जब सब लोग टी आर पी बढाने में लगे हैं तो क्यों ना मैं भी बहती गंगा में हाथ धो लूं। थोडा सा घी तेल मैं भी डाल दूं इस बुझती आग में। अब तो मैं भी सीख चुका हूं अधिक से अधिक टिप्पणियां कैसे पाई जा सकती हैं। ब्लागिंग कैसे की जाती है। अब कौन मेहनत करे। सबसे बढिया तरीका तो शीर्षक में किसी का नाम लेकर छापों। कुछ मत लिखो, फिर भी पोस्ट हिट और मैं भी हिट।
एक बात तो है कि किसी को गुरू बना लेना कितना आसान है। आपने तो पूरी जांच-पडताल करके, गुरू लायक पात्रता, योग्यता देखकर, किसी को गुरू मान लिया। मगर कभी ये सोचा है क्या आपमें उस शख्सियत का शिष्य बनने की योग्यता, पात्रता है या नहीं। गुरू को भी कोई अधिकार है कि नहीं कि आपको अपना शिष्य स्वीकार करे या ना करें।
खैर जब आपने उन्हें गुरू मान लिया तो क्या उनसे कुछ शिक्षा भी ग्रहण की। वो कैसे लिखते हैं, कैसे चलते हैं, कैसे बोलते हैं, कैसे उठते-बैठते हैं। उनके एक-एक शब्द में उनके ज्ञान, उनकी तपस्या, उनके अनुभव का निचोड है।
उनके व्यक्तित्व का एक अंश भी मुझमें आ जाये तो मैं खुद को सौभाग्यशाली समझूंगां।
एक बात का ध्यान रखना चाहिये कि हमारे शब्दों से, हमारे कार्यों से, (जिन्हें हम गुरू मानते हैं) उनको भी दुख होता है और उन्हें शर्मिन्दगी उठानी पडती है।
आपने तो कमजोर की नस ही दबा दी।
ReplyDeleteकैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
चर्चित होना पर्सनालिटी एथिक्स का विषय है। पर गहन सफलता रट्टा लगा कर नहीं आ सकती। वह तो खेती की तरह है - जमीन बनाना, बुवाई, सींचना, निराई --- सब करना पड़ता है! :)
ReplyDeleteहा..हा..हा.... मजेदार।
ReplyDeleteपर भाई अपन ने न गुरू बनाया है, न विवादित लोगों पर पोस्ट ही लिखी है। अपन ऐसे ही ठीक हैं।
उत्तम विचार।
ReplyDelete@ आदरणीय ज्ञानदत्त जी
ReplyDeleteयही बात तो मैं भी कहना चाहता हूं कि आदरणीय समीरजी, आदरणीय ताऊजी, आदरणीय खुशदीपजी, आदरणीय राजजी, आदरणीया घुघुतीजी, आदरणीय जीके अवधियाजी, आदरणीय उन्मुक्तजी, आदरणीय शास्त्रीजी, आदरणीय ललितजी, आदरणीय महफूजजी और स्वयं आप और दूसरे बहुत सारे (सबका नाम लिखना असंभव है) ने अपने योगदान, मेहनत, अनुभव, प्रेमभाव, सहयोग, गुणधर्म, लेखन, ज्ञान, समय, से सफलता पाई है।
पूज्यनीय समीरजी का मैं भक्त हूं। उनकी हरेक पोस्ट पढता हूं। और मुझे सर्वोत्तम लगती हैं।
मैं आपकी भी हरेक पोस्ट चाव से पढता हूं।
आदरणीय अनूपजी की शायद कोई पोस्ट नहीं पढी है (पोस्ट की लम्बाई के कारण)लेकिन इनको शुरु से जानता हूं।
कभी टिप्पणी भी कर देता हूं। लेकिन ये जरूरी नहीं है कि मुझे आप सबकी हर पोस्ट का भाव और मंतव्य समझ में आये।
तो क्यों उस बारे में पोस्ट लिख-लिख कर हवा दूं।
प्रणाम
सद्वि्चार हैं आर्य आपके
ReplyDeleteपछा पछी के कारने सब जग रहा भुलान।
निर्पक्ष होके हरि भजे,सोई संत सुजान॥
धन्य भये.. :)
ReplyDeleteचर्चित तो हो ही भई...अब और कितना होना है..:)
विचार उत्तम हैं!
ReplyDeleteयहाँ लोग बिना पुण्य(योग्यता)अर्जित किए बस "जय गुरूदेव-जय गुरूदेव" करते ही ब्लाग वैतरणी लाँघ जाना चाहते हैं :-)
ReplyDeleteगुरू मारे ऊपर चढने की सीढी....
अमित बहुत सुंदर लिखा मजे दार, काश सब की समझ मै आये
ReplyDeleteपते की बात .....शुक्रिया !
ReplyDeleteभैया हम तो इसी उक्ति पर चलते हैं किः
ReplyDeleteपानी पीना छान के
गुरू बनाना जान के
कल्हे आपका इंटरभू ले डालते हैं .......का पता चर्चित होने के बाद फ़िर दो न दो ..........
ReplyDeleteअरे आप तो आज ही चर्चित हो गये।
ReplyDeleteलेकिन साहब, ये चर्चित होना अगली ही बार में खत्म हो जायेगा। उन्हे ये बात भी गांठ बांध लेनी चाहिये।
तो भैया , सफल तो हो गये , मिल तो रही हैं टिप्पड़ियां । इसी कड़ी मे यह एक मेरी तरफ से भी ।
ReplyDeletebadiya likha padhkar maja aya.
ReplyDeleteचर्चित हो गए.. फिर क्या?
ReplyDeleteप्रासंगिक पोस्ट...
ReplyDeleteजिस वक़्त हमने ब्लोगिंग शुरू की थी, उस वक़्त माहौल बहुत अच्छा था...
लेकिन, अफ़सोस है कि 'कुछ लोगों' ने ब्लॉग जगत रूपी पावन गंगा में 'गंदगी' घोल दी है...और यह दिनोदिन बढ़ रही है...
लोग ज़बरदस्ती अपने 'मज़हब' को दूसरों पर थोप देना चाहते हैं...
गाली-गलौच करते हैं... असभ्य और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हैं...
किसी विशेष ब्लोगर कि निशाना बनाकर पोस्टें लिखी जाती हैं...
फ़र्ज़ी कमेंट्स किए जाते हैं...
दरअसल, 'इन लोगों' का लेखन से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है... जब ब्लॉग लेखन का पता चला तो सीख लिया और फिर उतर आए अपनी 'नीचता' पर... और करने लगे व्यक्तिगत 'छींटाकशी'...
'इन लोगों' की तरह हम 'असभ्य' लेखन नहीं कर सकते... क्योंकि यह हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है और हमारे संस्कार भी इसकी इजाज़त नहीं देते... एक बार समीर लाल जी ने कहा था... अगर सड़क पर गंदगी पड़ी हो तो उससे बचकर निकलना ही बेहतर होता है...
आज ब्लॉग जगत में जो हो रहा है, हमने सिर्फ़ वही कहा है...
ज्ञानदत्त ने एक बार फिर अपनी टिप्पणी में अंग्रेजी को दो शब्दों का प्रयोग करते हुए ब्लागरों को खेती करने पर जोर दिया है। ज्ञानदत्तजी अब वैज्ञानिक ढंग से खेती करना सीखाना चाहते हैं।
ReplyDeleteआने वाले दिनों में वे कृषक जगत नाम का शायद एक नया ब्लाग खोले और लोगों को यह बताएं कि एक सफल कृषक कैसे बना जाता है।
ये देश वैसे भी किसानों का देश है। मैं कृषकों का सम्मान करता हूं। लेकिन ज्ञानदत्त सरीखे वैज्ञानिकों का विरोध इसलिए करता हूं क्योंकि उन्हें यहीं नहीं मालूम है कि फसल केवल रापा, कुदाली चलाने मात्र से नहीं लहलहाती है। जब पानी के साथ-साथ किसान का पसीना खेत पर पड़ता है तब जाकर फसल जवान होती है।
दूसरों को बहुत लेक्चर पिलाते हो.. थोड़े बच्चे का लेक्चर भी सुन लो विद्धान न्यायधीश महोदय। यदि बहस करने के इच्छुक हो तो मेरे ब्लाग पर आओ और नहीं तो अपने ब्लाग से जीव-जन्तु हटाओं। पता नहीं क्या-क्या लगा रखा है।
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