बहुत खूबसुरत मगर भोली सी
मुझे अपने सपनों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्काती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसा कर
सिरहाने से तकिया गिराती तो होगी
वो बेसाख्ता धीमे-धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी
चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कंपाती तो होगी
कलम हाथ से छुट जाता तो होगा
उमंग में कलम फिर उठाती तो होगा
लिखकर नाम हथेली पर मेरा
बार-बार मिटाती तो होगी
जुबां से कभी उफ निकलती होगी
बदन धीमे-धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पांव पडते तो होंगें
जमीं पर दुपट्टा लटकता तो होगा
किताबों में देखकर चेहरा मेरा
किताबों को चूमा करती तो होगी
कभी सुबहा को शाम कहती होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
कभी दांतों से उंगली काटती होगी
कभी होंठों से चुनरी दबाती तो होगी
कहीं एक मासूम, नाजुक सी लडकी
बहुत खूबसुरत मगर भोली सी
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