यह घटना बड़ी अनूठी है। गुरू और शिष्य का जन्म एक साथ हुआ। इधर गुरु का आविर्भाव हुआ, उधर शिष्य के जीवन में क्रांति हो गयी। वह जो लात मारी थी, जीवन भर पश्चाताप किया, जीवन भर पैर दबाते रहे। आगे पढें
19 May 2010
गुरु को मारी लात
नौकर-चाकरों को कोई गौर से देखता है भला। नौकर चाकरों को आदमी भी मानता है? तुम अपने कमरे में बैठे हो, अख़बार पढ रहे हो, नौकर आकर गुजर जाता है, तुम ध्यान भी देते हो? नौकर से तुमने कभी नमस्कार भी की है? नौकर की गिनती तुम आदमी में थोड़ी करते हो। नौकर से कभी तुमने कहा है आओ बैठो, कि दो क्षण बातें करें।
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Very Good...
ReplyDeletevery good
ReplyDeleteVery-very good
ReplyDeletenice
ReplyDeleteघणी सुधरी बात कही .राम राम
ReplyDeleteआप की पोस्ट पुरी पढ कर आया हुं बहुत अच्छी लगी, वहां टिपण्णी करने मै बहुत कुछ भरना पडता है, आप वहां भी ऎसी ही टिपण्णी बक्स बना ले.
ReplyDeleteधन्यवाद
@ आदरणीय राज भाटिया जी
ReplyDeleteवो ब्लाग मेरा नही है, किन्हीं ओशो प्रेमी का है। मैं उनकी पोस्टें नियमित रूप से पढता हूं जी
प्रणाम
very very good sir ji
ReplyDeleteguru ko laat marana achchi baat nahi hai
ReplyDeleteवेरी गुड कहेंगे जी
ReplyDeleteअबसे वैरी गुड बंद... खासकर अपनों के पोस्ट पर तो बिलकुल भी नहीं.... सुबह का कमेन्ट वापस लेता हूँ..
ReplyDeleteबुल्ले शाह के बारे में और जानने की जिज्ञासा हुई है।
ReplyDeleteअपनों की पोस्ट है, इस लिये वैरी-गुड!
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