27 November 2010

मो सम इस्टाईल में फत्तू और वीडियो डालने की कोशिश

मैट्रो वालों ने महिलाओं से बिना मत या सर्वेक्षण कराये महिलाओं के लिये बोगी आरक्षित कर दी है। नये जमाने की लडकियां जो 2-3 घंटे ड्रेसेस को चुनाव करने और सजने संवरने में लगा कर कानों में मोबाईल के कान कव्वे (ईयरफोन) लगाये कॉलेज/ऑफिस जाती हैं, उनको केवल महिलायें ही देखें तो इससे उनके दिल पर क्या बीतती होगी, उन्होंने कभी नहीं सोचा। जो अपने नये-नये पति, ब्वॉयफ्रेंड या पुरूष दोस्त के साथ होती हैं, उन्हें तो महिला बोगी से जबरदस्त चिढ है। मैट्रो वालों को क्या पता कि ये विछोह के पाँच-दस मिनट कितने तकलीफदेह होते हैं। दिल ही नहीं है, इन मैट्रो वालों के सीने में। फिर आगे वाली बोगी तक जाने के लिये भी एक-दो ट्रेन छोड देनी पडती है। इस भागमभाग की जिन्दगी में इतना समय किसके पास है।

कुल जमा चार बोगी हैं मैट्रों ट्रेन में। एक सबसे आगे वाली महिलाओं के लिये आरक्षित कर दी।  उसमें जगह ज्यादातर खाली रहती है और बाकि तीन खचाखच।  
छोडो जी हमें क्या, हमें तो वैसे भी प्रवीण यान (ये शब्द श्री रामत्यागी जी से) में सफर या सफ़र करना होता है। मो सम स्टाईल में फत्तू को और वीडियो को डालने की कोशिश की है जी, बताईयेगा जरुर कि कौआ, हंस की चाल में कैसा दिखता है।

रेल में फत्तू का पैर एक लडकी के पैर पर रखा गया। 
लडकी - काट दिया, काट दिया
फत्तू - के काट दिया, क्यूं गला पाड री सै
लडकी - मेरा पैर काट दिया तुमने
फत्तू - क्यूं ताती (गर्म) हो री सै, इतनी भीड म्है पैर ना तै के प्लॉट कटैंगें

आप तो ॠचा शर्मा की खूबसूरत आवाज में ये खूबसूरत गजल सुनो जी

17 comments:

  1. Lagta hai aap ko bhi Metro main anand kam aane laga hai

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  2. आप अकेले ही जाते है काम पर फिर मेट्रो की टेंसन काहे ले रहे है| नीरज जी है ना सम्भालने के लिये | कल जूते चप्पल खूब चले वो हमने भी देखे है टीवी पर| गाना बहुत बढ़िया लगा |

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  3. बात तो सही कही है प्यारे, दिल है ही नहीं मैट्रो वालों के पास। लेकिन एक बात है, दिमाग जरूर है इसीलिये वो बोगी आगे लगाई है, ’लेडीज़ इस्पेसल’। शायद ’बिटवीन द लाईंस’ यही मतलब होगा इस बात का कि ’क्यूंकरै कर ल्यो हम जिसेयां ने रैणा पाछे ई सै इनके।
    फ़त्तू अपनी ओरिजिनल जगह पर और भी दमदार लगा।
    कौआ हंस वाली बात कहके क्यों भिगोकर मारते हो?
    गज़ल सुनने फ़िर आऊँगा, टिक्कड़ पाड़न का टैम सै।
    जय राम जी की।

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  4. मैट्रो वालों को क्या पता कि ये विछोह के पाँच-दस मिनट कितने तकलीफदेह होते हैं। दिल ही नहीं है, इन मैट्रो वालों के सीने में।
    sahi baat hai sir

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  5. "मो सम..."ईस्टाइल मे फ़त्तू और विडियो सही डला...और कौआ-हंस की चाल में सफ़ेद(हंस जैसा) दिखा...खूबसूरत आवाज में गज़ल सुनी भी और देखी भी...पर एक बात नी समझ आई-- "ये मेट्रो वाले"--बोले तो कौन ???

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  6. अच्छी नेटवर्किंग है आपकी! नारी ब्रिगेड ने हमला नहीं बोला!

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  7. अब संजय जी नहीं कह पायेंगें कि "मौ सम कौन" :)

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  8. दिल है ही नहीं मेट्रो वालों के पास ..
    ठीक कहा आपने..

    मनोज
    ----
    यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल - ४

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  9. @ वत्स साहब:
    पडौसी हो तो आप जैसा, कैसे खुश हो रहे हैं स्माईली लगाकर:)

    हमने तो जी पहले ही टाईटिल दुरस्त कर लिया था, कुटिल खल कामी हो गये हैं।

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  10. बताईये तो कितने कोमल मंसूबों पर पानी उड़ेल दिया। अब ज्ञानदत्त जी वाला खेलकूद हर किसी के बस की बात तो है नहीं।

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  11. आप एकदम सही कह रहे हैं।
    मेट्रो वालों के पास दिल नाम की चीज ही नहीं है।
    होता तो सफर करने वालों का दिल क्यों तोडते।

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  12. भाई, अभी मैने वो पिटाई वाली वीडियो देखी है। देखकर दिल दहल गया।
    मैं तो वैसे भी चौथे यानी लास्ट डिब्बे में सफर करता हूं लेकिन अब चौथा डिब्बा कभी नहीं छोडूंगा, तीसरे में भी नहीं चढूंगा।

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  13. raam raam ji,
    niraj jaat ji ne metro walo tak aapki baat pahuncha hi di hogi....

    kunwar ji,

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  14. पडोसी की नकल करने मे तो हम माहिर हैं। गज़ल बहुत अच्छी लगी। आशीर्वाद।

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