फत्तू चौधरी दारू घणी पिया करता। मां संतो अर बाब्बू रलदू चौधरी उसकी इस आदत तै घणे दुखी हो रह्ये थे। रोज फत्तू नै समझाते - "बेटा दारू मत पिया कर, दारू बहोत बुरी चीज सै।
पर फत्तू उनकी बात एक कान तै सुनता अर दूसरे कान तै निकाल देता।
एक सांझ जब फत्तू दारू पी कै आया तो संतो और रलदू फेर उसनै समझान लागगे और बुरा-भला कहन लागगे।
फत्तू बोला - बाब्बू तन्नै कदे दारू पी सै ?
रलदू - ना बेटा, मन्नै अपनी जिन्दगी म्है कदे दारू नहीं पी।
फत्तू - बाब्बू आज एक काम कर तू मेरे गेलां दो-दो पैग पी ले, फेर जै तू सवेरे कहवैगा तै मैं कदे भी दारू नही पीयूंगा।
रलदू - अरै छोरे के बकवास कर रह्या सै तू। तन्नै शरम भी नही आई या बात कहते।
फत्तू - बाब्बू मैं कसम खाऊं सूं । मैं कल के बाद कदे भी दारु कै हाथ नही लगाऊंगा, पर शर्त या सै के आज तन्नै मेरे साथ पीनी पडेगी।
संतो - फत्तू के बाब्बू , जब छोरा कसम खावै सै तो आज यो काम भी कर कै देख ले। कितने जतन तो हमनै कर लिये इसकी दारू छुडाने के लिए। आज तू पी लेगा तो कल से यो दारु जिन्दगी भर के लिये छोड देगा।
बेटे की भलाई के वास्ते संतो के कहने से रलदू नै फत्तू के साथ विडियो पै गाने सुनते-सुनते दो-तीन पैग चढा लिये ।
कुछ दारू का नशा और कुछ गाने का, ऊपर तै चालती सीली-सीली हवा रलदू का मूड हो गया रोमांटिक, रलदू अपने कमरे मै नाचता - नाचता और गाना गाता पहुंचा तो उसनै संतो भी सुथरी-सुथरी सी लाग्गी। रलदू नै अपनी जवानी के दिन याद आगये और उसकी लच्छेदार बातां से संतो भी खुश होगी ।
सवेरे उठते ही फत्तू बोला - "बाब्बू ठीक सै अगर तू कहवै तो आज से मैं कदे भी दारू नही पीयूंगा।"
रलदू बोलता उससे पहलां ही संतो बोली - "बेटे फत्तू , तू दारू छोड चाहे पी, तेरी मर्जी, पर तेरा बाब्बू आज के बाद रोज पिवैगा।"
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रलटू से ज्यादा नशा तो भाई संतो को आ गया, बहुत मजेदार जनाब
ReplyDeleteभाई आपत्ति आले तो खुद पिलाण लागरे सैं?:)
ReplyDeleteरामराम.
हा हा हा मस्त है बधाई
ReplyDeleteसही लिखा - बुरी आदतें संक्रामक होती हैं, संयम विरागी होता है!
ReplyDeleteबहुत बढिया सोहिल जी!...बधाई!
ReplyDeletemast...........mast bhai!!
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