वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी होते हैं
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं
दीवानों की दुनिया का आलम ही निराला है
हंसते हैं तो हंसते हैं रोते हैं तो रोते हैं
किस बात का रोना है किस बात पे रोते हैं
किश्ती के मुहाफिज ही किश्ती को डुबोते हैं
कुछ ऐसे दीवाने हैं सूरज को पकडते हैं
कुछ लोग उम्र सारी अंधेरा ही ढोते हैं
No comments:
Post a Comment
मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।