मैं संगठन का सदस्य नहीं बनना चाहता हूं। लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि मैं संगठन का विरोधी हूं। मैं ना किसी विचार का पक्ष लेना चाहता हूं और ना विपक्ष में हूं। आमतौर पर किसी का समर्थन करने को, दूसरे का विरोध समझ लिया जाता है। (अगर मैं कहूं कि अभी दिन नहीं है, तो समझा जाता है कि रात है। लेकिन दिन और रात के बीच में संध्याकाल भी होता है)। ऐसा कह सकता हूं कि अभी मैं संगठन के काबिल नहीं हूं या अभी मेरी बुद्धि इतनी परिपक्व नहीं है कि मैं किसी संगठन का सदस्य बन सकूं।
समय, स्थान और स्थिति के साथ मेरी पसन्द-नापसन्द, विचार बदलते रहते हैं। कल क्या हो, कौन जाने? आज तो मुझे लगता है कि संगठन बना कर जब किसी का व्यक्तिगत विरोध होने लगा तो? किसी के विचारों पर रोक लगाई जाने लगी तो? तुम्हें ऐसा लिखना चाहिये और ऐसा नहीं लिखना चाहिये, यह बताया जाने लगा तो? कभी किन्हीं दो लोगों के विचार हमेशा एक जैसे नहीं रह सकते हैं। सदस्यों के आपस में ही वैचारिक मतभेद शुरू होंगें तो? छोटा-बडा, नया-पुराना, ऊपर-नीचे वाली मानसिकता की राजनीति इस संगठन में भी प्रवेश कर गई तो?
मुझे लगता है एक संगठन बनाना मतलब एक विरोधी संगठन भी तैयार करना है। क्या आज भी किसी बात के पक्ष या विपक्ष में समविचारों वाले ब्लागर तुरन्त संगठित नहीं हो जाते हैं।
वैसे तो अधिकतर जागरूक ब्लागर ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं, पर मेरे ख्याल से यह विचार श्री जयकुमार झा जी और श्री अविनाश वाचस्पति जी दोनों के चिंतन से आया है। आप दोनों के अन्दर समाजसेवा का जज्बा है और ब्लागिंग को ऊंचाईयों पर ले जाने के लिये, भ्रष्टतंत्र से लडने के लिये ब्लागिंग को एक सशक्त माध्यम बनाने की दिशा में ये एक अच्छा प्रयास हो सकता है। लगभग सभी ब्लागर इस पर चिंतन कर रहे हैं।
श्री जयकुमार झा जी एक क्रांतिकारी लहर बनकर आये हैं और पूरे जी-जान से अपने ईमानदार लोकतंत्र के सपने को पूरा करने में जुटे हैं। एक-एक आदमी को झकझोर कर जगा रहे हैं। बहुत अच्छा कार्य है उनका। आपको अपने कार्य में जल्द से जल्द सफलता मिले, मेरी शुभकामनायें।
रविवार को कुछ हल्के-फुल्के मखौल से मूढ बनाने के बाद अगली पोस्टों में संगठन से भी ज्यादा जरूरी एक टापिक पर, ध्यान दीजियेगा।
"इक ना इक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये,
सुब्हा होने को है माहौल बनाये रखिये"
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ReplyDelete"इक ना इक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये,
ReplyDeleteसुब्हा होने को है माहौल बनाये रखिये"
Bahut Khoob!
ReplyDeleteअपनी अपनी इच्छा...अपने-अपने विचार
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ReplyDeleteश्री जयकुमार झा जी और श्री अविनाश वाचस्पति जी दोनों mere bahut kareeb hain aur anukarniya hain.
ReplyDeleteप्राचीन काल से अबतक हर क्षेत्र में संगठन ने ही मनुष्य को शक्ति दी है .. आज स्वार्थ में अंधे होकर लोग व्यक्तिगत लाभ पर ही ध्यान संकेन्द्रित कर रहे हैं .. लेकिन व्यक्तिगत सफलता को महत्व देनेवाले कुछ दिन तक तो सफल दिखते हैं .. पर समाज या संगठन के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता .. जीवन में कभी न कभी इसकी आवश्यकता पड ही जाती है !!
ReplyDeleteसबसे पहले महफूज जी का आभार की उन्होंने हमारे विचारों को अनुकरणीय बताया ओर उसे समाज में फ़ैलाने के लिए उन्होंने मुझे फोन पर सहयोग देने का भी आश्वासन दिया है बहुत-बहुत शुक्रिया आपका ,ऐ नेक दिल इन्सान ,हमारे नजर में हर वह विचार अनुकरणीय होना चाहिए जो हमें अँधेरे से उजाले की ओर थोरा भी बढ़ा सके और ऐसे विचारों को हमें बड़ा-छोटा,उंच-नीच,जूनियर-सिनिअर और अपना-पराया देखे वगैर अपनाना चाहिए और दूसरों को भी अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए | अंतर सोहिल जी किसी भी अच्छे काम को बिना संगठित हुए सफलता के उचाई पर नहीं पहुँचाया जा सकता है और रही बात मतभेद की तो वो हर जगह होती है लेकिन उसमे भी हमें अपना नफा-नुकसान देखे वगैर सिर्फ और सिर्फ सत्य,न्याय,ईमानदारी और इंसानियत का ही पक्ष लेना चाहिए ,रही हिंसा और हिंसक व्यवहार की बात तो इन्सान की मर्यादा इसी में है की वह सिर्फ आत्म रक्षा में ही किसी के वार से अपनी रक्षा के लिए वार करे ओर ऐसा करना कानूनन जुर्म भी नहीं माना जाता है | आज आम लोगों की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण यही है की सब अपनी-अपनी तरह से चिल्ला रहें हैं जिससे उनकी आवाज देश ओर इस देश के खजाने (आम जनता के रोज के टेक्स से जमा पैसों) को लूटने वालों का कुछ भी नहीं बिगार पा रही है ओर हमारा दावा ही नहीं पूरा विश्वास है की जिसदिन इस देश के 25 % लोग भी एकजुट होकर चिल्लायेंगे तो इन लूटेरों को हर हाल में जनता का पैसा जनता पे ईमानदारी से खर्च करने को मजबूर होना परेगा ओर तब इस देश में शायद गरीबी ओर भूखमरी तो कम से कम नहीं रहेगी ओर हर जगह जीने के लिए इंसानियत को शर्मसार नहीं होना परेगा ! अंतर शोहिल जी अंत में आपसे हम यही कहेंगे की आप एक अच्छे इन्सान हैं ओर आपको तो हमारे इस मुहीम से जुड़ना ही चाहिए ,क्योकि एक अच्छा इन्सान ही अच्छाई ओर ईमानदारी के साथ इंसानियत की सेवा कर सकता है |
ReplyDeleteसंगठन मै ताकत है, ओर जल्द ही मै यहां एक ब्लांगर मिटिंग करने जा रहा हू, जिस मै भिन्न भिन्न विष्यो पर चर्चा होगी... तारीख करीब एक महीना पहले बता दी जायेगी, इस विषय पर भी बात होगी, लेकिन कोई गुट वाजी नही, आप ने बहुत सुंदर विचार रखे, आप का धन्यवाद
ReplyDeleteदेखो भाई अपना तो सीधा सा फंडा है। एक ऊंगली एक होती है। जब पांच हो जाती है तो मुक्के में बदल जाती है।
ReplyDeleteअब ऊंगली का मतलब यह मत निकाल लेना कि हम लोग ऊंगली करेंगे या किसी को मुक्का ही मुक्का मारेंगे।
एकजुटता हमेशा अच्छी होती है- नीयत अच्छी होने पर।