22 September 2008

बारिश की गिरती बूंदें दिल को जला रही हैं
मेरे लबों की आहें तुझको बुला रही हैं
क्यों लब तेरे हैं सिले क्यों आंख तेरी है नम
गुजरे पलों की बातें तुझे याद आ रही है
दे-दे कर वास्ता कुछ कदमों के निशानों का
जिन पर चले थे राहें वो तुझको बुला रही हैं
सांसों मे जो है बहती ख्वाबों में जो है रहती
यादें वही तुम्हारी मुझको सता रही हैं
चेहरे की मुस्कुराहट कितना इसे छुपा ले
तेरी ये सुर्ख आंखें सच्चाई बता रही है

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