18 September 2008

हम दम से गये हमदम के लिये
हमदम की कसम हमदम न मिला
एक खंजर-ए-इश्क लगा दिल में
मर हम भी गये मरहम न मिला

2 comments:

  1. हम दम से गये...... जानना चाहूँगा कि ये पंक्तियाँ आप की रचना हैं या आप किसी को उद्धृत कर रहे हैं?

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  2. @ mohanramneek जी नमस्कार
    ये मेरी पंक्तियां हर्गिज नहीं हैं, स्कूल के दिनों में कोई भी रचना, कविता कहीं पढने पर, सुनने पर मैं अपनी डायरी में नोट कर लेता था। उसी डायरी के संकलन में से कई शेर-शायरी और रचनायें यहां लिख डाली हैं।
    अगर आप इन पंक्तियों के रचियता का नाम जानते हैं तो कृप्या मुझे भी बतायें।
    आभार होगा

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मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।