20-05-10 रात 8:00 बजे दिल्ली के ISBT पर पहुंचा ही था कि बेदू का फोन आ गया। पूछा कहां है तू, मैनें बताया कि हरिद्वार जा रहा हूं। उसने कहा इंतजार कर मैं अभी आता हूं। मैं उसका इंतजार करने लगा। करीब दो घंटे बाद बेदू और उसके साथ एक आदमी और आये। मैनें पूछा ये कौन है, बेदू ने कहा इसका नाम सोनू है, मेरे आफिस के बाहर घूमता रहता है। इसने कहा कि मुझे भी ले चलो, तो मैं ले आया। 1000-1200 रुपये ज्यादा खर्च हो जायेंगें, पर ये बेचारा भी हरिद्वार घूम आयेगा। । मैनें कुछ नहीं कहा, मगर मुझे ऐसे किसी अन्जान आदमी को अपने साथ जाना अच्छा नहीं लग रहा था और मुझे उसके हाव-भाव भी कुछ अजीब से लग रहे थे। मैं उससे कोई बात भी नहीं करना चाहता था। (वर्ना मैं नये लोगों से मिलना बहुत पसन्द करता हूं) उसके पास एक मोबाईल फोन के अलावा कुछ नहीं था, ना कोई पैसा, ना कपडे।
खैर उत्तरप्रदेश परिवहन निगम की शताब्दी बस में मैनें तीन शायिका (स्लीपर) की टिकट ले ली। शताब्दी बस में केवल 30 यात्रियों के लिये बैठने और सोने की जगह होती है। दिल्ली से हरिद्वार का किराया है 330 रुपये प्रति यात्री। दो शायिका जो साथ-साथ थी उनपर बेदु और सोनू को छोडकर तीसरी शायिका जो किसी अन्य सहयात्री के साथ थी, मैं उसपर चला गया। बेदू ने कहा अमित तू यहां आ जा मेरे पास और सोनू को वहां भेज दे। मैनें कहा ठीक है। सोनू जाना नहीं चाहता था, मगर मैनें उसे भेज दिया और हम सो गये।
रात 2:00-2:30 बजे बस खतौली से थोडा पहले ट्रैफिक जाम की वजह से रुकी हुई थी। सोनू बार-बार मुझे हाथ लगा कर कहने लगा, भाई साहब लंबा जाम है, पेशाब वगैरा कर लीजिये। मैनें कहा-नहीं मुझे सोने दो। इस बीच सोनू कई बार बस से नीचे उतरा। थोडी देर बाद सोनू बस में अन्दर आया तो जो सहयात्री उसके साथ वाली शायिका पर था, उसने सोनू से सख्त लहजे में पूछा-मेरा फोन कहां है? सोनू ने कहा-भाई साहब किस फोन की बात कर रहे हैं आप। तभी सहयात्री ने उसकी जेब में हाथ डालकर तलाशी ली तो उन सज्जन का मोबाईल मिल गया। फोन की बैटरी और सिम निकाले हुये थे। सज्जन पूछने लगे कि बैटरी और सिम कहां है। अभी दूसरे यात्री या तो सो रहे थे, या नीचे उतर गये थे। मैं लेटा हुआ ये सब देख रहा था। मगर सोनू उल्टा उन्हें ही पूछने लगा कि किस सिम की बात कर रहे हो आप। मुझे क्या पता आपके फोन के बारे में। मैनें तुरन्त उन सज्जन को कहा कि इसके कान के नीचे दो बजाओ, ये तब बतायेगा। मैनें बेदू को उठाया कि बेटा हम किस चोर को अपने साथ लेकर चल रहे हैं, जरा उठकर तो देखो। उसे बस से नीचे लाया गया। बैटरी तो बस के नीचे ही मिल गई, मगर सिम नहीं मिल रही थी।
बेदू ने सोनू की चमडी उधेडनी शुरू कर दी। बेदू उसे बुरी तरह से थप्पड, घूंसे मार रहा था और गालियां दे रहा था। मैनें उसे रोका और चोर को वहां से भाग जाने के लिये कहा। अब जिन बेचारे सज्जन की सिम गुम हो गई थी, उन्हें कितनी परेशानी हुई होगी, इसका तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
मैं सुबह तक सोचता रहा कि अगर वो आदमी हमारे बैग, पर्स, मोबाईल चुरा लेता तो या कोई चुराई हुई वस्तु हमारे बैग में डाल देता तो?
खैर उत्तरप्रदेश परिवहन निगम की शताब्दी बस में मैनें तीन शायिका (स्लीपर) की टिकट ले ली। शताब्दी बस में केवल 30 यात्रियों के लिये बैठने और सोने की जगह होती है। दिल्ली से हरिद्वार का किराया है 330 रुपये प्रति यात्री। दो शायिका जो साथ-साथ थी उनपर बेदु और सोनू को छोडकर तीसरी शायिका जो किसी अन्य सहयात्री के साथ थी, मैं उसपर चला गया। बेदू ने कहा अमित तू यहां आ जा मेरे पास और सोनू को वहां भेज दे। मैनें कहा ठीक है। सोनू जाना नहीं चाहता था, मगर मैनें उसे भेज दिया और हम सो गये।
रात 2:00-2:30 बजे बस खतौली से थोडा पहले ट्रैफिक जाम की वजह से रुकी हुई थी। सोनू बार-बार मुझे हाथ लगा कर कहने लगा, भाई साहब लंबा जाम है, पेशाब वगैरा कर लीजिये। मैनें कहा-नहीं मुझे सोने दो। इस बीच सोनू कई बार बस से नीचे उतरा। थोडी देर बाद सोनू बस में अन्दर आया तो जो सहयात्री उसके साथ वाली शायिका पर था, उसने सोनू से सख्त लहजे में पूछा-मेरा फोन कहां है? सोनू ने कहा-भाई साहब किस फोन की बात कर रहे हैं आप। तभी सहयात्री ने उसकी जेब में हाथ डालकर तलाशी ली तो उन सज्जन का मोबाईल मिल गया। फोन की बैटरी और सिम निकाले हुये थे। सज्जन पूछने लगे कि बैटरी और सिम कहां है। अभी दूसरे यात्री या तो सो रहे थे, या नीचे उतर गये थे। मैं लेटा हुआ ये सब देख रहा था। मगर सोनू उल्टा उन्हें ही पूछने लगा कि किस सिम की बात कर रहे हो आप। मुझे क्या पता आपके फोन के बारे में। मैनें तुरन्त उन सज्जन को कहा कि इसके कान के नीचे दो बजाओ, ये तब बतायेगा। मैनें बेदू को उठाया कि बेटा हम किस चोर को अपने साथ लेकर चल रहे हैं, जरा उठकर तो देखो। उसे बस से नीचे लाया गया। बैटरी तो बस के नीचे ही मिल गई, मगर सिम नहीं मिल रही थी।
बेदू ने सोनू की चमडी उधेडनी शुरू कर दी। बेदू उसे बुरी तरह से थप्पड, घूंसे मार रहा था और गालियां दे रहा था। मैनें उसे रोका और चोर को वहां से भाग जाने के लिये कहा। अब जिन बेचारे सज्जन की सिम गुम हो गई थी, उन्हें कितनी परेशानी हुई होगी, इसका तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
मैं सुबह तक सोचता रहा कि अगर वो आदमी हमारे बैग, पर्स, मोबाईल चुरा लेता तो या कोई चुराई हुई वस्तु हमारे बैग में डाल देता तो?
फिर आपने चोर को वहीं छोड दिया या पैसे देकर दिल्ली की बस में बैठा दिया या अपने साथ हरिद्वार ले गये?
ReplyDelete@ नीरज जाट जी
ReplyDeleteहमने चोर को वहीं छोड दिया।
चलिये बच गये ।
ReplyDeleteचलिये बच गये, सही है हम कई बार यह गलती कर बेठते है, ओर फ़िर डरते है
ReplyDeleteआजकल सतर्क रहना बहुत जरूरी है और हर व्यक्ति को पहचानने की भी कोशिस जरूर करनी चाहिए ,क्योकि आज ज्यादातर लोगों के असली चेहरे छुपे हुए होते हैं ,इसलिए अपने को तेज दिमाग वाला बनाइये और सच झूठ को पहचानने की क्षमता अपने में पैदा कीजिये /
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