23 September 2008

आग नही धुआं नही सुलग रहा हूं मैं
न जाने किस तलाश में भटक रहा हूं मैं
अपना वजूद मुझको बडा अजनबी लगे
बरसों अपने आप से अलग रहा हूं मैं
सोता है ये जहां कितनी मीठी नींद
किसी बेवफा की याद में जग रहा हूं मैं
सांस है धडकन भी है पर जिन्दगी नहीं
जिंदा हूं पर लाश जैसा लग रहा हूं मैं

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