27 June 2010

कितना गंदा सोचती हो तुम

पुलिसवाला - तुमने पपीते बेचने वाली को किस क्यूं किया
सरदारजी -  वो चिल्ला रही सी पपी ते लै लो, पपी ते लै लो
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मुन्ना - अबे सर्किट, ये डाक्टर लोग आपरेशन के वक्त मरीज को बेहोश क्यों करते हैं
सर्किट - भाई, बोले तो, अगर पेशेंट आपरेशन करना सीख गया तो डाक्टर लोग की तो वाट लग जायेगी ना
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सरदार गलत साईड में ड्राईविंग कर रहा था। और सोच रहा था -
ओह शिट! आज तो बहुत ज्यादा लेट हो गया, सारे लोग वापिस जा रहे हैं।
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पत्नी - वो सामने शराबी देख रहे हो, मैनें दस साल पहले उससे शादी करने से मना कर दिया था।
पति - वाह! इतना लम्बा सेलिब्रेशन
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लडका - वो कौन सी जगह है जहां हर मर्द और औरत के बाल घुंघराले होते हैं
लडकी - तौबा-तौबा, तुम बहुत गंदे हो
लडका - गंदा तुम सोचती हो, वो जगह है वेस्टईंडीज
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यह पोस्ट केवल आपको हंसाने के लिये है। किसी को आपत्ति है तो क्षमायाचना सहित  हटा दी जायेगी।

25 June 2010

नबी नबी

आज आप सुनिये मेरे पसन्दीदा भक्ति संगीत कलैक्शन में से एक भजन "Nabi Nabi"
आप इसे नात या कव्वाली भी कह सकते हैं


इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ति है, तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

23 June 2010

सास ननद मोहे पल-पल कोसें Roop Salona Dekh

"क्या रंगीं जमाल चेहरा आंखों को भा गया है
आंखों के रास्ते वो दिल में समा गया है"

"सखी पनघट पर जमुना के तट पर लेकर पहुंची मटकी
भूल गई एक बार सब जब छवि देखी नटखट की"
इस एल्बम का नाम है श्याम दी कमली

इस प्यारे भजन के गायक श्री विनोद अग्रवाल जी भजन और सूफी गायक के साथ-साथ संत भी हैं। इनके कंठ से निकले गीत मुझे तो झूमने पर मजबूर कर देते हैं। इस एल्बम से दो और भजन छोटी सी दुल्हनियां और ना जी भर के देखा सुन सकते हैं।

यह गीत करीबन 30 मिनट का है। इसलिये आप खाली समय में सुनेंगें तो ही इस मधुर संगीत का आनन्द ले पायेंगें। अंतरे में धुन है, आपकी आंखें स्वत: बंद हों जायेंगीं और आपको अपार आनन्द की अनुभूति होगी।




इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ति है, तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

13 June 2010

ओह ले भाई, हम्बै, हरियाणवी मखौल

आज की पोस्ट श्री ताऊ रामपुरिया जी, श्री ललित शर्मा जी, श्री राज भाटिया जी, श्री डाO टी एस दराल जी, श्री मो सम कौन जी, श्री नीरज जाट जी और हरियाणवी पसन्द करने और समझने वालों के लिये स्पेशली प्रकाशित की है।
पिछले कई रविवार से आप इस ब्लाग पर चुटकुले और हरियाणवी मखौल पढते आ रहे हैं। आज आपको कुछ हरियाणवी चुटकुले सुनवाता हूं। "हां, जी" आज पढवाऊंगां नहीं, आज सुनाऊंगां।  आवाज Pawan Dahiya जी की है। पवन दहिया जी हरियाणा के जाने-माने रागिनी कलाकार हैं। 
सभी Jokes जरुर सुनें, छोटी-छोटी फाईलें हैं, मेरा वादा है कि आपको बहुत मजा आयेगा।













12 June 2010

गिरता कोई है और कमर किसी की टूटती है

मुल्‍ला एक मस्‍जिद के नीचे से गुजर रहा है और एक आदमी मस्‍जिद के ऊपर से गिर पडा। अजान पढने चढ़ा था। मीनार पर, ऊपर से गिर पडा। मुल्‍ला के कंधे पर गिरा। मुल्‍ला की कमर टूट गई। अस्‍पताल में मुल्‍ला भर्ती है, उसके शिष्‍य उसको मिलने गए और शिष्‍यों ने कहा, मुल्‍ला इस र्दुघटना से क्‍या मतलब निकलता हे। आऊ डू इन्‍टरप्रीट इट इस घटना की व्‍याख्‍या क्‍या है? क्‍योंकि मुल्‍ला हर घटना की व्‍याख्‍या निकालता था। आगे पढें…………

07 June 2010

आपको बुरा लगे तो लगे मगर यह जरूर कहूंगा

image गाय-भैंस एक बार बहुत सारा चारा खा लेती हैं और बाद में आराम से बैठ कर जुगाली करती हैं। मेरी ये पोस्टें भी मेरी जुगाली ही है। पिछली ब्लागर मीट ने मेरे दिमाग में कुछ विचार भर दिये हैं। इस ब्लागर मीट में मुख्य मुद्दा "संगठन" था। लेकिन इससे भी अहम मुद्दा जो कई बार उठाया गया है, पर ध्यान कम दिया जाता है, वो है हिन्दी ब्लाग्स पर "पाठकों की कमी" का। श्री रतन सिंह शेखावत जी ने भी इसे उठाया था और कुछ सुझाव भी दिये थे। 

यहां मैं अपनी बात कहूंगां। मैं अपने नाम AMIT GUPTA को सर्च कर रहा था तो दुनिया मेरी नजर से  का  पेज खुला। उन्हें पढते-पढते मैं भी ब्लागर बन गया। आज भी ज्यादातर लोग कुछ भी सर्च करते हैं, तो रोमन में ही लिखकर सर्च करते हैं। बहुत कम ऐसा होता है कि रोमन में सर्च किये शब्द से कोई हिन्दी का पेज खुले।  तो क्यों ना हम अपनी पोस्टों में एक-आध शब्द या लेबल में रोमन का जरूर प्रयोग करें। (सच बताईयेगा क्या आप भी कुछ सर्च करते वक्त रोमन लिपि का उपयोग नहीं करते हैं) अजी रूकिये गुस्सा होने से पहले पूरा तो पढ लें। मैं इसे अंग्रेजी का सहारा लेना नही कहता, बल्कि इसका फायदा उठा कर अपना काम निकालना कहता हूं। हां हम इतने पेज नेट पर हिन्दी में लिखते चले जायेंगें कि, कोई कुछ भी सर्च करे, उसे हिन्दी का पेज जरूर दिखायी दे या सर्च लिस्ट में आये। इससे हिन्दी पढने के बाद नये लोग भी हिन्दी में लिखना चाहेंगें। पाठक बढेंगें तो हिन्दी ब्लागस भी बढेंगें।

एकदम से कोई भी गंभीर विषय पढना और लिखना नहीं शुरू कर देता है। नये पाठकों को लंबी और गंभीर पोस्टें नहीं, बल्कि हल्की-फुल्की, छोटी और मसालेदार ज्यादा आकर्षित करती हैं। तीन वर्ष पहले मैं ना जाने क्या-2 वेबसाईट खोल कर बैठा रहता था। फिर केवल उन्हीं ब्लाग्स से आकर्षित हुआ जिनपर चुटकुलें या विवाद होता था। आज गंभीर विषयों और सामाजिक पोस्टों में भी दिलचस्पी बढ गयी है। यहां श्री अजय झा जी की बात सही लगती है कि नकारात्मक पोस्टों के भी सकारात्मक नतीजे हो सकते हैं।  पिछले कुछ विवादों ने भी हमें कई नये ब्लाग्स दिये हैं।

आपको बुरा लगे तो लगे मगर यह जरूर कहूंगा कि लंबे-लंबे वक्तव्य, भाषण और पोस्ट चाहे जितने मर्जी गूढ हों, उन्हें सुनना और पढना बहुत दुरूह होता है। श्रोता और पाठक ऊबने लगता है और उसका ध्यान बंट जाता है।  समय सीमा का ध्यान रखकर हमें अपनी बात जल्द से जल्द और कम शब्दों में कहकर समाप्त करनी चाहिये, ताकि दूसरे लोग भी अपने विचार बता सकें, रख सकें।

06 June 2010

उतारूं तेरी आशिकी, एक थप्पड लगेगा ना

दांत दर्द से परेशान एक औरत - दांत निकलवाने से तो प्रेग्नेंट होना बेहतर है
दंत चिकित्सक - अभी भी सोच लो, क्या करवाना है, फिर मैं उसी हिसाब से चेयर सैट करूंगां
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टीचर - तुम बडे होकर क्या करोगे
फत्तू - जी, शादी
टीचर - नहीं, मेरा मतलब है क्या बनोगे
फत्तू - दूल्हा
टीचर - अरे न्न्न च्च्च, मैं ये जानना चाहती हूं कि, तुम बडे होकर क्या हासिल करोगे
फत्तू - दुल्हन
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फत्तू चौधरी ने एक बार एक लडकी को प्रपोज किया।
फत्तू - मन्नै तू बहोत सुथरी लागै सै, मैं तेरे तै प्यार करूं सूं
लडकी - उतारूं तेरी आशिकी, एक थप्पड लगाऊंगीं
फत्तू - फेर मुक्का नही खावेगी
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फत्तू ने मोबाईल कम्पनी के कस्टमर केयर पर फोन लगाया।
फत्तू - सर, मेरी भैंस ने सिम कार्ड खा लिया है और दूसरे गांव में भाग गई है
कस्टमर केयर से - तो मैं क्या करूं
फत्तू - जी पूछना ये था कि रोमिंग चार्ज तो नहीं लगेगा
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सडक पर एक दुर्घटना हो गयी। बहुत भीड खडी थी। फत्तू देख नही पाया कि क्या हुआ। वो जोर-जोर से रोने लगा - "हाय मेरा बापू, हाय मेरा बापू" कहने लगा। लोगों ने हटकर रास्ता दिया तो देखा कुत्ता मरा पडा था।
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रलदू ने अपने बेटे फत्तू को पडोसी से आयोडेक्स लेने के लिये भेजा। 
फत्तू - बापू, पडोसियां नै आयोडेक्स ना दी, बोले खत्म हो रही सै
रलदू - साले, बहोत कंजूस पडोसी सैं म्हारे, खैर देखांगें उननै भी, मेरी अलमारी म्है आयोडेक्स की नई शीशी धरी सै, ला वही दे-दे

05 June 2010

संगठन एक नही बनता, दो बनते हैं

मैं संगठन का सदस्य नहीं बनना चाहता हूं। लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि मैं संगठन का विरोधी हूं। मैं ना किसी विचार का पक्ष लेना चाहता हूं और ना विपक्ष में हूं। आमतौर पर किसी का समर्थन करने को, दूसरे का विरोध समझ लिया जाता है। (अगर मैं कहूं कि अभी दिन नहीं है, तो समझा जाता है कि रात है। लेकिन दिन और रात के बीच में संध्याकाल भी होता है)। ऐसा कह सकता हूं कि अभी मैं संगठन के काबिल नहीं हूं या अभी मेरी बुद्धि इतनी परिपक्व नहीं है कि मैं किसी संगठन का सदस्य बन सकूं।

समय, स्थान और स्थिति के साथ मेरी पसन्द-नापसन्द, विचार बदलते रहते हैं। कल क्या हो, कौन जाने? आज तो मुझे लगता है कि संगठन बना कर जब किसी का व्यक्तिगत विरोध होने लगा तो?  किसी के विचारों पर रोक लगाई जाने लगी तो? तुम्हें ऐसा लिखना चाहिये और ऐसा नहीं लिखना चाहिये, यह बताया जाने लगा तो? कभी किन्हीं दो लोगों के विचार हमेशा एक जैसे नहीं रह सकते हैं। सदस्यों के आपस में ही वैचारिक मतभेद शुरू होंगें तो? छोटा-बडा, नया-पुराना, ऊपर-नीचे वाली मानसिकता की राजनीति इस संगठन में भी प्रवेश कर गई तो?  

मुझे लगता है एक संगठन बनाना मतलब एक विरोधी संगठन भी तैयार करना है। क्या आज भी किसी बात के पक्ष या विपक्ष में समविचारों वाले ब्लागर तुरन्त संगठित नहीं हो जाते हैं।

वैसे तो अधिकतर जागरूक ब्लागर ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं, पर मेरे ख्याल से यह विचार श्री जयकुमार झा जी और श्री अविनाश वाचस्पति जी दोनों के चिंतन से आया है। आप दोनों के अन्दर समाजसेवा का जज्बा है और ब्लागिंग को ऊंचाईयों पर ले जाने के लिये,  भ्रष्टतंत्र  से लडने के लिये ब्लागिंग को एक सशक्त माध्यम बनाने की दिशा में ये एक अच्छा प्रयास हो सकता है।  लगभग सभी  ब्लागर इस पर चिंतन कर रहे हैं। 

श्री जयकुमार झा जी एक क्रांतिकारी लहर बनकर आये हैं और पूरे जी-जान से अपने ईमानदार लोकतंत्र के सपने को पूरा करने में जुटे हैं। एक-एक आदमी को झकझोर कर जगा रहे हैं। बहुत अच्छा कार्य है उनका। आपको अपने कार्य में जल्द से जल्द सफलता मिले, मेरी शुभकामनायें।

"इक ना इक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये,
सुब्हा होने को है माहौल बनाये रखिये"

04 June 2010

ब्लागर मीट रिपोर्ट नहीं, बल्कि

यह एक बढिया ब्लागर मीट थी, जिसमें Blogging के कई सारे Points पर सभी ने अपने-2 विचार व्यक्त किये। जो आप श्री मयंक जी की , श्री अजय झा जी की, श्री पवन चंदन जी की, श्री शाहनवाज जी की,  नुक्कड और अन्य रिपोर्टों में पढ ही चुके होंगें, फोटो भी देख लिये होंगें। मैं यहां ऐसी कोई Report नही दूंगा, बल्कि अपना खुद का अनुभव बता रहा हूं। सबके विचार जानते समझते हुये ऐसा लगा कि ब्लागर मीट समापन का समय बहुत जल्द हो गया है।   
अब सबसे पहले बात बागी चाचा की। बागी चाचा एक कवि हैं और उन्होंनें बहुत ही सुन्दर छोटी सी हास्य कविता का पाठ किया। बागी चाचा से मैं यही कहना चाहूंगां कि उन्हें भी अपना एक ब्लाग जल्द से जल्द बना लेना चाहिये, ताकि हम उनकी रचनाओं का आनन्द निरंतर लेते रह सकें।

 image सुश्री संगीता पुरी जी के बारे में मुझे पहले नहीं पता था कि आप भी दिल्ली में हैं और ब्लागर मीट में आई हैं। आपको दूर से पहचान तो लिया, फिर भी राजीव तनेजा जी से कन्फर्म किया कि संगीता जी ही हैं ना?  सचमुच सुश्री संगीता जी और श्री रतनसिंह जी को देखकर बहुत ज्यादा खुशी हुई। (इनका ब्लाग  गत्यात्मक ज्योतिष पढते-पढते  इनकी एक इमेज सी बन गई थी कि मोटे-मोटे मनकों की माला पहने हुये, एक बुजुर्ग, गंभीर औरत होंगीं, किसी  के हाथ की रेखाओं को पढती हुई)। मैनें कहा कि ब्लाग प्रोफाईल पर लगी आपकी फोटो के अपेक्षाकृत आप बहुत सुन्दर और कम आयु की हैं। मेरी इस बात पर श्री ललित शर्मा जी ने चुटकी ली कि ज्यादा उम्र दिखाती फोटो इन्होंने जानबूझ कर लगाई है। इस बात से हम सब हंस पडे। सदैव से विवादित विषय ज्योतिष पर लिखने के कारण, 50 प्रतिशत विरोधी टिप्पणियों का इन्हें सामना करना पडता है। फिर भी मुस्कुराते हुए अपना कार्य करती रहती हैं। आपके पास बैठकर सकारात्मकता बढ गई है मेरी।

image श्री रतनसिंह जी के साथ मेरी बहुत सारी बातें हुई। कवि श्री भागीरथ सिंह "भाग्य" जी की कविता एक छोरी कालती से लेकर, श्री नरेश सिंह राठौड जी के ब्लाग मेरी शेखावटी के बारे में, शेखावत राज घराने के बारे में। श्री रतन सिंह शेखावत जी ने बताया कि आपके ताऊजी श्री सौभाग्य सिंह शेखावत जी राजस्थान के जाने-माने साहित्यकार हैं। राजस्थान की डिंगल शैली की अनेक महत्त्वपूर्ण पांडुलिपियों को संपादित कर उद्धार करने का कार्य उन्हीं के द्वारा सम्पन्न हुआ है। आज भी देश-विदेशों से शोधार्थी और छात्र आपके पास भाषा शोध और अनुवाद आदि के लिये आते रहते हैं। श्री रतनसिंह जी उनकी रचित कृति और ग्रन्थों को हिन्दी में हमें अपनी  वेबसाईट ज्ञान दर्पण के माध्यम से भी निरंतर उपलब्ध करवा रहे हैं।  ज्ञान दर्पण पर ब्लाग संबन्धी तकनीकी जानकारी भी देते रहते हैं और फोन के माध्यम से भी मदद करने को उत्सुक रहते हैं। श्री रतन सिंह जी ने ब्लागर मीट में हिन्दी ब्लाग्स की पाठक संख्या की कमी पर ध्यान केंद्रित किया और पाठक संख्या बढाने  के तरीकों पर कुछ सुझाव भी दिये।

श्री ललित शर्मा जी से मिलने का इंतजार तो पिछले महिने से ही हो रहा था। इनके ब्लाग पर  जाते ही मुझे लिप्टन टाईगर चाय का विज्ञापन याद आ जाता है। अब टाईगर मेरे सामने था, आक्रामक नहीं, अपितु स्नेहिल। एक रौबिला व्यक्तित्व, ऊर्जा से भरा हुआ, हंसने-हंसाने में माहिर। आपने बताया कि आप  हरियाणा के ही रहने वाले हैं। आपके साथ 24-05-10 यानि मीटिंग के अगले दिन कुछ समय बिताने का मन था। लेकिन लगातार तीन दिन की छुट्टियां (मैं 20-21-22 को हरिद्वार गया था) लेने के कारण 24-25 को आफिस जाना और कार्य अपडेट करना मजबूरी हो गई। लाला जी की नौकरी में ऐसा ही होता है जी।

श्री अजय झा जी ने  एक उदाहरण देकर (कैसे कोई पर्चा बांटने पर लोग बिना पढे फेंक देते हैं और मुडा-तुडा पर्चा देने पर खोल कर जरूर पढते हैं) बताया कि कई बार नकारात्मक पोस्ट भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

पोस्ट काफी लंबी हो गई है। मैं इतनी लंबी-लंबी पोस्ट लिखना और पढना पसन्द नहीं करता हूं। अब यह  गलती हो गई तो हो गई। अगली पोस्ट में इस मीट के मुख्य टापिक "ब्लागर संगठन" पर मैं अपनी ढेंचू-ढेंचू करूंगा।

03 June 2010

ब्लागर मीट के आयोजकों

मैं और नीरज जाटजी जब नांगलोई जाट धर्मशाला के सामने पहुंचें तो देखा श्री अविनाश जी बाहर ही खडे सब आने वालों का स्वागत कर रहे हैं। अन्दर पहुंचते ही   श्री राजीव तनेजा जी और सुश्री संजू तनेजा जी एकदम दौडकर पास आये और हाथ जोड कर स्वागत किया। इतने में ही प्रिय माणिक तनेजा  कोल्ड ड्रिंक्स लेकर आ गये। पहली बात तो इस तरह का आयोजन करना सबके बसकी बात नहीं है। फिर इतनी गर्मी में भाग-भागकर सबका ख्याल रखना, स्वागत करना। इस छोटी उम्र में भी चिरंजीव माणिक  का योगदान सराहनीय है। उन्होंनें सबके ब्लाग, नाम, पते नोट किये, वीडियो बनाये, फोटो ली और सबके जलपान का ध्यान रखा। हम तनेजा परिवार और दूसरे आयोजकों के आभारी हैं। जो इस तरह सबसे मिलने का अवसर हमें दिया गया। (यह पोस्ट ब्लागर मीट के आयोजकों का आभार प्रकट करने के लिये लिखी है)
कुछ लोग जो ब्लागर मीट के आयोजकों पर ऊंगली उठाते हैं, उनसे कहना चाहूंगां कि एक बार वो भी इस प्रकार कोई मीटिंग रख कर दिखायें। लक्ष्मीनगर ब्लागर मीट और आयोजक पर जो कीचड फेंकी गई है, मैं उससे आहत हूं। पैसा खर्चा तो आप कर सकते हैं, मगर सेवाभाव, समर्पण और प्यार कहां से लायेंगें।
चाय, स्नैक्स और कोल्ड ड्रिंक्स तो पूरे समय उपलब्ध रही।  इसके अलावा जब हमें नाश्ता या लंच के तौर पर बडे-बडे पैकिट दिये गये तो मैं सोचने लगा कि इतना कैसे खाया जायेगा। बर्फी, गुलाब जामुन और मिल्ककेक को तो मैनें तुरन्त खा लिया, धीरे-धीरे समोसा भी खा लिया। । आयोजकों से क्षमाप्रार्थी हूं कि मैं ब्रेड पकौडा और अन्य सामग्री खा नही पाया क्योंकि पेट फूलने लगा था।
श्री अविनाश वाचस्पति जी ने सबको सोपानSTEP पत्रिका की एक-एक प्रति भेंट की। श्री प्रवीण पथिक जी, श्री विनोद पाण्डेय जी, श्री मयंक जी, श्री एम वर्मा जी, श्री जयकुमार झा जी, श्री शहनवाज जी, श्री खुशदीप सहगल जी, श्री इरफान जी, श्री सुलभ जी, श्री प्रतिभा कुशवाहा जी  इन सबको सामने देखकर मैं रोमांचित हो रहा था। श्री अजय झा जी द्वारा थोडी-थोडी देर में मुझसे पूछना - "और अमित कैसे हो?" मुझे ऐसा लगने लगा कि अरे मैं भी कुछ हूं।  इन  सब लोगों के साथ बैठ कर मुझे खुद पर गर्व सा होने लगा है।

02 June 2010

हरिद्वार से ब्लागर मीट तक और नीरज जाट जी का साथ

एक चोर के साथ सफर फिर ॠषिकेश में रिवर राफ्टिंग और गंगा में बहने के बाद हम हरिद्वार से दिल्ली वापसी के लिये सुबह 6:00 बजे ही हम आनन्दोत्सव आश्रम से निकल लिये। आश्रम से टैक्सी ने 250 रुपये में हमें ॠषिकुल बस अड्डा, हरिद्वार पर छोडा। हरिद्वार से उत्तरप्रदेश परिवहन की शताब्दी बस में दिल्ली तक का 270 किराया है। इस बस में शायिका नही हैं, लेकिन वातानुकूल यंत्र बहुत बढिया है। मेरी सीट के ऊपर ही AC की सप्लाई पाईप लाईन में एक जगह छेद था और वहां खिडकी का परदा ठूंसा गया था। मैनें इसका भरपूर फायदा उठाया। जब भी ज्यादा हवा की जरूरत होती, मैं इस कपडे को निकाल देता और तेज ठंडी हवा मुझे गरमी में भी सरदी का अहसास करवा देती। मेरे साथ वाली सीट पर एक बहुत सुन्दर कन्या विराजमान हुई। कद काठी और चेहरा देखने पर लगा कि वो किसी स्कूल की छात्रा है। लेकिन बाद में पता चला कि  वो किसी बैंक में नौकरी करती हैं और उनका ट्रान्सफर दिल्ली हो गया है। इसलिये वो दिल्ली में रहने के लिये फ्लैट किराये पर लेने जा रही थी। खूबसूरत सहयात्री के साथ सफर का अपना ही मजा होता है। (बिना कोई बात किये भी बस खूबसूरती को निहारते हुये भी पूरा समय और सफर आराम से निकाला जा सकता है)

दिल्ली बस अड्डा पर पहुंचते ही नीरज जाटजी का फोन आ गया। उन्होंने कहा सीधे मेरे आफिस आ जाओ। अभी 1:00 PM हुआ है, 2:00 PM पर एक साथ ही ब्लागर मीट के लिये नांगलोई धर्मशाला चलेंगें। मैं नीरज जी के आफिस पहुंचा। थोडा कुछ नाश्ता पानी किया। फिर नीरज जाटजी ने ये कुछ फोटो-शोटो खींचे।
इसके बाद हम दोनों नांगलोई ब्लागर मीट के लिये रवाना हो गये।  बातें करते हुये हम जब नांगलोई मैट्रो स्टेशन से बाहर आकर जाट धर्मशाला के बारे में पूछताछ करने लगे तो पता चला कि, हम एक स्टेशन पहले ही उतर गये हैं। जबकि अविनाश जी और एम वर्मा जी ने निमन्त्रण में अच्छी तरह से बताया था कि नांगलोई रेलवे स्टेशन पर उतरना है।  अब मुझे याद आया कि अरे जाट धर्मशाला के सामने से तो मैं कई बार निकला हूं। नीरजजी कहने लगे कि मैट्रो से ही चलते हैं। मगर मैं अब दो मिनट के सफर के लिये बार-बार मैट्रो की सीढियों पर उतरना-चढना नहीं चाहता था और हम रिक्शे पर सवार होकर ब्लागर मीट में पहुंच गये। जारी है….….…

01 June 2010

"ये मैं हूं पापा"

पिछले दो घंटे से चल रही इस मीटिंग में 115 मिनट तो पीने पिलाने में ही निकल गये, बस आखिरी 5 मिनट डील के थे। सौ-सौ के नोटों की गड्डी जेब में डालते हुए उसने फलाना & कम्पनी के मैनेजर को फाईल पास होने और उसका काम हो जाने का आश्वासन दिया।  सोफे से उठते हुए उसने नमस्ते की और बार से बाहर आ गया। कार चलाते हुए भी उसकी लाल हो गई आंखें रोड के साथ-साथ पटरी पर कुछ तलाशती जा रही थी। 
एक बस स्टाप पर दुपट्टा मुंह पर लपेटे हुए, बस का इंतजार करती लडकी के पास जाकर कार रोकी और एक आंख को झटक कर बोला - "ए चलती क्या"
"ये मैं हूं पापा" - आवाज आई।