23 November 2010

अंधी आँखें गीले सपने

रोहतक ब्लॉगर मित्र स्नेह मिलन खुशी खुशी सम्पन्न हुआ। ये तो आपको पता ही है कि कौन-कौन इस मिलन में आया। सभी मेरे पसन्दीदा ब्लॉगर थे। बहुत से ब्लॉगर चाहकर किन्हीं कारणों से उपस्थित नहीं हो पाये। इस बात का ना आ पाने वालों और आने वालों सभी को खेद है। खैर वक्त के आगे किसकी चलती है। कब क्या हो जाये, कोई नहीं जानता।

"वक्त की हर शह गुलाम, वक्त का हर शह पे राज"

यह मिलन आयोजित करवाने के लिये मैं श्री राज भाटिया जी का, अपना अमूल्य समय निकाल कर आये सभी उपस्थित ब्लॉगर्स का और श्री यौगेन्द्र मौद्गिल जी का आभार व्यक्त करता हूँ। आप सबके साथ बैठकर मुझे खुद पर गर्व महसूस होने लगा है। श्री यौगेन्द्र मौद्गिल जी ने सभी उपस्थित ब्लॉगर्स को अपनी कुछ गजलों और गीतों के संग्रह से सजी अमूल्य पुस्तक "अंधी आँखें गीले सपनें" भेंट की है। मेरे लिये यह अमूल्य है, क्योंकि मैनें आज तक बहुत सारे उपहार पाये हैं। लेकिन एक कवि के हाथों, उनकी ही पुस्तक मय उनके सस्नेह ऑटोग्राफ सहित पहली बार पाया है। मुझे नहीं पता कि उन्हें किस प्रकार धन्यवाद दूं।


उनके इसी संग्रह से पंक्तियां
"हर यार हो दिलदार, जरूरी तो नहीं है,
मिलता ही रहे प्यार, जरूरी तो नहीं है।
हमको तो ऐब एक है बस प्यार का मियां,
वो भी तो करें प्यार, जरूरी तो नहीं है॥"

ब्लॉगर बनने के बाद मुझे जो आप सबसे प्यार मिल रहा है, उसने मुझमें भी प्यार का ऐब पाल दिया है। श्री राज भाटिया जी आपका कैसे शुक्रियादा करुं, आपसे मिले प्यार के लिये। भावुक हो रहा हूँ…………

जिन ब्लॉगर मित्रों को आने में कोई आकस्मिक कठिनाई या कार्य नहीं था, वो क्यों नहीं आये? क्या इसलिये कि राज भाटिया जी ने एन्टरी फीस (Entry Fees) रख दी थी। क्या छोटी सी मुस्कान भी आपके पास भरपूर नहीं है।   

12 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. वाह अमित !
    कविवर योगेन्द्र मौदगिल ने यह पुस्तक सभी को उपहार में दी थी ...मगर मुझे इसकी चर्चा का ध्यान नहीं रहा ! इसका वाकई खेद है ! अगर वे न होते तो यकीनन हम उतना हंस नहीं पाते ! उनके कारण यह मिलन यादगार रहेगा ! शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  3. वाह क्या कहने ... इतना प्यार पाने के लिए बधाई ...

    ReplyDelete
  4. आज पढ रही थी योगेन्द्र जी की ये पुस्तक। क्या गज़ब की शायरी है। उनका बहुत बहुत धन्यवाद।

    ReplyDelete
  5. वाकई अनमोल उपहार पाया है आपने, अमित।
    बधाई।

    ReplyDelete
  6. आनन्द आ गया था पुस्तक पाकर।

    ReplyDelete
  7. रोहतक का प्रकरण जोरदार रहा। आपसे प्रभावित होकर मेरी अगली पोस्ट सम्मेलनों पर ही है।

    ReplyDelete
  8. वो भी मुझ जैसा लगता है ,शीशे में उतरा लगता है ...
    ....इसको पानी देना री बहुओ, ये पीपल प्यासा लगता है |.....ये कुछ लाईने है उन्हीं की किताब की है| बहुत बढ़िया किताब उन्होंने भेट की थी | जिसके लिये उनके साथ साथ आप भी धन्यवाद के पात्र है|

    ReplyDelete
  9. वाह ये भी बढिया रहा और अभी यहाँ जितने शेर पढे हैं सभी बेहतरीन हैं।

    ReplyDelete
  10. वाकई भाई हमें तो बहुत ही मजबूरी थी, पर मलाल तो है ही कि एक साथ सबसे मिलने की तमन्ना अधूरी ही रह गयी, पर जीवन में ऐसा भी होता है. प्रणाम.

    रामराम.

    ReplyDelete
  11. ब्लोगर मिलन की हर बात बहुत ही निराली थी... अंतर सोहिल भाई मैंने भी योगेन्द्र मोदगिल जी की पुस्तक को उसी रात पूरा पढ़ कर ही छोड़ा था... बेहतरीन लेखनी है उनकी. यह पंक्तियाँ तो दिल को छू गई... वाह!

    "हर यार हो दिलदार, जरूरी तो नहीं है,
    मिलता ही रहे प्यार, जरूरी तो नहीं है।
    हमको तो ऐब एक है बस प्यार का मियां,
    वो भी तो करें प्यार, जरूरी तो नहीं है॥"

    ReplyDelete

मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।