
1985 में वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण में पाया कि अंटार्कटिका महाद्वीप अर्थात दक्षिणी ध्रुव के हिम प्रदेश के ऊपर लगभग 30 किलोमीटर पर वायुमण्डल में ओजोन की परत में एक बडा छेद हो गया है। वहां ओजोन की मात्रा में 20% की कमी हो गई है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर होने वाली कुछ रासायनिक क्रियाओं से पर्यावरण में फैलने वाले प्रदूषण के कारण ही इस ओजोन नामक परत में छिद्र हुआ है। 'क्लोरो फ्लोरो कार्बन' नामक रासायनिक तत्त्व का प्रयोग इस परत के छिद्र होने में बडा कारण है। रेफ्रिजरेटरों, वातानुकूल संयंत्रों, दुर्गन्धनाशक पदार्थों, प्रसाधनों, फास्ट फूड को ताजा रखने वाले साधनों, ग्रीन हाऊसों में इसका प्रयोग किया जाता है। ओजोन नामक परत में छिद्र होने के कारण लोग कैंसर, आंखों में ट्यूमर आदि भयंकर रोगों से ग्रस्त होने लगे हैं।
पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)3
मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
वायुमण्डल के बारे में जानकारी, विभिन्न परतों के कार्य और प्रभाव के बारे में पढ़ना बहुत रोचक है!
ReplyDeleteबहुत रोचक और बडिया जानकारी शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी दी आपने.
ReplyDeleteरामराम.
बिलकुल सही जानकारी दी आप ने, धन्यवाद
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