एक चोर के साथ सफर फिर ॠषिकेश में रिवर राफ्टिंग और गंगा में बहने के बाद हम हरिद्वार से दिल्ली वापसी के लिये सुबह 6:00 बजे ही हम आनन्दोत्सव आश्रम से निकल लिये। आश्रम से टैक्सी ने 250 रुपये में हमें ॠषिकुल बस अड्डा, हरिद्वार पर छोडा। हरिद्वार से उत्तरप्रदेश परिवहन की शताब्दी बस में दिल्ली तक का 270 किराया है। इस बस में शायिका नही हैं, लेकिन वातानुकूल यंत्र बहुत बढिया है। मेरी सीट के ऊपर ही AC की सप्लाई पाईप लाईन में एक जगह छेद था और वहां खिडकी का परदा ठूंसा गया था। मैनें इसका भरपूर फायदा उठाया। जब भी ज्यादा हवा की जरूरत होती, मैं इस कपडे को निकाल देता और तेज ठंडी हवा मुझे गरमी में भी सरदी का अहसास करवा देती। मेरे साथ वाली सीट पर एक बहुत सुन्दर कन्या विराजमान हुई। कद काठी और चेहरा देखने पर लगा कि वो किसी स्कूल की छात्रा है। लेकिन बाद में पता चला कि वो किसी बैंक में नौकरी करती हैं और उनका ट्रान्सफर दिल्ली हो गया है। इसलिये वो दिल्ली में रहने के लिये फ्लैट किराये पर लेने जा रही थी। खूबसूरत सहयात्री के साथ सफर का अपना ही मजा होता है। (बिना कोई बात किये भी बस खूबसूरती को निहारते हुये भी पूरा समय और सफर आराम से निकाला जा सकता है)
दिल्ली बस अड्डा पर पहुंचते ही नीरज जाटजी का फोन आ गया। उन्होंने कहा सीधे मेरे आफिस आ जाओ। अभी 1:00 PM हुआ है, 2:00 PM पर एक साथ ही ब्लागर मीट के लिये नांगलोई धर्मशाला चलेंगें। मैं नीरज जी के आफिस पहुंचा। थोडा कुछ नाश्ता पानी किया। फिर नीरज जाटजी ने ये कुछ फोटो-शोटो खींचे।
इसके बाद हम दोनों नांगलोई ब्लागर मीट के लिये रवाना हो गये। बातें करते हुये हम जब नांगलोई मैट्रो स्टेशन से बाहर आकर जाट धर्मशाला के बारे में पूछताछ करने लगे तो पता चला कि, हम एक स्टेशन पहले ही उतर गये हैं। जबकि अविनाश जी और एम वर्मा जी ने निमन्त्रण में अच्छी तरह से बताया था कि नांगलोई रेलवे स्टेशन पर उतरना है। अब मुझे याद आया कि अरे जाट धर्मशाला के सामने से तो मैं कई बार निकला हूं। नीरजजी कहने लगे कि मैट्रो से ही चलते हैं। मगर मैं अब दो मिनट के सफर के लिये बार-बार मैट्रो की सीढियों पर उतरना-चढना नहीं चाहता था और हम रिक्शे पर सवार होकर ब्लागर मीट में पहुंच गये। जारी है….….…
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
ReplyDeleteक्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html
आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित कर हौसला बढाईयेगा
सादर ।
भाई जारी रखिए कथा
ReplyDeleteआगे का इंतजार है
(बिना कोई बात किये भी बस खूबसूरती को निहारते हुये भी पूरा समय और सफर आराम से निकाला जा सकता है)
म्हारी ही सुसरी किस्मत खराब थी
इतने लम्बे सफ़र कोई ना मिली,प्राकृतिक खूबसूरती के सहारे ही टैम कट गया।
राम राम
भाई जारी रखिए कथा
ReplyDeleteआगे का इंतजार है
(बिना कोई बात किये भी बस खूबसूरती को निहारते हुये भी पूरा समय और सफर आराम से निकाला जा सकता है)
म्हारी ही सुसरी किस्मत खराब थी
इतने लम्बे सफ़र कोई ना मिली,प्राकृतिक खूबसूरती के सहारे ही टैम कट गया।
राम राम
भाई जारी रखिए कथा
ReplyDeleteआगे का इंतजार है
(बिना कोई बात किये भी बस खूबसूरती को निहारते हुये भी पूरा समय और सफर आराम से निकाला जा सकता है)
म्हारी ही सुसरी किस्मत खराब थी
इतने लम्बे सफ़र कोई ना मिली,प्राकृतिक खूबसूरती के सहारे ही टैम कट गया।
राम राम
व्यक्तिगत सुखों को आम न बनायें । यात्रा आपकी आगे भी ऐसी ही सुखद रहे, यही कामना है ।
ReplyDeleteभाई जारी रखिए कथा
ReplyDeleteआगे का इंतजार है
बढ़िया प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई.शुभकामनायें.
ReplyDeleteअरे भाए ये तो बताओ कि ऊपर जो मेट्रो की खिडकी में खडा है, वो नीरज जाट है या आप हो।
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुति।
@ नीरज जाट जी
ReplyDeleteअरे भाए बता तो दिया कि फोटो शोटो नीरज जाट जी ने खींची, तो नीरज तो हो नही सकता है। अब दो ही जने थे तो फोटो अन्तर सोहिल की हुई ना। इनके अलावा किसी और की फोटो मैं क्यूं दिखाऊंगां, सबको।
और मैनें तो पिछली पोस्टों में ही बता दिया कि मुझे फोटोग्राफी नही आती और ना मेरे पास कैमरा है।:-)
फोटो खीचना कितना मुश्किल है यहां देखिये
प्रणाम
बहुत ही सुंदर वर्णन किया अमित जी ...अगली कडी की प्रतीक्षा रहेगी
ReplyDeleteमेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteबॉस, तुम्हारे जैसा सफ़र हम कर लें तो हमें तो सर्द-गर्म हो जाता। ऐसी बस और ...। हा हा हा।
ReplyDeleteनीरज से तो हम भी मिलेंगे कभी, नाश्ता तो करवायेगा ही शायद। हर पोस्ट पर कमेंट करता हूं उसके।
बहुत सुंदर लगी आप की यात्रा, ओर हां..
ReplyDelete(बिना कोई बात किये भी बस खूबसूरती को निहारते हुये भी पूरा समय और सफर आराम से निकाला जा सकता है)
अरे लेकिन मै चुप नही रह सकता, इस लिये मै तो उस से पूछ लेता कि दिल्ली क्यो जा रही हॊ, तो वो जरुर जबाब देती कि किराये का मकान देखने जा रही हुं, फ़िर पूछता दिल्ली मै मकान क्यो? तो वो जबाब देती कि मै किसी बैंक में नौकरी करती हुं, और अब मेरा ट्रान्सफर दिल्ली हो गया है। .... अरे बहुत सी बाते होती है करने को.... बोलो, मेरे पास तो नानी दादी बेठी हो मै उस से भी बात कर लेता:)
@ मो सम कौन
ReplyDeleteये बताईये कि आप दिल्ली कब आ रहे हैं। नीरज जी से भी मिलेंगें और उनके साथ नाश्ता, लंच, डिनर सब करेंगें जी
प्रणाम
@ राज भाटिया जी
ReplyDeleteमैं भी ऐसा ही हूं जी, मैं भी सबसे बात करने को उत्सुक रहता हूं। चाहे दादी, नानी हो या दादा, नाना
प्रणाम
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