पहले राहें मिलती हैं
राहें मिलती हैं तो निगाहें मिलती हैं
निगाहें मिलती हैं तो ख्यालात मिलते हैं
ख्यालात मिलते हैं तो जज्बात मिलते हैं
जज्बात मिलते हैं तो हाथ मिलते हैं
हाथ मिलते हैं तो दिल मिलते हैं
दिल मिलते हैं तो गले मिलते हैं
गले मिलते हैं तो जिस्म मिलते हैं
जिस्म मिलते हैं तो बच्चे गिनते हैं
बच्चे गिनते हैं तो मजबूरियां होती हैं
मजबूरियां होती हैं तो दूरियां होती हैं
दूरियां होती हैं तो फ़ासले होते हैं
फ़ासले होते हैं तो फैसले होते हैं
एक बेटा और बेटी तुम ले लो
एक बेटा और बेटी हम ले लें
बेटे विदेश चले गये बेटियां ससुराल चली गई
अकेला बूढा रह गया अकेली बूढी रह गई
एक आंगन सूना रह गया दो खाटें टूटी रह गई
खांसते-खांसते बूढे की सांसे फूल गई
बुढिया पिछले गिले सब भूल गई
मरते हुये बूढे की सेवा कुछ इतनी कर गई
कि बूढे के साथ बुढिया भी मर गई
प्रिय अन्तर सोहिल,
ReplyDeleteआपकी कविता लव मैरिज पडी। अच्छी है पर लगा जैसे मुनि श्री तरूण सागर जी के प्रवचन का काई पन्ना पड लिया हो अगर तरूण सागर जी को न जानते हो तो किसी जैनी भाई से कडवे वचन नामक सीडी ले कर अवलोकन करें।
Anonymous जी नमस्कार
ReplyDeleteयह कविता मेरी रचना नही है। मुझे तो कविता का क ख ग भी नही आता है। कृप्या आप मूल लेखक को साधुवाद दीजिये।
यह कविता मैनें स्कूल के दिनों में कहीं से पढकर एक डायरी में लिख रखी थी, जिसे सहेजने के लिये मैनें इसे डिजिटल कर दिया है। मुझे इस रचना के लेखक या रचियता का नाम भी नही मालूम है। अगर आपको पता चल जाये तो मुझे बताईयेगा। आपकी बडी कृपा होगी।
प्रणाम स्वीकार करें
और हां जी मैने तरूण सागर जी को सुन रखा है और उनके क्रांतिकारी विचार मुझे पसंद भी आते हैं।
ReplyDelete