30 November 2009

ना जी भर के देखा Shyam Di Kamli

"ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
बडी आरजू थी मुलाकात की"

इस एल्बम का नाम है श्याम दी कमली
इस प्यारे भजन  के गायक श्री विनोद अग्रवाल जी  भजन और सूफी गायक के साथ-साथ संत भी हैं। इनके कंठ से निकले गीत मुझे तो झूमने पर मजबूर कर देते हैं।

यह गीत करीबन 30 मिनट का है। इसलिये आप खाली समय में सुनेंगें तो ही इस मधुर संगीत का आनन्द ले पायेंगें। अंतरे में धुन है, आपकी आंखें स्वत: बंद हों जायेंगीं और आपको अपार आनन्द की अनुभूति होगी। 



इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ति है, तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

29 November 2009

ताऊ का साक्षात्कार

आज आपको एक मजेदार बात बताता हूं। शायद आप पहले ही रामप्यारी से सुन चुके हों, लेकिन जिन्होंने नही सुनी उनको तो मजा आयेगा ही। ये तो आपको मालूम ही है के उडनतश्तरी जी, राज भाटिया जी और ताऊ रामपुरिया जी लंगोटिया यार हैं।
तो हुआ नूं के एक बार ये तीनों नौकरी की खातिर इन्टरव्यू देण गये। पहले बारी आई उडनतश्तरी जी की। अन्दर गये और जल्दी ही इन्टरव्यू देकर बाहर आ गये।
ताऊ - हां भाई के सवाल पूछा तेरे तै।
उडनतश्तरी - मेरे से तो ये पूछा के ताजमहल कहां है, नक्शे में बताओ।
फिर राज भाटिया जी का नम्बर आया। भाटिया जी भी जल्दी से इन्टरव्यू दे कर बाहर आये।
ताऊ -  राज तेरे से के पूछा
राज भाटिया जी - मेरे से भी ताजमहल कहां है, नक्शे में पूछा
ताऊ नै सोची ये तो सब तै योए सवाल पूछैं सै। ताऊ नै ताजमहल का बेरा कोनी था। इब ताऊ नै जल्दी-जल्दी नक्शा निकाला और उन दोनों से पूछ कै आगरा ढूंढ लिया और याद कर लिया।
ताऊ की बारी आयी।
साक्षात्कार लेने वाला - आप ये बताईये कि नक्शे में गंगा नदी कहां पर है
ताऊ - जी ताजमहल बता दूं
साक्षात्कार लेने वाला - जी नही आप गंगा नदी बताईये
ताऊ - जी ताजमहल पूछ लो नै
साक्षात्कार लेने वाला - आपको गंगा नदी ही बतानी होगी
ताऊ -  अरै के गंगा-गंगा लगा राखी सै गंगा म्है के डूब कै मरेगा, ताजमहल पूछले नै

यह रचना केवल आपको हंसाने के लिये है। अगर आपको बुरा लगा है तो क्षमाप्रार्थी हूंगा और हटा दूंगा।



27 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)4

रक्षा कवच में छेद
पृथ्वी की सतह से ऊपर आकाश में विद्यमान वायुमण्डल में नाइट्रोजन। आक्सीजन, कार्बनडाइआक्साईड, ओजोन आदि गैसों के मिश्रण से बनी अनेक परतें होती हैं (ऐसा वर्णन वेदों में भी आया है)। इन गैसों में ठोस प्राणवायु (ओजोन) नामक गैस की मात्रा बहुत कम होती है। ओजोन की परत पृथ्वी तल से ऊपर 24 से 48 किलोमीतर के बीच पायी जाती है। यह परत सभी प्राणियों के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह ओजोन नाम गैस की परत सूर्य तथा ब्रह्माण्ड के अन्य नक्षत्रों से आने वाली शक्तिशाली व घातक पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट रे) को पृथ्वी पर आने से रोकती है। साथ ही पृथ्वी पर से अन्तरिक्ष की और जाने वाले ताप विकिरण (इन्फ्रारेड रेडियेशन) को वापस पृथ्वी पर भेजकर जीवों की रक्षा में सहायता करती है। अरबों वर्षों से यह वायु की परत प्राणियों की इस प्रकार दोहरी रक्षा कर रही है।

1985 में वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण में पाया कि अंटार्कटिका महाद्वीप अर्थात दक्षिणी ध्रुव के हिम प्रदेश के ऊपर लगभग 30 किलोमीटर पर वायुमण्डल में ओजोन की परत में एक बडा छेद हो गया है। वहां ओजोन की मात्रा में 20% की कमी हो गई है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर होने वाली कुछ रासायनिक क्रियाओं से पर्यावरण में फैलने वाले प्रदूषण के कारण ही इस ओजोन नामक परत में छिद्र हुआ है। 'क्लोरो फ्लोरो कार्बन' नामक रासायनिक तत्त्व का प्रयोग इस परत के छिद्र होने में बडा कारण है। रेफ्रिजरेटरों, वातानुकूल संयंत्रों, दुर्गन्धनाशक पदार्थों, प्रसाधनों, फास्ट फूड को ताजा रखने वाले साधनों, ग्रीन हाऊसों में इसका प्रयोग किया जाता है। ओजोन नामक परत में छिद्र होने के कारण लोग कैंसर, आंखों में ट्यूमर आदि भयंकर रोगों से ग्रस्त होने लगे हैं।

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)2
पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)3

मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)

26 November 2009

छैऊ का न्यौता

आज आपको सुनाता हूं एक पुराना हरियाणवी मजेदार चुटकुला

एक गांव में नत्थुलाल नाम का आदमी था। उसके सात बच्चे (छह बेटे और एक बेटी) थे, और सब के सब बडे पेटू थे। उनकी लडकी का नाम था शर्मिली । जिसे सब भाई प्यार से सरम कह कर बुलाया करते थे और सबसे छोटे लडके का नाम छैऊलाल था।

मित्रों हुआ नूं के एक बार गाम मै किसे कै दावत थी। उसनै सारे गाम आलां तै जिमण का न्यौता दिया। इन छह भाईयां के घर म्है न्यौता देन की बारी आयी तो सोचा के ये सारे के सारे भाई बहुत पेटु हैं, ये पहलां आगये तै सारे गाम का खाना खा ज्यांगें और इनकै न्यौता नही दिया तो बात गलत हो ज्यागी। तो सोचा एक जणे का न्यौता दे देते हैं। उन्होंने कहा - " नत्थुलाल जी, कल म्हारे यहां छैऊ का न्यौता है। (उन्होंने सबसे छोटे लडके का न्यौता दिया था)

आगले दिन सभी भाई जिमणे के लिये उनके यहां चले गये। मेजबान ने अपना माथा पीट लिया। गुस्से में उनसे कहा - "तम छैऊं के छैऊं जीमण आग्ये, शर्म नहीं आई"

वे छोरे बोले -  "ना जी सरम भैंसा की सानी करन लाग री थी, नूं करो उसका परोसा दे दो हम घरां ले जा कै सरम नै खिला दयांगें।"

छैऊं के छैऊं      -      छह के छह
जीमणा            -      खाना खाना
सानी                -      चारा

25 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)3

खाद्यान्नों की बढती हुई मांग को पूरा करने के लिये खेतों में रासायनिक खादों का अन्धाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। परिणामस्वरूप कृषि योग्य उपजाऊ भूमि की उर्वरा तथा जलधारण करने की शक्ति/क्षमता एवं चिकनाई समाप्त होती जा रही है तथा खाद्यान्न के उत्पादन में जो उत्कृष्टता थी वह भी नष्ट हो गई है।

मुम्बई के इन्स्टीट्यूट आफ साइंस (बायो कैमिस्ट्री विभाग) के वैज्ञानिकों ने पिछले वर्षों में स्थानीय फलों व सब्जियों की जांच की तो पाया कि इनमें कीटनाशक जहरीली दवाओं के अंश बहुत अधिक मात्रा में विद्यमान हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार जो वस्तु मनुष्य को स्वस्थ, बलवान, स्फूर्तिमान रखती है उस वस्तु का नाम ओषजन (Oxygen) या प्राण है। इस प्राणवायु ओषजन में आज धूल, सीसा, पारा व अन्य अनेक जहरीली गैसें मिल गयी हैं। जब इस विषैली प्राणवायु को हम फेफडों में भरते हैं तो ये सब हमारे फेफडों के माध्यम से रक्त में मिल जाते हैं और सारे शरीर में फैल कर विभिन्न रोगों को उत्पन्न करते हैं।


पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)2
मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)



24 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)2

अब आगे….……
नदी, नहरें, तालाब, झीलें, कुएँ जो सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं, क्लोराइड्स, पेस्टिसाईड्स व अन्य अनेक प्रकार के जहरीले रसायनों से भयंकर प्रदूषित हो गये हैं। परिणाम स्वरूप इनका पानी उत्तम फसल उत्पन्न करने में असमर्थ है।

प्रदूषण के कारण ही प्रकृति का वर्षा चक्र (मानसून) अनिश्चित व असंतुलित हो गया है। साथ ही कहीं-कहीं पर तो वर्षा का पानी इतना अम्लयुक्त (Acidic) होता है कि अच्छी फसलें भी नष्ट हो जाती हैं।

जंगलों की अन्धाधुंध कटाई, नदी, नालों, तालाबों, खेतों में फेंकी जाने वाली गंदगी या कूडे-कचरे के कारण पौधों की कार्बन-डाई-आक्साइड को ग्रहण करने तथा पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन को छोडने की प्राकृतिक प्रक्रिया मन्द होती जा रही है। वैज्ञानिक कहते हैं कि बढते जा रहे वायु प्रदूषण पर यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो कुछ वर्षों बाद ऐसी स्थिति बन जायेगी कि मनुष्यों को अपने साथ प्राणवायु का थैला (Oxigen Gas Cylinder) बांधकर रखना होगा।
पीने के लिये खनिज जल (Mineral Water Bottle) तथा नाक को ढकने के लिये कपडे की पट्टी (Mask) का प्रचलन हो गया है।

अगली कडी में पढेंगें फलों, शाकों और सब्जियों में जहर

अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)

23 November 2009

पत्थर की राधा प्यारी

भजन, संगीत, गाने, कलाम आदि हम सुनते हैं तो मन प्रफ्फुलित हो जाता है। दिमागी तनाव  और शारीरिक थकान  भी दूर हो जाती है। फिल्मी और उल्टे-सीधे गाने तो हम सब जगह सुनते ही रहते हैं।
आज आप सुनिये एक बहुत ही प्यारा भजन । बस आप प्ले का बटन दबाईये और आंखें बंद कर के बैठ या लेट जाईये। सचमुच आपको आत्मिक, शारीरिक और मानसिक सुकून मिलेगा । 
घबराईये नहीं यह भजन ज्यादा बडा नही है, बिल्कुल छोटा सा लगभग 8 मिनट का ही है। आशा है कि आपको पसन्द आयेगा । Pathar ki Radha Pyari



इस पोस्ट के कारण गायक, रचनाकार, अधिकृता, प्रायोजक या किसी के भी अधिकारों का हनन होता है या किसी को आपत्ति है, तो क्षमायाचना सहित तुरन्त हटा दिया जायेगा।

22 November 2009

दारूबाज फत्तू चौधरी

फत्तू चौधरी दारू घणी पिया करता। मां संतो अर बाब्बू रलदू  चौधरी उसकी इस आदत तै घणे दुखी हो रह्ये थे। रोज फत्तू नै समझाते - "बेटा दारू मत पिया कर, दारू बहोत बुरी चीज सै।
पर फत्तू उनकी बात एक कान तै सुनता अर दूसरे कान तै निकाल देता।

एक सांझ जब फत्तू दारू पी कै आया तो संतो और रलदू फेर उसनै समझान लागगे और बुरा-भला कहन लागगे।
फत्तू बोला - बाब्बू तन्नै कदे दारू पी सै ?
रलदू - ना बेटा, मन्नै अपनी जिन्दगी म्है कदे दारू नहीं पी।
फत्तू - बाब्बू आज एक काम कर तू मेरे गेलां दो-दो पैग पी ले, फेर जै तू सवेरे कहवैगा तै मैं कदे भी दारू नही पीयूंगा।
रलदू - अरै छोरे के बकवास कर रह्या सै तू। तन्नै शरम भी नही आई या बात कहते।
फत्तू - बाब्बू मैं कसम खाऊं सूं । मैं कल के बाद कदे भी दारु कै हाथ नही लगाऊंगा, पर शर्त या सै के आज तन्नै मेरे साथ पीनी पडेगी।
संतो - फत्तू के बाब्बू , जब छोरा कसम खावै सै तो आज यो काम भी कर कै देख ले। कितने जतन तो हमनै कर लिये इसकी दारू छुडाने के लिए। आज तू पी लेगा तो कल से यो दारु जिन्दगी भर के लिये छोड देगा।

बेटे की भलाई के वास्ते संतो के कहने से रलदू नै फत्तू के साथ विडियो पै गाने सुनते-सुनते दो-तीन पैग चढा लिये ।

कुछ दारू का नशा और कुछ गाने का, ऊपर तै चालती सीली-सीली हवा रलदू का मूड हो गया रोमांटिक, रलदू अपने कमरे मै नाचता - नाचता और गाना गाता पहुंचा तो उसनै संतो भी सुथरी-सुथरी सी लाग्गी।  रलदू नै अपनी जवानी के दिन याद आगये और उसकी लच्छेदार बातां से संतो भी खुश होगी ।

सवेरे उठते ही फत्तू बोला - "बाब्बू ठीक सै अगर तू कहवै तो आज से मैं कदे भी दारू नही पीयूंगा।"
रलदू बोलता उससे पहलां ही संतो बोली - "बेटे फत्तू , तू दारू छोड चाहे पी, तेरी मर्जी,  पर तेरा बाब्बू आज के बाद रोज पिवैगा।"

 
यह पोस्ट केवल आपको हंसाने के लिये है । कृप्या इसे हल्के-फुल्के अंदाज में लें। 
अगर किसी को आपत्ति है तो हटा दी जायेगी।

21 November 2009

पर्यावरण प्रदूषण (समस्या और कारण)1

गतांक से आगे
विषय भोगों को अधिकाधिक मात्रा में भोगने की लालसा ही, आज के संसार में उत्पन्न हुवे अनियंत्रित औद्योगिकीकरण के पीछे मुख्य कारण है। इसी के परिणाम स्वरूप आज सडकों, नहरों, बांधों, रेलों, कारों, बसों, संचार साधनों, कल-कारखानों, तकनीकी यंत्रों का जाल सा बिछ गया है । खाद्यान्नों, सब्जियों, फलों आदि का उत्पादन अधिकाधिक करने के लिये रासायनिक खादों तथा कीटनाशक औषधियों का अन्धाधुंध प्रयोग किया जा रहा है । इन सब के माध्यम से आज का अधिकांश जनसमुदाय भोग विलास की सामग्री में लिप्त होता चला जा रहा है।

भोग सामग्री बढी, भोग बढा, किन्तु इन कल-कारखानों, वाहनों तथा रासायनिक खादों आदि से उत्पन्न होने वाली महाविनाशकारी गैसों, धुएं और बीमारियों ने आज तबाही मचा दी है । अनियंत्रित औद्योगिकीकरण के परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर प्रदूषण रूपी महाभंयकर भस्मासुर उत्पन्न हो गया । इस राक्षस के चंगुल में हवा, पानी, मिट्टी, ध्वनि, प्रकाश, आकाश सभी कुछ आ चुका है । विश्व के सभी बुद्धिजीवियों, विशेषकर वैज्ञानिकों को भी इस विषय पर संशय हो गया है कि ऐसी पृथ्वी पर मानव जाति भविष्य में जीवित भी रह पायेगी या नहीं । अग्निहोत्र यूनिवर्सिटी अमेरिका द्वारा प्रकाशित "Wholistic Healing"
पुस्तक में तो स्पष्ट कह दिया गया है कि "प्रदूषण से उत्पन्न महाविनाश के खिलाफ सामूहिक तौर पर यदि कोई उपाय न किया गया तो इस युग में मानव जीवित नहीं रह पायेगा" ।

मनुष्य जाति जिस खाद्य सामग्री का प्रयोग करती है, उसका अधिकांश भाग अन्न, शाक, फल, फूल, वनस्पति, कन्द, मूल, औषधि आदि के रुप में होता है । ये सब खाद्य पदार्थ मिट्टी, पानी, हवा तथा सूर्य के प्रकाश से उत्पन्न होते हैं । शेष भाग पशु, पक्षी, मछली आदि के माध्यम से प्राप्त होता है, ये भी अन्तत: वनस्पति आदि खा कर ही जीते हैं । आज धरती, पानी, वायु आदि के प्रदूषित होने के कारण खाद्य पदार्थ पोषक तत्त्वों से रहित अशुद्ध और शक्तिहीन बन गये हैं ।

20 November 2009

दीपक, धूप, अगरबत्ती, मोमबत्ती किसलिये

विश्व के लगभग सभी मत, पंथ, सम्प्रदायों में चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम, ईसाई हों या यहूदी, पारसी हों, बौद्ध या जैन, यहां तक कि पिछडे प्रदेशों में रहने वाली जंगली जातियों व कबीलों में भी, किसी न किसी रूप में यज्ञ की प्रथा आज भी विद्यमान है। देश, काल व परिस्थितियों के कारण विशुद्ध वैदिक यज्ञ के स्वरूप व क्रिया में भेद तथा विकृति उत्पन्न होती चली गयी। धार्मिक लोग, दीपक, मोमबत्ती, धूप, धूनी, अगरबत्ती आदि के रूप में इस परम्परा को बनाये हुये हैं।

"इन क्रिया कांडों का क्या प्रयोजन है" ऐसा प्रश्न किये जाने पर सभी के उत्तर में यही भाव निकलते हैं कि वे यह कार्य सुख, शान्ति, स्वास्थय, शक्ति, को प्राप्त करने तथा प्राकृतिक प्रकोपों, रोगों, भयों व अनिच्छित घटनाओं को रोकने के लिये करते हैं। यद्यपि वेदादि शास्त्रों में यज्ञानुष्ठान का विधान है, किन्तु धर्मग्रन्थों पर आस्था न रखने वाली आज की नई पीढी, जो केवल विज्ञान, तर्क, युक्ति तथा प्रत्यक्ष प्रमाणों पर ही विश्वास रखती है, को ध्यान में रखकर, कुछ तथ्यों व घटनाओं का संकलन किया गया है।

प्रभु कृपा से समस्त मनुष्य समाज, अपनी त्यागी हुई, विशुद्ध यज्ञ परम्परा को, पुन: अपनी दिनचर्या में अपनाये तथा प्रदुषण के दुष्प्रभाव से परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को बचाकर उसे सुखी, सम्पन्न बनाये।

अपनी पिछली चिट्ठी में मैनें रेलगाडी में हुई सुभाष चन्द्र से मुलाकात और उनके द्वारा मुझे दी गयी भेंट एक लघु पुस्तक के बारे में बताया था। ऊपर लिखी गई पंक्तियां उसी "पर्यावरण प्रदूषण" नामक पुस्तक से ली गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के सम्पादक-लेखक हैं - ज्ञानेश्वरार्य: दर्शनाचार्य (M.A.)
दर्शन योग महाविद्यालय, आर्य वन, रोजड,
पोO सागपुर, जिला साबरकांठा (गुजरात-383307)


मुख्य वितरक - आर्य रणसिंह यादव

अगली चिट्ठी में पर्यावरण प्रदूषण (समस्या, कारण और निवारण)

17 November 2009

वो विक्षिप्त नही है

ट्रेन में चढते ही विकास ने थोडा सरक कर बैठने के लिये जगह दे दी। सीट के कोने पर मैं बैठ तो क्या गया बस किसी तरह अटक गया। तभी विकास ने कहा "अपने साथ वाले का ख्याल रखना, यह अपंग है"।

मैनें उस तरफ देखा तो एक नवयुवक (सुभाष) चेहरे-मोहरे से आकर्षक, ब्राण्डेड जींस और टीशर्ट में बैठा हुआ था। गले में मोटे-मोटे मोतियों की माला, एक सोने की चैन, शिवजी की तस्वीर वाला लाकेट और रुद्राक्ष की माला पहने हुये था। एक हाथ पर सुन्दर कलाई घडी और दूसरे हाथ पर बहुत बडा सारा लाल धागा बंधा था। मस्तक पर तिलक और पैरों में अच्छे स्पोर्ट्स शूज थे। हाथ में पकडे मोबाईल पर प्यारे-प्यारे भजन सुन रहा था।
(भजन पूरे सफर जो लगभग डेढ घंटे का था, बजते रहे थे)

मैनें सुभाष से कहा - मेरे यहां बैठने से आपको कोई परेशानी तो नहीं हो रही है।
उसने कहा - नहीं
फिर मैनें अपने बैग से एक किताब निकाली।
(मैं सफर के दौरान समय काटने के लिये पढना पसंद करता हूं)

तभी सुभाष ने भी अपने बैग से किताबें निकाली।
भारत का स्वाधीनता संग्राम, सुभाषचन्द्र बोस की जीवनी और एक किताब स्वेट मार्डेन की आत्मविश्वास के विषय पर और एक वैदिक धर्म के बारे में ।
इनके अलावा बहुत सी अच्छी-अच्छी किताबें थी उसके पास

मैनें उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम सुभाषचन्द्र बोस बताया। एक सहयात्री ने व्यंग्य से मुंह बिचकाया। लेकिन मुझे विश्वास हो गया कि इसका नाम सुभाष ही है। एक सहयात्री ने सुभाष से पूछा कि "आपको कब से ऐसा है"।
उसने कहा - "पता नही"।
मुझे अब तक सुभाष में इतना असामान्य सा कुछ नही दिखा जिसके कारण उसे अपंग कहा जाये। सिवाय एक बात के कि उसका उच्चारण थोडा अस्पष्ट था और लिखते वक्त अंगुलियां कंप रही थी।
मैनें कहा - "क्या हुआ है आपको, एकदम ठीक तो हो"।
सुभाष - पता नही कोई कहता है मैं विक्षिप्त हूं और कोई कहता है कि बिल्कुल ठीक हूं।
उसके बाद मेरी और सुभाष की ढेरों बातें हुई। घर-परिवार, काम-धंधे और उनकी रुचि के बारे में।
मुझे सुभाष सीधा-सादा और धार्मिक प्रवृति का आदमी लगा। लेकिन उसकी बातों में काफी समझदारी थी।
चलते वक्त उसने मुझे एक छोटी सी पत्रिका (पर्यावरण प्रदूषण) भी भेंट की है। इस किताब में से कुछ बातें आपको अगली चिट्ठियों में लिखूंगा।

किसी को जाने बिना लोग क्यों उस के बारे में अपनी राय बना लेते हैं?

12 November 2009

सिरसा एक्सप्रेस, एक रोता बच्चा,और बदलती विचारधारा

रेलगाडियों में कितनी भीड-भाड होती है, खासकर उन गाडियों में जो सुबह किसी महानगर को जाती हैं और शाम को वापिस आती हैं। ऐसी ही एक गाडी है सिरसा एक्सप्रैस जिससे मुझे रोजाना सफर करना होता है। सिरसा से नईदिल्ली (समय 9:30) की तरफ सुबह आते हुये यह गाडी 4086 डाऊन और शाम नईदिल्ली (समय 6:20) से सिरसा जाते हुये 4085 अप होती है। इन गाडियों में ज्यादतर दैनिक यात्री ही होते हैं जो सुबह-सवेरे अपने व्यव्साय, नौकरी, दुकान के लिये सुबह निकलते हैं और शाम को वापिस लौटते हैं। इन गाडियों में आरक्षण नही होता है। चार लोगों की जगह पर 7 या 8 और एक जन की जगह पर 2 या 3 लोगों को बैठना पडता है। ऊपर वाली बर्थ जो सामान रखने के लिये बनाई गई है उस पर भी 4-5 लोग बैठे रहते हैं। यहां तक कि शौचालय के अन्दर और बाहर भी लोग खचाखच होते हैं और दरवाजों पर भी लटके रहते हैं।

दैनिक यात्री तो एडजस्ट कर लेते हैं मगर जो यात्री कभी-कभार ही रेल में सफर करते हैं, उन्हें तो बहुत परेशानी होती है। आये दिन किसी ना किसी की किसी ना किसी से झडप होना आम बात है।

एक मां सीट के एक कोने पर आने-जाने वाले रास्ते की तरफ बैठी है, (बल्कि फंसी हुई है) गोद में 8-9 महिने का बच्चा है।
विचारधारा - गरीब है, शायद अकेली है, शायद विक्षिप्त है, पता नही कहां से आ गई होगी, क्या मालूम कहां जाना है, क्या पता भिखारिन हो।
मां को नींद आने लगी है, ऊंघते ही गोद से बच्चा फिसलने लगता है, संभालती है।
साथ बैठे यात्री का दबाव भी महसूस होता है उसको थोडा हटने के लिये कहती है।
गाडी किसी स्टेशन के आऊटर पर रुकी हुई है। खचाखच भीड के कारण गर्मी बढ गई है।
बच्चा रोने लगता है, चुप कराने की कोशिश।
बार-बार बच्चा रोते-रोते गोद से फिसल कर नीचे फर्श पर चला जाता है।
उठाती है, संभालती है, गुस्सा करती है, ऊंघने लगती है ।
मगर बच्चा चुप होने का नाम नही ले रहा है।
बच्चे को छाती से लगाती है, मगर वह दूध नही पीना चाहता।
(विचारधारा - खुद खाली पेट है, दूध कहां से आयेगा)
दो-तीन झापड लगाती है। बच्चा और तेजी से रोने लगता है।
मेरा दिल (शायद दूसरे लोगों का भी) पसीजने लगता है।
बच्चे से बात (बहलाने) करने की कोशिश करता हूं।
मां से बच्चे की टोपी उतारने के लिये कहता हूं।
(विचारधारा - शायद बच्चे को गर्मी लग रही है)
(सर्दियों का मौसम शुरू होने लगा है, रात का मौसम और ट्रेन में हवा लगती है, इसलिये बच्चे को ढेर सारे गर्म कपडे पहनाये हुए हैं)
मां ऊंघते हुए ही ऊनी टोपी को खींच कर उतार देती है।
बच्चा रो रहा है, बच्चे को पानी पिलाने के लिये कहता हूं। मां कोई जवाब नही देती।
(विचारधारा - (शायद बच्चे के पेट में दर्द है)
मां बच्चे का स्वेटर उतारती है।
ट्रेन चल पडी है। बच्चा अब भी रो रहा है।
मैं - "अगर आप के पास पानी नही है तो मैं देता हूं"
कोई जवाब नही।
मां ऊपर वाली बर्थ के एक कोने की तरफ देखती है।
मैं भी देखता हूं, एक आदमी दो बच्चों को गोद में चिपकाये अधलेटा सा सो रहा है।
उसके साथ बैठे दूसरे लोगों से उस आदमी को जगाने के लिये कहता हूं।
बच्चे का पिता गुस्सा करते हुये और मां को तेज-तेज डांटते हुये नीचे आता है।
(विचारधारा - बुरा आदमी, क्या इसे बच्चे का रोना सुनाई नही दे रहा है)
आस-पास बैठे लोग - इसे (मां को) क्यों गुस्सा कर रहे हो
बच्चे का पिता - बाऊजी तीन दिन से सफर के कारण सोये नही हैं,
अपनी नींद पूरी करें या इनकी
लोग - पहले बच्चों की नींद पूरी कर दो तो तुम भी सो पाओगे
पिता अपने सामान में से पानी की बोतल निकाल कर बच्चे को पानी पिलाता है
पिता बच्चे को गोद में लेता है और चुप कराने की कोशिश
(विचारधारा - अच्छा आदमी, वह आदमी बहुत सुन्दर है)
बच्चा अब भी रो रहा है, बच्चे का ऊपर का एक कपडा और उतारा गया, एक पैंट उतारी गई
बदबू सी आने लगी है, दूसरी पायजामी हटा कर देखो
अब पता लग गया है, बच्चे के इतना रोने का कारण
मां और पिता बच्चे को धो कर लाते हैं।
बच्चा चुप है। पिता, बिस्कुट निकाल कर अभिषेक (यही नाम है बच्चे का) को देता है।
पिता अपनी जगह पर चला गया है।
मां सो गयी है, अभिषेक मां की गोद में बैठा मजे से बिस्कुट खा रहा है और हमारी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा है, कितना प्यारा बच्चा है।

11 November 2009

मेरा यार बादशाह है

पेश है मेरा पसंदीदा एक बहुत प्यारा कलाम जो आपको झूमने पर मजबूर कर देगा और दिली सुकून भी देगा। यह कव्वाली सोनिक इन्ट्रप्राईजेज की पेशकश है। इसको लिखा है जीरो बान्दवी ने, म्यूजिक दिया है मोहम्मद ताहिर ने और फनकार हैं अनवर साबरी कव्वाल फिरोजाबादी
मैं रू-ब-रू ए यार हूं का दूसरा रूख Mera yaar Baadshaah hai



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