11 October 2008

राजीव ने नेपाल में

उनकी हया से हाय हम तो बाज आये
ख्वाबों में भी बुलाया तो परदे में ही वो आये

वही चुनींदा से चेहरे वही पहचाने से लोग
किसी को देखकर तो हो ये नजर हैरान कभी

तेरी जिन झील सी आंखों में हम कैसे खोये रहते थे
उन्हीं आंखों का मिलना अब मुश्किल सा लगता है
रह गई बेशर्म यादें लुट गये रंगीन वादे
एक अकेलापन ही अब अपना साथी लगता है

ये क्या कि हम पर नजर-ए-करम न डाले
हम भी तो हैं जमीं पर ए आसमां वाले

कभी हम खुद को इतना लाचार पाते
सब समझते सोचते फिर भी खो जाते

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