01 October 2008

सपना का प्रेमपत्र

हांलाकि मौसम भी है नशीला
पर जरा भी नशा न हुआ मुझको
सनम मैनें पी कर भी देख ली
फिर भी भुला ना सकी तुझको

रुह-ए-मजार पर यहां मिसरा खुदायेंगें
मर जायेंगें पर दिल न किसी से लगायेंगें

देर से लाश तडपती थी पी के इंतजार में
क्या कफन भी नहीं मिलता इस बेवफ़ा बाजार में

आयेंगें आपके घर कुछ गम न करेंगें
बोला न करोगे आप, हम आपको देखा तो करेंगें

वृंदावन की सूखी लकडी मथुरावन की घास
मैं जाऊंगीं नेपाल में मगर दिल रहेगा आपके पास

पंजाब से आया पंछी जा बैठा कश्मीर
मिलने को दिल करता है मिलने नही देती तकदीर

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