11 October 2008

लव मैरिज

पहले राहें मिलती हैं
राहें मिलती हैं तो निगाहें मिलती हैं
निगाहें मिलती हैं तो ख्यालात मिलते हैं
ख्यालात मिलते हैं तो जज्बात मिलते हैं
जज्बात मिलते हैं तो हाथ मिलते हैं
हाथ मिलते हैं तो दिल मिलते हैं
दिल मिलते हैं तो गले मिलते हैं
गले मिलते हैं तो जिस्म मिलते हैं
जिस्म मिलते हैं तो बच्चे गिनते हैं

बच्चे गिनते हैं तो मजबूरियां होती हैं
मजबूरियां होती हैं तो दूरियां होती हैं
दूरियां होती हैं तो फ़ासले होते हैं
फ़ासले होते हैं तो फैसले होते हैं
एक बेटा और बेटी तुम ले लो
एक बेटा और बेटी हम ले लें

बेटे विदेश चले गये बेटियां ससुराल चली गई
अकेला बूढा रह गया अकेली बूढी रह गई
एक आंगन सूना रह गया दो खाटें टूटी रह गई
खांसते-खांसते बूढे की सांसे फूल गई
बुढिया पिछले गिले सब भूल गई
मरते हुये बूढे की सेवा कुछ इतनी कर गई
कि बूढे के साथ बुढिया भी मर गई

3 comments:

  1. प्रिय अन्‍तर सोहिल,
    आपकी कविता लव मैरिज पडी। अच्‍छी है पर लगा जैसे मुनि श्री तरूण सागर जी के प्रवचन का काई पन्‍ना पड लिया हो अगर तरूण सागर जी को न जानते हो तो किसी जैनी भाई से कडवे वचन नामक सीडी ले कर अवलोकन करें।

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  2. Anonymous जी नमस्कार
    यह कविता मेरी रचना नही है। मुझे तो कविता का क ख ग भी नही आता है। कृप्या आप मूल लेखक को साधुवाद दीजिये।
    यह कविता मैनें स्कूल के दिनों में कहीं से पढकर एक डायरी में लिख रखी थी, जिसे सहेजने के लिये मैनें इसे डिजिटल कर दिया है। मुझे इस रचना के लेखक या रचियता का नाम भी नही मालूम है। अगर आपको पता चल जाये तो मुझे बताईयेगा। आपकी बडी कृपा होगी।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  3. और हां जी मैने तरूण सागर जी को सुन रखा है और उनके क्रांतिकारी विचार मुझे पसंद भी आते हैं।

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मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।