यज्ञ का लघुत्तम स्वरूप "अग्निहोत्र" है जो एक वैदिक प्रक्रिया है। आजकल विश्व के कई देशों में बीमारियां दूर करने, प्रदूषण रोकने, एवं कृषि उत्पादन को बढाने के लिये "अग्निहोत्र" को गृह-चिकित्सा (HOME THERAPY) के रूप में अपनाया जा रहा है।
गाय के घी के साथ सामग्री की मन्त्रोच्चार के साथ जब आहुति दी जाती है तो निम्न प्रकार की चार गैसों का पता चलता है। (1) एथिलिन आक्साइड, (2) प्रापिलीन आक्साइड, (3) फार्मेल्डिहाइड, (4) बीटा प्रापियों लेक्टोन। आहुति देने के पश्चात गोघृत से एसिटिलीन निर्माण होता है। यह एसिटिलीन प्रखर ऊष्णता की ऊर्जा है। जो दूषित वायु को अपनी ओर खींचकर उसे शुद्ध करती है। गोघृत से उत्पन्न इन गैसों में कई रोगों को तथा मन के तनावों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है।
जल, वायु आदि को शुद्ध करने के लिये तथा सुरक्षा के लिये आजकल कृमिनाशक (Disin Feetants), कृमिहर (Antiseptic) तथा संरक्षक (Preservatives) पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। किन्तु ये पदार्थ सर्वत्र सब प्रकार के कृमियों का नाश करने में असमर्थ होते हैं, तथा जल, भूमि, खाद्यान्न के उपयोगी भाग को भी नष्ट करते हैं और इनका कुप्रभाव भी होता है।
प्रमाणिक रूप में बने यज्ञ कुण्ड में निर्धारित वृक्षों की लकडियां जलायी जायें तथा उचित मात्रा में घी तथा सामग्री डाली जाये तो अनेक प्रकार की लाभकारी गैसें, बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होती हैं। जो वायु के प्रदूषण को नष्ट करके वातावरण को सुगन्धित व स्वास्थयकारी बना देती हैं।
अगली कडी में क्या धूप अगरबत्ती आदि यज्ञ के विकल्प हैं?
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव
अगली कडी में क्या धूप अगरबत्ती आदि यज्ञ के विकल्प हैं?
अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)
मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव
अपमे कोई गलती लगे तो ही बतायें । बहुत अच्छी पोस्ट है बधाई
ReplyDeleteअच्छी श्रृंखला आरम्भ की है आपने!
ReplyDeleteसच तो यह है कि हमारे देश की आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्रियाएँ पूर्णतः विज्ञान पर ही आधारित थीं।