मैं हूं तन्हा तेरा आसरा चाहिये
तेरे दर से आगे ही है मयकदा
कहां जाऊं तेरा मशवरा चाहिये
कुछ तो खुदगर्ज और कुछ अनजान यार
किसको समझाऊं किसका पता चाहिये
मुझको ये मेला अब रास आता नहीं
मुझको जाना है बस रास्ता चाहिये
ये वक्त कमबख्त बात सुनता ही नहीं
और कितना इसे हौंसला चाहिये
किसी का घर जले कोई बरबाद हो
बस तवारिख को दास्तां चाहिये
इक आंधी सी आई और कह गयी
दोस्ती में भी कुछ फासला चाहिये
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