उनकी हया से हाय हम तो बाज आये
ख्वाबों में भी बुलाया तो परदे में ही वो आये
वही चुनींदा से चेहरे वही पहचाने से लोग
किसी को देखकर तो हो ये नजर हैरान कभी
तेरी जिन झील सी आंखों में हम कैसे खोये रहते थे
उन्हीं आंखों का मिलना अब मुश्किल सा लगता है
रह गई बेशर्म यादें लुट गये रंगीन वादे
एक अकेलापन ही अब अपना साथी लगता है
ये क्या कि हम पर नजर-ए-करम न डाले
हम भी तो हैं जमीं पर ए आसमां वाले
कभी हम खुद को इतना लाचार पाते
सब समझते सोचते फिर भी खो जाते
No comments:
Post a Comment
मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।