19 May 2010

गुरु को मारी लात

नौकर-चाकरों को कोई गौर से देखता है भला। नौकर चाकरों को आदमी भी मानता है? तुम अपने कमरे में बैठे हो, अख़बार पढ रहे हो, नौकर आकर गुजर जाता है, तुम ध्‍यान भी देते हो? नौकर से तुमने कभी नमस्‍कार भी की है? नौकर की गिनती तुम आदमी में थोड़ी  करते हो। नौकर से कभी तुमने कहा है आओ बैठो, कि दो क्षण बातें करें।
 
यह घटना बड़ी अनूठी है। गुरू और शिष्‍य का जन्‍म एक साथ हुआ।  इधर गुरु का आविर्भाव हुआ, उधर शिष्‍य के जीवन में क्रांति हो गयी।  वह जो लात मारी थी, जीवन भर पश्‍चाताप किया, जीवन भर पैर दबाते रहे। आगे पढें

12 comments:

  1. घणी सुधरी बात कही .राम राम

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  2. आप की पोस्ट पुरी पढ कर आया हुं बहुत अच्छी लगी, वहां टिपण्णी करने मै बहुत कुछ भरना पडता है, आप वहां भी ऎसी ही टिपण्णी बक्स बना ले.
    धन्यवाद

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  3. @ आदरणीय राज भाटिया जी
    वो ब्लाग मेरा नही है, किन्हीं ओशो प्रेमी का है। मैं उनकी पोस्टें नियमित रूप से पढता हूं जी

    प्रणाम

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  4. very very good sir ji

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  5. guru ko laat marana achchi baat nahi hai

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  6. अबसे वैरी गुड बंद... खासकर अपनों के पोस्ट पर तो बिलकुल भी नहीं.... सुबह का कमेन्ट वापस लेता हूँ..

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  7. बुल्ले शाह के बारे में और जानने की जिज्ञासा हुई है।

    अपनों की पोस्ट है, इस लिये वैरी-गुड!

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