18 वर्ष हो गये जी प्रतिदिन 4 घंटे की रेलयात्रा करनी ही पडती है। अब क्या-क्या करता हूँ, कैसे बताऊं। लेकिन कभी-कभी यूं लगता है जिन्दगी भी रेलगाडी की तरह दौडी जा रही है। किसी यात्री से मधुर सम्बन्ध हो जाते हैं, तो किसी से मनमुटाव। कोई बीच स्टेशन से चढता है तो कोई रास्ते में छोडकर उतर जाता है। कभी बैठने की जगह नहीं मिलती तो क्रोध या दुखी हो जाता हूँ। और कभी खाली सीटें होने पर भी खडे-खडे सफर करने में आनन्द आता है। कभी अचानक कोई सीट मिलने से खुशी होती है, तो कभी दूसरे की सीट हथियाने का लालच आता है। कभी ऐसा लगता है कि पूरी सीट पर अकेला ही कब्जा जमाये रहूं। देखता रहता हूँ जी खिडकी में बैठा-बैठा अपने और रेलगाडी दोनों के बाहर और भीतर के नजारे।
एक बै रेल म्है बैठे दो आदमी आपस मऐ बात करण लागरे थे।
पहला - आप कित तै आ रहये सो?
दूसरा - रोहतक सै
पहला - कमाल सै, मैं भी रोहतक सै आया सूं। कित जाओगे?
दूसरा - दिल्ली जाऊंगा
पहला - कमाल सै, मैं भी दिल्ली जाऊंगा। दिल्ली मैं कित जाओगे?
दूसरा - शालीमार बाग
पहला - कमाल सै, मैं भी शालीमार बाग जाऊंगा। कित ठहरोगे?
दूसरा - उडै मेरे रिश्तेदार का घर सै, उनके ब्याह म्है जाऊं सूं।
पहला - कमाल सै, मेरे रिश्तेदार का घर भी उडये सै, मैं भी उनकै शादी म्है जाऊं सूं। रोहतक म्है कित रहो सो?
दूसरा - सुभाष नगर म्है 150 नम्बर मेरा मकान सै
पहला - कमाल सै, मेरा मकान भी सुभाष नगर म्है 150 नम्बर सै
इनकी इतनी बातें सुनकर मैं बोल पडा भाई साहब जब आप एक ही मकान में रहते हैं, एक ही जगह पर शादी में जा रहे हैं। क्या आप एक दूसरे को नहीं जानते?
पहला - भाई मेरे, हम दोनों तो रेलगाडी म्है टाईम पास करण खातर बात करयां सां। मेरा नाम सै रलदू और यो मेरा बेटा सै फत्तू।
रलदू और फत्तू आपको पसन्द आयें हैं तो नीचे चटकाईये :
रोहतक मै बताना चाहिए था, तो उनसे भी भेट हो जाती |मजेदार चुटकुला था |
ReplyDeleteयात्राओं का दार्शनिक स्वरूप भी है और फत्तुआत्मक स्वरूप भी।
ReplyDeleteहा हा हा ..बहुत खूब.
ReplyDeleteचिंतन और चुटकुला दोनो अच्छे हैं। पठनीय पोस्ट।
ReplyDeleteअच्छा इब समझ आय कि आजकल यो बाप बेटे रोहतक तैं दिल्ली की ट्रेन म्ह ताईम पास करण लागरे सैं? भाई जरा इनको जल्दी घर भिजवा देना...ऊंटडी भाग गी सै.:) प्रणाम.
ReplyDeleteरामराम.
बाबू-बेटा न्यूऐ चाल्हे पाड़ेंगे:)
ReplyDeleteरलदू चौधरी ...... बढिया से, थम रेलगाडी म्है टाईम पास की बात करो, मैं बोलूं की जिंदगी कट जावे बातां में......
ReplyDeleteअंतर सोहिल भाई घणी राम राम .........
सोहिल जी, आपने अजय कुमार झा जी की एक फोटो खींची थी तिलयार में जिसमें एक बच्चा उनके साथ बैठा नजर आ रहा था, वह कौन है.. कृपया परिचय करायें..
ReplyDeleteवह यह भी खूब है ...
ReplyDeleteमज़ा आया
बाप बेटा ही थे क्या ?...मुझे नहीं लगता ...अगर थे तो पहचान क्योँ नहीं पा रहे थे ...हा ...हा .....हा.....शुक्रिया
ReplyDeleteला-जवाब" जबर्दस्त!!
ReplyDeleteहा हा हा वेरी नाईस । आशीर्वाद।
ReplyDeleteख़ूब कही...बहुत ख़ूब रही...मेरे भाई!
ReplyDeleteसही दुनिया तो आप ही देख रहे हैं
ReplyDeletearey antar sohil ji agali baar inhe jarur pakade yah mere kiraayedaar hi he, jo kiraayaa nahi de rahe..... bijali kaa bil bhi 10,000 kaa shesh he. hindi mai nahi likh paa rahaa abhi 10,12 din kathinaai hogi, aap sab ki post padhugaa to sahi lekin is firangi bhaashaa mai tippani kaa majaa nahi aa rahaa, jab meraa apanaa laptaap aa jaaye gaa to ek ek tippani das baar kar ke kasar puri kar dumgaa, sab ko raam raam
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