23 September 2008

न तो जन्नत न मुझको खुदा चाहिये
मैं हूं तन्हा तेरा आसरा चाहिये
तेरे दर से आगे ही है मयकदा
कहां जाऊं तेरा मशवरा चाहिये
कुछ तो खुदगर्ज और कुछ अनजान यार
किसको समझाऊं किसका पता चाहिये
मुझको ये मेला अब रास आता नहीं
मुझको जाना है बस रास्ता चाहिये
ये वक्त कमबख्त बात सुनता ही नहीं
और कितना इसे हौंसला चाहिये
किसी का घर जले कोई बरबाद हो
बस तवारिख को दास्तां चाहिये
इक आंधी सी आई और कह गयी
दोस्ती में भी कुछ फासला चाहिये
जिंदगी एक हादसा है आजकल
सांस लेना भी सजा है आजकल
जिनकी खातिर सबको बेगाना किया
उनको ही हम से गिला है आजकल
नाज था जिसकी वफाओं पर मुझे
जाने क्यों वो बेवफा हैं आजकल
आदमी तो अब कहीं मिलता नहीं
जिसको देखो वो खुदा है आजकल
हाथ खुलकर तो मिलाते हैं सभी
दिलों में लेकिन फासला है आजकल
बुरे वक्त पे काम आयेंगें  ये दोस्त
दिल में ये मुगालता ना रखना
दर्द न दिल में पालो यारों
अपने जज्बों को संभालो यारों
गीत कोई भी रचने से पहले
चोट दिल पर खालो यारों
चांद छूने की हसरत न हो पूरी
उसे आंखों मे बसा लो यारों
इससे पहले की कोई रुठे अलविदा कहे
उसे दिल में बसा लो यारों
ख्वाब और हकीकत में दूरी ही सही
कम से कम जीने की आदत तो डालो यारों
आग नही धुआं नही सुलग रहा हूं मैं
न जाने किस तलाश में भटक रहा हूं मैं
अपना वजूद मुझको बडा अजनबी लगे
बरसों अपने आप से अलग रहा हूं मैं
सोता है ये जहां कितनी मीठी नींद
किसी बेवफा की याद में जग रहा हूं मैं
सांस है धडकन भी है पर जिन्दगी नहीं
जिंदा हूं पर लाश जैसा लग रहा हूं मैं
क्यूं दिल में मेरे बसते हो जब दिल ही मेरा तोड दिया
क्यूं याद आते हो इतना जब साथ तुम्हारा छोड दिया
राम करे ऐसा हो जाये
तू मिल जाये चाहे सब खो जाये
मसनूईं नजारों को बहुत देख लिया
बेरंग बहारों को बहुत देख लिया
ये वक्त पे देते हैं फरेब ताजा
इन वक्त के यारों को बहुत देख लिया
ये जीना ये मरना ये रोना ये हंसना
मेरा बस चले तो ये झगडा मिटा दूं

दर-ए-इश्क पे हुस्न का सर झुका दूं
कहो आज ये भी तमाशा दिखा दूं
दिल में बसाया तुझको सपनों में सजाया तुझको
देखे लाखों हसीं मगर तू ही है भाया मुझको
तेरे ख्यालों में खोई जिन्दगी मेरा ख्याल भी ना आया तुझको
शायद मेरे लिये ही कोई आसमां से लाया तुझको
पाता हूं तुझे अपना तसव्वुर में पर कभी ना पाया तुझको
जमाने को बताता हूं अपना तुझे क्या किसी ने ना बताया तुझको
तुझे देखने की हसरत इतनी कि ढूंढे मेरा साया तुझको
तुझे भुलाने गया मयखाने पर सागर ने भी दिखाया तुझको
शायरी में लिखा तुझको गीतों में गाया तुझको
दिल में बसाया तुझको सपनों में सजाया तुझको
बाहर से मुझे नफरत थी पर दिल में मेरे बसता था
वो पागल सा इक लडका जो देख के मु्झको हंसता था

क्यूं ठुकराया मांग को उसकी सोच के अब पछताती हूं
दिल के बदले दिल मांगा था सौदा कितना सस्ता था

किससे पूंछू कैसे पूछूं क्यूं नही देता अब वो दिखाई
रोज गुजरता था वो इधर से उसका ये ही रस्ता था

तुमने छोडा मुझको मैनें शहर तुम्हारा छोड दिया
घूरती थी हर शख्स की नजरें हर कोई मुझ पर हंसता था

दर्द छुपा कर जीना उसकी पुरानी आदत थी
भीतर-भीतर रोता था वो बाहर-बाहर हंसता था

22 September 2008

क्या बात है जो इतना मुस्कुरा रहे हो
कोई तो गम है जो हमसे छुपा रहे हो
अब मेरी जिन्दगी की दुआ मांगते हैं लोग
जब मैनें जिन्दगी को नजर से गिरा दिया
दो घडी हंसने का कुसूर किया था मैने
वो नादान समझ बैठा मुझे उससे प्यार है
वो जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई
अब सोचा है पत्थर के सनम पूजूंगा
ताकि घबराऊं तो टकरा भी सकूं मर भी सकूं
बारिश की गिरती बूंदें दिल को जला रही हैं
मेरे लबों की आहें तुझको बुला रही हैं
क्यों लब तेरे हैं सिले क्यों आंख तेरी है नम
गुजरे पलों की बातें तुझे याद आ रही है
दे-दे कर वास्ता कुछ कदमों के निशानों का
जिन पर चले थे राहें वो तुझको बुला रही हैं
सांसों मे जो है बहती ख्वाबों में जो है रहती
यादें वही तुम्हारी मुझको सता रही हैं
चेहरे की मुस्कुराहट कितना इसे छुपा ले
तेरी ये सुर्ख आंखें सच्चाई बता रही है
गुजरे हैं  इश्क में हम उस मुकाम से
नफरत सी हो गई है मुहब्बत के नाम से 
किसी का दिल न तोडो भूल कर भी जहां वालों
बडी मुश्किल से कोई दिल यहां तैयार होता है

18 September 2008

हम दम से गये हमदम के लिये
हमदम की कसम हमदम न मिला
एक खंजर-ए-इश्क लगा दिल में
मर हम भी गये मरहम न मिला
हम चुपचाप किये जाएंगें तुम्हारी पूजा
कोई परिणाम दे ना दे हमारी पूजा
हम उनसे मुहब्बत करके दिन-रात सनम रोते हैं
वो हैं कि आराम से अपने घर में सोते हैं
उसने छुडा दी अपनी कसम दे कर
दोस्तों ने पिला दी उसकी कसम दे कर
मोहब्बत इस तरह मालूम हो जाती है दुनिया को
कि मालूम होता है नही मालूम होती है
मुहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
वो आते हैं दिल में कसक मालूम होती है
मैं डरता हूं कहीं इसको मुहब्बत तो नही कहते
छोड दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नही आदमी के लिए
प्यार से भी जरुरी कई काम हैं
प्यार सबकुछ नही जिन्दगी के लिए
चांद मिलता नही सबको संसार में
दीया भी बहुत रोशनी के लिए
रातों को उठ-उठ कर जिनके लिए रोते हैं
वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं

कुछ लोग जमाने में ऐसे भी होते हैं
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं

दीवानों की दुनिया का आलम ही निराला है
हंसते हैं तो हंसते हैं रोते हैं तो रोते हैं

किस बात का रोना है किस बात पे रोते हैं
किश्ती के मुहाफिज ही किश्ती को डुबोते हैं

कुछ ऐसे दीवाने हैं सूरज को पकडते हैं
कुछ लोग उम्र सारी अंधेरा ही ढोते हैं
तुझको खबर नही मगर किसी को
बरबाद कर दिया तेरी उस नजर ने
वो दिन गये आज कि हंसते थे रात-दिन
मिलता है दिल को चैन अब आंसू बहाने में
आती है अक्सर याद रोते हैं बेबसी में
एक बेवफा को चाहा था जिन्दगी में
न अपनी खुशी है न अपनी हंसी है
इश्क के मारो कि यही जिन्दगी है
ये ठीक है कि मरता नही कोई जुदाई से
मगर खुदा किसी को किसी से जुदा न करे

17 September 2008

कौन कहता है कि तुमको भुला रखा है
तेरी यादों को सीने से लगा रखा है
सुना है हर चीज मिल जाती है दुआ से
एक रोज तुम्हें मांग कर देखेंगें खुदा से
सौ बार तेरा दामन हाथों में मेरे आया
जब आंख खुली तो देखा अपना ही गिरेबां था
रहा गर्दिशों में हरदम मेरे इश्क का सितारा
कभी डगमगाई किश्ती मेरी कभी खो गया किनारा
ये हमारी बदनसीबी नही तो ओर क्या है
कि उसी के हो गये हम जो ना हो सका हमारा 
इश्क में कुछ इस तरह बरबाद हुये हम
कि गया कुछ भी नही रहा कुछ भी नही
जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
उस दिल का कभी का तोड दिया
बदनाम ना होने देंगें तुझे
तेरा नाम ही लेना छोड दिया
जिन्दगी बोझ बनी है जिन्दगी के लिए
तरीका अच्छा है प्यार का खुदकुशी के लिए
सादगी खुद कयामत होती है
यूं न बार-बार संवरा करो तुम
दिल-ए-नादां पर आलम कुछ अजीब से गुजरे
वो अजनबी की तरह जब करीब से गुजरे
तेरे आने की क्या उम्मीद मगर
कैसे कहूं कि इंतजार नही है
रस्में-दुनिया ही न तोड पाया मैं
वादा किया था मैनें कि सितारें तोड लाऊगां
जाने वो कैसे लोग थे जिनको प्यार के बदले प्यार मिला
हमने जब कलियां लुटाई तो कांटों का हार मिला
बैठा हूं चुपचाप मैं, महफिल से जरा हट के
तारीफ करुं जिनसे उनकी, वो अल्फाज नही मिलते
माना कि इस जमीं को न गुलजार कर सके हम
कुछ कांटें तो कम कर ही गये, गुजरे जिधर से हम
अपनी किस्मत है ही कुछ ऐसी, रास्ते के पत्थर जैसी
कि जो भी आया, ठोकर लगाकर चला गया
एक तो जीतना मुश्किल है दिल की बाजी का
और कुछ जीतने की उम्मीद में हारते चले गये
जैसा नजर आता हूं न ऐसा हूं मैं
और जैसा समझते हो आप न वैसा हूं मैं
अपने से भी छुपाता हूं ऐब अपने
बस मुझको मालूम है कैसा हूं मैं
जब से तुम्हें देखा है ना जाने क्यों
दुनिया हसीं मालूम पडती है मेरी आंखों को
कह दो इन हसरतों से कहीं ओर जा बसें
इतनी जगहा नही है दिल-ए-आज में
तुमने किया न याद भूल कर हमें
हमने तुम्हारी याद में सबकुछ भुला दिया 
निगाहें झुकते-झुकते भी टकरा ही गई
मुहब्बत छुपाते-छुपाते नुमायां हो ही गई
ले-दे कर अपने पास इक नजर ही तो है
क्यों देखें जिन्दगी को किसी की नजर से हम

15 September 2008

तेरे दीदार ने जीना सिखा दिया
तेरे इंकार ने पीना सिखा दिया
जाने किस गम का बोझ उठाये जाते हैं
इक तडप में भी मु्स्कराये जाते हैं
मिल सके न वो हमको, न हम उनके हो सके
मगर दीवानगी उनकी तब से ही पाले हैं
शिकवा कर लेते थे पहले तुमसे हर गम का
अब तो मुंह पर भी वक्त ने लगाये ताले हैं
कहीं एक मासूम, नाजुक सी लडकी
बहुत खूबसुरत मगर भोली सी

मुझे अपने सपनों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्काती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसा कर
सिरहाने से तकिया गिराती तो होगी

वो बेसाख्ता धीमे-धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी

चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कंपाती तो होगी
कलम हाथ से छुट जाता तो होगा
उमंग में कलम फिर उठाती तो होगा

लिखकर नाम हथेली पर मेरा
बार-बार मिटाती तो होगी

जुबां से कभी उफ निकलती होगी
बदन धीमे-धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पांव पडते तो होंगें
जमीं पर दुपट्टा लटकता तो होगा

किताबों में देखकर चेहरा मेरा
किताबों को चूमा करती तो होगी

कभी सुबहा को शाम कहती होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
कभी दांतों से उंगली काटती होगी
कभी होंठों से चुनरी दबाती तो होगी

कहीं एक मासूम, नाजुक सी लडकी
बहुत खूबसुरत मगर भोली सी
इधर मेरा रोना, उधर तेरा हंसना
इधर मेरा मिटना, उधर तेरा बसना
मेरे दिन अंधेरे तेरे दिन उजाले
दुआ कर रहें हैं दुआ करने वाले
मेरी मुहब्बत को ठुकरा दे चाहे
मैं तुझसे न कोई शिकवा करुगां
आंखों में रहती है तस्वीर तेरी
सारी उम्र तेरी पूजा करुगां
ढुलक गये चंद अश्क
जब आज भी तुम नही आये
संभाल लिया किसी तरह दिल को
पर नैनों को नहीं रोक पाये
तेरे इश्क ने बख्श दिये दिल को गम इतने
कि दिल का कोई कोना नही खाली अब खुशी के लिये
कोई भी अरमान तेरे दीदार से बढ कर नहीं
सनम हमारे प्राण तुम्हारे प्यार से बढ कर नहीं
दिल खोल कर रखा हमने जो किसी के आगे
दिल की लगी से वो दिल्लगी करने लगे
जिसे खुद पे हंसना हुजूर आ गया
उसे जिन्दगी का शऊर आ गया
रखा है किसी की आस रहने में क्या
रखा है किसी के पास रहने में क्या
आदत सी पड गई है वरना
रखा है उदास रहने में क्या
कुछ अपना पता उसने बताया नही
अब तक उसका सुराग पाया नही
दिल खटका है मेरा इक आहट से
देखो देखो कहीं वो आया तो नहीं
जख्म तुम्हारी याद के जब भरने लगे
किसी बहाने हम तुम्हें याद करने लगे
जादू-वादू होता है क्या
हमको तब मालूम पडा
मुस्काती नजर से तुम्हारी
जब दिल पराया हो गया
सावन में मरुस्थल भी चहक जाते हैं
कांटें भी बहारों में महक जाते हैं
हुस्न-ए-जवानी पर न करो इतना गुरुर
इस उम्र में तो सभी बहक जाते हैं
इश्क पर जोर नही किसी का ये वो आग है
कि लगाये न लगे बुझाये न बुझे
सी लिये होंठ की अंदेशा-ए-रुसवाई था
फिर भी हर सांस में छिप-छिप कर तेरा नाम आया
इस इश्क में हमने क्या खोया क्या पाया
तेरे सिवा और को समझाऊं तो समझा न सकूं
उन्हें ख्याल भी नही आया हमारा
जिन्दगी जिनके ख्यालों मे लुटा दी हमने
मुद्दत के इंतजार ने बेजार किया इतना
कि कयामत आई तो पूछा ये कोई वक्त है आने का
मुझको अच्छा नही लगता कोई हमनाम तेरा
कोई तुझसा हो तो नाम तुझ सा रखे
बहुत बुलंद फिजां में तेरी पतंग सही
मगर यह समझ डोर किसके हाथ में है
सोया, लगा सब अपना है
जागा, लगा सब सपना है
जिनको हर हाल में जीने की अदा आती है
मौत भी उनके करीब आने से घबराती है

11 September 2008

लिखकर नाम जमीं पर हमारा मिटा दिया
उनका तो खेल ठहरा खाक में हमें मिला दिया
देखें कैसे नही बनते तुम्हारे गले का हार

हम फूल बनके आयेंगें अब के बहार में
ना करीब आये करीब आकर भी
ना करीब मुझको बुलाया
फिर किसलिए आसपास रहते हो
फिर किसलिए आसपास आते हो
जिन्दगी के उदास कागज पर
दिल का पैगाम लिखने वाला था
रोशनाई बिखर गयी वरना
मैं तेरा नाम लिखने वाला था
न बात कर कोई, कोई बात नही है
न गिला कर कोई, कोई बात नही है
न मुस्करा सके तो कोई बात नही है
इक नजर तो देख दिल की तसल्ली के लिए
मुस्कुराये वो जो देखकर मेरी तरफ
यारों के दिल खाक हुए जाते हैं
मोहब्बत यही है शायद कि
सीने में है इक आग सी लगी हुई
मोहब्बत इस तरह मालूम होती है दुनिया को
कि मालूम होता है नही मालूम होती है
मोहब्बत में नही फर्क जीने-मरने का
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
वो आते हैं दिल में कसक मालूम होती है
मैं डरता हूं कहीं इसी को मोहब्बत तो नही कहते

प्यार की दुश्मन दुनिया ये दस्तूर पुराना है

प्यार का इस दुनिया में फिर भी आना जाना है

नजरें हैं रस्ते पे दिल में यही आस है

अभी दिखेगी यहीं दिखेगी जिस झलक की प्यास है

निगाहें उलझना अजब हादसा है

मेरे होश गुम हैं वो शरमा रहा है

इक यही अदा रुलायेगी हमको ताउम्र

जाते जाते न प्यार से यूं मुस्कुराइये

10 September 2008

कल तेरे जलवे पराये भी होंगें
लेकिन झलक मेरे ख्वाबों में होगी
फूलों की डोली में होगी तू रुख्सत
लेकिन महक मेरी सांसों में होगी

मत नजरें मिलाया कीजिये

धूप तीखी है जरा इस तरफ जुल्फों का साया कीजिये
इस तरफ आप गाहे-बगाहे आ जाया कीजिये
बढ गयी रफ्तार धडकन की किसी के नाम से
इस तरह मत जिस्म में तूफां उठाया कीजिये
आपको बदनाम कर देगा जमाना बेवजह
यूं अदा से हर घडी मत मुस्काया कीजिये
क्या पता कब हम कर बैठें खुदकुशी
आप हमसे रोज मत नजरें मिलाया कीजिये

आस का दीया

बुझाना ही था इक दिन तो आस का दीया जलाया क्यों था
गिराना ही था इक दिन तो पलकों पे अपनी बिठाया क्यों था
आषाढ में मुझे झुलसाना था तो सावन का अहसास कराया क्यों था
कांटों की चुभन ही देनी थी तो फूलों की सेज पर सुलाया क्यों था
बुझाना ही था इक दिन तो आस का दीया जलाया क्यों था

06 September 2008

उनको देखने से आ जाती है जो चेहरे पे रौनक

वो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है

आंखें मूंद के बैठे हों तसव्वुर में किसी के
ऐसे में वही छम से आ जाए तो क्या हो

मुस्करा कर फिर बिजली गिरा दी आपने

होश में आये थे बडी मुश्किल से हम

रोशनी हो गर खुदा को मंजूर

आंधियों में चिराग जलते हैं

वो कांटा है जो चुभ कर टूट जाए

मुहब्बत की बस इतनी दास्तां है

जुबां खामोश रहती है नजर से काम होता है

इसी माहौल का शायद मुहब्बत नाम होता है

कैसे कहें मुलाकात नही होती

हम मिलते हैं रोज पर बात नही होती

अगर प्यारी सूरत तुम्हारी न होती

मुलाकात तुमसे हमारी न होती

जरा ख्वाब में तुम्हें हम देख लेते

तो इस कदर बेकरारी न होती

वो कदम टूट गए जो तेरी महफिल की तरफ

सोते-सोते भी मचल जाते थे चलने के लिए

न तेरे ख्वाब ही देखूं न तुझको याद करुं

जरा तो सोच की मेरी हैं मुश्किलें कैसी

कितने परवाने जले हैं राज ये पाने के लिए
शमां जलने के लिए है या जलाने के लिए

बेकरारी में दिन करवटों में रात जाती है

तू क्या जाने तेरी कितनी याद आती है

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

वो कत्ल भी करदें तो चर्चा नही होती

जिन्हें जलने की हसरत है

वो परवाने कहां जाये

हमने किए थे इरादे न छोडेगें घर कभी

इस पेट की आग ने भटका दिया हमें

किसी की जिन्दगी अंधेरे में डूब जाए तो क्या
वो चाहते हैं सूरज उन्हीं के घर में रहे

05 September 2008

गम का फ़साना किसे सुनाएं
टूटा हुआ दिल कैसे दिखाएं
तेरा भला हो तडपाने वाले
दिल दे रहा है तुझको दुआएं
हंसती है किस्मत कहती है दुनिया
दो दिल मिलने न पाएं
खुशबू सी आ रही है इधर से जाफ़रान की
खिडकी खुली है आज फिर शायद उसके मकान की
मौसमों की आंधियों ने गुल किये कितने चिराग
तेरी यादों का दीया दिल में मगर जलता रहा
चेहरा है या फूल खिला है जुल्फ घनेरी शाम है क्या
सागर जैसी आंखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या
कभी हंसते हैं कभी रोते हैं
प्यार करने वाले तो दीवाने होते हैं
झील अच्छा है कंवल अच्छा है जाम अच्छा है
बता तेरी आंखों के लिए कौन सा नाम अच्छा है
मैं गज़ल हूं गुनगुनाईये मैं हसीन पल हूं पास आईये
वक्त यहीं ठहर गया है मुझसे आकर नजरें मिलाईये

04 September 2008

मैं छोड रहा हूं तेरी दुनिया सूरत तो जरा दिखा जाना
दो आंसू लेके आंखों में लाश पे मेरी आ जाना
सितारा मेरी किस्मत का कुछ इस अंदाज से टूटा
कि सातों आसमां सहमे हुए मालूम होते हैं
मैं हूं मशीनी दौर का मशरुफ आदमी
खुद से भी बात करने की फुर्सत नही मुझे
उड के जाता भी नही हाथ आता भी नही
आस का पंछी है ऊंची शाख पर बैठा हुआ
मैने तो राह निकाली थी अलग चलने की
जिन्दगी भीड में ले आई कुचलने के लिए
हम भी प्यासे हैं ये साकी को बता भी न सके
सामने जाम था और जाम उठा भी न सके
मुझसे इस बेरुखी की वजह तो बता
जो हुई मुझसे वो खता तो बता
चाँद पाने की तमन्ना नही
चिराग काफी है मेरे लिए
साथ के उनके काबिल कहां
इक झलक मिल जाए सुकून के लिए

03 September 2008

ओ मेरे साथिया चल कहीं और चल
मैं तेरा भंवरा बनू तू मेरा नीलकमल
क्या है भरोसा आशिक दिल का
कब किसी पे ये आ जाये
ये अदा बेमिसाल है, ये अंदाज लाजवाब है
चेहरा भी कमाल है, क्या तेरा कोई जवाब है
प्यार से देखो मुझे तकदीर संवार लो
मैं एक तस्वीर हूँ दिल में उतार लो
तुझे देखकर न जाने क्या हो गया
धडकनें रह गई दिल जुदा हो गया
वक्त खुश खुश काटने का मशवरा देते हुए
रो पडा वह खुद मुझको हौसला देते हुए
छुपा के रखिये प्रेमपत्र सा यह बदन
हर एक आंख कनखियों से पढ रही है इसे

01 September 2008

अन्तर सोहिल का जन्म





दिनांक 02-04-2007 को हस्तिनापुर में ओशो ध्यान साधना शिविर में स्वामी आनंद स्वभाव से सन्यांस लिया। यानि 02-04-2007 को अन्तर सोहिल का जन्म हुआ। जन्मोत्सव की तस्वीरें….॥….।॥….।॥…।