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लहरों पर सवारी और राफ्ट का
ऊपर नीचे गिरना और डगमग होना
इस समय में मन विचारशून्य हो जाता है
और आनन्द से किलकारियां ही किलकारियां |
हम रामझूला से शिवपुरी तक राफ्ट (हवा भरी नाव) के साथ ही एजेन्ट की जीप में बैठकर गये। (यह वही सडक थी जिस पर पिछ्ले साल मेरा एक्सीडेंट हुआ था। उस दुर्घटना के बारे में फिर कभी।) शिवपुरी में गंगा किनारे पेय पदार्थ और अन्य खाने का सामान बहुत महंगा मेरे बजट में है। एक शिकंजी और एक भेलपुरी की कीमत 20+20 = 40 रुपये देनी पडी। वहां हमें हेलमेट और लाईफ जैकिट दिये गये। ये पहनने के बाद गाईड द्वारा हमें कुछ सुझाव, प्रशिक्षण और नियम बताये गये।
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कोडियाला से राफ्टिंग करते वक्त
एक फाल (झरना) भी रास्ते में आता हैं,
वहां राफ्ट के पलटने के 98% अवसर होते हैं |
फिर हम हाथ में पैडल (गाईड ने कहा था इसे चप्पू नहीं कहना) लेकर राफ्ट में बैठ गये और गाईड जो हमारा कमांडर भी था उसके अनुदेशों का पालन करते हुए इंतजार करने लगे पहले रैपिड यानि तीव्र बहाव का।
जो आनन्द और उत्साह था उसे शब्दों में बयान करना मेरे लिये तो मुश्किल है। दो रैपिड से निकलने के बाद जहां गंगा की चौडाई बढ जाती हैं, वहां बहाव थोडा शांत सा दिखने लगा था।
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रैपिड (तीव्र बहाव) अभी दूर है तो
गाईड ने कहा गैट डाऊन या गो आऊट
तो हम भी कूद गये गंगा में और
स्वतन्त्र रूप से 1-2 किमीO यूं बहने का
अनुभव बताया नही जा सकता |
अचानक हमारा गाईड (जो हमें चिल्ला-चिल्ला कर कमांड कर रहा था) जोर से चिल्लाया - गो डाऊन। हम स्तब्ध रह गये। उसने फिरसे कहा - गेट आऊट
मैनें कहा - भईये तू ही हो जा ना गेट आऊट, लेकिन फिर ख्याल आया कि अरे ये नाव से उतर गया तो हम भी गये और ये तो तैर कर निकल भी जायेगा पर हमें कौन बचायेगा।
गाईड ने फिर से कहा - जो पानी में उतरना चाहता है, उतर सकता है। अबकी बार मैं उसकी बात समझ गया और राफ्ट से धीरे से गंगा में उतर गया और राफ्ट के चारों ओर बंधी रस्सी पकड ली।
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ऐसे ही बहता हुआ मैं लक्ष्मण झूला
के नीचे से भी निकला क्योंकि
यहां हाथ पैर मारना केवल थकना है।
काश जिन्दगी भी ऐसे ही बिना हाथ पैर
मारे बह कर पार कर जाऊं। |
अब ज्यादा मजा आने लगा था। धीरे-धीरे वो रस्सी भी छोड दी और बह गये गंगा में गंगा के साथ-साथ। उसके बाद हम फिर से राफ्ट में आ गये, क्योंकि आगे फिर रैपिड आने वाला था।
"ॠषिकेश में लक्ष्मण झूला और राम झूला नाम से दो पुल हैं। रामझूला थोडा संकरा और छोटा है, इसपर केवल पैदल यात्री ही जा सकते हैं। जबकि लक्ष्मण झूला पर टूव्हीलर भी चलते हैं।"
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इन्होंने ऊपर छलांग लगाई है और
ऐसा लग रहा है जैसे पानी पर खडे हों।
दूसरी बार छलांग लगाने में तो
मेरी चीख निकल गई थी। |
थोडी देर बाद हम ब्रह्मपुरी में रुके वहां एक चट्टान है, कुछ लोग उसपर से गंगा में कूद लगा रहे थे। मैनें पहले कुछ खाया, फिर उस चट्टान पर चढ गया। लेकिन जिस चट्टान को नीचे से दूसरों को कूदते देखने पर आसान लग रहा था। वहां ऊपर पहुंच कर गंगा में झांकने पर जान ही निकल गई। मैं वहीं बैठ गया और अपनी सांसों को काबू करने लगा, जो एकबार नीचे झांकने पर ही रेल की तरह चलने लगी थी। वहां कुछ दूसरे लोग भी बैठे थे, जो मेरी तरह ही उत्साह में चढ तो गये थे, मगर ऊंचाई से कूदने पर डर रहे थे।
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Brahmpuri, 12 KM from Rishikesh
(Height 25-30Ft.)
नीचे से देखने पर इस चट्टान की
ऊंचाई कम दिखती है, लेकिन ऊपर
चढने के बाद दिल जोर से धडकने लगा |
पांच मिनट बैठा रहने के बाद मैं फिर से उठा और नीचे देखा। मगर अब फिर सांसें फूल गई। इसी तरह मैं कई बार उठता और बैठ जाता। फिर एक पक्का इरादा किया और माऊंटेन ड्यू के विज्ञापन (डर के आगे जीत है) को याद करके छलांग लगा दी। बस हो गया, अरे कुछ नहीं हुआ। चलो एक बार फिर कोशिश करता हूं। एक बार फिर से पहुंचा, इस बार ज्यादा देर नहीं लगाई, मगर इस बार डर के मारे मुंह से तेज चीख निकल गई।
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लक्ष्मण झूला
इसके नीचे से भी मैं बहते हुए निकला |
उसके बाद हम फिर से गंगा में उतर गये और बहते रहे। मुझे तैरना नहीं आता है फिर भी मैं हाथ पैर मारने लगा। लक्ष्मण झूला सामने दिख रहा था, मैनें सोचा कि जबतक मेरी राफ्ट आयेगी, मैं यहां बैठा रहूंगा। इस चक्कर में मैं अपनी राफ्ट से काफी दूर निकल आया और किनारे तक भी नहीं पहुंच पा रहा था। मैं बिल्कुल थक चुका था, ठंड भी लगने लगी थी और डर लगने लगा था कि कहीं आगे कोई रैपिड हुआ तो। मैं बस किसी तरह से गंगा से निकलना चाहता था। तभी एक दूसरी राफ्ट पास आती दिखी। मैनें उसे इशारा किया और उन्होंने मुझे ऊपर राफ्ट में खींच लिया। थोडी देर में मेरी वाली राफ्ट भी आ गई तो मैं उसमें चला गया और हम रामझूला पहुंच गये और हमारी रिवर राफ्टिंग के अनुभव पर आनन्दित होते हुये हम वापिस हरिद्वार आ गये।
नोट : - सभी तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं।