11 October 2008

इतना ही है जरुरी तो तुम भी चले जाओ

किस मोड पर मिलोगे कुछ तो मगर बताओ

मत छोडना इसे तुम दिल राख हो गया है

ये जल चुका है इसको अब और न जलाओ

हमने तुम्हें तो अब तक कुछ भी नही कहा है

इस बार भी वो झूठी कसमें नहीं उठाओ

हम गौर से सुनेंगें मजबूरियां तुम्हारी

सच सच मगर कभी कुछ तो हमें बताओ

3 comments:

  1. मुंबई में जो कुछ हुआ उसके लिया बहुत दुखी हूँ. मन हल्का करने के लिए यहाँ चला आया हूँ.

    आपकी रचना पढ़ी, रचना काफ़ी सशक्त है. मेरी बधाई स्वीकार करें

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  2. @ मनुज मेहता जी नमस्कार
    यह रचना मेरी नहीं है जी, स्कूल के दिनों में मैनें कहीं से अपनी डायरी में नोट की थी।

    प्रणाम

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  3. किसी को रचनाकार का नाम मालूम हो तो कृप्या मुझे भी बतायें, आभार होगा।

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मुझे खुशी होगी कि आप भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखें या मुझे मेरी कमियां, खामियां, गलतियां बतायें। अपने ब्लॉग या पोस्ट के प्रचार के लिये और टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भावना रखकर, टिप्पणी करने के बजाय टिप्पणी ना करें तो आभार होगा।