इतना ही है जरुरी तो तुम भी चले जाओ
किस मोड पर मिलोगे कुछ तो मगर बताओ
मत छोडना इसे तुम दिल राख हो गया है
ये जल चुका है इसको अब और न जलाओ
हमने तुम्हें तो अब तक कुछ भी नही कहा है
इस बार भी वो झूठी कसमें नहीं उठाओ
हम गौर से सुनेंगें मजबूरियां तुम्हारी
सच सच मगर कभी कुछ तो हमें बताओ
मुंबई में जो कुछ हुआ उसके लिया बहुत दुखी हूँ. मन हल्का करने के लिए यहाँ चला आया हूँ.
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़ी, रचना काफ़ी सशक्त है. मेरी बधाई स्वीकार करें
@ मनुज मेहता जी नमस्कार
ReplyDeleteयह रचना मेरी नहीं है जी, स्कूल के दिनों में मैनें कहीं से अपनी डायरी में नोट की थी।
प्रणाम
किसी को रचनाकार का नाम मालूम हो तो कृप्या मुझे भी बतायें, आभार होगा।
ReplyDelete